समतायुक्त, शोषणमुक्त समाज निर्माण संघ कर रहा है – प.पू. डॉ. मोहनजी भागवत
समतायुक्त, समतायुक्त,शोषणमुक्त समाज निर्माण संघ कर रहा है – डॉ. मोहनजी भागवत
सरसंघचालक प.पू. डॉ मोहन जी भागवत समारोप कार्यक्रम में संबोधित करते हुए
नागपुर. सरसंघचालक प.पू. डॉ मोहन जी भागवत ने कहा कि भारत में, हर क्षेत्र में आज बदलाव का अनुभव हो रहा है. दुनिया में भारत की मान-प्रतिष्ठा बढ रही है, भारत के प्रति दुनिया की आशा-आकांक्षा बढ़ रही है. सरसंघचालक जी रेशिमबाग परिसर में तृतीय वर्ष संघ शिक्षा वर्ग के समारोप कार्यक्रम में संबोधित कर रहे थे.
भारत के प्रति दुनिया के इस बदले हुए दृष्टिकोण का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि, भारत के प्रधानमंत्री द्वारा ‘योग दिवस’ के बारे में संयुक्त राष्ट्र संघ में प्रस्ताव रखते ही, यह प्रस्ताव चर्चा के बिना ही तीन चौथाई से मतों पारित हो गया. दुनिया भारत द्वारा पहल करने की राह देख रही थी.
उन्होंने कहा कि शक्ति के क्षेत्र में जिसकी शक्ति बढ़ती है, उसकी प्रतिष्ठा बढती है. आर्थिक-सामरिक क्षमता के आधार पर ऐसा होता है. लेकिन समयचक्र बदलने पर उस देश की मान और प्रतिष्ठा भी कम हो जाती है.
किंतु भारत के संदर्भ में ऐसा नहीं है. भारत अपने अस्तित्व के समय से आज तक भले ही भौतिक दृष्टि से दुर्बल रहा हो, लेकिन दुनिया में विश्वास के संदर्भ में भारत सदैव अग्रसर रहा है. यही हमारी परंपरा है. किसी भी बात की आड़ लेकर भारत ने स्वार्थ का अजेंडा नहीं अपनाया है. विश्व को परिवार माना है. यह भारतीय समाज का स्वभाव है, इसे ही संस्कृति कहते है. दुनिया में बलवान बहुत होंगे, लेकिन विश्वासपात्र केवल एक भारत ही है, ऐसी दुनिया की भावना है.
एकात्म में आत्मसाधना और लोगों के बीच सेवा और परोपकार यह सनातन हिंदू संस्कृति है, इसने ही देश को जोड़कर रखा है. लेकिन गत हजार-पंद्रह सौ वर्षों से जो चला आ रहा है, वह सब हिंदू धर्म नहीं है, ऐसा बताते हुए मोहनजी ने कहा कि, अयोग्य बातें त्यागनी होंगी. हिंदू धर्म कोई जाति-भेद नहीं मानता, हम सब भाई-भाई हैं, ऐसी घोषणा विश्व हिंदू सम्मेलन में संतों और मठाधीशों ने की, इसे व्यवहार में भी उतारना होगा, संघ यही काम कर रहा है. भेदों के आधार पर व्यवहार, यह विकृति है. समाज को एकसूत्र में बांधने के लिए डॉ आंबेडकर जी के बंधुभाव का दृष्टिकोण अपनाना होगा. अंत में सरसंघचालक जी ने कहा कि, समतायुक्त, शोषण-मुक्त समाज निर्माण करने का काम संघ कर रहा है. लेकिन यह काम केवल अकेले संघ का नहीं है, सारे समाज ने इसमें हाथ बंटाना है.
कार्यक्रम के प्रमुख अतिथि धर्मस्थल कर्नाटक के धर्माधिकारी पद्मविभूषण डॉ. विरेन्द्रजी हेगडे जी ने कहा कि संघ ने ‘हिंदू राष्ट्र सहोदर सर्वे’ की भावना समाज में दृढ की है. राजनितिक और आर्थिक विचार भिन्न रखनेवालों को भी देशहित की दृष्टि से हिंदुत्व की भावना अपनानी चाहिए.
भारतीय समाज में जाति-संप्रदाय के भेद थे. इन भेदों को मिटाने के लिए विश्व हिंदू परिषद ने देश के संत और मठाधिपीतयों को एक मंच पर लाने का उल्लेखनीय काम किया है. इसी प्रकार अस्पृश्यता और असमानता मिटाने के लिए डॉ. आंबेडकरजी ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. हम सभी को इस दिशा में काम करना चाहिए.
कार्यक्रम के आरंभ में शिक्षा वर्ग में आये स्वयंसेवकों ने व्यायाम और योग के प्रात्यक्षिक प्रस्तुत किये. इस वर्ग में देश भर से 875 स्वयंसेवकों ने भाग लिया. अतिथियों का स्वागत वर्ग के सर्वाधिकारी, चित्तौड़ प्रान्त संघचालक गोविंद सिंह जी टांक ने किया. मंच पर नागपुर महानगर के संघचालक राजेश जी लोया उपस्थित थे. कार्यक्रम का संचालन गुजरात के कार्यवाह यशवंत भाई चौधरी ने किया.
