कांग्रेस का चीन Chaina से MoU और पाकिस्तान पर नरमी: क्या यह भारत-विरोधी नैरेटिव को मजबूती देता है?





कांग्रेस का चीन से MoU और पाकिस्तान पर नरमी: क्या यह भारत-विरोधी नैरेटिव को मजबूती देता है?

चीन-कांग्रेस समझौता: एक रहस्य, जो आज भी सवालों के घेरे में है

2008 में कांग्रेस पार्टी और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (CPC) के बीच हुए 'समझौता ज्ञापन' (MoU) को लेकर राजनीतिक और रणनीतिक हलकों में संदेह बरकरार है। यह समझौता तत्कालीन कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी और CPC के नेताओं के बीच बीजिंग में हुआ था। इसकी शर्तें आज तक सार्वजनिक नहीं की गई हैं। यह तथ्य अपने-आप में पारदर्शिता की कमी और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मामलों में गोपनीयता के प्रति कांग्रेस की नीतिगत उदासीनता को दर्शाता है।

इस MoU का कथित उद्देश्य 'उच्च-स्तरीय परामर्श' और 'रणनीतिक संवाद' बताया गया, लेकिन आलोचकों का तर्क है कि जब भारत और चीन के बीच सीमा विवाद और रणनीतिक तनाव लगातार बढ़ रहे हों, तब किसी भारतीय राजनीतिक दल का इस प्रकार का द्विपक्षीय समझौता देशहित के विरुद्ध प्रतीत होता है।

बीजिंग में गांधी और भुट्टो परिवार की उपस्थिति: महज संयोग या रणनीतिक मेल?

7 अगस्त 2008 को सोनिया गांधी और राहुल गांधी बीजिंग में मौजूद थे। आश्चर्यजनक रूप से, अगले ही दिन पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (PPP) के नेता बिलावल भुट्टो और उनकी बहनें भी बीजिंग ओलंपिक्स में शामिल होने पहुंचीं। ये दोनों परिवार – भारत और पाकिस्तान की प्रमुख राजनीतिक विरासतों के प्रतिनिधि – एक ही समय पर चीन में क्यों थे? इस पर आज भी कोई आधिकारिक स्पष्टीकरण नहीं आया है।

महत्वपूर्ण बात यह है कि कुछ ही समय बाद PPP ने भी CPC के साथ एक MoU पर दस्तखत किए। यह किसी रणनीतिक समन्वय की ओर संकेत करता है या नहीं – यह प्रश्न अब भी अनुत्तरित है।

क्या कांग्रेस के बयान पाकिस्तान के लिए उपयोगी हथियार बनते हैं?

राहुल गांधी का बयान: रणनीतिक या अविवेकपूर्ण?

7 मई 2025 को भारत द्वारा सीमा पार एयरस्ट्राइक के बाद पाकिस्तान ने एक दुष्प्रचार अभियान चलाया, जिसमें दावा किया गया कि भारत के राफेल विमानों को नुकसान पहुंचा। ऐसे वक्त में राहुल गांधी द्वारा यह सवाल उठाना – “कितने विमान नष्ट हुए?” – प्रत्यक्ष तौर पर पाकिस्तान के नैरेटिव को बल देता है।

ठीक यही पैटर्न 2019 के पुलवामा हमले के बाद भी देखा गया था, जब राहुल गांधी ने कहा था, "हमले से किसे फायदा हुआ?" – जिसे पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र में भारत के विरुद्ध अपनी दलीलों में इस्तेमाल किया।

मल्लिकार्जुन खड़गे का बयान: संदेह या सहानुभूति?

कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे ने भी पहलगाम आतंकी हमले में 'सुरक्षा में चूक' पर सवाल उठाया, ठीक उसी दिन जब पाकिस्तान का विदेश मंत्रालय 'ऑपरेशन सिंदूर' के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय सहानुभूति बटोरने में लगा था। ये बिंदु महज राजनीतिक आलोचना के नहीं, बल्कि सुरक्षा नीति में भरोसे को कमजोर करने वाले माने जाते हैं।

2004-2014: कांग्रेस सरकार का पाकिस्तान और चीन पर नरम रुख

26/11 के बाद जवाबी कार्रवाई क्यों नहीं हुई?

मुंबई हमलों के बाद, जब भारत के पास पाकिस्तान स्थित आतंकी ठिकानों की जानकारी थी, तब भी कोई सैन्य कार्रवाई नहीं की गई। इसके बजाय सिर्फ 'कूटनीतिक दबाव' की नीति अपनाई गई, जिसका कोई ठोस परिणाम नहीं निकला। यह निर्णय तब लिया गया जब पाकिस्तान में PPP की सरकार थी।

LAC पर चीन की घुसपैठ और UPA की चुप्पी

2004-2014 के दौरान चीन द्वारा की गई कई घुसपैठें – जैसे 2013 में देपसांग में 19 किमी अंदर तक चीनी घुसपैठ – के बावजूद भारत की प्रतिक्रिया बेहद संयमित रही। व्यापार घाटा बढ़ता गया, और भारत की चीन पर आर्थिक निर्भरता भी। इससे यह सवाल उठता है कि क्या कांग्रेस सरकार जानबूझकर रणनीतिक नरमी बरत रही थी?

वंशवाद और राजनीतिक संस्कृति: कांग्रेस-PPP के बीच समानता?

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी दोनों ही वंशवादी राजनीति और 'लंबे समय तक सत्ता में रहने की आदत' जैसी समस्याओं से ग्रस्त हैं। दोनों ही विपक्ष में रहकर अपने-अपने देशों में न सिर्फ सरकार की आलोचना करते हैं, बल्कि कुछ मामलों में राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी घटनाओं पर भी जिम्मेदारी से दूर दिखाई देते हैं।

निष्कर्ष: पारदर्शिता, ज़िम्मेदारी और राष्ट्रहित की कसौटी पर कांग्रेस को जवाब देना होगा

कांग्रेस पार्टी को अब स्पष्ट करना चाहिए:

1. 2008 के चीन MoU की शर्तें क्या थीं?

2. क्या पाकिस्तान और चीन के प्रति दिखने वाली रणनीतिक सहानुभूति महज संयोग है?

3. राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मामलों में नेताओं के बयान क्या जिम्मेदारी की कसौटी पर खरे उतरते हैं?

भारतीय राजनीति में विपक्ष की भूमिका महत्वपूर्ण होती है, लेकिन जब बात राष्ट्रीय सुरक्षा, सीमाओं की रक्षा और विदेशी रणनीतिक संबंधों की हो, तो किसी भी दल को यह नहीं भूलना चाहिए कि राजनीतिक लाभ से ऊपर राष्ट्रहित होता है।

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 Arvind Sisodia: Congress का चीन से MoU और पाक से नरमी, क्या कांग्रेस की नीतियां भारत विरोधी नैरेटिव को ताकत दे रही हैं?
Congress China MoU: कांग्रेस पार्टी और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (CPC) के बीच 2008 में हुए एक रहस्यमयी "समझौता ज्ञापन" (MoU) को लेकर सवाल आज भी उठते हैं। इस समझौते के मुख्य बिंदु अब तक सार्वजनिक नहीं किए गए हैं, लेकिन इसे 'उच्च-स्तरीय आदान-प्रदान' और 'क्षेत्रीय व अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर परामर्श' का जरिया बताया गया।

हालांकि, इसके आस-पास हुई समय की अन्य घटनाओं ने इसे एक बड़े राजनीतिक विवाद का रूप दे दिया है। इस समझौते से जुड़ी सबसे चौंकाने वाली बात यह थी कि इसके ठीक आसपास भारत के गांधी परिवार और पाकिस्तान के भुट्टो परिवार को चीन की राजधानी बीजिंग में एक साथ देखा गया।

