सदगुरु जग्गी वासुदेव
जन्म 3 सितंबर 1957
सद्गुरु ने 8 भाषाओं में 100 से अधिक पुस्तकों की रचना भी की है। जग्गी वासुदेव जिन्हें दुनिया भर में सद्गुरु के नाम से जाना जाता है। इनका जन्म 5 सितंबर सन् 1957 को कर्नाटक राज्य के मैसूर शहर में हुआ था। बचपन से ही सद्गुरु को प्रकृति से काफी लगाव था।
साभार ...
जग्गी वासुदेव जीवनी - Biography of Jaggi Vasudev in Hindi Jivani
Published By : Jivani.orgयोगी, दिव्य पुरुष, सदगुरु जग्गी वासुदेव अध्यात्म की दुनिया में अपना एक विशिष्ट स्थान रखते हैं। इनका जीवन गंभीरता औरव्यवहारिकता एक आकर्षक मेल है, अपने कार्यों के जरिए इन्होंने योगा को एक गूढ़ विद्या नहीं बल्कि समकालीन विद्या के तौर पर दर्शाया।सदगुरु जग्गी वासुदेव को मानवाधिकार, व्यापारिक मूल्य, सामाजिक-पर्यावरणीय मसलों पर अपने विचार रखने के लिए वैश्विक स्तर परआमंत्रित किया जाता है।
जग्गी वासुदेव एक योगी, सद्गुरु और दिव्यदर्शी हैं। उनको 'सद्गुरु' भी कहा जाता है। वह ईशा फाउंडेशन नामक लाभरहित मानव सेवी संस्थान के संस्थापक हैं। ईशा फाउंडेशन भारत सहित संयुक्त राज्य अमेरिका, इंग्लैंड, लेबनान, सिंगापुर और ऑस्ट्रेलिया में योग कार्यक्रम सिखाता है साथ ही साथ कई सामाजिक और सामुदायिक विकास योजनाओं पर भी काम करता है। इसे संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक परिषद में विशेष सलाहकार की पदवी प्राप्त है। उन्होने ८ भाषाओं में १०० से अधिक पुस्तकों की रचना की है।
ईशा फाउंडेशन
सद्गुरु द्वारा स्थापित ईशा फाउंडेशन एक लाभ-रहित मानव सेवा संस्थान है, जो लोगों की शारीरिक, मानसिक और आतंरिक कुशलता के लिए समर्पित है। यह दो लाख पचास हजार से भी अधिक स्वयंसेवियों द्वारा चलाया जाता है। इसका मुख्यालय ईशा योग केंद्र कोयंबटूर में है। ग्रीन हैंड्स परियोजना ईशा फाउंडेशन की पर्यावरण संबंधी प्रस्ताव है। पूरे तमिलनाडु में लगबग १६ करोड़ पेड़ रोपित करना, परियोजना का घोषित लक्ष्य है। अब तक ग्रीन हैंड्स परियोजना के अंतर्गत तमिलनाडु और पुदुच्चेरी में १८०० से अधिक समुदायों में, २० लाख से अधिक लोगों द्वारा ८२ लाख पौधे के रोपण का आयोजन किया है। इस संगठन ने 17 अक्टूबर 2006 को तमिलनाडु के 27 जिलों में एक साथ 8.52 लाख पौधे रोपकर गिनीज विश्व रिकॉर्ड बनाया था। पर्यावरण सुरक्षा के लिए किए गए इसके महत्वपूर्ण कार्यों के लिए इसे वर्ष 2008 का इंदिरा गांधी पर्यावरण पुरस्कार दिया गया। वर्ष 2017 में आध्यत्म के आपको पदमविभूषण से भी समानित किया गया। अभी वे रैली फ़ॉर रिवर नदियों के संरक्षण के लिए अभियान चला रहे हैं।
आध्यात्मिक अनुभव:
25 साल की उम्र में 23 सितम्बर को उन्होंने चामुंडी पर्वत की चढ़ाई की और वहां किसी विशाल पत्थर पर बैठ गये, वहां वे आध्यात्मिक अनुभव लेने लगे। यह अनुभव करने के छः सप्ताह बाद ही उन्होंने अपना व्यवसाय छोड़ दिया और इस तरह का अनुभव पाने के लिए दुनियाभर की यात्रा करने लगे। इसके बाद तक़रीबन 1 साल तक ध्यान और यात्रा करने के बाद उन्होंने अपने आंतरिक अनुभव को बांटकर लोगो को योगा सिखाने का निर्णय लिया।