नागपुर. सरसंघचालक प.पू. डॉ मोहन जी भागवत ने कहा कि भारत में, हर क्षेत्र में आज बदलाव का अनुभव हो रहा है. दुनिया में भारत की मान-प्रतिष्ठा बढ रही है, भारत के प्रति दुनिया की आशा-आकांक्षा बढ़ रही है. सरसंघचालक जी रेशिमबाग परिसर में तृतीय वर्ष संघ शिक्षा वर्ग के समारोप कार्यक्रम में संबोधित कर रहे थे.
भारत के प्रति दुनिया के इस बदले हुए दृष्टिकोण का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि, भारत के प्रधानमंत्री द्वारा ‘योग दिवस’ के बारे में संयुक्त राष्ट्र संघ में प्रस्ताव रखते ही, यह प्रस्ताव चर्चा के बिना ही तीन चौथाई से मतों पारित हो गया. दुनिया भारत द्वारा पहल करने की राह देख रही थी.
उन्होंने कहा कि शक्ति के क्षेत्र में जिसकी शक्ति बढ़ती है, उसकी प्रतिष्ठा बढती है. आर्थिक-सामरिक क्षमता के आधार पर ऐसा होता है. लेकिन समयचक्र बदलने पर उस देश की मान और प्रतिष्ठा भी कम हो जाती है.
किंतु भारत के संदर्भ में ऐसा नहीं है. भारत अपने अस्तित्व के समय से आज तक भले ही भौतिक दृष्टि से दुर्बल रहा हो, लेकिन दुनिया में विश्वास के संदर्भ में भारत सदैव अग्रसर रहा है. यही हमारी परंपरा है. किसी भी बात की आड़ लेकर भारत ने स्वार्थ का अजेंडा नहीं अपनाया है. विश्व को परिवार माना है. यह भारतीय समाज का स्वभाव है, इसे ही संस्कृति कहते है. दुनिया में बलवान बहुत होंगे, लेकिन विश्वासपात्र केवल एक भारत ही है, ऐसी दुनिया की भावना है.
एकात्म में आत्मसाधना और लोगों के बीच सेवा और परोपकार यह सनातन हिंदू संस्कृति है, इसने ही देश को जोड़कर रखा है. लेकिन गत हजार-पंद्रह सौ वर्षों से जो चला आ रहा है, वह सब हिंदू धर्म नहीं है, ऐसा बताते हुए मोहनजी ने कहा कि, अयोग्य बातें त्यागनी होंगी. हिंदू धर्म कोई जाति-भेद नहीं मानता, हम सब भाई-भाई हैं, ऐसी घोषणा विश्व हिंदू सम्मेलन में संतों और मठाधीशों ने की, इसे व्यवहार में भी उतारना होगा, संघ यही काम कर रहा है. भेदों के आधार पर व्यवहार, यह विकृति है. समाज को एकसूत्र में बांधने के लिए डॉ आंबेडकर जी के बंधुभाव का दृष्टिकोण अपनाना होगा. अंत में सरसंघचालक जी ने कहा कि, समतायुक्त, शोषण-मुक्त समाज निर्माण करने का काम संघ कर रहा है. लेकिन यह काम केवल अकेले संघ का नहीं है, सारे समाज ने इसमें हाथ बंटाना है.
कार्यक्रम के प्रमुख अतिथि धर्मस्थल कर्नाटक के धर्माधिकारी पद्मविभूषण डॉ. विरेन्द्रजी हेगडे जी ने कहा कि संघ ने ‘हिंदू राष्ट्र सहोदर सर्वे’ की भावना समाज में दृढ की है. राजनितिक और आर्थिक विचार भिन्न रखनेवालों को भी देशहित की दृष्टि से हिंदुत्व की भावना अपनानी चाहिए.
भारतीय समाज में जाति-संप्रदाय के भेद थे. इन भेदों को मिटाने के लिए विश्व हिंदू परिषद ने देश के संत और मठाधिपीतयों को एक मंच पर लाने का उल्लेखनीय काम किया है. इसी प्रकार अस्पृश्यता और असमानता मिटाने के लिए डॉ. आंबेडकरजी ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. हम सभी को इस दिशा में काम करना चाहिए.
कार्यक्रम के आरंभ में शिक्षा वर्ग में आये स्वयंसेवकों ने व्यायाम और योग के प्रात्यक्षिक प्रस्तुत किये. इस वर्ग में देश भर से 875 स्वयंसेवकों ने भाग लिया. अतिथियों का स्वागत वर्ग के सर्वाधिकारी, चित्तौड़ प्रान्त संघचालक गोविंद सिंह जी टांक ने किया. मंच पर नागपुर महानगर के संघचालक राजेश जी लोया उपस्थित थे. कार्यक्रम का संचालन गुजरात के कार्यवाह यशवंत भाई चौधरी ने किया.
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