हल्दीघाटी : महाराणा प्रताप की जीत

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हल्दीघाटी
अकबरी हार के प्रमाण -
{ प्रताप कथा }
१. केवल मुस्लिम पक्षकारों ने ही प्रताप की हार लिखा है | वह सब प्रकार से झूंठ है | मेवाड़ के पक्ष वालों ने सभी ने प्रताप की जीत लिखी है | उस पर हमारे देश के दोगले इतिहासकारों और ने ध्यान ही नहीं दिया |
२. मुग़ल सेना की हार हुई थी और प्रताप की जीत हुई थी, इसके प्रमाण मुग़ल लेखकों के इतिवृत्त से ही छनछन कर आ जाता है |
३. प्रताप की सेना की मार से अकबरी सेना बारह मील तक भागी, ऐसा युद्ध में आये मुस्लिम लेखकों ने भी लिखा है | फिर प्रताप की जीत नहीं हुई और अकबर की जीत हुई, यह कहने की क्या तुक है ?
४. मुगलियों ने लिखा कि हमारी सेना के भाग खड़े होने पर पीछे से मिहतर खां ढ़ोल लेकर आ गया और चिल्ला चिल्ला कर कहने लगा कि अकबर आगया है, इससे मुगलिया फौज में जोश आ गया और हमारी 'बुरी हार' होती होती बची | स्पष्ट है कि हार तो वे बुझदिल भी स्वीकार करते हैं | पर अपनी शेखी बघारने के लिए और अपनी झेंप मिटाने के लिए लिखा कि बुरी हार होती होती बची |
५. पता नहीं बारह मील तक भाग गयी सेना की हरावल में अर्थात् सेना के पिछवाड़े में मिहतर खां कितने मील पर था सो उसके ढ़ोल और उसके चिल्लाने की आवाज को बारह मील तक घबराए भागे फौजियों में जान डाल दी और हारा हुआ पासा जीत में बदल गया ! यह सब गप्प नहीं है तो और क्या है ?
६. 'अकबरी सेना को बारह मील तक भगाया', फिर जीत किसको कहते हैं ? यही प्रताप की स्पष्ट जीत है |
७. बारह मील भागने में कितना समय लगता है ? फिर ढ़ोल की आवाज सुनकर वापस लौट आने में कितना समय लगता है ? फिर हारी हुई बाजी को जीत में बदलने में कितना समय लगता है ? जब कि लड़ाई ही कुल तीन घण्टे नहीं चली थी | फिर अकबरियों की जीत यदि हुई भी तो कागजों में ही हुई, मैदान में तो नहीं |
८. अकबर की सेना १८ जून १५७६ को प्रातः सूर्योदय होने पर 'मोलेला' छावनी से रवाना हुई | उसका गन्तव्य प्रताप की राजधानी गोगुन्दा था | मार्ग में हल्दीघाटी आ गयी | अर्थात् अकबरियों की मौत आ गयी | वे असावधान थे | उनको पता ही नहीं था कि यहाँ युद्ध करना पडेगा | युद्ध के कारण अकबर की फौज तीसरे दिन अर्थात् २१ जून १५७६ की सायंकाल गोगुन्दा पहुंची | जब कि १८ जून का युद्ध तो दोपहर से पहले ही समाप्त हो गया था और अकबर की सेना जीत गयी थी तो गन्तव्य पर पहुँचने में तीन दिन क्यों लगाये ? जब कि हल्दीघाटी से गोगुन्दा पहुँचने में आधा दिन ही नहीं लगता |
९. प्रताप की सेना तो हल्दीघाटी, शाहीबाग, खमनोर में सर्जीकल स्ट्राइक कर मैदान से खिसक गयी और मुगलियों की हिम्मत ही आगे बढ़ने की नहीं हुई | इसको जीत नहीं कहते हैं तो किसको कहते हैं ?
१०. गोगुन्दा पहुँचने पर मुगलियों ने लिखा कि हमारे सैनिक डरे हुए थे | यदि मुगलिये जीते हुए थे तो डरे हुए क्यों थे ? गोगुन्दा में तो न तो प्रताप की सेना थी और न प्रताप थे | वे तो हल्दीघाटी से कुम्भलगढ़ चले गए थे | गोगुन्दा तो बिना लड़े ही जीतने में आ गया था | हल्दीघाटी और गोगुन्दा, दो दो बार जीती हुई मुगलिया फौज भी डरी हुई थी | जीती होती तो उत्साह में होती, डरी हुई क्यों थी ?
११. युद्ध जीतने पर मुग़ल सेना में जश्न मनाने की परम्परा थी, किन्तु १८ जून १५७६ को हल्दीघाटी युद्ध जीतने का जश्न अकबर की जिन्दा मुर्दा सेना ने आज १८ जून २०२० तक भी नहीं मनाया !
