संगठित समाज से देश के भाग्य परिवर्तन की आवश्यकता है -परम् पूजनीय सरसंघचालक



सोमवार, 16 फ़रवरी 2015

सम्पूर्ण समाज एक करना, गुण सम्पन्न, संगठित समाज से  देश के भाग्य परिवर्तन की मूलभूत आवश्यकता है -परम् पूजनीय सरसंघचालक

कानपुर।  राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, कानपुर प्रान्त द्वारा रेलवे ग्राउण्ड, निराला नगर में आयोजित राष्ट्र रक्षा संगम संघ को सम्बोधित करते हुए रा0 स्व0 संघ के परम् पूजनीय सरसंघचालक मोहन मधुकरराव भागवत ने कहाकि संघ के विशाल कार्यक्रमों को लोग शक्ति प्रदर्शन का नाम देते हैं, पर जिसके पास शक्ति होती है, उसे उसके प्रदर्शन की आवश्यकता नहीं पड़ती है। संघ के पास अपनी शक्ति है, जिसके द्वारा संघ आगे बढ़ रहा है। ऐसे कार्यøमों का उद्देश्य शक्ति प्रदर्शन नहीं आत्म दर्शन होता है। ऐसे कार्यक्रमों का उद्देश्य अनुशासन एवं आत्म संयम होता है। जैसाकि हम जानते हैं कि हम और हमारे देश का भाग्य, हमें ही बनाना पड़ेेगा। कोई दूसरा हमारा भाग्य नहीं बनाएगा।

डाॅ0 साहब को जैसा लोग जानते हैं, उसके अनुसार वे जन्मजात देशभक्त थे। बचपन से ही उनमें स्वतंत्रता की ललक व उसके सुख आदि के विचार उनके मन में चलते रहते थे। यही कारण है कि बड़े होकर पढ़ाई पूर्ण करने के बाद उन्होंने यह नहीं सोंचा कि अपनी ग्रहस्ती बनाऊ या कमाई करुं। बल्कि यह विचार किया कि जबतक देश का भाग्य नहीं बदलता है, तबतक अपने जीवन के बारे में कोई विचार नहीं करना। यही कारण है कि देशहित के हर काम में वे सहभागी रहे। उस समय का मुख्य कार्य देश को स्वतंत्र कराने का था। स्वतंत्रता के लिए सशस्त्र संघर्ष करने वालों को क्रांतिकारी कहते थे और कुछ लोग अहिंसा के रास्ते देश को स्वतंत्र कराने के पक्षधर थे। कुछ लोग समाज सुधार के कार्य के द्वारा भी देशहित में लगे थे। इन सभी प्रकार के कार्यों में डाॅ0 साहब ने कार्यकर्ता बनकर सहयोग किया। उनका इस प्रकार के सभी कार्यों के कार्यकर्ताओं से उनका व्यक्तिगत विचार विमर्श चलता रहता था।

हमारा देश दुनिया में कभी भी पीछे नहीं था। हम बलवान, प्रतिभावान थे। किन्तु मुट्ठीभर लोगों ने हमें पदाक्रांत किया। संविधान निर्माता अम्बेडकर ने अपने भाषण में कहा था कि हमारे स्वार्थों, भेदों, दुर्गुणों के चलते हमने अपने देश को चांदी की तस्करी में देश भेंट कर दिया।

सरसंघचालक जी ने कहाकि जब तक स्वार्थों से ऊपर उठकर हम बंधु भाव से समाज नहीं बनाते, तब तक संविधान हमारी रक्षा नहीं कर सकता। सम्पूर्ण समाज एक करना, गुण सम्पन्न, संगठित समाज देश के भाग्य परिवर्तन की मूलभूत आवश्यकता है।