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7 अगस्त 2008 को सोनिया गांधी, राहुल गांधी और गांधी परिवार के अन्य सदस्य चीन में मौजूद थे। अगले ही दिन, 8 अगस्त को, पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (PPP) के नेता बिलावल भुट्टो ज़रदारी और उनकी बहनें बीजिंग ओलंपिक्स में भाग लेने के लिए वहां पहुंचीं।
दोनों देशों के प्रमुख राजनीतिक परिवारों की एक ही समय पर और एक ही जगह उपस्थिति, साथ ही चीन के साथ गुप्त समझौते की टाइमिंग, राजनीतिक विश्लेषकों के लिए यह एक बड़ा संदेह का विषय बन गया। खासकर तब, जब दो महीने बाद ही PPP ने भी CPC के साथ एक MoU पर दस्तखत किए।

क्या कांग्रेस की बयान बाजी पाकिस्तान के लिए वरदान?

हाल समय में कांग्रेस और राहुल गांधी की कुछ बयानों को पाकिस्तान की रणनीतिक जरूरतों के हिसाब से इस्तेमाल किया गया है। उदाहरण के लिए, 7 मई 2025 को भारत ने पहलगाम आतंकी हमले के जवाब में सीमा पार एयरस्ट्राइक की गई। इसके बाद पाकिस्तान ने एक झूठा प्रचार अभियान शुरू किया कि भारत के लड़ाकू विमान राफेल को नुकसान पहुंचा है।

इसी बीच कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने सरकार से यह पूछ डाला कि कितने विमान नष्ट हुए.. यह सवाल पाकिस्तान के दावों को ही बल देता नजर आया। उन्होंने विदेश मंत्री एस. जयशंकर के बयान को गलत ढंग से प्रस्तुत किया और यह संकेत देने की कोशिश की कि भारत ने शायद पाकिस्तान को पहले ही हमले की सूचना दे दी थी।

यह पहली बार नहीं है। 2019 के पुलवामा हमले के बाद राहुल गांधी के बयानों को भी पाकिस्तान ने अपनी मीडिया ब्रीफिंग में प्रस्तुत किया था। इसके अलावा, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे द्वारा पहलगाम हमले में सुरक्षा चूक पर सवाल उठाना भी पाकिस्तान के "ऑपरेशन सिंदूर" के प्रेस बयान में इस्तेमाल किया गया।

2004-2014: क्या कांग्रेस ने दिखाया नरमी का रुख?
UPA शासन के दौरान भारत की पाकिस्तान और चीन नीति को लेकर भी कई सवाल उठे हैं। 26/11 के मुंबई आतंकी हमलों के बाद भारत ने कोई सैन्य कार्रवाई नहीं की, सिर्फ कूटनीतिक दबाव डाला लेकिन इसका कोई ठोस नतीजा नहीं निकला।

उस वक्त कई वरिष्ठ राजनयिकों और अधिकारियों ने बताया कि भारत के पास पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों की जानकारी थी, फिर भी कार्रवाई से बचा गया। यह वह दौर था जब पाकिस्तान में PPP की सरकार थी - एक और संयोग, जो रणनीतिक नरमी के आरोपों को बल देता है।

चीन के मामले में भी यही रवैया देखा गया। 2004 से 2014 तक चीन की ओर से LAC पर कई बार घुसपैठ हुई, जैसे 2013 का देपसांग घुसपैठ, लेकिन भारत ने इन्हें अक्सर नजरअंदाज किया। इस दौरान भारत-चीन व्यापार घाटा तेजी से बढ़ता गया, जिससे आर्थिक निर्भरता में वृद्धि हुई।

