अफजल की जगह शहीदों का नाम लेते तो गर्व होता
संसद हमले की पीड़िता बोलीं- अफजल के बेटे पर सुर्खियां, मेरी बेटी का जिक्र भी नहीं
उपमिता वाजपेयी March 20, 2016
नई दिल्ली |
अफजल पर हो रहे हंगामे पर संसद हमले के शहीदों के फैमिली मेंबर्स ने नाराजगी जताई है। हमले में मारे गए कैमरामैन की पत्नी का कहना है कि संसद पर हमले के दोषी अफजल के बेटे को 95% मार्क्स आते हैं तो सुर्खियां बनती हैं, मेरी बेटी टॉप करती है तो कोई नहीं पूछता?
नेता JNU जाते हैं लेकिन हमसे मिलने कोई नहीं आता...

- हरियाणा-दिल्ली की सीमा पर मोहड़बंद गांव में शहीद विजेंद्र सिंह का घर है।
- उनकी पत्नी जयावती ने कहा- 'संसद पर हमले में शहीद हुए लोगों के तो नाम तक किसी को याद नहीं। उन राजनेताओं को भी नहीं जिनकी जान शहीदों ने बचाई थी।'
- 'सारे नेता जेएनयू जाकर बातें करते हैं लेकिन हमसे मिलने कोई नहीं आता।'
- संसद हमले के दौरान विजेंद्र सिंह संसद में ड्यूटी पर थे।
- जयावती के मुताबिक, 13 दिसंबर 2001 की सुबह 12 बजे के आसपास उनकी बेटी ने जब टीवी पर देखा तो मुझे बताने आई।
- 'मैंने उससे कहा- अरे, जहां तेरे पापा की ड्यूटी है, वहां परिंदा भी पर नहीं मार सकता। विजेंद्र के शहीद होने के बाद पांच बच्चों की जिम्मेदारी मुझ पर आ गई।'
पिता दस साल हमारे घर में रहे
- 'हमारे यहां लड़की का बाप कभी बेटी के ससुराल नहीं रुकता। लेकिन मेरे पिता दस सालों तक हमारे घर में रहे।'
- 'हम बाप बेटी सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटते रहे। बच्चों को घर में बंद कर के जाना पड़ता। थक गए हम।'
- 'उस पर भी जब अफजल की फांसी की बारी आई तो राजनीति करने लगे।'
- 'हमने तो अपने मेडल तक लौटा दिए थे। वो कहते थे मेडल मत लौटाओ। अरे मेडल मतलब जीत, सम्मान। तो जब गुनहगार को फांसी नहीं दे रहे थे तो कैसा सम्मान।'
हर साल आती है सिर्फ चिट्ठी
-जयावती कहती हैं- साल में सिर्फ एक चिट्ठी आती है। संसद के ऑफिस से।
- 'बोलते हैं 13 दिसंबर को आ जाओ और फूल चढ़ाकर श्रद्धांजलि दे दो। बाकी दिनों में कोई उनकी खोज-खबर नहीं लेता।'
- वो पिछले आठ सालों से आ रही चिट्टठियां निकालकर दिखाती भी हैं।
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
अफजल की जगह शहीदों का नाम लेते तो गर्व होता
- कमलेश कुमारी के पति अवधेश कुमार का कहना है कि ये कहानी किसी एक शहीद के परिवार की नहीं है।
- उन्होंने बताया कि हमले की दिन कमलेश संसद के गेट पर थी। दुश्मन की गोली की परवाह किए बिना उन्होंने गोलियों के बीच संसद का गेट बंद कर दिया था। उनके इस साहस के लिए उन्हें अशोक चक्र दिया गया था। ये सम्मान पाने वाली वो देश की इकलौती महिला सोल्जर हैं।
- अवधेश ने बताया कि उनकी दो बेटियां हैं। ज्योति और श्वेता।
- कमलेश चाहती थी हमारी बेटियों की पढ़ाई अच्छे से हो इसलिए हम दिल्ली में रहते थे।
- 'मेरी बेटियां भी अपनी मां की तरह बहादुर हैं। देश सेवा करना चाहती हैं। लोग जितनी बार अफजल और आजादी का नाम लेते हैं उतनी बार शहीदों का लेते तो हमें गर्व होता कि कोई याद तो करता है।'
- 'अफजल को ऐसे बनाया जैसे कारगिल वॉर जीतकर आया हो। घर में तलवार चला रहे हैं। चलो पाकिस्तान के बॉर्डर पर।'
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
शहीदों के घर कोई नहीं जाता
- शहीद मातबर सिंह नेगी के बेटे गौतम नेगी ने कहा कि उन्होंने पिता की मौत से पहले कभी घर में बिजली का बिल भी नहीं भरा था। सारी जिम्मेदारी पापा ने निभाई थी।
- मातबर सिंह संसद की सिक्युरिटी में थे। अब गौतम उन्हीं की जगह नौकरी करता है।
- गौतम के मुताबिक, कोई शहीद होता है तो उसके घर एक दिन नेता जाते हैं। बाकी दिन परिवार उन नेताओं और सरकारी अधिकारियों के चक्कर काटता है।
- 'नेता जानते हैं वोट बैंक कन्हैया और अफजल हैं।'
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
अफजल के नाम पर जलसे क्यों ?