1983 में मैसूर में अपने सात सहयोगियों के साथ उन्होंने अपनी पहली योगा क्लास की शुरुवात की। कहा जाता है की ध्यानलिंग में उपचारात्मक शक्तियां होती है, जो मानव विकास और सुधार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। ध्यान केंद्र होने की वजह से ऐसा माना जाता है ध्यान करने के बाद लोगो में यहाँ अपार उर्जा आ जाती है। यहाँ पर ध्यानकेंद्र में बैठकर लोग जितनी देर तक चाहे उतनी देर तक ध्यान लगाकर रह सकते है।
समय के साथ-साथ वे कर्नाटक और हैदराबाद में भी यात्राए कर योगा क्लास का आयोजन करने लगे। वे पूरी तरह से अपने पोल्ट्री फार्म पर आश्रित थे और क्लास के लिए उन्होंने लोगो से पैसे लेना भी मना कर दिया। उनका उद्देश्य यही होता था की वे सहयोगियों से आने वाले पैसो को क्लास के अंतिम दिन में स्थानिक चैरिटी करते थे। बाद में इन्ही शुरुवाती कार्यक्रमों के आधार पर ईशा फाउंडेशन की रचना की गयी।
उनका यह फाउंडेशन भारत के साथ-साथ यूनाइटेड स्टेट, यूनाइटेड किंगडम, लेबनान, सिंगापुर, कनाडा, मलेशिया, यूगांडा, चाइना, नेपाल और ऑस्ट्रेलिया में भी फैला हुआ है। साथ ही इस फाउंडेशन के माध्यम से बहुत सी सामाजिक और सामुदायिक विकसित गतिविधियों का भी आयोजन किया जाता है,
अनमोल विचार
· अविश्वसनीय चीजें आसानी से की जा सकती हैं यदि हम उन्हें करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
· कुंठा, निराशा और अवसाद का मतलब है कि आप अपने खिलाफ काम कर रहे हैं।
· एक बार जब आपका मन पूर्ण रूप से स्थिर हो जाता है तब आपकी बुद्धि मानवीय सीमाओं को पार कर जाती है।
· आध्यात्मिकता का मतलब है क्रमिक विकास की प्रक्रिया को फ़ास्ट-फॉरवर्ड पे डालना।
· जिम्मेदारी का मतलब है जीवन में आने वाली किसी भी स्थिति का सामना करने में सक्षम होना।
· कोई भी काम तनावपूर्ण नहीं है। शरीर, मन और भावनाओं का प्रबन्धन ना कर पाने की आपकी असमर्थता उसे तनावपूर्ण बनाता है।
· खोजने का अर्थ है ये स्वीकार करना कि आप नहीं जानते हैं। एक बार जब आप अपनी स्लेट साफ़ कर लेते हैं, सच खुद को उसपर छाप सकता है।
· मन को केवल कुछ चीजें ही याद रहती हैं। शरीर को सबकुछ याद रहता है। जो सूचना ये रखता है वो अस्तित्व के प्रारम्भ तक जाती हैं।
· धिकतर मनुष्य पिंजड़े में कैद एक चिड़िया की तरह रहते हैं जिसका दरवाजा टूटा हुआ हो। वे आदतन पिंजड़े को गोल्ड प्लेट करने में बहुत व्यस्त होते हैं, वे परम संभावनाओं तक नहीं जाते।
· पानी की अपनी याददाश्त है। आप इसके साथ कैसे पेश आते हैं, किस तरह के विचार और भावनाएं पैदा करते हैं उसी के अनुसार वो आपके शरीर में व्यवहार करता है।
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सद्गुरु जग्गी वासुदेव के सर्वश्रेष्ठ अनमोल विचार
ध्यान पर सद्गुरु जग्गी वासुदेव के 10 सूत्र(Ten Best Quotes About Meditation By Sadhguru In Hindi)