परिवारवाद, सियासी गिरावट और रणनीतिक चूक
कांग्रेस और PPP दोनों ही एक साझा राजनीतिक संस्कृति में बंधे हुए प्रतीत होते हैं - एक तरफ वंशवाद, दूसरी तरफ सत्ता से गिरावट। दोनों ही पार्टियाँ अब विपक्ष में हैं, लेकिन उनके पारस्परिक संबंध और विदेश नीति के overlapping बिंदु आज भी जारी हैं।

कई विश्लेषकों का मानना है कि MoU और कुछ नेताओं की "मुलाकातें" मात्र प्रतीकात्मक नहीं हैं - ये उस चिंताजनक प्रवृत्ति की ओर इशारा करती हैं जिसमें भारत के विरोधी देशों के प्रति सहानुभूति या उदारता दिखती है।

कांग्रेस पार्टी को न सिर्फ 2008 के चीन MoU के बारे में पारदर्शिता बरतनी होगी, बल्कि यह भी स्पष्ट करना होगा कि बार-बार पाकिस्तान और चीन जैसे देशों के हितों के साथ मेल खाते उनके वक्तव्य और कदम महज संयोग हैं या कुछ और?

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Arvind Sisodia: 

प्रेस विज्ञप्ति

कांग्रेस बताये कि उसका चीन - पाक गठजोड़ से क्या साझेदारी है - अरविन्द सिसोदिया 

 कोटा 30 जुलाई। भाजपा राजस्थान के मीडिया संपर्क विभाग के प्रदेश सहसंयोजक अरविन्द सिसोदिया ने जारी प्रेस वक्तव्य द्वारा प्रश्न उठाया है कि " चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना से भारत की कांग्रेस पार्टी और पाकिस्तान की पीपल्स पार्टी ऑफ़ पाकिस्तान का गुप्त समझौता होना और कांग्रेस पार्टी की लगातार पाकिस्तान व चीन के प्रति नरमी, क्या इस आशंका को प्रमाणित करती है कि कांग्रेस की भारत विरोधी ताकतों से साझेदारी है? "

भारतीय जनता पार्टी राजस्थान के मीडिया संपर्क विभाग के प्रदेश सह-संयोजक अरविन्द सिसोदिया ने प्रेस विज्ञाप्ति के माध्यम से प्रश्न उठाया है कि " 2008 में कांग्रेस और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (CPC) के बीच हुए गुप्त "समझौता ज्ञापन" (MoU) को लेकर अब जनता को सच जानने का हक है। यह समझौता आज भी पूरी तरह से गोपनीय रखा गया है, जो भारत की सुरक्षा और विदेश नीति के लिए चिंताजनक है।

सिसोदिया ने कहा,

> “जब भारत और चीन के बीच सीमाई तनाव चरम पर हो, तब कांग्रेस द्वारा चीन से किया गया गुप्त समझौता और पाकिस्तान की लाइन पर खड़े बयान देश के हितों के विरुद्ध प्रतीत होते हैं। यह केवल संयोग नहीं हो सकते।”

उन्होंने आगे बताया कि 7 अगस्त 2008 को सोनिया गांधी और राहुल गांधी बीजिंग में मौजूद थे और ठीक अगले दिन पाकिस्तान के बिलावल भुट्टो और उनकी बहनें भी वहीं थीं। यह घटना उसी दौरान हुई जब दोनों पार्टियों ने क्रमशः CPC के साथ समझौते किए। क्या यह कोई रणनीतिक समन्वय था?

