संघ RSS : गणतंत्र दिवस परेड में
जब प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) को 1963 की गणतंत्र दिवस परेड में आमंत्रित किया था ।
राष्टीय स्वंयसेवक संघ की स्थापना 1925 में हुई मगर संस्थापक परम पूज्य डॉ. केशव बलीराम हेडगेवार बचपन से ही राष्ट्रवादी थे, स्वतंत्रता सेनानी थे , कांग्रेस में भी विभिन्न पदों पर कार्य किया था । जेल गए थे | मगर कांग्रेस ने संघ को कभी पसंद नहीं किया और संघ की ही तरह का सेवादल नामक संगठन बनाया जो कभी चला नहीं । भारत विभाजन पर पूरा देश त्राहीमाम त्राहीमाम कर रहा था तब मात्र संघ ही वह संगठन था जो पाकिस्तान से आ रहे हिन्दुओं की चिन्ता कर रहा था और उन्हे बसानें में लगा था। पाकिस्तान से भारत आये सभी हिन्दुओं के पुर्नवास का सबसे बडा चिन्तन और स्थापन कार्य संघ ने किया । आजादी के बाद संघ को उप प्रधानमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल कांग्रेस का हिस्सा बनाना चाहते थे और प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू संघ को समाप्त कर देना चाहते थे। जवाहरलाल नेहरू की संघ विरोधी मानसिंकता ने ही संघ को जबरदस्ती महात्मा गांधी वध में घसीटा था जिसमें वह निर्दोष साबित हुआ । संघ पर प्रतिबंध नेहरूजी ने लगवाया । मगर सांच को आंच नहीं संघ कष्टों के दौर से गुजर कर भी देश सेवा करता रहा । जवाहरलाल नेहरू की आंख तब खुली जब उसके साथ रहे कम्युनिष्ट 1962 चीन युद्ध में लाल सलाम बोल रहे थे और चीन की सेनाओं का कोलकाता में स्वागत करने की तैयारी कर रहे थे । भारत चीन से युद्ध हर गया था , तब देश भक्त संघ फौज की, सरकार की और जनता की मदद में जुटा हुआ था। जवाहरलाल नेहरू संघ की देशभक्ति से देशसेवा से इतने प्रभावित हुये कि उन्होने 1963 के गणतंत्र दिवस की परेड में संघ को आमंत्रित किया । कांग्रेस के लोगो ने विरोध किया तो उन्होने दो टूक कह दिया संघ देशभक्त है परेड में सम्मिलित होगा । तब सेवादल को भी सम्मिलि करवानें के प्रसाय हुए मगर सेवा दल के पास कोई वास्तविक तंत्र नहीं था और वे सम्मिलित नहीं हो सके । संघ के 3500 स्वंय सवेकों ने परेड में भाग लिया । जवाहरलाल नेहरू आगे जीवति नहीं रहे । इसके बाद की कांग्रेस का वही पुराना रवैया रहा ।
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#RSS ऐतेहासिक प्रसंग !
*राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का 1963 के गणतंत्र दिवस* पर विशेष सम्मान !!
*1962 में चीन के साथ हुए युद्ध के समय सेना की मदद के लिए देश भर से संघ के स्वयंसेवक जिस उत्साह से सीमा पर पहुंचे, उसे पूरे देश ने देखा और सराहा. स्वयंसेवकों ने सरकारी कार्यों में और विशेष रूप से जवानों की मदद में पूरी ताकत लगा दी – सैनिक आवाजाही मार्गों की चौकसी, प्रशासन की मदद, रसद और आपूर्ति में मदद, और यहां तक कि शहीदों के परिवारों की भी चिंता.भी की। *
तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री जवाहर लाल नेहरू जी ने 1963 में 26 जनवरी की परेड में संघ को शामिल होने का निमंत्रण दिया । परेड करने वालों को आज भी महीनों तैयारी करनी होती है, लेकिन मात्र दो दिन पहले मिले निमंत्रण पर 3500 स्वयंसेवक पूर्ण गणवेश में उपस्थित हो गए.
निमंत्रण दिए जाने की आलोचना होने पर नेहरू ने कहा- *“यह दर्शाने के लिए कि केवल लाठी के बल पर भी सफलतापूर्वक बम और चीनी सशस्त्र बलों से लड़ा सकता है, विशेष रूप से 1963 के गणतंत्र दिवस परेड में भाग लेने के लिए आरएसएस को आकस्मिक आमंत्रित किया गया.”*
*सन 1963 की बात है । चीन से युद्ध के बाद गणतंत्र दिवस की परेड में संघ को आमंत्रित किया गया । उस दिन में दिल्ली में था । वहां बिड़ला मंदिर में विद्यार्थी परिषद का अधिवेशन चल रहा था ।*
दो दिन पहले सुचना मिली कि गणतंत्र दिवस की परेड में शामिल होना है । इतनी संशिप्त सुचना पर भी 3200 स्वयंसेवक पूर्णगणवेश में घोष सहित परेड के लिए पहुंचे । वह दृश्य देखकर कितने ही लोग हक्के-बक्के रह गए । संघ का संचलन प्रारम्भ में किया जाना तय हुआ था; लेकिन उसे दोपहर 1:30 बजे अवसर दिया गया ।
*कोशिश यह भी हुई कि घोष का उपयोग नहीं करने दिया जाये ; लेकिन अडिगता के कारण घोष के साथ स्वयंसेवक संचलन करते हुए निकले तो उपस्थित जन समूह ने उत्साहपूर्वक तालियां बजाकर स्वागत किया । परेड में संचलन के दौरान बचे हुए समय में स्वयंसेवकों ने देशभक्ति गीत गाने शुरू कर दिए । सेना के जवानों ने वहां लाउडस्पीकर लाकर लगा दिया । इससे काफी उत्साहवर्धन हुआ ।*
यह सोहनसिंह जी की दृष्टि ही थी कि उन्होंने परेड स्थल पर पहुँचने पँर सुबह ही बसों के ड्राइवर और कंडक्टरों के अल्पहार की व्यवस्था कर दी थी । कार्यालय पर उनके लिए दही-परांठे तैयार करवाये गए । इसके कारण वे स्वयंसेवको का आखिरी तक अंतजर करते रहे;जबकि अन्य समूहों के बहुत से बस चालक बीच में ही बसें लेकर वापिस चले गए ।
*उन्होंने ड्राइवर-कंडक्टरों के भोजन का भी ध्यान रखा । उस दिन कॉंग्रेस सेवा दल का भी परेड में शामिल होने के लिए कहा गया था;लेकिन उनकी ड्रेस ही तैयार नहीं थी,अतः वे परेड में शामिल नहीं हो सके ।*
1963 की. गणतंत्र दिवस की परेड होनी थी. लेकिन माहौल आज से काफी अलग था. महज़ दो महीने पहले तक चीन से लड़ाई चल रही थी. वो लड़ाई जिसे हम अपनी कुर्बानियों के बावजूद जीत नहीं पाए. लेकिन गणतंत्र दिवस की परेड रवायत के मुताबिक हुई. पर एक बदलाव के साथ.
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