1. ध्यान करने से जब आपको यह अहसास होता है कि आपकी कई सारी सीमाएं हैं, और वो सब स्वयं आपकी बनाई हुई हैं, तभी आपके अंदर उन्हे तोड़ने की चाहत पैदा होगी।
2. ध्यान अपने अस्तित्व की खूबसूरती को जानने का एक तरीका है।
3. असल में ध्यान का अर्थ है, अनुभव के स्तर पर यह एहसास होना कि आप कोई अलग इकाई नहीं हैं – आप एक ब्रह्मांड हैं।
4. ध्यान कोई कार्य नहीं, एक गुण है।
5. ध्यान का अर्थ है, अपने भीतर नए आयाम जागृत करना।
6. ध्यान का अर्थ यह नहीं है कि आपको अपने जीवन में हर क्षण मुस्कुराते रहना होगा, बल्कि यह सीखना है कि आपकी हड्डियां भी मुस्कुराने लगें।
7. अगर आप अपने शरीर, दिमाग, ऊर्जा और भावनाओं को एक खास स्तर तक परिपक्व करते हैं, ध्यान अपने आप फलित होगा।
8. जब तक यहां आपका अस्तित्व केवल शरीर और मन के रूप में है, पीड़ा तो होगी ही, इससे बचा नहीं जा सकता। ध्यान का अर्थ है आपने शरीर और मन की सीमाओं से परे जाना।
9. जीवन का मूल उद्देश्य खिलने की उस सर्वोच्च अवस्था तक पहुंचना है, जहां तक पहुंचना संभव है। ध्यान खिलने के लिए खाद्य पदार्थ है।
10. ध्यान का अर्थ है पूरी तरह से बोध में स्थित होना। पूरी तरह से मुक्त होने का यह अकेला मार्ग है।
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8 सूत्र आत्म ज्ञान के बारे में
(8 Quotes In Hindi About Self-Realization By Sadhguru)
Best Quotes On Self Realization By sadhguru in hindi
1. आत्मज्ञान उस सत्य का साक्षात्कार है, जो पहले से ही मौजूद है।
2. आत्मज्ञान का बीज हर प्राणी में मौजूद है। आत्मज्ञान कोई ऐसी चीज नहीं है जो बाहर से आती है। आत्मज्ञान सिर्फ एक बोध है।
3. आत्मज्ञान में कोई सुख नहीं होता, कोई पीड़ा नहीं होती – बस होता है एक बेनाम आनंद, परमानंद।
4. न तो किसी औरत को आत्मज्ञान मिल सकता है और न ही किसी पुरुष को। आत्मज्ञान की संभावना तभी बनती है जब आप लिंग भेद से ऊपर उठ जाते हैं।
5. एक देश के रूपांतरण के लिए ज्ञानोदय की जरूरत नहीं है – बस थोड़ी सी समझदारी और अपने आसपास रहने वाले हर इंसान के प्रति प्रेम की जरूरत है।
6. आत्मज्ञान का अर्थ है – जीवन के एक नए आयाम में प्रवेश करना। यह भौतिकता से परे का आयाम है।
7. आत्मज्ञान कोई बिग-बैंग धमाके की तरह नहीं होता है। यह निरंतर जारी रहने वाली प्रक्रिया है।
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7 सूत्र स्वतंत्रता के बारे में
(7 Independence Quotes In Hindi By Sadhguru)
1. आवश्यक जागरुकता के बिना स्वतंत्रता खतरनाक है।
2. पीड़ा के डर से आप जीवन को आधा अधूरा जीते हैं। जीवन को पूर्णता में जीने के लिए पीड़ा के डर से छुटकारा जरूरी है।
3. एक बार जब आपमें और आपकी विचार प्रक्रिया में एक दूरी आ जाती है, एक नई स्वतंत्रता जन्म लेती है। इस स्वतंत्रता के साथ एक नया बोध जागता है।
4. तनाव से मुक्त होने का एकमात्र तरीका ध्यान है, क्योंकि यह मन से परे का आयाम है। सारा तनाव और संघर्ष तो मन में है।
5. ध्यान का अर्थ है : अपने भीतर परम आज़ादी।
