संघ : श्रेष्ठ विचारों से ही पूरे विश्व में आदरणीय
विजयादशमी: संघ के स्थापना दिवस पर
श्रेष्ठ विचारों से ही पूरे विश्व में आदरणीय हो गया संघ
प्रस्तुति - अरविन्द सिसौदिया
देश के लिये कार्य करते समय हेडगेवारजी ने अपने व्यक्तिगत जीवन का क्षण भर भी विचार नहीं किया। अपना पूर्ण कर्तव्य भारतमाता के चरणों में समर्पित किया था। इस पृष्ठभूमि में, विविध आंदोलनों के मूलभूत विचारों तथा कार्यपध्दतियों का, भारत की राजनीतिक परिस्थियों का तथा अपने राष्ट्रजीवन के वैचारिक अधिष्ठान का वस्तुनिष्ठ विचार करने के बाद हेडगेवार जी ने संघ स्थापना का निष्कर्ष निकाला, वही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के रूप में है । आज यह संगठन स्वंय विश्व का सबसे बडा स्वंयसेवी संगठन है। संघ के विचारों का अनुगमन करते हुये अन्य क्षेत्रों में भी समविचारी संगठन स्थापित हुये यथा राजनीति में भारतीय जनता पार्टी, विद्यार्थीयों में अखिल भारतीय विद्यार्थि परिषद, श्रमिकों में भारतीय मजदूर संघ, कृषि में भारतीय किसान संघ , शिक्षा में शिक्षक संघ, हिन्दू समाज में विश्व हिन्दू परिषद सहित सौ से भी अधिक क्षैत्रों में अन्य अनुगामी सक्रीय संगठन कार्यरत हे। इस संगठन ने अपने विचारों और कार्यपद्यति के आधार पर ही विकास किया और आज भारत का सर्वमान्य एवं आदरनीण संगठन है। इस संगठन भारत की राजनीती को भी प्रधानमंत्री के रूप में अटलबिहारी वाजपेयी, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी , उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण अडवाणी, उपराष्ट्रपति वेंकयै नायडु सहित अनेकों केन्द्रीय मंत्री मुख्यमंत्री, सांसद विधायक तथा राजनैतिक सामाजिक विभूतियों को देश सेवा के लिए दिये है। संघ ने देष को क्या दिया इस विषय पर तो अनेक पुस्तकें लिखी जा सकती हे। असल विषय है संघ के विचार क्या है। इन पर हम इस आलेख में सम्बद्ध होते है।
समविचारी संगठन
संघ की विचारधारा इतनी सरल और स्पष्ट है कि सामान्य व्यक्ति को भी सहजता से उसका आंकलन करना संभव है। सच यही है कि “ अपना देश , हिन्दू जीवन दृष्टि तथा हिन्दू जीवन पध्दति के आधार पर विकसित हुआ है। इसका हिन्दुत्वपूर्ण राष्ट्रजीवन विगत हजारों वर्षों से विद्यमान है। इस कारण यह प्राचीनतम राष्ट्र है। भारत को बदलने की कोई आवश्यकता नहीं है । बल्कि इसमें मौजूद अमर तत्वों को सामनें रखते हुये निरंतर एकात्म भाव से चलते रहने की आवश्यकता है।”
हमारे इस प्राचीन राष्ट्र पर अनेक बार आक्रमण हुए। राजनैतिक दृष्टि से हम अनेंकों वार पराधीन भी हुये, लगातार तीन हजार वर्षों में शत्रुओं के अनेक आघात भारत को सहने पड़े। किन्तु इन सारे आक्रमणों और आघातों से जूझते हुए आज भी श्रीराम और श्रीकृष्ण का आदर्श अपने सामने रख कर जीवन बिताने वाला हिन्दु समाज भारत में अनंतकाल से है। अमीर, गरीब, वनवासी, गिरिजन क्षेत्रों में तथा ग्रामीण क्षेत्रों का अनपढ़ और निरक्षर व्यक्ति भी पीढ़ी दर पीढ़ी श्री राम और श्री कृष्ण की कथाएं जानता है। भारत माता, गौ माता और भागीरथी गंगा के प्रति उनके हृदय में अगाध श्रध्दा और भक्ति भाव रखता हैं। भारत वर्ष में यत्र-तत्र हजारों हजारों की संख्या में इनके मंदिर देखे जा सकते हैं। भारत में 18-20 भिन्न किंतु समृध्द भाषाएं प्रचलित हैं। उनकी लिपि भी अलग - अलग है किंतु प्रत्येक भाषा के श्रेष्ठ साहित्य में उपनिषद्, पुराण, रामायण, महाभारत आदि हैं, पुरुषोत्ताम श्री राम की कथाएं इन सभी भाषाओं के साहित्य में आपको पढ़ने को मिलेंगे।
हिन्दु जीवन पद्यती में चार धामों की यात्रा करने से मनुष्य का जीवन सार्थक बनता है। इय यात्रा से वह अपने राष्ट्र की सांस्कृतिक विविधिता को जानता समझता ग्रहण करता हे। इसीलिए सांस्कृतिक एकता से अनुप्राणित भारत का समाज जीवन वेद-उपनिषद काल से आज तक अबाध गति से चलता आया है। हमारा यह अनादि हिंदू राष्ट्र है। यहां हिन्दू-जीवन प्रवाह को ही प्रधानता दी जानी चाहिए क्योंकि वही अपने राष्ट्र की वैचारिक और व्यावहारिक दृष्टि से रीढ़ है।
