महाराणा के 'प्रताप' से हिल उठा मुगल सिंहासन




माई एहड़ा पूत जण, जेहड़ा राण प्रताप।
अकबर सूतो ओधकै, जाण सिराणै साप॥




पुण्यतिथि विशेष:महाराणा के 'प्रताप' से हिल उठा मुगल सिंहासन
जब-जब तेरी तलवार उठी, दुश्मन की टोली डोल गयी,
फीकी पड़ी दहाड़ शेर की, जब-जब तूने हुंकार भरी।
था साथी तेरा घोड़ा चेतक, जिस पर तू सवारी करता था
थी तुझमें कोई खास बात, जो अकबर भी तुझसे डरता था॥

महाराणा प्रताप का नाम लेते ही मुगल साम्राज्य को चुनौती देने वाले एक महान वीर योद्धा का चित्र आंखों के सामने उभर आता है। ज्येष्ठ शुक्ल तीज सम्वत् (9 मई 1540) को मेवाड़ के उदयपुर में जन्मे महाराणा प्रताप का संपूर्ण जीवन त्याग, संघर्ष और बलिदान का एक परिचायक है।

प्रताप संघर्ष के उस कठिन दौर में पैदा हुए, जब पूरे भारत पर मुगलों का शासन छाया हुआ था। महाराणा प्रताप 'महान' कहे जाने वाले मुगल सम्राट अकबर की ‘महानता’ के पीछे छिपी उसकी साम्राज्यवादी नीति के विरुद्ध थे, इसलिए उन्होंने उसकी अधीनता स्वीकार नहीं की। अकबर के साथ संघर्ष में महाराणा प्रताप ने जिस वीरता, स्वाभिमान और त्याग का परिचय दिया, वह भारतीय इतिहास में कहीं और देखने को नहीं मिलती। 19 जनवरी 1597 को महाराणा प्रताप को देहावसान हो गया।

हल्दीघाटी का युद्ध
अकबर और महाराणा प्रताप के बीच 1576 में लड़ा गया हल्दीघाटी का युद्ध भारतीय इतिहास में एक बड़ी घटना के रूप में याद किया जाता है। दिल्ली में उन दिनों सम्राट अकबर का शासन था। अकबर भारत के सभी राजा-महाराजाओं को अपने अधीन कर उनके राज्यों में मुगल साम्राज्य का परचम लहराना चाहता था। महाराणा प्रताप अकबर की इस साम्राज्यवादी नीति के विरुद्ध थे। हल्दीघाटी में महाराणा प्रताप और अकबर के बीच ऐसा आक्रामक युद्ध हुआ जो पूरी दुनिया के लिए आज भी एक बड़ी मिसाल है। इस युद्ध में मात्र 20 हजार राजपूतों को साथ लेकर महाराणा प्रताप ने मुगलों की 80 हजार की सेना का सामना किया। युद्ध में प्रताप के प्रिय घोड़े चेतक की भी मौत हो गई। हालांकि यह युद्ध सिर्फ एक दिन ही चला, लेकिन इस युद्ध में 17 हजार लोग मारे गए।

चेतक जैसा स्वामिभक्त कोई नहीं
इतिहास में जब-जब महाराणा प्रताप का जिक्र आता है, तब-तब उनके प्रिय घोड़े चेतक का नाम भी आदर के साथ लिया जाता है। हल्दीघाटी के युद्ध में चेतक ने महाराणा प्रताप के प्रति वह स्वामिभक्ति दिखाई, जिसकी मिसाल मिलना बहुत मुश्किल है। हल्दीघाटी के युद्ध में बिना किसी सहायक के प्रताप अपने पराक्रमी घोड़े चेतक पर सवार होकर पहाड़ की ओर चल पड़े। युद्ध में चेतक भी घायल हो गया था। दो मुगल सैनिक प्रताप के पीछे लगे हुए थे, लेकिन चेतक ने प्रताप को बचा लिया। रास्ते में एक पहाड़ी नाला बह रहा था। घायल चेतक ने फुर्ती से छलांग लगाकर उस नाले को फांद दिया, लेकिन मुगल सैनिक उसे पार नहीं कर पाए। चेतक ने नाला तो पार कर दिया, पर उसके शरीर ने उसका साथ छोड़ दिया। चेतक की बहादुरी के किस्से आज भी सुनाए जाते हैं।

