कांग्रेस से उनके नेता - जनप्रतिनिधि ही, क्यों पल्ला झाड़ रहे हैं ?

 कांग्रेस से उनके नेता - जनप्रतिनिधि ही, क्यों पल्ला झाड़ रहे हैं ?  

कांग्रेस से उनके नेता - जनप्रतिनिधि ही, क्यों पल्ला झाड़ रहे हैं ?


आज एक समाचार आ रहा है कि कांग्रेस ने अपने तीन विधायकों को झारखंड में पार्टी से निलंबित कर दिया है । इन तीन विधायकों के पास हावड़ा,पश्चिम बंगाल में एक मोटी राशि पकड़ी गई है । जिसका वह ठीक से जवाब नहीं दे पा रहे थे कि राशी क्यों और किस लिये है। माना जा रहा है कि कांग्रेस के ये विधायक एकनाथ शिंदे की तर्ज पर अलग पार्टी बना कर झामुमो या भाजपा के साथ नई सरकार अपनी शर्तों पर बनाते। अर्थात झारखंड सरकार को अस्थिर करना चाहते थे अर्थात वे कांग्रेस गाइडलाइन से बाहर जा रहे थे । इसलिए कांग्रेस ने उन्हें तुरंत सस्पेंड कर दिया है।  


यह बात तो नहीं चलनी है कि भाजपा ने खरीद कर यह किया - वह किया । बात यह है कि में बिकाऊ हूं तभी तो कोई खरीदेगा। जो भी कांग्रेस छोड रहा है वह कम से कम कांग्रेस के प्रति अविश्वासी तो है ही।


अब मूल प्रश्न यह उठ रहा है कि कांग्रेस के विधायक कई प्रांतों में कांग्रेस से पल्ला क्यों झाड़ रहे हैं। कांग्रेस छोड़कर किसी भी दूसरे दल में जाने के लिए उत्साहित क्यों हैं । इस तरह की क्या मुसीबत कांग्रेस में आगई कि उसके ही विधायक , कांग्रेस को छोड़कर दूसरे दल का दामन थाम रहे हैं ।


मध्यप्रदेश में कांग्रेस के बहुत सारे नेता एवं विधायक एक साथ कांग्रेस से अलग होकर दूसरे दल में शामिल हो रहे हैं। इससे पहले भी कर्नाटक में कांग्रेस के विधायकों नें ही कांग्रेस को गिरा दिया। उसके बाद यही दृश्य राजस्थान में भी अपूर्ण तरीके ये ही सही मगर हुआ , लम्बे समय तक पांच सितारा होटलों में दोनों गुट रहे, किसी तरह टूट तो बच गई मगर कांग्रेस पूरी तरह एक्सपोज हो गई। यह भी सामने आया कि कांग्रेस हाईकमान से असंतुष्ट , कांग्रेस से मुक्त होना चाहते हैं ।


इसी तरह कांग्रेस के साथ शिवसेना की गठबंधन सरकार थी, उसमें भी सत्तारूढ़ शिवसेना इसी कारण टूट गई कि वह कांग्रेस के साथ सरकार चला रही थी और भी कई प्रांतों में कमोबेश यह नजर आ रहा है कि कांग्रेस से उनके ही जनप्रतिनिधियों नेतागण बाहर निकलना चाहते हैं । जी 23 नाम से असन्तुष्ट कांग्रेस जन का गुट बना ही हुआ है। दिग्गज कांग्रेसी कपिल सिब्बल ने सपा का दामन थाम कर राज्य सभा में चले गये हैं। अर्थात कांग्रेस जन अब किसी दूसरे दल की शरण में पहुंचना चाहते हैं ।


राष्ट्रपति चुनाव में कई प्रांतो से यह खबर है कि कांग्रेस के जनप्रतिनिधियों ने अपनी ही पार्टी के प्रत्याशी को वोट न देकर एनडीए के प्रत्याशी को वोट दिया।


इसके पीछे मुख्य कारणों पर कांग्रेस को ही विचार करना होगा, कि उनके विधायकों में , उनके जनप्रतिनिधियों में, उनके नेताओं में नेतृत्व एवं नीतियों के प्रति अविश्वास क्यों उत्पन्न हो रहा है। उसका मूल कारण क्या है ।


यह बात बहुत स्पष्ट है कि कांग्रेस एक लंबे समय से संभवतः 1984 से लोकसभा में स्पष्ट बहुमत में आने के बाद से अभी तक पुनः लोकसभा में स्पष्ट बहुमत में नहीं आई है। उनके स्पष्ट बहुमत से आने वाले अंतिम नेता स्व0 राजीव गांधी थे, जो कि श्रीमती इंदिरा गांधी की नृशंस हत्या से उपजी सहानुभूति की लहर में 400 प्लस सीटों पर जीते थे । इसके बाद लगातार कांग्रेस स्पष्ट बहुमत के लिये संघर्षरत है और पिछले दो चुनावों से वह 2 अंकों तक ही सिमट रही है । कहीं ना कहीं कांग्रेस को अपने स्कोरबोर्ड को अच्छी तरह समझना होगा।


देश में जो भी स्पष्ट बहूमत की सरकार होती है वह जनता के बहूमत की सरकार होती है। इस तरह की सरकार का अपमान जनता का अपमान होता है। बे वजह की आलोचना और थर्डग्रेड के कमेन्टस अपने आपको अपरिपक्व ही साबित करना होता है। यही करनें से कांग्रेस स्वतः आप्रासंगिक होती जा रही है।


यह परम सत्य है कि देश के जनमत के बहुमत को ठेंगा दिखाकर कोई भी दल लोकसभा में बहुमत प्राप्त नहीं कर सकता। वर्तमान में कांग्रेस की जो नीतियां सामने आ रही हैं वह देश के बहुमत के विरोध और जो देश का बुरा करने की बात करते हें उनके साथ खड़े होनें की आ रही है। जिसे हर हालत में सुधारना होगा।


भारतीय बहूमत विरोधी ताकतों के पक्ष में कांग्रेस के खड़े होने की मानसिकता का नुकसान कांग्रेस को उठाना पड़ रहा है। कांग्रेस को यह बड़ी स्पष्टता से विचार करना चाहिए कि उसकी स्विकार्यता कैसे पुनः जनमत में हो। उन्हे सच्चे और अच्छे मन से खुल कर विचार करना चाहिए कि वह भारत की 1 सबसे पुरानी लोकतांत्रिक पार्टी है और उस स्थान को पुनः किस तरीके से प्राप्त कर सकती है। संवाद से दूरी ही उसे जनमत से दूर कर रही है।


कांग्रेस को वापसी के लिये भारत में एक अच्छे विपक्ष के रूप में भी भूमिका निभानी होगी। उसे भारत के हितों की चिंता, भारत के जनमानस के हितों की चिंता और आम जन के अनुरूप अपनी नीतियां व कार्यक्रम बनाने होंगे । अन्यथा अगर अबकी बार भी 2 अंकों में ही रही, तो आगे उसकी स्थिति मायावती की तरह भारत की राजनीति से अप्रासंगिक हो जाएगी।

टिप्पणियाँ

  1. इस दल का दल दल क्यों हो रहा है ?
    क्या यह विदेशी नेतृत्व का प्रभाव है ?

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