समाज चेतना के जागरण का समय : विजयादशमी उद्बोधन
समाज चेतना के जागरण का समय
04 Oct 2014
समय के पंचांग में समाज अपने संस्कार इंगित करता है। सिर्फ ग्रह नक्षत्रों की नहीं खुद अपनी चाल के अनुसार इंगित करता है। विजयादशमी पर शक्ति का अर्चन और दुर्गुणों के पुतलों का दहन इस समाज की उस सोच का संकेतक है, जिसने सही को स्वीकारने में पूरी उदारता बरती और गलत को खारिज करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। समाज जागरण का, हर भारतीय के पुरुषार्थ को जगाने का रोमांचकारी आह्वान सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत के विजयादशमी उद्बोधन का सारतत्व है। सबका भला, सबको साथ लेकर चलने का विशुद्ध हिन्दूभाव इस उद्बोधन की धुरी है।
यह सिर्फ स्वयंसेवकों से कही गई बात नहीं, बल्कि देश-दुनिया में बह रही परिवर्तनकारी हवाओं में लहराता समय का आह्वान है।
वैसे, समय क्या है? घटनाओं की अजस्र धारा या इससे भी परे कुछ ? क्या यह पूरी सृष्टि ही समय के धागों से नहीं बुनी गई ? सही समय पर डोर हिली, सही कदम बढ़ा तो बढ़त, अन्यथा एक गलत धागा उधड़ा और बुनावट में कुछ घट गया। कम हो गया। बढ़त का अच्छा-भला मौका गंवा दिया।
नीतिशतक में कहा गया है-
'का हानि: समयच्युति:।'
यानी, हानि क्या है? सिर्फ मौके पर चूक जाना?
समयानुकूल या कालसंगत शब्द संभवत: इसीलिए बने हैं। सृष्टि का, समय का अपना एक भाव है। किसी का अनिष्ट किए-सोचे बगैर सदा आगे बढ़ने का भाव। जो इससे कदमताल नहीं करता, उलट चलता है, समय उसे पलटकर फेंक देता है। वह व्यक्ति या सोच कालबाह्य हो जाती है। परंतु व्यक्ति इसके अनुरूप चले तो कालजयी उपलब्धियां प्राप्त कर सकता है। समय बीत जाए परन्तु बात बनी रहे, यह काम पुरुषार्थी व्यक्ति कर सकता है।
इस भूमि का भारतीय दर्शन कहें या पुरखों का संचित हिन्दू दर्शन, समय और सृष्टि के साथ ताल मिलाकर चलने का हुनर ही हमारी थाती है।
पुरुषार्थ के बिना अपने यहां मुक्ति की कल्पना ही नहीं है।
विजयादशमी उद्बोधन से इतर, हाल में हुए राजनीतिक परिवर्तन को भी देखें तो केंद्र सरकार के कर्म और आह्वान में भी समाज जागरण की ऐसी ही सकारात्मक सोच झलकती है।
भारतीय प्रधानमंत्री की वैश्विक प्रभाव डालने वाली अमरीका यात्रा अथवा महात्मा गांधी की जयंती पर स्वच्छता अभियान की अलख, यह व्यक्ति की दृढ़ इच्छाशक्ति का प्रकटीकरण नहीं तो और क्या है ? ठान लो तो क्या नहीं हो सकता?
समय के पंचांग में समाज अपने संस्कार इंगित करता है। सिर्फ ग्रह नक्षत्रों की नहीं खुद अपनी चाल के अनुसार इंगित करता है। विजयादशमी पर शक्ति का अर्चन और दुर्गुणों के पुतलों का दहन इस समाज की उस सोच का संकेतक है, जिसने सही को स्वीकारने में पूरी उदारता बरती और गलत को खारिज करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। समाज जागरण का, हर भारतीय के पुरुषार्थ को जगाने का रोमांचकारी आह्वान सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत के विजयादशमी उद्बोधन का सारतत्व है। सबका भला, सबको साथ लेकर चलने का विशुद्ध हिन्दूभाव इस उद्बोधन की धुरी है।
यह सिर्फ स्वयंसेवकों से कही गई बात नहीं, बल्कि देश-दुनिया में बह रही परिवर्तनकारी हवाओं में लहराता समय का आह्वान है।
वैसे, समय क्या है? घटनाओं की अजस्र धारा या इससे भी परे कुछ ? क्या यह पूरी सृष्टि ही समय के धागों से नहीं बुनी गई ? सही समय पर डोर हिली, सही कदम बढ़ा तो बढ़त, अन्यथा एक गलत धागा उधड़ा और बुनावट में कुछ घट गया। कम हो गया। बढ़त का अच्छा-भला मौका गंवा दिया।
नीतिशतक में कहा गया है-
'का हानि: समयच्युति:।'
यानी, हानि क्या है? सिर्फ मौके पर चूक जाना?
समयानुकूल या कालसंगत शब्द संभवत: इसीलिए बने हैं। सृष्टि का, समय का अपना एक भाव है। किसी का अनिष्ट किए-सोचे बगैर सदा आगे बढ़ने का भाव। जो इससे कदमताल नहीं करता, उलट चलता है, समय उसे पलटकर फेंक देता है। वह व्यक्ति या सोच कालबाह्य हो जाती है। परंतु व्यक्ति इसके अनुरूप चले तो कालजयी उपलब्धियां प्राप्त कर सकता है। समय बीत जाए परन्तु बात बनी रहे, यह काम पुरुषार्थी व्यक्ति कर सकता है।
इस भूमि का भारतीय दर्शन कहें या पुरखों का संचित हिन्दू दर्शन, समय और सृष्टि के साथ ताल मिलाकर चलने का हुनर ही हमारी थाती है।
पुरुषार्थ के बिना अपने यहां मुक्ति की कल्पना ही नहीं है।
विजयादशमी उद्बोधन से इतर, हाल में हुए राजनीतिक परिवर्तन को भी देखें तो केंद्र सरकार के कर्म और आह्वान में भी समाज जागरण की ऐसी ही सकारात्मक सोच झलकती है।
भारतीय प्रधानमंत्री की वैश्विक प्रभाव डालने वाली अमरीका यात्रा अथवा महात्मा गांधी की जयंती पर स्वच्छता अभियान की अलख, यह व्यक्ति की दृढ़ इच्छाशक्ति का प्रकटीकरण नहीं तो और क्या है ? ठान लो तो क्या नहीं हो सकता?
विजयादशमी के अवसर पर नागपुर से निकली बात इस राष्ट्र को ही नहीं मानवमात्र को झकझोरने वाली बात है। मजहबी उन्माद और मुनाफे के लिए दुनिया को तबाह करते दानवों की चुनौतियां पूरी दुनिया के लिए हैं। बुराइयों से युद्ध के लिए विश्व को जागना होगा। पुरुषार्थ दिखाने के लिए एकजुट होना होगा। परिवर्तन के संकल्प का यह क्षण सिर्फ पंचांग की तिथि से नहीं बंधा, इससे सबका भविष्य बंधा है।
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