मेरा शासन My Gov राष्ट्रीय गरिमा क़ानून
राष्ट्रीय गरिमा, संवैधानिक सर्वोच्चता और लोकतांत्रिक मूल्यों की सुरक्षा हेतु आचरण नियम संयम क़ानून
राष्ट्रीय गरिमा
भारत में राष्ट्रीय गरिमा को सर्वोच्च स्थान रहेगा, कोई भी भारतीय नागरिक देश में अथवा किसी दूसरे देश में भारत की गरिमा और व्यवस्था के विरुद्ध झूठी या नकारात्मक अभिव्यक्ति करता है, हॉनी पहुंचाता है, अविश्वास उत्पन्न करता है। तो उसकी भारतीय नागरिकता आरोप के साथ ही समाप्त हो जाएगी। इसे अपनी नागरिकता को बहाल कराने के लिए उच्च न्यायालय में आग्रह दायर करना होगा, वहाँ पूरी जाँच के पश्चात राहत या दंड दिया जा सकेगा। यह कार्य न्यायालय 1 माह से कम समय में ही पूरा करवाएगा। इसकी फाइनल अपील उच्च न्यायालय की बड़ी बेंच में ही की जा सकेगी।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता होगी स्वछंदता नहीं होगी , कोई भी आरोप मनमाने तरीके से नहीं लगा सकेंगे, आपको उसके कुछ सबूत भी देनें होंगे।
किसी भी मनमाने आरोप का नं तो प्रसारण होगा नं प्रकासन होगा, क्योंकि यह देश की प्रगति में बाधा उत्पन्न करना ही होता है।
नागरिकों को अपना आरोप शिकायत आशंका मांग ज्ञापन को जिला कलक्टर के समक्ष दर्ज कराने की पूरी स्वतंत्रता होगी, किन्तु यह सार्वजनिक प्रकाशन योग्य तब तक नहीं है जब तक प्रमाणित नं पाई जाये।
संवेधानिक सर्वोच्चता
भारत में संवेधानिक सर्वोच्चता है किन्तु इसका अर्थ झूठ की भ्रामकता की और राजनीती चमकाने के लिए किसी षड्यंत्र की अनुमति नहीं है। देश उसी तरह से चलेगा जिस तरह देश होता और चलता है। इसे मनचाहे तरीके अपने अनुकूल या किसी के प्रतिकूल मोड़ने की अनुमति नहीं होगी।
संविधान की मनमानी व्यख्या भी नहीं की जा सकेगी, मूल अधिकारों का संरक्षण के साथ मूल कर्तव्यों के पालन की भी जबाबदेही होगी।
संविधान प्रदत्त संस्थाओं की विश्वनीयता को लेकर गैर जबाबदेह बयान आरोप नहीं लगाये जा सकेंगे। इन्हे दर्ज कराने की व्यवस्था है वहज़न अपना सबूत दर्ज करें और समाधान पाएं।
झूठे आरोपों के द्वारा संवेधानिक संस्थाओं को डराना धमकाना गैर जमानती अपराध के साथ ही गंभीर सजा के योग्य होगा। इस प्रवृति से देश में भ्रष्टता और माफियावाद पनपता है। इसे सख्ती से रोका जायेगा।
लोकतान्त्रिक मूल्यों की रक्षा
राजनैतिक दलों को पूरी तरह राष्ट्र हित चिंतक होना होगा और उन्हें राष्ट्रीय मामलों तक ही सीमित होना होगा। उन्हें लोकतान्त्रिक मूल्यों का संरक्षण करना होगा यह उनकी जबाबदेही में भी होगा। संसद के सदन पर उठाने की अलग व्यवस्था है और अलग स्वतंत्रता है। उसका वहीं उपयोग करना।
लोकतान्त्रिक तरीके से चुनी सरकार संविधान और लोकतंत्र के लिए सर्वोच्च सम्मान एवं स्वीकार्यता है। इस लिए किसी भी विधि सम्मत तरीके से पदनिर्वहन करने वाले व्यक्ति की सार्वजनिक आलोचना और आरोप प्रत्यारोप नहीं लगाये जा सकेंगे। यदी राजनैतिक द्वेष से आरोप प्रत्यारोप लगाये जाते हैँ तो वै कठोर दंड से दंडनीय होंगे।
लोकतान्त्रिक प्रक्रिया से निर्वाचित व्यक्ति , संविधान सम्मत है उसका अपमान संविधान और लोकतंत्र का अपमान होगा।
अनुशासन और नियम संयम अत्यंत आवश्यक होगा, अन्यथा नागरिक अधिकार समाप्त करने का दंड भुगतना होगा।
राष्ट्रीय गरिमा, संवैधानिक सर्वोच्चता एवं लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा अधिनियम (प्रस्तावित ड्राफ्ट)
अध्याय 1: प्रारंभिक उपबंध
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संक्षिप्त नाम और प्रारंभ
इस अधिनियम को “राष्ट्रीय गरिमा, संवैधानिक सर्वोच्चता एवं लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा अधिनियम, ” कहा जाएगा। -
परिभाषाएं
इस अधिनियम में, जब तक संदर्भ से भिन्न अर्थ न निकले:- "राष्ट्रीय गरिमा" का अर्थ है भारत की छवि, संप्रभुता, अखंडता, संस्कृति एवं व्यवस्था की प्रतिष्ठा।
- "संवैधानिक संस्थाएं" में संसद, उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालय, चुनाव आयोग, नियंत्रक महालेखा परीक्षक, आदि सम्मिलित होंगे।
