श्रैष्ठ हिन्दुत्व को जानें - अरविन्द सीसौदिया Know Best Hindutva - Arvind Sisodia

 
Know Best Hindutva - Arvind Sisodia
श्रैष्ठ हिन्दुत्व को जानें - - अरविन्द सीसौदिया
 

श्रैष्ठ हिन्दुत्व को जानें ! - अरविन्द सीसौदिया

Know Best Hindutva - Arvind Sisodia

     हिन्दुत्व एक समुद्र की तरह विशाल,गहरा  और शांत है, जिसमें तमाम नदियों की धाराओं की तरह ज्ञान एवं अनुभव की धारायें आकर विलुप्त होती रहती हैं। यह निरंतर चलता रहता है। यह प्रत्येक काल खण्ड में अमर अजर रहते हुये,सदैव गतिमान है। इसकी गति इसे निरंतर नूतनता प्रदान करती रहती है , इसी कारण यह सनातन है। 

हिन्दुत्व इस सृष्ट्रि के अंतरिक्ष की तरह विस्तृत महा विशाल है , जिसे जितना खोजो उतना पाओ जैसी स्थिती है। अरबों वर्ष पूर्व जाआगे तो भी हिन्दुत्व को पाओग और अरबों वर्ष आगे की कल्पना करोगे तो भी हिन्दुत्व को पाओगे। इस पृथ्वी सहित इस सृजन में कोई काल खण्ड इस तरह का नहीं रहा जब हिन्दुत्व न रहा हो। उसकी वैचारिक विशालता,प्रचीनता एवं ज्ञान - विज्ञान-अनुसंधान की गहराई के सामनें, अन्य कोई जुगनू जैसी स्थिती भी नहीं रखता हैं। क्यों कि हिन्दुत्व जैसी दिशा में अन्य कोई चलर ही नहीं। इसीलिये हिन्दुत्व , हिन्दुत्व जैसा ही है। उसकी तुलना करने अन्य कुछ भी नहीं है।
 
   वर्तमान में कांग्रेस, वामपंथी और कुछ अन्य विपक्षी दलों के नेता तथा भारतीय मीडिया में मुद्दों में “हिन्दुत्व” को निशाना बनाने का फैशन सा चल पड़ा है। कभी कोई राजनेता तो, कभी दूसरे पंथ - सम्प्रदाय के लोग हिन्दुत्व के बारे में जाने बिना ही कुछ तो भी बोलते रहते हैं ,जो कि दुर्भाग्यपूर्ण है।

  यह जाने बिना कि हिन्दुत्व क्या है, उसके गुण, दोष निकालना ठीक नहीं है। उसकी विशेषताओं को जानें समझे बिना ही अनेकानेक दोषरोपण कर दिये जाते हैं, जो कि पूरी तरह से गलत है। कुछ पंथ सम्प्रदाय इसे विकृति करनें का छल एवं षडयंत्र निरंतर करते रहते हैं । वह भी पूरी तरह गलत एवं अपराध है।

मीडिया सहित अनेकों राजनेता एवं विश्लेशक भी भाजपा की जीत का मतलब हिन्दुत्व की जीत और यहां तक कि भाजपा की हार पर भी हिन्दुत्व की हार कह कर प्रचारित करने से भी नहीं चूकते है। जब भाजपा जीतती है तो भगवाकरण कह दिया जाता है। हिन्दुत्व के विचार पर भाजपा चलती है तो यह अच्छी बात है, किन्तु गहराई से अध्ययन करोगे तो जहां भी क्षमा,मानवता, दया, करूणा और परोपकार है । सम्पूर्ण जगत में ईश्वर और ईश्वर में सम्पूर्ण जगत के सत्य को स्विकारनें का भाव है। वहां हिन्दुत्व ही खडा है।

    यह तक देखा जा रहा है कि अनावश्यक अवसरों और संदर्भों में हिन्दुत्व को मुद्दा बनाने और हिन्दुत्व को उसमें घसीट लिया जाता है। बिना किसी ठोस कारण के भी हिन्दुत्व पर प्रहार किये जानें लगते है। इसके पीछे विश्वस्तरीय हिन्दुत्व विरोधी ताकतें और उनका पैसी व संगठन काम कर रहा है। इस तरह की कोशिशें कई शताब्दियों से हो रही हैं। वर्तमान में राजनैतिक वातावरण का लाभ भी वे ही ताकतें उठा कर हिन्दुत्व को छोटा और ओझा साबित करनें के षडयंत्र रत हैं। उनके चक्रब्यूह में भारत के भी अनेकानेक नागरिक फंसे हुये है।

