ईश्वर की इच्छा : प्रेम, स्नेह और शांति से परिपूर्ण जीवन जियो - अरविन्द सिसोदिया

विचार : -
" ईश्वर की इच्छा :  प्रेम, स्नेह और शांति से परिपूर्ण जीवन ही  सनातन हिंदू जीवन पद्धति है। "

ईश्वर की यह सनातन भावना रही है कि सृष्टि के सभी प्राणी प्रेम, स्नेह, करुणा और शांति से परिपूर्ण जीवन जीएँ। हिंदू सनातन धर्म इसी मूल भावना को अपनी जीवन-पद्धति का आधार बनाता है। यह धर्म न केवल आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग दिखाता है, बल्कि एक सामाजिक व नैतिक जीवन का आदर्श रूप भी प्रस्तुत करता है।

सनातन जीवन-दृष्टि में प्रत्येक जीव को ब्रह्म का अंश माना गया है। अतः सभी के प्रति करुणा और स्नेह रखना ही धर्म है।

ईश्वर की सृष्टि में प्रत्येक जीव समान रूप से महत्वपूर्ण है। मानव जीवन को प्राप्त करना एक दुर्लभ सौभाग्य माना गया है, और उसका उद्देश्य केवल भौतिक सुख-सुविधाओं की प्राप्ति नहीं, बल्कि आत्मिक उन्नति, शांति और प्रेम में जीवन व्यतीत करना है। ईश्वर चाहते हैं कि सभी प्राणी एक-दूसरे के प्रति करुणा, दया, प्रेम और अहिंसा का व्यवहार करें। यह भावना, हिंदू सनातन धर्म की मूल आत्मा है, जो व्यक्ति को एक आदर्श जीवन जीने की प्रेरणा देती है।

प्रेम और स्नेह: सनातन का मूल आधार

हिंदू धर्म में "वसुधैव कुटुम्बकम्" (यह संपूर्ण पृथ्वी एक परिवार है) की भावना को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। इसका आशय यही है कि सभी जीव-जंतु, मानव, प्रकृति – सब ईश्वर के ही अंश हैं और इसलिए सभी के साथ प्रेमपूर्वक व्यवहार करना हमारा कर्तव्य है। प्रेम, केवल निजी संबंधों तक सीमित नहीं बल्कि संपूर्ण सृष्टि के प्रति होना चाहिए।

"वसुधैव कुटुम्बकम्:" सम्पूर्ण सृष्टि एक परिवार:-

> "अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्।
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्॥"
— महापाणिनि नीति-सार
अर्थ: "यह अपना है और वह पराया है – ऐसी सोच संकीर्ण बुद्धि वालों की होती है। उदार हृदय वाले तो समस्त पृथ्वी को ही परिवार मानते हैं।"

यह श्लोक हिंदू धर्म की उस उदात्त भावना को दर्शाता है, जिसमें समस्त जीवों को एक ब्रह्मस्वरूप मानकर समान दृष्टि से देखा जाता है।

शास्त्रों में कहा गया है: "आत्मवत् सर्वभूतेषु यः पश्यति स पण्डितः"
(जो सभी प्राणियों में अपने ही आत्मा को देखता है, वही सच्चा ज्ञानी है।)

2- अहिंसा और करुणा: धार्मिक जीवन का मार्गदर्शन

महर्षि पतंजलि ने योगसूत्र में 'अहिंसा' को यमों में सबसे पहले स्थान दिया है। यह दिखाता है कि हिंसा से मुक्त जीवन ही आध्यात्मिक उन्नति की पहली सीढ़ी है। अहिंसा केवल शारीरिक न हो, बल्कि वाणी और विचार में भी होनी चाहिए। रामायण, महाभारत और अन्य धर्मग्रंथों में भी बार-बार यह स्पष्ट किया गया है कि हिंसा, घृणा, क्रोध – ये सभी आत्मा को कलुषित करते हैं और मनुष्य को ईश्वर से दूर ले जाते हैं।
अहिंसा – सर्वोच्च धर्म

> "अहिंसा परमो धर्मः धर्म हिंसा तथैव च।"
— महाभारत, अनुशासन पर्व

अर्थ: "अहिंसा परम धर्म है, किंतु धर्म की रक्षा के लिए हिंसा भी आवश्यक हो सकती है।"
लेकिन सामान्य जीवन में सनातन धर्म व्यक्ति को अहिंसा, सहिष्णुता और क्षमा का पालन करने का आग्रह करता है।

> "न हिंस्यान्यत्र जीवानि"
— मनुस्मृति 5.45
(किसी भी प्राणी की हिंसा नहीं करनी चाहिए।)
दया और सेवा – धर्म का मूल स्वरूप

> "अद्रोहः सर्वभूतेषु कर्मणा मनसा गिरा।
अनुग्रहो दानं श्रद्धा यः स धर्मः सनातनः॥"
— मनुस्मृति 10.63