6. साधना चाहे कितनी भी साधारण हो, अगर आप इसे हर दिन करते हैं, तो धीरे-धीरे, कदम-दर-कदम, यह आपके भीतर एक नये स्तर की आज़ादी पैदा करती है।
7. दूसरों से आशाएं होने का मतलब है कि आप उनकी ज़िन्दगी ठीक करने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसा न करें। अपना खुद का जीवन ठीक करें – यही आज़ादी है।
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6 सूत्र आसनों के बारे में(6 Aasana Quotes By Sadhguru in Hindi)
1. अगर आप रूपांतरित होना चाहते हैं, तो सबसे बड़ा रूपांतरण शरीर में होना होगा – क्योंकि शरीर में दिमाग से कहीं बहुत अधिक याद्दाश्त होती है।
2. आसनों को अगर सही तरीके से किया जाए, तो हर आसन ऊर्जा की एक प्रक्रिया है।
3. अगर आप जागरूक होकर किसी एक आसन में रहते हैं, तो जैसे आप सोचते हैं, महसूस करते हैं और जीवन को अनुभव करते हैं, उसे यह बदल सकता है। हठ-योग यह कर सकता है।
4. गलत कारणों से योगाभ्यास करते हुए भी, अगर आप इसे सही तरीके से करते हैं, तब भी यह काम करता है।
5. कोई योगिक अभ्यास चाहे कितना भी सीधा और सरल क्यों न लगे, उसमें हमेशा एक आध्यात्मिक आयाम होता है।
6. आपके मस्तिष्क की गतिविधियां, आपके शरीर की केमेस्ट्री, यहां तक कि आपके वंशानुगत गुण भी योगाभ्यास से बदले जा सकते हैं।
7 सूत्र जीवन-ऊर्जा के बारे में
(7 Life-Energy Quotes In Hindi By Sadhguru)
1. जब आप अपनी ऊर्जा-प्रणाली को बचे हुए कर्मों से मुक्त कर देते हैं, सिर्फ तभी आप अपनी नियति बदल सकते हैं। इसीलिए योग-क्रियाएं महत्वपूर्ण हैं।
2. अगर आप कोई योग करते हैं और वह आपके भीतर ऊर्जा-ढांचे को नहीं बदल देता, तो मैं कहूंगा कि आप उसमें वक्त बरबाद न करें।
3. जीवन-ऊर्जा डाल कर आप एक भौतिक रूप को ईश्वरीय शक्ति बना सकते हैं। यही देवी-देवताओं और यंत्रों के सृजन का विज्ञान है।
4. बढ़ती उम्र के साथ आपका भौतिक-शरीर बूढ़ा होता जाएगा। लेकिन यह जरूरी नहीं है कि आपका ऊर्जा-शरीर भी बूढ़ा हो- आप इसे वैसा ही रख सकते हैं, जैसा यह पैदा होने के समय था।
5. मेरा सपना है कि मैं सारे विश्व को ऊर्जा से प्रतिष्ठित करूँ। किसी भी इंसान को उपेक्षित और कम ऊर्जा वाले स्थानों में नहीं रहना चाहिए।
6. अगर आप अपने शरीर, मन, और भावनाओं को खुला रखते हैं तो आपका जीवन काफी अच्छा हो जाएगा। अगर आप अपनी ऊर्जा प्रणाली को खोलते हैं तो यह जादुई हो जाएगा।
7. हर चीज जो मैं जानता हूं, जो मेरे गुरु जानते थे, और जो संपूर्ण आध्यात्मिक परंपरा जानती थी, वह ध्यानलिंग में ऊर्जा के रूप में मौजूद है।
जीवन को गहराई में अनुभव करने के 6 सूत्र
(Top 6 Quotes About Life In Hindi By Sadhguru)
1. आपका जीवन और आप इसे कैसे अनुभव करते हैं – यह सब पूरी तरह से आपकी रचना है। जब यह बात आपको पूरी तरह समझ आ जाती है, सिर्फ तभी आप बदलने के लिए तैयार होंगे।
2. योग में बड़े अनुभवों का केवल एक ही प्रयोजन होता है – आपको आध्यात्मिक राह पर कायम रखना।
3. चैतन्य को छूने, अनुभव करने, और जानने में जिस सबसे बड़ी बाधा का इंसान सामना करते है – वह है तर्क से ऊपर उठने की उनकी अनिच्छा।