१२. २१ जून १९७६ को हिन्दुआ सूर्य प्रताप की राजधानी गोगुन्दा बिना लड़े ही जीतने में आ गयी | कितने जश्न की बात है ! एक के बाद एक जीत ! लगातार जीत ! कितने जश्न की बात है ? पर आज २०२० तक भी कोई जश्न की सूचना नहीं है ! खाने के तो लाले पड़े हुए थे | मरकुट के तो जैसे तैसे पहुंचे थे | जान जोखिम में थी | जश्न कैसे मनाते ? और किस बात का मनाते ?
१३. चावण्ड में महाराणा प्रताप की समाधि पर लगे शिला लेख में स्पष्ट लिखा है कि प्रताप ने हल्दीघाटी युद्ध में मानसिंह नीत अकबरी फौज को परास्त किया था |
१४. 'जगन्नाथ राय प्रशस्ति', 'राज रत्नाकर', 'राणा रासौ' आदि ग्रन्थों में भी प्रताप की ही जीत लिखी है |
१५. प्रसिद्ध इतिहासकार 'गौरीशंकर हीराचन्द ओझा' जी ने भी लिखा है कि युद्ध में प्रताप की प्रबलता रही |
१६. महाराणा प्रताप स्मारक समिति उदयपुर द्वारा प्रकाशित 'राणा रासो' के सम्पादक डाक्टर ब्रजमोहन जावलिया जी ने लिखा है कि अकबरी सेना ने जीत का जश्न नहीं मनाया था, इसी का अर्थ है कि उसकी जीत नहीं हुई थी |
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#हल्दीघाटी_विजय_दिवस_की_हार्दिक_शुभकामनाएं
1- आज ही कि दिन 18 जून सन 1576 में हल्दीघाटी के इतिहास प्रसिद्ध महासंग्राम में महाराणा प्रताप की छोटी सी जन-सेना ने अकबर की विशाल शाही सेना को धूल चटाई थी !
2. अकबर के इतिहासकार अबुल फज़ल ने लिखा कि प्रताप की सेना की मार के आगे हमारी फौज बारह मील तक भागती रही!
3.अकबर की फौज के पास तोपें और बंदूकें भी थी, जब कि प्रताप की सेना ने केवल तीर-कमान, तलवार-भालों और पत्थरों की सहायता से युद्ध किया. तो भी अकबर की सेना के छक्के छूट गए ! अकबर की फौज तोपें और बंदूकें छोड़ भागी !
4. अकबर के सलाह-कारो ने अपनी फौज को इस भुलावे में रखा हुआ था कि प्रताप तो डरपोक है, पहाड़ी चूहा है, किंतु आज 18 जून के दिन 1576 में प्रताप पहाड़ी चूहे की बजाय हिन्दुआ सिंह सिद्ध हुए थे!
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18 जून झांसी की रानी,वीरांगना लक्ष्मीबाई के बलिदान दिवस पर शौर्य स्मरण

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|| कैसा राज्य चाहिए ? ||
{ प्रताप कथा }
'अकबर दी ग्रेट' लिख कर हमारे धर्म निरपेक्ष इतिहासकारों ने और आजादी पर कब्जा किये हुए अधर्मी धृतराष्ट्री शासकों ने अकबर के काले कारनामों से जनता को अनभिज्ञ रखने का प्रयास किया है | अकबर तो किधर से भी महान् नहीं था |
ईस्ट इण्डिया कम्पनी के जो लोग व्यापार के लिए भारत आये, उन्होंने मुग़ल काल का कच्चा चिट्ठा जो अपने देश की सरकार को लिख कर भेजा वह बड़ा भयावह है | जहांगीर के काल में आये पेलसार्ट ने जहांगीर ही नहीं अपितु अकबर के सम्बन्ध में भी लिखा है क्योंकि जहांगीर को तो अकबर की 'जर्जर' विरासत ही तो प्राप्त हुई थी |
अकबर की शासन व्यवस्था के कच्चे चिट्ठे का सार यहाँ प्रस्तुत है | इसे पढ़ कर सुधी जन अवश्य यह विचार करेंगे कि वे आज स्वतन्त्र भारत में हैं या अकबर के साम्राज्य में हैं ! जैसा आदर्श स्थापित किया जाएगा जनता वैसा ही तो सीखेगी और वैसा ही आचरण करेगी | अकबर को आदर्श मानने पर अकबर जैसा आचरण करेगी | प्रताप को आदर्श मानने पर प्रताप जैसा आचरण करेगी |
१. अकबर के राज्य के 'ला एंड आर्डर' का एक पंक्ति में पर्याप्त वर्णन है कि कोई व्यक्ति प्रातः अपने घर से निकलता तो सायंकाल वापस घर पहुँचने की कोई गारण्टी नहीं थी |
२. चोरी चकारी, बटमारी, बदमाशी, लूट खसोट, बलात्कार आदि की कोई सीमा नहीं थी | होती भी कैसे ? लूट के माल में सुन्दरियां भी शामिल होती थीं | वे भी बादशाह से लेकर नीचे तक बंट जाती थीं | खुद बादशाह मीना बाजार भरवाता था | फिर बलात्कार कैसे रुकता ?