यह हिन्दुत्व विरोधी दुष्प्रचार सामान्यता नहीं है । बल्कि साजिशन है...? जो प्रवृति हिन्दुत्व पर प्रहार कर रही हैं, वे हिन्दुत्व की श्रैष्ठताओं से भयग्रस्त है। वे हिन्दुत्व की श्रैष्ठताओं को विकृति तरीके से पेश करने में लगी हुई है। जबकि उनके स्वयं के पास कुछ भी इस तरह का नहीं है, जो हिन्दुत्व के सामनें टिक सके। यही हमारे समझने का विषय है कि यह सब वे किसके लिए कर रहे हैं ?

 हमें यह भी समझना और समझाना होगा कि हिन्दुत्व का सत्य और उसकी आभा क्या है। यह तब ही संभव है जब हम भी जानें कि हिन्दुत्व क्या है। क्यों कि हिन्दुत्व का मतलब सम्पूर्ण भारतीय संस्कृति और उसमें रहने वाले लोगों की आदि-अनादी सभ्यता का विराट अनुभव है, जो कि सम्पूर्ण विश्व की प्रकृति एवं प्राणी सभ्यता में बंधुत्व और एकत्व को समर्पित है। यह किसी व्यक्ति,दल या संगठन मात्र तक सीमित नहीं है, बल्कि महानतम विराट को समर्पित है।
 
राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के सर संघचालक मा. मोहनजी भागवत ने ठीक ही कहा है कि हिन्दुत्व एक जीवन पद्यती है। जीवन जीने की कला है, जीवन यात्रा का विज्ञान है। सर्वोच्च न्यायालय ने भी 11 दिस्मबर 1995 के  अपने अभूतपूर्व निर्णय में कहा है कि हिन्दुत्व विश्व कल्याण की भावना रखने वाली जीवन पद्यती है। जनसंघ के संस्थापक सदस्य, अखिल भारतीय महामंत्री एवं अखिल भारतीय अध्यक्ष रहे पं.दीनदयाल उपाध्याय ने इसे भारतीयता का ही पर्याय माना था ।

      भाजपा ने भी स्पष्टता से कहा हिन्दुत्व का सम्मान करेंगे और उसके बताये मार्ग पर चलेंगे,भाजपा के  नेता मा.लालकृष्ण आणवाडी जी के शब्दों में “...यदि चार सौ वर्षों में अमेरिका की भावना,वहां के लोगों को एक सूत्र में बांध सकती है,तो निश्चित रूप में अधिक सन्तुलित, दृढ़ तथा अन्र्तभूत मानवतावादी “भारतीयता” की भावना भी हजारों वर्षों से रह रहे विभिन्न धार्मिक, जातीय, भाषाई और नस्लीय समूहों को एकता के सूत्र में बांध सकती है। चूकीं “इंडियन” शब्द हाल की नई विचारधारा पर आधारित है, इसलिए ऐकीकरण का सिद्यांत “हिन्दुत्व” ही है। उदार विचारों से परिपूर्ण, सहनशील,बहुवादी तथा व्यापक भारतीय परम्परा का यह पर्यायी नाम है। यदि भारत को अहिन्दू किया गया तो भारत का कोई अस्तित्व ही नहीं रहेगा।” और कुल मिला कर मूल बात यह है कि हिन्दुत्व तो भारत की आत्मा है इसका अपमान करके कोई टिक नहीं सकता, यह किसी दल के समर्थन देने न देने का मोहताज भी नहीं है। इसको मानने जानने के लिए सभी दल, सभी पंथ, सभी सम्प्रदाय, सभी वर्ग स्वतंत्र है। उन्हें इससे लाभ उठाना उनके विवेक पर निर्भर करता है।

हिन्दुत्व: 
 