4. इंसान की यह जन्मजात प्रकृति है कि वह जितना है उससे कुछ और ज्यादा अनुभव करना चाहता है। अगर हम किसी आध्यात्मिक प्रक्रिया को नहीं अपनाते, तो हर जगह नशीले पदार्थ मौजूद होंगे।
5. अगर आप जागरूक होकर किसी एक आसन में रहते हैं, तो जैसे आप सोचते हैं, महसूस करते हैं और जीवन को अनुभव करते हैं, उसे यह बदल सकता है। हठ-योग यह कर सकता है।
6. आप अपने जीवन का अनुभव सिर्फ तभी गहरा कर सकते हैं, जब आप, किसी चीज से खुद की पहचान बनाए बिना, हर चीज के प्रति पूरी तरह खुले हों।
मैं फिर वापस आउंगा : दास्तान तीन जन्मों की
एक योगी, युगदृष्टा, मानवतावादी सद्गुरु, एक आधुनिक गुरु हैं। सद्गुरु द्वारा स्थापित ईशा फाउंडेशन एक स्वयंसेवी व अंतर्राष्ट्रीय लाभरहित संस्था है। विश्व शांति और खुशहाली की दिशा में निरंतर काम कर रहे सद्गुरु के रूपांतरणकारी कार्यक्रमों से दुनिया के कराड़ों लोगों को एक नई दिशा मिली है।
मैं फिर वापस आउंगा: दास्तान तीन जन्मों की
Article May 31, 2015
सद्गुरु एक योगी, युगदृष्टा, मानवतावादी सद्गुरु, एक आधुनिक गुरु हैं। सद्गुरु द्वारा स्थापित ईशा फाउंडेशन एक स्वयंसेवी व अंतर्राष्ट्रीय लाभरहित संस्था है। विश्व शांति और खुशहाली की दिशा में निरंतर काम कर रहे सद्गुरु के रूपांतरणकारी कार्यक्रमों से दुनिया के कराड़ों लोगों को एक नई दिशा मिली है। सद्गुरु ने योग के गूढ़ आयामों को आम आदमी के लिए इतना सहज बना दिया है कि हर व्यक्ति उस पर अमल कर के अपने भाग्य का स्वामी खुद बन सकता है। उनके योग कार्यक्रमों ने दुनिया भर में लाखों जिंदगियों को बदला है। इस अभूतपूर्व योगी के निर्माण के आवश्यक संघटको को आइए जानते हैं संक्षेप में।
कथा तीन जीवन-काल की
करीब चार सौ साल पहले की बात है। जिला रायगढ़ (मध्य-प्रदेश) में बिल्वा नाम का एक आदमी रहता था। ऊंची कदकाठी, गठीला बदन। जिंदगी से बहुत प्यार करने वाला बिल्वा यह तो जानता ही नहीं था कि डर किसे कहते हैं। संपेरों के उस कबीले में उसकी छवि, लीक से हटकर चलने वाले एक अजीब इंसान की थी। शिव का भक्त बिल्वा स्वभाव से ही विद्रोही था, हमेशा से समाज के कायदे-कानून को तोडऩे वाला। वह चलता तो इतने गर्व से था, मानो यह धरती उसे विरासत में मिली हो। वह एक ऐसा व्यक्ति था जो सामाजिक ढांचे में फिट नहीं बैठता था और उसे लोग एक विद्रोही के रूप में देखते थे। उसने कई विद्रोहपूर्ण कार्य किए, उसमें से एक यह था कि उस समय में प्रचलित कड़े जाति-भेद के नियमों की उसने परवाह नहीं की। इस कारण बहुत कम उम्र में ही उसे मौत दे दी गई। उसे एक पेड़ से बांध कर सांप से कटवाया गया था।
बिल्वा को एक पेड़ से बांध कर उस पर उसी का एक भयंकर जहरीला सांप छोड़ दिया गया। सांप का जहर उसकी रग-रग में फैलने लगा और उसका खून जमने लगा। दर्द बढ़ता जा रहा था। उसके फेफ ड़े सिकुडने लगे थे। उसने मन ही मन तय किया कि इन जालिमों को अपनी भयानक मौत का तमाशा देखकर खुश नहीं होने देगा। उसने अपनी सांसों पर नजर रखना शुरू कर दिया। सांसें भारी होने लगीं, मगर वह सिर्फ उन्हीं पर ध्यान देता रहा, जब तक कि उसकी सांसें थम न गई। उसने पूरी जागरूकता में शरीर छोड़ा। वह अपने जीवन-काल में सिर्फ एक भक्त था, उसने कभी कोई आध्यात्मिक साधना नहीं की थी। लेकिन अपने अंतिम समय में उसने जिस तरह से अपनी सांसों पर अपना ध्यान केंद्रित किया और जिस तरह से पूरी जागरूकता में उसने अपना शरीर छोड़ा, उसने उसका भविष्य कई तरह से बदल दिया।