प्रताप को नहीं खरीद पाया अकबर
अकबर के साथ संघर्ष में महाराणा प्रताप को परिवार सहित जंगलों में भटकना पड़ा। परिवार के दुखों को देखकर प्रताप ने ना रहा गया और उन्होंने अकबर से मिलने के लिए उसे एक पत्र लिखा। अकबर ने इस पत्र को महाराणा प्रताप का आत्मसमर्पण समझा। उसने बीकानेर के राजा रायमसिंह के छोटे भाई पृथ्वीराज को पत्र दिखाकर कहा कि देखो अब प्रताप भी हमारी अधीनता स्वीकार कर रहा है। पृथ्वीराज ने कहा कि ऐसा नहीं हो सकता। उन्होंने सच्चाई का पता लगाने के लिए अकबर की तरफ से एक पत्र लिखा और उस पत्र के नीचे राजस्‍थानी शैली में दो दोहे लिखे।

दोहों में पृथ्वीराज ने लिखा, 'महाराणा प्रताप अगर अकबर को आप अपने मुख से बादशाह कहेंगे तो सूर्य पश्चिम से उगने लगेगा। हे महाराणा, मैं अपनी मूंछों पर ताव दूं या अपनी तलवार से अपने ही शरीर को काट दूं। हमारे घरों की महिलाओं की मर्यादा छिन्न-भिन्न हो गई है और बाज़ार में वह मर्यादा बेची जा रही है। उसका खरीदार केवल अकबर है। उसने सिसोदिया वंश के सिर्फ एक स्वाभिमानी पुत्र को छोड़कर सबको खरीद लिया है। अकबर आज तक प्रताप को नहीं खरीद पाया है। क्या अब चित्तौड़ का स्वाभिमान भी इस बाजार में बिकेगा। इन बातों को पढ़कर महाराणा प्रताप का स्वाभिमान जाग गया और उन्होंने फिर से अकबर के विरुद्ध् संघर्ष शुरू किया।

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रागनी - महाराणा प्रताप 

माई एहड़ा पूत जण, जेहड़ा राण प्रताप।
अकबर सूतो ओधकै, जाण सिराणै साप॥

वार्ता - जिस समय मेवाड़ का राजा महाराणा प्रताप अपने परिवार के साथ जंगलों में रह रहा था और घास - फूस की रोटियां खाकर जीवन यापन कर रहे थे । एक रोज बच्चों की दशा से परेशान होकर वो अकबर को पत्र लिखते और उसमे अकबर से मिलने का प्रस्ताव रखते हैं । अकबर , महाराणा प्रताप का पत्र पढ़कर खुश होता है और ख़ुशी में सभी को प्रताप का पत्र दिखाता हैं तो इस पर मानसिंह , राजा अकबर को कहते है कि राणा प्रताप ऐसे बुजदिल नहीं है और वो इस बात को मानने के लिए त्यार नही होता की ये प्रताप का लिखा हुआ पत्र है और इस पर मानसिंह , राजा अकबर को क्या कहता है ...........

जवाब - राजा मानसिंह का राजा अकबर को

खामै खां खुश होए बादशाह , यो पत्र ना प्रताप का ।
मैं भेद काढ़कै इसका सारा , भ्रम मिटाद्यूँ आप का ।। टेक

१ महाराणा का खत ना राजा , नयूं मेरी आत्मा कहरी सै
किसे और नै डाल्या होगा , कोए चाल घणी गहरी सै
जो बात खटकज्या वो छोड्डै कोन्या , ऐसा विषयर जहरी सै
मैं जाणू वो नहीं झुकैगा , जै ज्यान बदन मैं रहरी सै
चेतक घोड़ा मशहूर जगत मैं , कहिये लाम्बी टाप का ।।

२ जो भय मान कै करै समर्पण , वो कायर और सियार नहीं
आन कै ऊपर ज्यान झोंकदे , जीवन से भी प्यार नहीं
आजादी चाहे पलभर की हो , पर दासता स्वीकार नहीं
जंगल के म्हां फिरै भ्रमता , मानी अबतक हार नहीं
संग्राम सिंह का पोता सै वो , पूत उदय सिंह बाप का ।।

३ वो जंगल में कष्ट सहें जा , संग मैं चाहे परिवार सहै
भूख प्यास में गात सुखग्या , जणू गहण मैं चाँद गहै
गुलामी नै ठुकराणे आला , इन महलां के म्हं नहीं रहै
मैं जाणू सूं उस अड़ियल नैं , समझौते आली नहीं कहै
उसके खून में गर्मी ज्यादा , भरया पड़्या सै ताप का ।।

४ जो सोचै वा पूरी करता , नयूं पैज प्रण का पूरा सै
युद्ध विद्या कति सारी जाणै , नयूं भौत घणा शूरा सै
मेरै जचै वो जरूर करैगा , जो रहग्या काम अधूरा सै
लाखण माजरा धाम गुरु का , जित रहता खास जमूरा सै
कपीन्द्र शर्मा तूं मान गुरु की , तजन करें जा पाप का ।।

लेखक - कपीन्द्र शर्मा
फ़ोन नंo - 8529171419

टिप्पणियाँ

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन जन्म दिन - अजीत डोभाल और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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