संसद लोकतंत्र का पवित्र देवालय,इसकी गरिमा नष्ट करना गंभीरतम अनैतिकता - अरविन्द सिसौदिया

 
संसद लोकतंत्र का पवित्र देवालय,इसकी गरिमा नष्ट करना गंभीरतम अनैतिकता
- अरविन्द सिसौदिया


Parliament is the holy temple of democracy, destroying its dignity is the gravest immorality

- Arvind Sisodia

यह आलेख हिन्दी से अंग्रेजी में गूगल से अनुवादित किया गया है।
This article has been translated from Hindi to English from Google.

एक बार फिर से भारत की संसद के दोनों सदनों में, यथा लोकसभा एवं राज्यसभा में हंगामा खडा कर सदनों को नहीं चलने देनें का दृष्य सामनें है। यह सब बहुत ही निम्नस्तरीय तरीके से हो रहा है। हम अपने ही देश को और पूरे विश्व को क्या दिखा रहे हैं ? जिन सदनों के एक एक पल का उपयोग देशहित में होना चाहिये वहां थर्ड ग्रेड का हंगामा ! आश्चर्य भी और अशोभनीय भी !!
Once again, there is a view of not allowing the Houses to function by creating a ruckus in both the houses of the Parliament of India, namely in the Lok Sabha and the Rajya Sabha. All this is happening in a very low level way. What are we showing to our own country and to the whole world? Third grade uproar in the houses where every moment should be used in the interest of the country. Surprise and indecent too!!

विश्व भर में अनेकों शासन पद्धतियां है। जिनमें लोकतंत्र का सबसे श्रैष्ठ माना गया है और भारत ने इसे अपनाया ही नहीं बल्कि सफल लोकतंत्र के रूप में भी स्थापित किया है।
There are many systems of governance around the world. In which democracy is considered to be the best and India has not only adopted it but has also established it as a successful democracy.

लोकतांत्रिक पद्धती में जनप्रतिनिधित्व युक्त संसदीय व्यवस्था और जनविचारों का लोकमत रूपी चर्चा या बहस सबसे महत्वपूर्ण होती है। इनकी अभिव्यक्ति का पवित्र स्थान सदन होता है। जहां जनता के प्रतिनिधि अपना मत प्रस्तुत करते हैं चर्चा करते है। इस तरह के विचार विमर्श से मक्खन रूपी श्रैष्ठता का निष्कर्ष निकलता है। जो राष्ट्रहित एवं लोककल्याणकारी मार्ग को सुनिश्चित करता है।

In the democratic system, the parliamentary system with representative representatives and the discussion or debate of public opinion in the form of public opinion is the most important. The holy place of their expression is the house. Where the representatives of the public present their opinion and discuss. From such discussion comes the conclusion of the superiority of butter. Which ensures the path of national interest and public welfare.

सवाल यह तो कतई नहीं हो सकता कि पहले सदनों में क्या होता रहा है। सवाल यही है कि हम सदनों की सुव्यवस्था का नया इतिहास रचें। नई श्रैष्ठता को जन्म दें , नया अध्याय जोडें, आदर्श व्यवस्था का वह मानक स्थापित करें, जिसे नजीर के रूप में देखी जाये। मगर इस तरह की व्यवस्था बन नहीं पा रही है।

The question cannot at all be what has been happening in the earlier houses. The question is whether we should create a new history for the orderliness of the Houses. Give birth to new excellence, add a new chapter, set that standard of ideal system, which should be seen as an example. But such a system is not being made.


हाल ही भारत के मुख्य न्यायाधीश ने कहा था कि कानून बिना चर्चा के पारित हो जाते हैं, जिससे उनमें वह परिपक्वता नहीं होती जो होनी चाहिये। यह सच है कि चर्चा से भागेंगे तो बात अधूरी ही रहेगी, कुछ और अच्छा होना छूट जायेगा। लेकिन इसमें विपक्ष को भी अपनी भूमिका का आत्म चिन्तन करना होगा। हमेशा मुंह फुलाये रहने वाले शख्स की तरह अव्यवहारिक व्यवहार तो समाधान हो नहीं सकता। प्रतिदिन इसी तरह का अलग थलग रहनें का व्यवहार भी कब तक स्विकार होगा। इसलिये सरकार को अन्ततः नजर अंदाज करके चलना भी पडेगा।
Recently the Chief Justice of India had said that laws are passed without discussion, due to which they do not have the maturity that should be. It is true that if you run away from the discussion, the matter will remain incomplete, something more good will be missed. But the opposition also has to self-reflect on its role in this. Irrational behavior like a person who is always mouth-bloating cannot be the solution. How long will this kind of isolation behavior be accepted every day. That is why the government will eventually have to walk by ignoring it.

सवाल यही है कि जनता ने किसी दल को सत्ता से उतार कर विपक्ष में बिठा दिया है, तो उसे स्विकार करो ! नहीं स्विकार करोगे तो भी जनता का निर्णय तो स्थिर है। वह पूरी तरह से पवित्र है। जनता ने आपकी भूमिका विपक्ष के लिये तय की है तो उस भूमिका को निभाओ। सदन में जनहित की चर्चायें करो, सरकार की कमियों को उजागर करो। न तर्क न तथ्य , न जनता अधिकार दिया फिर भी, मेरी बात मानों में सरकार चलाऊंगा, येशा तो होता नहीं है।

The question is that people have put a party in the opposition after taking it out of power, then accept it! Even if you do not accept it, the decision of the people is stable. He is completely holy. People have decided your role for the opposition, so play that role. Discuss public interest in the house, highlight the shortcomings of the government. Neither logic nor facts, nor given the rights of the people, still, I will run the government as per my words, yes it does not happen.

याद रखिये सरकार चुनने वाली जनता के विवेक से ही आप विपक्ष में हैं, संसद की गरिमा समाप्त करोगे,जनहित से हटोगे तो और भी नकार दिये जाओगे।
Remember, you are in opposition only because of the conscience of the people who choose the government, you will destroy the dignity of Parliament, if you move away from the public interest, you will be rejected even more.

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