शिवयोगी : कठोर तप का जीवन
यही जागरूकता बिल्वा को अगले जन्म में अध्यात्म की गहरी खोज करने वाले इंसान के रूप में वापस ले आई। वह एक शिवयोगी थे। उनका जीवन बहुत ही तकलीफ देह और दिल दहलाने वाले तप का जीवन था। शिवयोगी ने कठोर तप से योग में असाधारण दक्षता हासिल की।
एक दिन शिवयोगी पर्वत पर ध्यान में बैठे थे, तभी एक घुमक्कड़ साधु उनके पास आकर रुके। वह कोयंबटूर की दक्षिणी पहाड़ी पर रहने वाले महान संत श्री पलनी स्वामी थे। पलनी स्वामी ने तुरंत शिवयोगी की आध्यात्मिक चाहत की प्रचंडता और तड़प को पहचान लिया। इस पड़ाव पर शिवयोगी को किसी गुरु के हस्तक्षेप की जरूरत थी।
लेकिन शिवयोगी एक स्वाभिमानी शिवभक्त थे। पलनी स्वामी जानते थे कि उन्हें साक्षात् शिव के अलावा किसी दूसरे का हस्तक्षेप स्वीकार नहीं होगा। इसलिए करुणावश पलनी स्वामी आदि-योगी के रूप में उनके सामने प्रकट हुए। शिवयोगी ने स्वयं को उन्हें समर्पित कर दिया। पलनी स्वामी ने अपनी छड़ी उठाई और शिवयोगी के माथे से छुआ दिया। शिवयोगी क्षणभर में ही उस अवस्था को प्राप्त हो गए, जिसे वह आजीवन तलाशते रहे थे। उनके अंतर में पूर्ण सूर्य का उदय हुआ, वह आत्मज्ञान को प्राप्त हो गए।
गुरु चुपचाप अपने रास्ते चले गए। गुरु और शिष्य के बीच एक शब्द का भी संवाद नहीं हुआ। कोई शपथ नहीं ली गई, न ही जीवन भर वफ़ादार बने रहने की कसमें खाई गईं। उस छोटी सी मुलाकात के बाद उनका फि र कभी मिलना नहीं हुआ। पर शिवयोगी उस मिलन की विरासत को कभी नहीं भूला पाए। पलनी स्वामी की छड़ी के स्पर्श ने उन्हें सदा के लिए मुक्त कर दिया। पर इस घटना ने एक अजीब तरीके से उन्हें एक बंधन में भी डाल दिया था। इससे शिवयोगी एक साधक की आखिरी मंजिल पर तो पहुंचा गए, पर साथ ही उनमें एक बीज भी बो दिया गया, जो एक गुरु के रूप में उनकी एक नई यात्रा की शुरुआत थी। इसने उन्हें एक ऐसी जिम्मेदारी दी, जिसे पूरा करने में कई जीवनकाल लग सकते थे।
वह बीज उनसे पहले के असंख्य योगियों का सपना था। यह एक ऐसे पवित्र रूप के निर्माण का नुस्खा था, जिससे न केवल गहरी आध्यात्मिक रुचि वाले लोग, बल्कि मानवता का एक बड़ा वर्ग मुक्त हो सकता था। सभी के मुक्ति का द्वार खोलने का यह एक सूत्र था। ध्यानलिंग की कहानी यहीं से शुरू होती है। अपने जीवनकाल में गुरु के सपने को साकार करने का शिवयोगी का संकल्प पूरा न हो सका। सत्तावन साल की उम्र में ही उन्होंने शरीर छोड़ दिया। लेकिन वह मिशन रुका नहीं, जारी रहा।
सद्गुरु श्री ब्रह्मा : एक प्रचंड योगी