हम लोगों ने कभी इसे जाना ही नहीं: राष्ट्रपिता महात्मा गांधी
पूरा देश जानता है कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी कौन थे, उन्होने अपने जीवन में नित्यप्रति प्रार्थना में ”रघुपति राघव राजाराम, पतित पावन सीताराम,ईश्वर - अल्लाह तेरो नाम,सब को सम्मति दे भगवान। “ के द्वारा उस हिन्दुत्व को ही प्रगट किया था जिसे वर्षानुवर्षों से इस देश के  मनीषीयों,ऋषियों और संतो ने सिद्ध किया था। उन्होने हिन्दुत्व के आदर्शों पर चल कर, हिन्दुओं को साथ लेकर ही स्वतंत्रता संग्राम जीता और अंगेजों को देश छोडने पर बाध्य किया था।
गांधीजी ने बडे साफ - साफ शब्दों में कहा था कि “ दुनिया में किसी संस्कृति का भण्डार इतना भरा पूरा नहीं है, जितना हमारी संस्कृति का है। हम लोगों ने उसे अभी जाना नहीं है, हम उसके अध्ययन से दूर रखे गये हें। हमें उसके गुण जानने और मानने का मौका ही नहीं दिया गया । हमने उसके अनुसार चलना करीब - करीब त्याग दिया है। “
जो लोग किन्ही निहित स्वार्थों में हिन्दुत्व पर टिप्पिणी करते हैं वे सही मायने में जानते ही नहीं कि हिन्दुत्व किस महान अनुसंधान और अनुष्ठान का नाम है।

हिन्दुत्व अमर तत्व:
डाॅ.सिन्हा: संविधान सभा
स्वतंत्र भारत के लिये निर्माण कियेे जा रहे संविधान की ऐतिहासिक संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिस्मबर 1946 में नई दिल्ली स्थित कान्स्टीट्यूशनल हाॅल में आहूत हुई, बैठक के प्रारम्भ में सबसे अनुभवी पार्लियामेंटेरियन डाॅ.सचिदानंद सिन्हा को अस्थाई अध्यक्ष बनाया गया,उन्होने अपने उद्घाटन सम्बोधन में भारतीय संस्कृती की अमरता पर प्रकाश डालते हुए कहा:-
”यूनान,मिश्र,रोमां,सब मिट गये जहां से,
बाकी अभी तलक है,नामों निंशा हमारा।
कुछ खास बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी,
सदियों रहा है दुश्मन दौरे जमां हमारा।। “
उन्होने इसका अर्थ भी संविधान सभा को समझाते हुए कहा है ” इसका अर्थ यों है:- ग्रीस,मिश्र और रोम प्रभृति सभी देश दुनिया के पर्दे से उठ गये,पर हमारे देश का नाम और गौरव आज भी समय के विनाशकारी प्रवाह से संघर्ष करता हुआ जीवित है। शताब्दियों से दैव की ही कोप दृष्टि हम पर रही है,पर अवश्य ही हम में कुछ ऐसे अमरतत्व हैं, जिन्होने हमें विनष्ट करने वाले सारे प्रयासों को पछाड दिया है। “
हिन्दुत्व उसी हस्ती का नाम है, जिसका जिक्र सिन्हा सहाब संविधान सभा के उद्घाटन भाषण में कर रहे थे। जिसमें अनन्त के अमरतत्व हैं, हिन्दुत्व कोई 4-5 स्वरों का समुच्चय या एक शब्द मात्र नहीं है, बल्कि इस फाईल नेम ( शीर्षक) के पीछे, विराट परिश्रम से अर्जित ज्ञान, आदर्श समाज व्यवस्था, समृद्ध संस्कृति के विविध आयाम और सत्य के खोज की जिज्ञासू मानसिकता है, जिसने इसे सनातन बना रखा है जो रोज सुबह उठ कर नई खोज की वैज्ञानिकता पर निकल पड़ता है,जिसकी समुद्रों की विशाल लहरों की तरह उठती तरंगों के सामने सम्पूर्ण विश्व का आधुनिक ज्ञान स्तब्ध है।
डा. सिन्हा का परिचय इस प्रकार है कि वे दिग्गज और पुराने कांग्रेसी व कांग्रेस में मंत्री रहे, 1910 से 1920 तक इम्पीरिएल लेजिस्लेटिव कौंसिल के सदस्य रहे,1921 में सेंट्रल लेजिस्लेटिव एसेंम्बली के उपसभापति व सदस्य रहे,बिहार और उडीसा के अर्थ सदस्य और एक्जूकेटिव कौंसलर रहे । इतना ही नहीं वे पटना विश्वविद्यालय के वाईस चांसलर भी थे। उन्हे उस संस्कृति पर गर्व था जिसे हम हिन्दुत्व के नाम से जानते हैं।