पाकिस्तान के दावों को बल देने वाले बयान – कांग्रेस की आदत बन चुकी है

अरविन्द सिसोदिया ने राहुल गांधी के हालिया बयान को पाकिस्तान के झूठे प्रचार अभियान के लिए उपयोगी बताया। उन्होंने कहा कि 7 मई 2025 को भारत द्वारा की गई एयरस्ट्राइक के बाद राहुल गांधी का यह सवाल – “कितने विमान नष्ट हुए?” – पाकिस्तान के झूठे दावों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वैधता देने जैसा था।

यह पहली बार नहीं है – पुलवामा हमले (2019) के बाद भी राहुल गांधी के बयान को पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र में इस्तेमाल किया था। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे द्वारा सुरक्षा चूक पर सवाल भी पाकिस्तान के "ऑपरेशन सिंदूर" के बयान में उद्धृत किए गए।

कांग्रेस का ट्रैक रिकॉर्ड संदिग्ध रहा है

सिसोदिया ने 2004-2014 के कांग्रेस शासन की ओर इशारा करते हुए कहा कि:

26/11 के आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान के खिलाफ कोई सैन्य कार्रवाई नहीं हुई।

LAC पर चीन की कई घुसपैठें (जैसे 2013 की देपसांग घटना) पर कमजोर प्रतिक्रिया दी गई।

भारत-चीन व्यापार घाटा उस समय चरम पर पहुंचा, जिससे देश की आर्थिक निर्भरता भी बढ़ी।

कांग्रेस को जवाब देना होगा

अरविन्द सिसोदिया ने मांग की कि कांग्रेस को तत्काल इन सवालों के उत्तर देने चाहिए:

1. 2008 में चीन से हुआ MoU किस आधार पर और किन शर्तों पर किया गया?

2. कांग्रेस नेताओं के बयान क्यों बार-बार पाकिस्तान और चीन के नैरेटिव को मजबूती देते हैं?

3. क्या ये घटनाएं मात्र संयोग हैं, या कांग्रेस सच में भारत विरोधी ताकतों के लिए 'सॉफ्ट कॉर्नर' रखती है?

> “कांग्रेस को यह समझना होगा कि राष्ट्रीय सुरक्षा पर राजनीति नहीं हो सकती। भारत की जनता अब सजग है और ऐसे सवालों के जवाब मांगती है।" – अरविन्द सिसोदिया

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बिलकुल, नीचे कांग्रेस नेताओं के उन प्रमुख बयानों और घटनाओं का विस्तार से उल्लेख किया गया है, जिनका पाकिस्तान और चीन द्वारा भारत-विरोधी नैरेटिव को समर्थन देने में उपयोग किया गया या जो सीधे तौर पर उनके पक्ष में गए। ये घटनाएं कांग्रेस की विदेश नीति, रक्षा विषयों पर बयानबाज़ी और राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति रवैये पर गहरे सवाल खड़े करती हैं।

🔴 कांग्रेस नेताओं के ऐसे बयान जो पाकिस्तान और चीन के लिए लाभकारी सिद्ध हुए


1. एयरस्ट्राइक (2025) के बाद राहुल गांधी का बयान

घटना: 7 मई 2025 को भारत ने जम्मू-कश्मीर के पहलगाम आतंकी हमले के जवाब में सीमा पार एयरस्ट्राइक की।

बयान: राहुल गांधी ने पूछा — "हमारे कितने राफेल विमान नष्ट हुए?"

प्रभाव: यह सवाल ऐसे समय पर उठाया गया जब पाकिस्तान यह झूठा प्रचार कर रहा था कि भारतीय विमान को नुकसान हुआ है। राहुल गांधी का यह बयान उसी दुष्प्रचार को बल देता नजर आया और पाकिस्तान ने इसे अपनी प्रेस ब्रीफिंग में उद्धृत किया।

2. पुलवामा हमले (2019) के बाद राहुल गांधी का बयान

घटना: 14 फरवरी 2019 को पुलवामा में सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हुए।

बयान: राहुल गांधी ने ट्वीट किया — "हमले से किसे फायदा हुआ?"