बीसवीं सदी की शुरुआत में शिवयोगी फि र से इस दुनिया में लौटे। अब वह दक्षिण भारतीय योगी व दिव्यदर्शी सद्गुरु श्री ब्रह्मा थे। दक्षिण भारत के अनेकों आश्रम आज भी इस क्रोधी किंतु आश्चर्यजनक रूप से लोकप्रिय योगी पर लोगों की श्रद्धा के साक्षी हैं।
सद्गुरु श्री ब्रह्मा ने ध्यानलिंग की स्थापना की भरसक कोशिश की। लेकिन इस आध्यात्मिक प्रक्रिया को लेकर समाज का विरोध बहुत ज्यादा था। सद्गुरु को यह करने से मना कर दिया गया। गुस्से से भरे सद्गुरु लगातार कई दिनों तक चलते रहे। विभूति, जो उनके समर्पित शिष्य थे, के लिए उनके साथ-साथ चलना आसान न था। फिर भी गुरु और शिष्य लगातार चलते हुए कुडप्पा (आंध्रप्रदेश) पहुंचे। यहां वे शिव के मादक रूप वाले सोमेश्वर के छोटे से मंदिर में ठहरे।
कुडप्पा के धूलभरे कस्बे के इस छोटे से मंदिर में छह महीने रहकर गुरु और शिष्य ने आगे के लिए योजना बनाई। उन्होंने दो दर्जन से अधिक लोगों के भाग्य का फैसला किया कि इन लोगों को किस परिवार में और किसके गर्भ से जन्म लेना है, उन्हें क्या-क्या हुनर हासिल करने होंगे और कैसा जीवन जीना होगा। यह ध्यानलिंग के निर्माण के लिए भविष्य में अनुकूल माहौल पैदा करने की कोशिश थी। ध्यानलिंग को पूरा करने की पिछली सभी कोशिशों में बाधाएं सामाजिक कारणों से आई थीं। सिद्धि प्राप्त योगियों के रास्ते में समाज के कायदे-कानून हमेशा से रोड़े अटकाते रहे हैं। बड़ी सूझबूझ से काम लेते हुए सद्गुरु ने अपने भरोसेमंद शिष्यों को ऐसे परिवारों में भेजने का फैसला किया, जहां से उनको सबसे ज्यादा विरोध की उम्मीद थी। इसके पीछे मुख्य कारण यह था कि ऐसे में ये परिवार उनकी योजना को विफल करने से हिचकिचाते। फिर भी विरोध होना तय था। ध्यानलिंग के निर्माण में कट्टर विरोधियों का सामना होना ही था।
अब सद्गुरु वेलिंगिरि पहाड़ों में लौट आए। वह सातवीं पहाड़ी पर चढ़ गए। तेज हवाओं के झोंकों वाले इस वन प्रदेश की शांति उस इंसान के बारे में बहुत कुछ कहती है, जिसने इसे अपने अंतिम प्रस्थान के लिए चुना। यहां उन्होंने सभी सात चक्रों के माध्यम से अपना शरीर त्याग दिया। यह एक दुर्लभ सिद्ध योगी, एक चक्रेश्वर ही कर सकता था। इससे पहले ऐसा स्वयं शिव ने किया था, जो मानवता के इतिहास में पहले योगी थे।
बयालीस साल की उम्र में ऐसे अद्भुत तरीके से शरीर त्यागने से पहले सद्गुरु श्री ब्रह्मा ने घोषणा की थी, ‘मैं वापस आऊंगा।’
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सद्गुरु जग्गी वासुदेव : एक आधुनिक गुरु
सद्गुरु श्री बह्मा ने फिर से इस धरती पर जन्म लिया। सुशीला और उनके पति वासुदेव के पुत्र, जगदीश का जन्म 3 सितंबर 1957 को मैसूर शहर में हुआ। आगे चलकर जगदीश को घर में ‘जग्गी’ कहकर बुलाया जाने लगा। बड़े होकर जग्गी एक सफ ल कारोबारी के रूप में उभरे। पच्चीस साल की उम्र में, 23 सितंबर 1982 के दिन जग्गी के साथ कुछ अद्भुत हुआ जिसके बाद उनके जीवन में सबकुछ बदल गया। उस दिन को याद करते हुए जग्गी कहते हैं, ‘‘उस दोपहर को भी मेरे पास बहुत समय नहीं था, एक के बाद एक, दो बीजनेस मिटिंग्स थे। बीच में थोड़ा समय मिला तो मैं मैसूर