हिन्दुत्व जिओ और जीने दो:
डाॅ.राधाकृष्णन: संविधान सभा
संविधान सभा कीें एक ओर महान शख्सियत डाॅ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने हिन्दुत्व के व्यवहार को स्पष्ट करते हुए कुछ इस प्रकार से कहा “भारत एक स्वर लहरी के समान है, एक आस्चेस्ट्रा के समान है, जिसमें भिन्न- भिन्न वाद्य यंत्र, भिन्न- भिन्न स्वर, अपनी-अपनी मधुर ध्वनी और मिठास के साथ, एक ही चीज अदा कर रहे हैं। इसी तरह के सामंज्स्य या ऐक्य देश अरसे से चाहता है। दूसरे क्या करते हैं क्या नहीं, इसे किसी तरह जानने की उसने कभी कोशिश नहीं की।
पारसी,यहूदी,ईसाई, मुसलमान जो यहां शरण लेने आए,उनसे इसने यह कभी नहीं कहा कि वे इसका धर्म मानलें या हिन्दुओं में मिल जायें। ”जिओ और जीने दो“ यही हमेशा इस देश की भावना रही है। यदि हम सच्चाई से इस भावना पर स्थिर हैं,यदि हम उस आदर्श पर दृढ़ हैं,जो पांच-छैः हजार वर्षों से हमारी संस्कृति में व्याप्त है,तो हमें रंचमात्र भी संदेह नहीं है कि हम समुपास्थित संकट पर उसी तरह विजय पायेंगें,जिस तरह अपने अतीत-इतिहास के संकटों पर पाये थे।
संविधान सभा में डाॅ.राधाकृष्णनन् ने जिस पांच-छैः हजार वर्षों से यशश्वी संस्कृति का जिक्र किया वह हमारी हिन्दू संस्कृति की अदम्य संघर्षयात्रा ही है और यही हिन्दुत्व है। डाॅ.राधाकृष्णनन् बाद में भारत के उपराष्ट्रपति और महामहिम राष्ट्रपति भी बनें।

आर के सिंघवा (पारसी): सदस्य संविधान सभा
संविधान सभा के सदस्य थे,उन्होने अलग पहचान और आरक्षण के संदर्भ में चल रही चर्चा ( सन्1946 में ) के बीच कहा “ 1300 वर्ष पूर्व जैसा कि इतिहास बतलाता है,जब हम ईरान से निकाल दिये गये और तीन महीनें तक समुद्र में भ्रमण करते रहे,तो सिवाय गुजरात में संजान के जधवा राजा के हमें और किसी ने शरण नहीं दी। हम सब उनके कृतज्ञ हैं। हिन्दू जाती से हमें कोई शिकायत नहीं है।“

हिन्दुत्व: सम्पूर्ण जगत की संस्कृति:
 गवर्नर जनरल सी.राजगोपालाचार्य
हमारे देश में प्रख्यात कल्याण नामक धार्मिक पत्रिका ने हिन्दू संस्कृति अंक निकाला था,जिसमें महामहिम गवर्नर जनरल सी. राजगोपालाचार्य ने छोटे से लेख में लिखा है ”हिन्दू संस्कृति भारतीय संस्कृति है और भारतीय संस्कृति सम्पूर्ण जगत की संस्कृति है, किसी भी जाती अथवा राष्ट्र के शिष्ट पुरूषों के विचार,वाणी एवं क्रिया का जो रूप व्याप्त रहता है,उसी का नाम संस्कृति है। विचार,वाणी,एवं क्रियाओं के जिस आदर्श को हिन्दू संस्कृति के नाम से पुकारा जाता है,उसका स्वरूप उपनिषदो एवं इतिहासों में दिये हुए उपदेशों के अनुकूल जीवन बनाना। इसका सार तत्व है,ज्ञान,भक्ति और अपने सम्पूर्ण कर्मों में भगवच्छारणागतिं का भाव। “