वह अकबर था | वह 'सुरा-सुन्दरी-जीवी' था ! वह कोई 'परदारेषु मातृवत्' मानने वाला प्रताप थोड़े ही था जो युद्ध करती फुफकारती आनी बेगम { रहीम की बीबी } को अपनी बेटी मानते हुए आदर सहित उसके खाविंद के पास पहुंचा देता | फिर उस अकबर के राज में वैसा ही होना था जैसा विदेशियों ने लिखा है |
३. किसानों की कमर झुकी ही रहती थी | उनको उनकी उपज का, परिश्रम का कुछ भी मोल नहीं मिलता था | उनको जीवित ही केवल इसलिए रखा गया था कि वे पैदा करते रहें और हुक्मरानों का पेट भरते रहें |
४. घूसखोरी और क़ानून व्यवस्था का तो और भी बुरा हाल था | यदि अण्टी में पैसा न हो तो साधारण से अपराध के लिए भी फांसी का फन्दा तैयार रहता था, उनको घसीट कर फांसी के फंदे पर लेजाने वाले तैयार खड़े रहते थे | और धन व रसूखदार व्यक्ति हत्या जैसे गम्भीर अपराध में भी कभी फांसी नहीं पाता था |
५. भारत भर में वर्षों घूमने वाले विदेशियों ने लिखा है कि गाँव के गाँव खंडहर हो गए थे | नगर बर्बाद हो गए थे |
६. अकाल की विभीषिका पर लिखा है कि दो जून की रोटी के लिए लोग बच्चों को बेच देते थे, नारियां अपनी आबरू बेच देती थी | यहाँ तक लिखा है कि लोग मुर्दे को खाकर जीवित रहने का प्रयास करते थे |
७. हुक्मरान अमीर थे और जनता असहाय और गरीब थी |
प्रताप का राज्य -
दूसरी ओर प्रताप के लिए लिखा हुआ है कि '' प्रताप के राज्य में सुई की भी चोरी नहीं होती थी '' | प्रताप के राज्य के सम्बन्ध में इतनी बड़ी बात लिखी हुई है कि '' प्रताप के राज्य में कोई अपराध करने वाला ही नहीं होता था इसलिए दण्ड देने की व्यवस्था करने की आवश्यकता ही नहीं होती थी | ''
संगत की रंगत -
सब जानते हैं कि जैसी संगत होती है वैसी ही रंगत होती है | अकबर तो स्वयं लुटेरा था, लुटेरों की औलाद था, इसलिए उसके संगी साथी भी सब वैसे ही थे | लूट का माल खाने वाले उसके साथ लगे थे | उनके सम्पर्क में आने वाले भी वैसे ही बनते | जो गद्दार हिन्दू नामवर लोग उसके साथ लगे थे, वे भी सब लूट का माल खाने वाले लोग ही थे |
धरती और राज्य की अतुलनीय तुलना -
गंगा जमना और पंजाब का उपजाऊ प्रदेश अकबर के कब्जे में था | विदेशों से व्यापार का प्रमुख केन्द्र अहमदाबाद उसके कब्जे में था | फिर भी देश की हालत नाजुक थी | क्योंकि अकबर खुद भक्षक था तो उसके कारिन्दे उससे भी बड़े भक्षक थे |
दूसरी ओर प्रताप के राज्य में स्वघोषित लाकडाउन था, घास के बीजों की रोटी खाकर रहना पड़ता था, तब भी सुई की भी चोरी नहीं होती थी | क्योंकि प्रताप देशभक्त थे, राष्ट्राभिमानी थे, चरित्रवान् थे, त्यागी और तपस्वी थे तो उनकी जनता भी वैसी ही थी | तब ही तो धूल चाट गया अकबर का पूरा वंश !
अब कैसा राज्य चाहिए ?
अकबर का आतंकी भ्रष्टाचारी राज्य चाहिए ? या
प्रताप का स्वदेशी, सुखी, सहयोगी राज्य चाहिए ?
श्री गीता जी में लिखा है -
'' यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः |
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते ||
अर्थात्
श्रेष्ठ पुरुष जैसा आचरण करते हैं दूसरे उसका ही अनुसरण करते है |
तो क्या अकबरों को श्रेष्ठ बता कर हमारे लोग अपनी संस्कृति की जड़ें नहीं उखाड़ रहे हैं ?
कुछ लोग कहते हैं -
कुछ लोग कहते हैं कि प्रताप ने अकबर से समझौता कर लेना चाहिए था | अकबर एक राष्ट्र बना रहा था | प्रताप उसके कार्य में रोड़ा था |
तो क्या भारत को वैसा भारत बनने देने के लिए अकबर से समझौता कर लेना चाहिए था जैसा अकबर के शासन का वर्णन किया गया है ?
तो क्या प्रताप को '' कुमति को निवार सुमति के संगी '' होने की अपेक्षा '' कुमति के संगी '' हो जाना चाहिए था ?
तो क्या #भारत को #अभारत बन जाने देना था ?


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