की चामुण्डी पहाड़ी पर चला गया, जहां मैं अक्सर जाया करता था। दोपहर में तपते सूरज के नीचे एक बड़े से चट्टान पर, जिस पर मैं अक्सर बैठा करता था, जाकर बैठ गया। आंखें खुली थी। बस कुछ मिनटों बाद मुझे यह भी नहीं पता था कि मैं कहा हूं। उस पल तक, अधिकांश लोगों की तरह, मैंने हमेशा यही माना था कि यह देह ‘मैं’ हूं और ‘वह’ कोई अन्य व्यक्ति है। अचानक कुछ ही पलों में मुझे पता ही नहीं चला कि कौन ‘मैं’ हूं और कौन ‘मैं’ नहीं हूं। जो ‘मैं’ था वही हर जगह था। जिस चट्टान पर मैं बैठा था, जिस हवा में मैं सांस ले रहा था, मेरे आस-पास का वातावरण - सब कुछ बस ‘मैं’ ही बन गया था।
मेरे पास बताने के लिए कुछ भी नहीं था क्योंकि वह बताया ही नहीं जा सकता, मुझे सिर्फ इतना ही पता था कि मुझे एक सोने की खान मिल गई है, मेरे भीतर एक गुमनाम सोने की खान थी जिसे मैं एक पल के लिए भी खोना नहीं चाहता था। मुझे पता था कि जो हो रहा है वह निरा पागलपन है, लेकिन मैं एक पल के लिए भी इसे खोना नहीं चाहता था, क्योंकि मेरे अंदर कुछ बहुत ही अद्भुत घटित हो रहा था। मेरे भीतर आनंद फूट रहा था, और मुझे पता था कि यह हर इंसान में हो सकता है। हर इंसान में एक ही आंतरिक तत्व होता है, पर यह उनके साथ नहीं हो रहा। इसलिए मैंने सोचा कि सबसे अच्छा काम तो यही होगा कि किसी तरह उनमें यह अनुभव जगाया जाए। मुझे पता था कि मुझे कुछ करना है, लेकिन क्या, यह मैं नहीं जानता था। फि र मैंने तरीकों की तलाश शुरू कर दी।
बहुत खुशामद और विवश करने के बाद मुझे सात व्यक्ति मिले। वे कोई सप्तऋ षि नहीं थे। वे उस स्तर की तैयारी या तीव्रता के साथ नहीं आए थे। कुछ जिज्ञासावश आए थे और कुछ शिष्टता वश आ गए थे, क्योंकि वे मुझे ‘ना’ नहीं कहना चाहते थे।
जो सबसे पहला कार्यक्रम मैंने किया था वह, दो-दो घंटे का एक चार-दिवसीय कार्यक्रम था। लेकिन दूसरे ही दिन यह पांच, छह घंटों में बदल गया। तीसरे दिन भी ऐसा ही हुआ। चौथे दिन उन्होंने कहा, ‘यह बहुत अच्छा है, इसे और दो दिन के लिए बढ़ा देते हैं।’ इस तरह, यह छह दिवसीय कार्यक्रम बन गया।
तब से, मैंने फिर पीछे मुडक़र नहीं देखा, लाखों लोगों ने इन कार्यक्रमों में भाग लिया है तथा इसके कारण लाखों जीवन परिवर्तित हुए हैं। आज मैं यह गर्व से कह सकता हूं कि घरों और बाजारों में, समान रूप से, हम ने ऐसे लोगों का निर्माण किया है जो जीवन की असीमता और समरूपता में स्थापित हैं, सीमित की संकीर्ण मानसिकत में नहीं। मैं यह गर्व से कह सकता हूं कि सिर्फ शहरी और संपन्न लोग ही नहीं, बल्कि गरीब लोग भी, जो रोज़मर्रा की जिंदगी के संघर्ष से जूझ रहे हैं, अपने कल्याण के अंदरूनी मार्ग पर चलने में समर्थ हैं।’’
अपने स्वप्न का वर्णन करते हुए, सद्गुरु अक्सर कहते हैं, ‘‘जिस तरह से भारत में सडक़ों पर चलते हुए, आप कहीं न कहीं सब्ज़ी बेचने वाले से टकरा ही जाते हो, उसी तरह, यह मेरा स्वप्न है कि एक दिन जब मैं सडक़ों पर चलूं, तो मैं बुद्ध पुरुषों से टकराऊं।’’
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