जीवन के हर क्षैत्र को श्रैष्ठ बनाता है हिन्दुत्व,
प्रोफेसर मेक्समूलर
......बात बहुत पुरानी नहीं है,लगभग उस समय की है जब भारत में कार्यरत ईसाई मिशनरियां और अंग्रेज अधिकारी हिन्दुत्व को समाप्त कर ईसाईयत को तुरंत स्थापित कर देना चाहते थे,उन दिनों ब्रिटेन में राज महारानी विक्टोरिया का था,उन्हे 1858 में भारतीय ग्रंथों के अध्ययन करता पाश्चात्य विद्धवान मेक्समूलर ने एक पत्र लिखा था,जिसका अंश इस प्रकार है-
”यदि मुझे बताना हो,कि सम्पत्ती,शक्ति एवं प्राकृतिक सौंदर्य,इन सबसे परिपूर्ण देश कौनसा है,तो में भारत का नाम लूंगा। मुझसे कोई प्रश्न पूछे कि, किस देश के मनुष्यों ने उत्कृष्ट ईश्वरीय देन को पूर्ण रूप से विकसित किया है। जीवन की जटिल समस्याओं पर गहन चिंतन कर उन पर उपाय निकाले हैं और जो प्लेटो तथा कांट द्वारा दी गई शिक्षा के अभ्यासीयों का भी ध्यान आकर्षित करने में सक्षम है, तो मैं उत्तर दूंगा “भारत”। हम यूरोपियन लोग अपने जीवन में ग्रीक,रोमन तथा यहूदी लोगों की विचारधारा का अनुकरण करते है। इस जीवन को अधिक सफल, परिपूर्ण,वास्तविक रूप से मानवतावादी ओर शाश्वत बनाना हो,तो कौन से साहित्य का आधार लिया जाये,यदि ऐसा प्रश्न कोई पूछे,तो में इसके उत्तर में भी “भारतीय” ही कहूंगा।“
क्या इन तर्कों और तथ्यों की रोशनी में कोई हिन्दुत्व को प्रश्न चिन्हित कर सकता है? हिन्दुत्व गर्व का विषय है,इस पर हमें आत्म गौरव है कि हम हिन्दुस्तान में हें,भाग्यशाली हैं।
  उपरोक्त विद्ववानों ने जो विचार हिन्दुत्व के संदर्भ में दिये हें,उनके चलते तो इस श्रैष्ठ आचारण वाली समाज व्यवस्था की न तो निंदा की जानी चाहिये और नहीं इसे पतित हुआ बताया जाना चाहिए,मगर फिर भी मीडिया में मौजूद कुछ तत्वों ने परोक्ष अपरोक्ष इस पर आक्रमण किया ही हैैैैैैै। गंगाजल को जहरीला बताने का प्रसाय कोई न कोई लक्ष्य तो लिए हुए है...उसे ही पहचानना होगा। वे लोग वास्तव में कौन हैं व क्या चाहते हें यह भी जाना होगा।

मानव जीवन की रक्षा मात्र हिन्दुत्व के तत्वज्ञान से,
प्रसिद्ध इतिहासकार अर्नाल्ड टाॅयनबी 
“यहां (भारत में) ऐसी मनोधारणा और चेतना दिखती है,जिसके आधार पर मनुष्य जाती के लिए परिवार के रूप में अपना विकास कर पाना संभव है। वर्तमान अणुयुग में यदि अपने सर्वनाश को आमंत्रित न करना हो,तो इसके ( भारत के/ हिन्दुत्व के) अतिरिक्त कोई उपाय नहीं है।
वर्तमान युग में पाश्चात्य तंत्रज्ञान ने समूचे जगत् को भौतिक स्तर पर एकत्रित कर दिया है। इस पाश्चात्य तंत्रज्ञान ने अंतर को केवल नष्ट ही नहिं किया,अपितु जगत् के देश एक दूसरे के बहुत निकट जब आए,तो उन्हे अत्यंत विनाशकारी शस्त्रों से सुसज्जित भी किया। आज तक वे एक दूसरे को जानना अथवा एक दूसरे के प्रति प्रेम रखना नहीं सीख पाए,मानवीय इतिहास में सर्वाधिक खतरनाक क्षण में मानवजाती के बचाव का यदि एक मात्र मार्ग है,तो वह है भारतीय तत्वज्ञान का मार्ग।”

