आयकर दाताओं की कुल संख्या सिर्फ 1.25 करोड़


बड़ी आबादी और आयकर दाता
May 4, 2016
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हमारी सरकार सालाना करीब 5.6 लाख करोड़ के घाटे में जा रही है। इस वजह से सरकार पर कुल कर्ज करीब 70 लाख करोड़ रुपए हो चुका है। इस कर्ज पर सालाना 4.6 लाख करोड़ रुपये ब्याज चुकाना होता है। इस कठिन वित्तीय स्थिति के बाद देश में जीडीपी में टैक्स का अनुपात सिर्फ 16-17 फीसदी है, जबकि अमेरिका, ब्रिटेन आदि में करीब 29 फीसदी है।

देश में अमीरों को ढूंढऩा कोई ज्यादा मुश्किल भरा काम नहीं है। बढ़ते होटलों, मॉल्स और ज्वैलर्स की चमचमाती दुकानें देश में प्रगति की गवाही देती हैं। लाखों-करोड़ों रुपये के घर धड़ल्ले से खरीदे और बेचे जा रहे हैं, सडक़ों पर तेज रफ्तार और नई गाडिय़ों की भरमार है। ऐसे में इसे विडंबना ही कहा जायेगा कि देश में आयकर देनेवालों की संख्या कुल आबादी का सिर्फ एक फीसदी है। हालांकि, इनमें से 5,430 लोग हर साल एक करोड़ रुपये से अधिक आयकर देते हैं। लेकिन आबादी का एक बड़ा हिस्सा आयकर देने में लापरवाही बरत रहा है।
आयकर से जुड़ा आंकड़ा चौंकाने वाला है। यह देश में कर प्रणाली की खामियों की तरफ भी इशारा करता है। यह आर्थिक समृद्धि से जुड़े दोहरेपन को दिखाता है। केंद्र सरकार ने बीते 15 वर्षों के प्रत्यक्ष कर आंकड़ों को जनता के बीच रखा है। आकलन वर्ष 2012-13 में कुल 2.87 करोड़ लोगों ने आयकर रिटर्न दाखिल किया, जिनमें 1.62 करोड़ ने कोई टैक्स नहीं दिया। इस तरह करदाताओं की कुल संख्या सिर्फ 1.25 करोड़ रही। इनमें बड़ी संख्या वेतनभोगी कर्मचारियों की है, जिनकी कंपनियां उनके वेतन से टैक्स का हिस्सा काट सरकारी खजाने में जमा कर देती है। पर, नौकरी से इतर काम करने वाले लोग अपनी आय को छिपाने के लिए कई तरह के हथकंडे इस्तेमाल करते हैं। ऐसे लोग कर भले न चुकाते हों, विभिन्न तरीकों से अपनी अमीरी का प्रदर्शन करने से नहीं हिचकते। दूसरी तरफ इन पर निगरानी रखने वालों की संपत्ति खूब फल रही है। मौजूदा वित्त वर्ष के शुरुआत का बजट पेश होने से ऐन पहले केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री जयंत सिन्हा ने कहा था कि केंद्र सरकार की तमाम करों से कमाई करीब 12 लाख करोड़ रुपए और जबकि खर्च 18 लाख करोड़ है।
इस तरह हमारी सरकार सालाना करीब 5.6 लाख करोड़ के घाटे में जा रही है। इस वजह से सरकार पर कुल कर्ज करीब 70 लाख करोड़ रुपए हो चुका है। इस कर्ज पर सालाना 4.6 लाख करोड़ रुपये ब्याज चुकाना होता है। इस कठिन वित्तीय स्थिति के बाद देश में जीडीपी में टैक्स का अनुपात सिर्फ 16-17 फीसदी है, जबकि अमेरिका, ब्रिटेन आदि में करीब 29 फीसदी है।
कर चोरी जैसे मामलों से निपटने और सतत विकास के लिए आयकर संग्रह के लिए कड़े नियमों की जरूरत है। इसके लिए अधिक से अधिक लोगों को कर के दायरे में लाना जरूरी है। इतना ही निगरानी तंत्र को भी मजबूत करने जरूरत है। लेकिन, ऐसी कोई व्यवस्था तभी मुमकिन हकीकत हो सकती है जब आयकर विभाग अपने तंत्र को ईमानदारी के साथ सही तौर पर स्थापित करे।

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