भारत की उन्नति अथवा अवनति हिन्दू समाज-जीवन के सुदृढ़ अथवा दुर्बल व आत्मविस्मृत होने के कारण हुई। आज भी अपनी राष्ट्रजीवन की दुर्दशा हिन्दु समाज के असंगठित रहने तथा राष्ट्रीयता का बोध न होने के कारण ही हो रही है। हिन्दु समाज यदि सुसंगठित, बलशाली बना और अपने राष्ट्रजीवन के बोध से अनुप्राणित हुआ तो भारत की सारी समस्याएं हल करना सहज संभव हो सकेगा। हम विघटित और बंटे हुए रहे हैं, इसीलिए इस देश पर परकीय मुसलमान और अंग्रेज अपनी सत्ता प्रस्थापित कर सके। वास्तव में अपना शत्रु और कोई न होकर हिन्दू समाज की फूट ही अपने राष्ट्रजीवन की शत्रु हैं। अपनी पराधीनता के लिए तुर्क, मुगल अथवा अंग्रेजों को दोष देने का कोई कारण नहीं। हमने आज तक इस बात की चिन्ता नहीं की कि हमारा समाज सुदृढ़, शक्तिशाली, सुसंगठित, अनुशासित और राष्ट्रभावना से भरा हुआ हो। इसीलिए हम पर ये विपत्तियां और संकट आये।
अतः हिन्दू समाज की फूट को दूर करने की चिंता करके, अपने हिन्दुसमाज को यदि हम बल सम्पन्न- सुसंगठित करें तो ये संकट सहजता से दूर किए जा सकेंगे। हम जानते हैं कि हिन्दू समाज पर हुए धार्मिक आक्रमण के कारण अपने ही कुछ बांधव मुसलमान और ईसाई बनने के लिए मजबूर हुए। इसीलिए आज की सर्व प्रमुख आवश्यकता हिन्दुसमाज को सुसंगठित बलशाली बनाने की है। संघ संस्थापक हेडगेवारजी के चिंतन का यही निष्कर्ष था और आज हम कह सकते हैं कि उनका निष्कर्ष सही था । समाज ने इसे स्विाकर किया है। इसी कारण संघ विश्व का सबसे बड़ा स्वंयसेवी संगठन है और भाजपा विश्व की सबसे अधिक सदस्य संख्यावाला राजनैतिक दल है।
“ अपि स्वर्णमयी लङ्का न मे लक्ष्मण रोचते। जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी । “
हिन्दु समाज को अपना राष्ट्रजीवन पहिचान कर उसे अपनाना चाहिए। भगवान श्री राम ने अपने श्रीमुख से ही कहा है कि माता और मातृभूमि स्वर्ग से भी ऊपर है, स्वर्ग से भी श्रेष्ठ और श्रध्देय हैं। अपनी भारत माता के हम सब पुत्र हैं। इसीलिए हम सारे सगे बंधु हैं। इस आत्मीयता और बंधु-प्रेम की अनुभूति समाज के प्रत्येक व्यक्ति में जागृत कर निरपेक्ष बंधुभाव के स्नेह से उन्हें परस्पर जोड़ना ही संघ कार्य का भावनात्मक मौलिक विचार है।
राष्ट्रीय एकात्मकता के सूत्र को उन तक पहुंचाने और उसे मजबूत बनाने की चिंता हमने आज तक नहीं की। यह हमारा अपना दोष है। इस दोष को निर्मूलन कर अपने ही प्रयत्नों ये हम यहां का राष्ट्रजीवन, एक राष्ट्रपुरुष के नाते विश्व में अजेय शक्ति के रूप में खड़ा करेंगे। संघ कार्य के मूल में ही यही प्रेरक और विधायक विचार रहा है।
हेडगेवारजी ने भारत माता के प्रति अनन्य श्रध्दा को ही संघ कार्य के अधिष्ठान के रूप में स्वीकार किया। अपने हिन्दू समाज के प्रति आत्मीयता और स्नेहपूर्ण व्यवहार से हिन्दू समाज को सुसंगठित करने का कार्य हाथों में लिया। भारतमाता की पूजा का विचार, भारत की सर्वांगीण उन्नति के सूत्र के रूप में अपने पास है। हम प्रयत्नों की पराकाष्ठा कर अपने राष्ट्र को परम वैभव की स्थिति पर ले जायेंगे। इस विचार से समाज में स्फूर्ति पैदा हुई। भारत माता की आराधना का, संघ कार्य का आधारभूत विचार तो स्वामी विवेकानंद, योगी अरविंद तथा लोकमान्य बालगंगाधर तिलक जैसे महान नेताओं ने पहले ही प्रतिपादित किया था। अंतर केवल इतनी है कि संघ की अपनी कार्यपध्दति से हेडगेवारजी ने उस विचार को समाज जीवन में चरितार्थ कर दिखाया। आसेतुहिमाचल विशाल भारत में फैले इस हिन्दु समाज को सुसंगिठत करने की विशेष कार्यपध्दति हेडगेवारजी ने अपनी अद्भुत प्रतिभा से विकसित की। यद्यपि जून 1940 में उनके देहावसान हो गया, उनके जीवन का बहुत कम समय ही संघ को प्राप्त हुआ किन्तु परिश्रम की पराकाष्ठा से उन्होंने संघ की विशेष कार्यपध्दति के सर्वांगीण विकास की रूपरेखा कार्यान्वित कर दिखाई थी। इसी कारण संघ तेजी से उस मार्ग से लगातार बढ़ता गया और आज विश्व का सबसे बडा स्वंयसेवी संगठन ही नहीं बल्कि आदरणीय संगठन भी बन गया।
- अरविन्द सिसौदिया,
लेखक विश्लेषक एवं स्वंतंत्र पत्रकार
भाजपा जिला महामंत्री कोटा
बेकरी के सामनें , राधाकृष्ण मंदिर रोड़,
डडवाडा, कोटा जं0 2 राजस्थान ।
9509559131
9414180151
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