इश्लाम के आक्रमण ने लिखित इतिहास जला दिये- कर्नल टाड
  
एक अन्य सच यह भी है कि इश्लाम की आंधी ने मक्का-मदीने से लेकर हमारे देश के अन्दर तक के पुस्तकालयों को जला डाला था, लिखित इतिहास जला दिये जाने की दशा में जन-जन में मौजूद जनश्रुतियां ही इतिहास संकलन का एक मात्र माध्यम बचती हैं। इन पर गौर होना चाहिये था।
राजपूताना का इतिहास लिखते समय कर्नल टाड कहते हंै कि “जब से भारत पर महमूद गजनी द्वारा आक्रमण होना प्रारम्भ हुआ,तब से मुसलमान शासकों ने जो निष्ठुरता धर्मांधंता दिखाई, उसको नजर में रखने पर, बिलकुल आश्चर्य नहीं होता कि भारत में इतिहास के ग्रंथ बच नहीं पाये ! इस पर से यह असंभवनीय अनुमान निकालना भी गलत है कि हिन्दु लोग इतिहास लिखना नहीं जानते थे, अन्य विकसित देशों में इतिहास लेखन प्रवृति प्राचीनकाल से पायी जाती थी। तो क्या अतिविकसित हिन्दूराष्ट्र में वह न होगी? ”
उन्होने आगे लिखा है कि “ जिन्होने ज्योतिष-गणित आदि श्रमसाध्य शास्त्र सूक्षमता के साथ और परिपूर्णता से अपनाये, वास्तुकला, शिल्प, काव्य, गायन आदि कलाओं को जन्म दिया, इतना ही नहीं, उन कलाओं को नियमबद्ध ढांचे में ढालकर उसके शास्त्रशुद्ध अध्ययन की पद्यती सामने रखी,उन्हे क्या राजाओं का चरित्र और उनके शासनकाल में घटित प्रसंगों को लिखने का मामूली काम करना न आता? ”

जर्मन इतिहासकार पाॅक हेमर 
भारतीय पुरूषार्थ को निकाला
अर्थात् यही वह तथ्य है जिसके आगे विश्व का इतिहास बौना हो जाता है और भारतीय सम्राट वास्तविक चक्रवर्ती के रूप में स्थापित होता है। भारत पर शासन कर रही ईस्ट इण्डिया कंपनी और ब्रिटिश सरकार 1857 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए, भारतीय इतिहास की शौर्यपूर्ण परम्पराओं को जिम्मेवार मानती थी, उन्होने भारतवासियों को हतोत्साहित करने के लिए इतिहास के प्रेरणा खण्डों को लुप्त करने के लक्ष्य से काम किया और उन्हे मिथक अर्थात काल्पनिक बताने का अभियान चलाया ।
यूरोपीय एवं अरबी इतिहासकार इसी कारण श्रीराम, कृष्ण और विक्रमादित्य को लुप्त करते हैं कि भारत का स्वाभिमान पुनः जागृत न हो, उसका शौर्य और श्रेष्ठता पुनः जम्भाई न लेने लगे और इसीलिए जर्मन इतिहासकार पाॅक हेमर ने 1981 में एक बडी पुस्तक “ इण्डिया-रोड टू नेशनहुड” लिखी है, इस पुस्तक में उन्होने लिखा है कि “ जब में भारत का इतिहास पढ़ रहा हूं,लगता है कि भारत की पिटाई का इतिहास पढ़ रहा हूं , - भारत के लोग पिटे,मरे,पराजित हुए,यही पढ़ रहा हूं ! इससे मुझे यह भी लगता है कि यह भारत का इतिहास नहीं है। पाॅक हेमर ने आगे उम्मीद की है कि “जब कभी भारत का सही इतिहास लिखा जायेगा,तब भारत के लोगों में भारत के युवकों में,उसकी गरिमा की एक वारगी ”फिरसे“ आयेगी।” अर्थात हमारे इतिहास लेखन में उनकी यशस्विता को निकाल दिया गया है,उसके पुरूषार्थ को निकाल दिया गया,उसके मर्म को निकाल दिया गया है।


जिसका न तो आदि है और न अंत:  
 स्वामी विवेकानन्द
” यह वही भारत है जो सदियों ये सैंकडों विदेशी आक्रमणों के आघातों को, अनेक आचार - व्यवहारों और रीति-रिवाजो के उथल-पुथल झेलता आया है। यह वही भारत है जो अपनी अनन्त-शक्ति, अनश्वर-जीवन के साथ विश्व में किसी भी चट्टान से अधिक मजबूती के साथ खडा है। इसके (हिन्दुत्व) जीवन का वही स्वरूप है जो आत्मा का होता है,जिसका न तो आदि है और न अंत,जो शाश्वत है और हम ऐसे ही देश की संतानें हैं। “

सामूहिक नाम हिन्दुज्म है:
गुरूदेव रविन्द्रनाथ टैगौर
” भारत हमेशा से सामाजिक एकता बनाये रखने का प्रयास करता रहा है, जिसमें विभिन्न मतावलंवियों को अलग अलग अस्तित्व बनाये रखने की पूरी आजादी भी होते हुये एक जुट रखा जा सके। यह बंधन जितना लचीला है,उतना ही परिस्थितियों के अनुरूप इसमें मजबूती भी है। इस प्रक्रिया से एक एकात्म सामाजिक संघ की उत्पती हुई,जिसका सामूहिक नाम हिन्दुज्म है।“