जाकी रही भावना प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।जैसी, उसने मूरत देखी वैसी। अपने को बदलों मत। खान पान आदि विविधताओं को लेकर भेद करना ठीक नहीं। हमारी भारतीय संस्कृति सबको साथ लेकर चलती है। इस संस्कृति को ही हिन्दू कहते हैं। हम सबको अपनी विविधताओं, विशेषताओं को बनाए रखते हुए एक साथ खड़ा होना होगा तब ही अपना देश दुनिया को रास्ता दिखा सकता है। अनुकूलता व प्रतिकूलता चलती रहती हैं। यदि हमारा समाज स्थिर है, तो हम पर परिस्थितियों का कोई अंतर नहीं पड़ेगा। जो बताना है उसको खुद करो। रोना निराशमयी विकल्प है। परिस्थिति को पार करने के लिए जो करना चाहिए, वो पहले खुद करो, फिर दूसरे को सिखाओं। अंधेरे से लड़ने की जरुरत नहीं, एक दीप जलाओ अंधेरा भाग जाएगा। परिस्थित से निपटने के लिए उसमें से होकर गुजरना होगा। एक केरल का राजा था उदयरन उसेे आचार्य परशसुराम के गुरुकुल में भेजा। पढ़ाई पूर्ण होने के बाद परीक्षा का समय आया। 12 वर्ष बाद आचार्यों ने पूछा कि कितना सीखा। उसने कहाकि मैं 10 हजार लोगों से अकेला लड़ सकता हूं। विचार करने पर उसके ध्यान में आया कि दस हजार लोग मुझसे एक
साथ नहीं लड़ सकता। एक साथ अंदर के घेरे में रहने वाले 27 लोगों के अलावा और किसी से लड़ाई नहीं कर सकता। छह महीने बाद जब पूंछा तो उसने बताया कि 27 लोगों से लड़ सकता हूं। आचार्यों ने फिर उसे भेज दिया। घेरे में लड़ना हमें संघ में भी सिखाया जाता है। अब उसने कहाकि एक से बहुत अच्छी तरह लड़ सकता हूं। फिर उससे प्रश्न पूछा, तो अबकी बार उसने कहाकि हम शस्त्र विद्या लड़ाई के लिए नहीं बल्की आत्मरक्षा के लिए सीखते हैं। मैं खुद किसी से नहीं लड़ सकता हूं, यदि कोई मुझे या प्रजा को सताने के लिए कोई आये, तो जितना लड़ना पड़े मैं लड़ सकता हूं। संघ में भी हमें यही सिखाया जाता है। हमें अपने अंदर को ठीक करना सबसे जरुरी है। अंदर शक्ति सम्पन्न हो जाओ, कोई आपको सताने का प्रयास नहीं करेगा।

एक आदमी था, उसकी पत्नी की मृत्यु हो गई। उसको नींद नहीं आ रही थी, सब प्रकार की दवाईयां ली। ठीक नहीं हुआ। महात्मा जी ने एक पोटली दी और कहाकि खोलना नहीं। उसने वैसा ही किया, लेकिन पत्नी का भूत पोटली के अंदर की बात पूछते ही भूत गायब हो गया। महात्मा ने बताया कि भूत तुम्हारे मन का वहम था। वह अब भाग चुका है। संघ का काम इसलिए चलता है कि समाज को देश के लिए जीने मरने वाला बनाए।

एक दोस्त ने दूसरे दोस्त से पूछा कहा जा रहे हो। उसने कहाकि आत्महत्या करने जा रहा हूं। सबके समझाने पर भी वो नहीं माना। वह भोजन का डिब्बा लेकर साथ जा रहा था, पूछने पर बताया कि टेªन लेट हो गई, तो क्या भूखा मरुंगा। समय पर खाने की उसकी आदत नहीं गई। हमारा भगवा ध्वज, भारत माता का चित्र, उनके ही गीत। हम किसी की जाति, पंथ आदि नहीं पूंछते। साथ में रहकर सीखो हम सब भारत मां के पुत्र हैं। ऊँचाई के अनुसार सभी खड़े होंगे, जाति कोई भी हो, पैसा कितना भी हो, नियम मानना होगा। इसी का नाम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ है। हम अपने से नित्य शाखा में जाकर अपने जीवन से समय निकालकर देश समाज का निर्माण करेंगे। पहले अपने परिवार का वातावरण बदलें।

परिवार में स्वदेशी का भाव आयेगा। विभिन्न प्रान्तों, दलों में बैठे हुए लोग अच्छे होंगे तो देश में परिवर्तन आयेगा। व्यक्ति परिवर्तन के लिए प्रयास होना चाहिए। संघ की योजना से कोई छोटा, बड़ा नहीं होता। यह काम हम जितने लगन से करेंगे, भारत को परम वैभव उतना ही जल्दी प्राप्त होगा। समाज में परिवार को उदाहरण के रुप में रखना होगा। कार्यक्रम में मंचासीन अतिथियों में डाॅ0 ईश्वर चन्द्र गुप्त, वीरेन्द्र पराक्रमादित्य जी, अर्जुन दास खत्री जी थे। कार्यक्रम का संचालन अरविन्द मेहरोत्रा जी ने किया। अन्य उपस्थित अधिकारियों में मधु भाई कुलकर्णी जी, अनिल ओक जी, राम कुमार जी, रामाशीष जी, राजेन्द्र सक्सेना जी, काशीराम जी, अनिल जी, ज्ञानेन्द्र सचान जी, मोहन अग्रवाल जी, अरविन्द जी, राकेश जी आदि उपस्थित थे।

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