- "लोकतांत्रिक मूल्य" का अर्थ है मताधिकार, विधि का शासन, उत्तरदायित्व, पारदर्शिता, नागरिक अधिकार एवं कर्तव्य।
अध्याय 2: राष्ट्रीय गरिमा की रक्षा हेतु प्रावधान
- भारत विरोधी झूठी या नकारात्मक अभिव्यक्ति का निषेध
यदि कोई भारतीय नागरिक भारत के भीतर या बाहर, भारत की गरिमा एवं व्यवस्था के विरुद्ध झूठी, नकारात्मक या दुर्भावनापूर्ण अभिव्यक्ति देता है:- उसकी भारतीय नागरिकता स्वतः निलंबित की जा सकती है।
- संबंधित व्यक्ति 1 माह के भीतर उच्च न्यायालय में पुनर्विचार याचिका दायर कर सकता है।
- अंतिम अपील उच्च न्यायालय की बड़ी पीठ के समक्ष ही स्वीकार्य होगी।
- अध्याय 3: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर संयम
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उत्तरदायी अभिव्यक्ति
- प्रत्येक नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता होगी, किंतु स्वेच्छाचार की अनुमति नहीं होगी।
- किसी भी सार्वजनिक आरोप हेतु न्यूनतम प्रमाण आवश्यक होंगे।
- मनगढ़ंत आरोपों का न तो प्रसारण होगा, न ही प्रकाशन।
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शिकायत की प्रक्रिया
- नागरिक किसी भी आरोप, संदेह या मांग को जिला कलेक्टर या अधिकृत प्राधिकारी के समक्ष लिखित रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं।
- जब तक आरोप प्रमाणित नहीं होता, वह सार्वजनिक प्रकाशन योग्य नहीं माना जाएगा।
अध्याय 4: संवैधानिक सर्वोच्चता की सुरक्षा
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संविधान की मनमानी व्याख्या का निषेध
- संविधान की किसी भी धारा की व्यक्तिगत या राजनीतिक लाभ हेतु मनमानी व्याख्या नहीं की जा सकेगी।
- मूल अधिकारों के साथ मूल कर्तव्यों का पालन नागरिकों की उत्तरदायित्व होगा।
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संवैधानिक संस्थाओं पर झूठे आरोपों की मनाही
- किसी भी संवैधानिक संस्था पर बिना प्रमाण झूठे आरोप या आलोचना करना एक गैर-जमानती अपराध होगा।
- यह कृत्य 5 वर्ष तक की कठोर सजा एवं आर्थिक दंड से दंडनीय होगा।
अध्याय 5: लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा
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राजनीतिक दलों की राष्ट्रीय जिम्मेदारी
- प्रत्येक राजनीतिक दल को राष्ट्रीय हितों के अनुरूप कार्य करना अनिवार्य होगा।
- राजनीतिक गतिविधियाँ संवैधानिक दायरे में सीमित रहेंगी।
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सरकारी पद पर नियुक्त व्यक्ति की गरिमा की रक्षा
- लोकतांत्रिक प्रक्रिया से निर्वाचित अथवा विधि सम्मत पदधारी की बिना प्रमाण आलोचना प्रतिबंधित होगी।
- यदि आलोचना राजनीतिक द्वेष के कारण की गई हो, तो यह गंभीर दंडनीय अपराध माना जाएगा।
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लोकतंत्र एवं संविधान का अपमान
- लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित प्रतिनिधि का अपमान संविधान और लोकतंत्र का अपमान होगा।
- इसके लिए नागरिक अधिकारों का स्थगन अथवा निलंबन लागू किया जा सकेगा।
अध्याय 6: आचरण, अनुशासन एवं संयम
- अनुशासनहीनता का दंड
- यदि कोई नागरिक बार-बार सार्वजनिक शांति, गरिमा एवं नियमों का उल्लंघन करता है, तो
- नागरिक अधिकारों का सीमित/स्थायी स्थगन किया जा सकेगा।
- ऐसी स्थिति में दोषी को न्यायिक प्रक्रिया के अंतर्गत अनुशासनात्मक दंड दिया जा सकेगा।
अध्याय 7: दंडात्मक प्रावधान
- झूठे आरोप या प्रचार हेतु दंड
- प्रथम अपराध पर 2 वर्ष की कारावास या ₹50,000 का जुर्माना या दोनों।
- पुनरावृत्ति पर 5 वर्ष तक का कारावास एवं 1 लाख तक जुर्माना।
- झूठे आरोपों का मीडिया प्रकाशन
- मीडिया द्वारा बिना प्रमाण किसी झूठे आरोप का प्रसारण/प्रकाशन करने पर मीडिया संस्था पर लाइसेंस निलंबन / ₹10 लाख तक जुर्माना लगाया जा सकता है।
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