प्रभाव: पाकिस्तान ने इस बयान को संयुक्त राष्ट्र और OIC (इस्लामिक देशों के संगठन) में भारत के खिलाफ उपयोग किया। इसने भारतीय सरकार की कार्रवाई की वैधता पर सवाल उठाने में पाकिस्तान को अवसर दिया।

3. बालाकोट एयरस्ट्राइक (2019) पर कांग्रेस का सवाल

घटना: 26 फरवरी 2019 को भारतीय वायुसेना ने बालाकोट में आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया।

बयान: कांग्रेस नेता मनीष तिवारी और दिग्विजय सिंह सहित कई नेताओं ने सबूत मांगते हुए कहा — "स्ट्राइक में कितने मरे?"

प्रभाव: यह मांग पाकिस्तान की उस लाइन से मेल खाती थी, जिसमें वह स्ट्राइक को "झूठा प्रचार" बता रहा था। इससे भारतीय सैन्य ऑपरेशन की साख पर प्रश्नचिन्ह लगा।

4. विदेश मंत्री एस. जयशंकर के बयान को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत करना (2025)

घटना: राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि भारत सरकार ने पाकिस्तान को एयरस्ट्राइक की पहले से सूचना दी।

हकीकत: एस. जयशंकर ने ऐसा कोई बयान नहीं दिया था। यह केवल कांग्रेस द्वारा बयान को संदर्भ से काटकर पेश करने का प्रयास था।

प्रभाव: इस झूठे आरोप ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की सुरक्षा नीति को कमजोर दिखाने की कोशिश की, जिसे पाकिस्तानी मीडिया ने तुरंत लपक लिया।

5. गलवान संघर्ष (2020) के बाद कांग्रेस की प्रतिक्रिया

घटना: जून 2020 में भारत और चीन के सैनिकों के बीच गलवान घाटी में हिंसक झड़प हुई, जिसमें 20 भारतीय सैनिक शहीद हुए।

बयान: राहुल गांधी ने बार-बार कहा — "प्रधानमंत्री ने चीन के सामने सिर झुका लिया। चीन हमारी जमीन ले गया।"

प्रभाव: यह बयान चीन की उस स्थिति को मज़बूत करता है, जिसमें वह गलवान को "अपने क्षेत्र" के रूप में दिखाता है। चीन के सरकारी ग्लोबल टाइम्स और CCTV ने राहुल गांधी के इस बयान को उद्धृत किया।
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6. मल्लिकार्जुन खड़गे द्वारा "सुरक्षा में चूक" का आरोप (2025)

घटना: पहलगाम हमले के बाद कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा — "सरकार सुरक्षा में विफल रही, खुफिया तंत्र फेल हुआ।"

प्रभाव: ठीक इसी दिन पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में खड़गे के बयान को संदर्भित करते हुए भारत की "अंदरूनी विफलताओं" की बात की।
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7. सर्जिकल स्ट्राइक (2016) पर भी कांग्रेस ने मांगे थे सबूत

घटना: भारतीय सेना ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में आतंकी शिविरों पर सर्जिकल स्ट्राइक की।

बयान: संजय निरुपम (कांग्रेस नेता) ने कहा — "यह सर्जिकल स्ट्राइक नहीं, सिर्फ एक दिखावा है।"

प्रभाव: पाकिस्तान ने इसे भारत की "झूठी कहानी" बताने के लिए आधार बनाया। पाकिस्तान के तत्कालीन DG ISPR ने इसे कांग्रेस के बयानों के हवाले से खारिज किया।

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🔎 सारांश: क्या यह सिर्फ राजनीति है या कुछ और?

कांग्रेस नेताओं के इन बयानों से बार-बार दो बातें स्पष्ट होती हैं:

1. राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मामलों में कांग्रेस का रुख बार-बार भारत की जगह शत्रु देशों के दावों के अनुरूप दिखाई देता है।

2. इन बयानों को पाकिस्तान और चीन दोनों ही बार-बार अपने सरकारी बयानों, मीडिया रिपोर्ट्स और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत के खिलाफ हथियार के रूप में इस्तेमाल करते हैं।

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