ब्रह्माण्डवेत्ता ‘कार्ल वेगन’
हिन्दुत्व बृम्हाण्ड का ज्ञाता
यूरोप के प्रसिद्ध ब्रह्माण्डवेत्ता ‘कार्ल वेगन’ ने उनकी पुस्तक “COSMOS” में लिखा है कि ‘‘विश्व में हिन्दू धर्म एक मात्र ऐसा धर्म है, जो इस विश्वास पर समर्पित है कि इस ब्रह्माण्ड में उत्पत्ति और लय की एक सतत प्रक्रिया चल रही है और यही एक धर्म है जिसने समय के सूक्ष्मतम से लेकर वृहदतम नाप, जो सामान्य दिन-रात से लेकर 8 अरब 64 करोड़ वर्ष के ब्रह्मा के दिन-रात तक की गणना की है, जो संयोग से आधुनिक खगोलीय नापों के निकट है।’’

भारत शुरू से ही पंथ निरपेक्ष 
अटलबिहारी वाजपेयी
प्रधानमंत्री पद पर रहते हुये अटलबिहारी वाजपेयीजी ने कहा था ” ...गुजरात चुनावों के बाद जोर शोर से चर्चा हो रही है, एक तरफ पंथ निरपेक्षता को इस सोच के आधार पर हिन्दुत्व के विरूद्ध खडा किया जा रहा है कि दोनो एक दूसरे के विरूद्ध विरोधी हैं,यह गलत और अनुचित है। पंथ निरपेक्षता राज्य व्यवस्था की वह अवधारणा है जिसमें सभी धर्मों का सम्मान किया जाता है तथा नागरिकों के साथ उनकी धार्मिक आस्थाओं के आधार पर भेद भाव नहीं किया जाता है।“
”भारत शुरू से ही पंथ निरपेक्ष रहा है। हमने पंथ निरपेक्षता पर प्रतिबद्ध रहना तब भी स्विकार किया जब देश का विभाजन हुआ और पाकिस्तान का द्वि-राष्ट्र सिद्यांत के साम्प्रदायिक आधार पर निर्माण हुआ। ऐसा कभी संभव नहीं हुआ होता,यदि अधिकांश भारतीय पंथ निरपेक्ष नहीं होते।“
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सच यह है कि आज जो भारत की बुद्धिजीवी फौज तैयार हो रही है उसे पता ही नहीं है कि वेदों में कितना विराट विज्ञान भरा पडा है,उसे पता ही नहीं है कि उपनिषद कितनी गूढ रहस्यों की व्याख्या करतीं हैं।
हम भूल जाते हैं कि हमारे पूर्वजों का ज्ञान और सत्य की महान खोजे। क्या हें:-
1. क्या उस बीते हुए हजारों वर्ष पूर्व,सृष्टी,पृथ्वी,ग्रह नक्षत्र,आकाशगंगायें,मंदाकनियों की कल्पना भी कोई कर सकता था। मगर हिन्दुत्व ने अरबों-खरबों वर्ष की सटीक कालगणना खोजी ओर उसे पन्नों पर दर्ज किया,जो आज भी वैज्ञानिकों गणनाओं पर खरी उतर रही है।
2. समाज व्यवस्था में क्या ठीक है क्यों ठीक है,उसे कैसे व्यवस्थित किया जाये,परिवार व्यवस्था,चारों पुरूषार्थों की आवश्यकता,वर्णाश्रम,कर्मप्रधानता आदि-आदि,आज भी विश्व की सर्वश्रैष्ठ समाज और सबसे अधिक शांती और संतोषयुक्त परिवार व्यवस्था कोई है तो हिन्दुत्व की ही है।
3. चिकित्सा,आर्युविज्ञान,शल्य चिकित्सा,औषधियों के लिये वनोपज और रसायन वर्ग का उपयोग ।
4.भवन निर्माण की वास्तु कला, मूर्ती कला और उसकी भव्यता
5. संगीत , नृत्यकला
6. आत्मा की अमरता,स्थूल शरीर से भिन्न;सूक्ष्म शरीर की परिकल्पना,परमात्मा के अस्तित्व की अभिव्यक्ति।
7. स्त्रिीयों के सम्मान की रक्षा,उनके साथ समता का व्यवहार।
8. आत्मरक्षा,सुरक्षा और संरक्षण की व्यवस्थायें।
9. विश्व कल्याण की उदात कामना जिसमें मानव ही नहीं अन्य प्राणीयों के कल्याण और शांतीपूर्ण जीवन की खोज क्या संसार में किसी भी संस्कृति के पास इतने उन्नत और भव्य संसाधन मौजूद हैं?