(सभी प्राणियों के प्रति द्वेष का अभाव, कार्य, मन और वाणी से करुणा, दान, और श्रद्धा – यही सनातन धर्म है।)

3-:समत्व और करुणा – सभी प्राणियों में आत्मदृष्टि

> "आत्मवत् सर्वभूतेषु यः पश्यति स पण्डितः।"
— भगवद्गीता 6.32
(जो सभी प्राणियों में अपने समान आत्मा को देखता है, वही सच्चा ज्ञानी है।)

> "सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत्॥"
— ऋग्वेद / उपनिषद
(सभी सुखी हों, सभी रोगमुक्त हों, सभी शुभ देखें, कोई भी दुख का भागी न बने।)

यह प्रार्थना सनातन धर्म की उस भावना को प्रकट करती है जिसमें केवल मानव मात्र ही नहीं, संपूर्ण जीव जगत की भलाई की कामना की जाती है।

4- शांति: अंतर्मन की स्थिति और बाहरी व्यवहार

हिंदू जीवन पद्धति ध्यान, जप, पूजा और साधना पर बल देती है ताकि व्यक्ति अपने अंतर्मन को शांत रख सके। जब मन शांत होता है, तो व्यक्ति समाज में भी शांति का संवाहक बनता है। भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं:
"शांतिम् निर्वाणपरमाम् मत्त्संस्थामधिगच्छति"
(जो मुझे प्राप्त करता है, वह परम शांति को प्राप्त करता है।)
शांतिपूर्ण जीवन: आंतरिक व बाह्य शांति

> "ॐ द्यौः शान्तिरन्तरिक्षं शान्तिः
पृथिवी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः।
वनस्पतयः शान्तिर्विश्वेदेवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः
सर्वं शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि॥"
— यजुर्वेद 36.17
(आकाश में शांति हो, पृथ्वी में शांति हो, जल में शांति हो, औषधियों में शांति हो, वनस्पतियों में शांति हो, देवताओं में शांति हो, ब्रह्म में शांति हो – सब ओर शांति ही शांति हो।)

यह मंत्र दिखाता है कि सनातन धर्म न केवल मानव की, बल्कि संपूर्ण प्रकृति की शांति की कामना करता है।

- योग और ध्यान से शांति की प्राप्ति

> "यत्रोपरमते चित्तं निरुद्धं योगसेवया।
यत्र चैवात्मनात्मानं पश्यन्नात्मनि तुष्यति॥"
— भगवद्गीता 6.20

(जहाँ योग के अभ्यास से चित्त शांत होता है, आत्मा अपने में ही संतोष पाती है – वही सच्ची शांति है।)

5-धर्म का उद्देश्य – समरसता और संतुलन

हिंदू धर्म केवल पूजा-पाठ का नाम नहीं है, बल्कि यह एक समग्र जीवन पद्धति है जिसमें धर्म (कर्तव्य), अर्थ (सदाचार से अर्जन), काम (इच्छाओं की मर्यादा में पूर्ति) और मोक्ष (आत्मा की मुक्ति) का संतुलन है। यह संतुलन तभी संभव है जब व्यक्ति के जीवन में प्रेम, करुणा और शांति हो।
हिंदू सनातन धर्म, ईश्वर की उस आदर्श कल्पना को मूर्त रूप देता है जिसमें समस्त जीव प्रेम, स्नेह और शांति से युक्त जीवन जिएं। इस धर्म की जड़ें केवल पूजा-अर्चना में नहीं, बल्कि व्यवहारिक जीवन की उन नैतिक शिक्षाओं में हैं जो हर व्यक्ति को करुणाशील, अहिंसक, शांत और उदार बनने की प्रेरणा देती हैं।

इस मार्ग का अनुसरण कर के ही हम ईश्वर की इच्छा की पूर्ति कर सकते हैं और संसार में सत्य, प्रेम व शांति की स्थापना कर सकते हैं।

> "ॐ लोकाः समस्ताः सुखिनो भवन्तु।"
(सभी लोकों के प्राणी सुखी हों।)

हिंदू सनातन धर्म केवल धार्मिक परंपराओं का संग्रह नहीं, बल्कि एक दार्शनिक दृष्टिकोण है जो ईश्वर की उस इच्छा को मूर्त रूप देता है कि संपूर्ण सृष्टि प्रेम, स्नेह और शांति में जीए। आज के समय में जब चारों ओर संघर्ष, असहिष्णुता और हिंसा का बोलबाला है, तब सनातन जीवन पद्धति की यह सीख और भी अधिक प्रासंगिक हो जाती है। यदि हम इस पथ पर चलें, तो न केवल हमारा व्यक्तिगत जीवन सुखमय होगा, बल्कि संपूर्ण समाज और विश्व में शांति की स्थापना संभव होगी।

– ॐ शांति: शांति: शांति: –

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