कांग्रेस तो हिन्दुत्व का ही राजनैतिक संस्करण थाः
नेहरूजी के साम्यवादी प्रेम ने इसे अधकचरा कर डाला
कांग्रेस की स्थापना यद्यपी हिन्दुओं को अंग्रेजों का हित चिन्तक बनाये रखने के लिए एक अंग्रेज अफसर ने ही की थी,ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार मुस्लिम लीग की स्थापना भी अंग्रेजों ने अपने हित साधने के लिये ही करवाई थी। मगर धीरे-धीरे हिन्दुत्व के प्रवेश के साथ कांग्रेस में हमने अपनी आजादी की राह पकडली थी,- आनंदमठ में जिस सच्ची कहानी के आधार पर बंकिमचंद्र चटर्जी ने लिखी थी वह हिन्दू सन्यासियों का अंग्रेजों के विरूद्ध बंगाल का विद्रोह था और उसी में वन्दे मातरम् गान था,जिसने देश की स्वतंत्रता का महान इतिहास लिखा।

-बालगंगाधर तिलक ने गणेश उत्सवों के द्वारा ही स्वतंत्रता की लडाई को विस्तार दिया था।
-महात्मा गांधी तो मरते दम तक श्रीराम को साथ लेकर
- बाबू राजेन्द्र प्रशाद ने राष्ट्रपति रहते हुए ध्वस्त सोमनाथ मंदिर के पुर्न निर्माण की आधार शिला रखी जिसे स्वंय महात्मा गांधी ने इसकी उन्हे अनुमति दी थी।
- वरिष्ठतम कांग्रेसी कन्हैयालाल माणिक लाल मुंशी ने सोमनाथ मंदिर को बनवाया
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धर्म के लक्षणः- मनु स्मृति के अनुसार
”घृतिः क्षमा दमोअस्तेयं शौचमिन्द्रियतिग्रहः।
धीर्विधा सत्यमक्रोधी दशकं धर्मलक्षणम्।। “
अर्थ- संतोष, क्षमा, मन का दमन, चोरी न करना, अंर्तर्बाहम्् शुचित्व, इंद्रियों का निग्रह,तत्वजिज्ञासु,बुद्धि,आत्मज्ञान,सत्य तथा क्रोध रहित होना,ये दस प्रकार धर्म लक्षण है।
याज्ञवल्यक्य जी ने धर्म के जो अंग बताये हैं उनमें दान को भी स्थान दिया हे।

यदा यदा हि ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मनमं सृजाम्यम्।
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्
धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामी युगे युगे।।
इसका अर्थ है कि - जब जब धर्म ग्लार्नी भाव को प्राप्त होता है और अधर्म का प्रकोप बड जाता है। तब में अपने आप को प्रगट करता हूं। साधु पुरूषों का उद्धार करने,दुष्कर्मियों के विनाश और धर्म की स्थापना के लिये,में युग युग में संभव होता हूं।

धार्मिक आधार पर आरक्षण : संविधान विरोधी कृत्य
भारत के संविधान के निर्माण के समय में धार्मिक आधार पर आरक्षण की भी चर्चा आई थी और तब सभी ने एकमत राय से इसे खारिज कर दिया था। तब सरदार वल्लभ भाई पटेल ने रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए कहा था ‘‘दीर्घकाल में इस बात को भूल जाना सभी के हित में होगा कि देश में कोई बहुसंख्यक है या अल्पसंख्यक ....।’’ संविधान निर्माता बी आर अम्बेडकर, डाॅ. एस पी मुखर्जी, मौलाना आजाद, डाॅ. के एम मुंशी, पुरूषोत्तम दास टंडन, गोविंद वल्लभ पंत और गोपीनाथ बारदोलोई की इस समिति ने धर्म और सम्प्रदाय के आधार पर आरक्षण को सिरे से ही रद्द कर दिया था।

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इंडी गठबन्धन तीन टुकड़ों में बंटेगा - अरविन्द सिसोदिया

छत्रपति शिवाजी : सिसोदिया राजपूत वंश

खींची राजवंश : गागरोण दुर्ग

स्वामी विवेकानंद और राष्ट्रवाद Swami Vivekananda and Nationalism