- सुनीता के पति विक्रम बिष्ट एएनआई न्यूज एजेंसी के कैमरामैन थे।
- वो कहती हैं कि मेरे पति हमला हुआ तो भागे नहीं, रिकॉर्डिंग करते रहे। पेट में गोली लगी थी।
- 'जब हमला हुआ मेरी बेटी तीन महीने की थी। वो भी बहुत अच्छा पढ़ती है। स्कूल में अच्छे नंबर लाती है। उसको भी मैं डॉक्टर बनाऊंगी। लेकिन उसके नंबर तो कोई नहीं पूछता।
- 'वो आतंकवादी अफजल का बेटा 95 फीसदी ले आया तो बड़ी तारीफें हुई उसकी।'
- 'अफजल के नाम पर जलसे हो रहे हैं। कश्मीर से लेकर दिल्ली तक बरसी मनाई जाती है।'
- सुनीता कहती हैं, मैं पहली बार दिल्ली आई थी तो सारे मकान एक से दिखते थे। नहीं जानती थी कि शहर में रहते कैसे हैं।
- 'हमले के बाद पति का एम्स में एक साल इलाज चला। फिर उनकी मौत हो गई।'
- 'मैं दसवीं पास थी। फिर बच्चों के लिए नौकरी करनी पड़ी। बेटा पूछता था सबके पापा हैं तो मेरे क्यों नहीं। मैं कहती थी वो ऊपर हैं जब तुम बड़े हो जाओगे तो वो आ जाएंगे।'
उपमिता वाजपेयी March 20, 2016
नई दिल्ली |
अफजल पर हो रहे हंगामे पर संसद हमले के शहीदों के फैमिली मेंबर्स ने नाराजगी जताई है। हमले में मारे गए कैमरामैन की पत्नी का कहना है कि संसद पर हमले के दोषी अफजल के बेटे को 95% मार्क्स आते हैं तो सुर्खियां बनती हैं, मेरी बेटी टॉप करती है तो कोई नहीं पूछता?
नेता JNU जाते हैं लेकिन हमसे मिलने कोई नहीं आता...
- हरियाणा-दिल्ली की सीमा पर मोहड़बंद गांव में शहीद विजेंद्र सिंह का घर है।
- उनकी पत्नी जयावती ने कहा- 'संसद पर हमले में शहीद हुए लोगों के तो नाम तक किसी को याद नहीं। उन राजनेताओं को भी नहीं जिनकी जान शहीदों ने बचाई थी।'
- 'सारे नेता जेएनयू जाकर बातें करते हैं लेकिन हमसे मिलने कोई नहीं आता।'
- संसद हमले के दौरान विजेंद्र सिंह संसद में ड्यूटी पर थे।
- जयावती के मुताबिक, 13 दिसंबर 2001 की सुबह 12 बजे के आसपास उनकी बेटी ने जब टीवी पर देखा तो मुझे बताने आई।
- 'मैंने उससे कहा- अरे, जहां तेरे पापा की ड्यूटी है, वहां परिंदा भी पर नहीं मार सकता। विजेंद्र के शहीद होने के बाद पांच बच्चों की जिम्मेदारी मुझ पर आ गई।'
पिता दस साल हमारे घर में रहे
- 'हमारे यहां लड़की का बाप कभी बेटी के ससुराल नहीं रुकता। लेकिन मेरे पिता दस सालों तक हमारे घर में रहे।'
- 'हम बाप बेटी सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटते रहे। बच्चों को घर में बंद कर के जाना पड़ता। थक गए हम।'
- 'उस पर भी जब अफजल की फांसी की बारी आई तो राजनीति करने लगे।'
- 'हमने तो अपने मेडल तक लौटा दिए थे। वो कहते थे मेडल मत लौटाओ। अरे मेडल मतलब जीत, सम्मान। तो जब गुनहगार को फांसी नहीं दे रहे थे तो कैसा सम्मान।'
हर साल आती है सिर्फ चिट्ठी
-जयावती कहती हैं- साल में सिर्फ एक चिट्ठी आती है। संसद के ऑफिस से।
- 'बोलते हैं 13 दिसंबर को आ जाओ और फूल चढ़ाकर श्रद्धांजलि दे दो। बाकी दिनों में कोई उनकी खोज-खबर नहीं लेता।'
- वो पिछले आठ सालों से आ रही चिट्टठियां निकालकर दिखाती भी हैं।
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अफजल की जगह शहीदों का नाम लेते तो गर्व होता
- कमलेश कुमारी के पति अवधेश कुमार का कहना है कि ये कहानी किसी एक शहीद के परिवार की नहीं है।
- उन्होंने बताया कि हमले की दिन कमलेश संसद के गेट पर थी। दुश्मन की गोली की परवाह किए बिना उन्होंने गोलियों के बीच संसद का गेट बंद कर दिया था। उनके इस साहस के लिए उन्हें अशोक चक्र दिया गया था। ये सम्मान पाने वाली वो देश की इकलौती महिला सोल्जर हैं।
- अवधेश ने बताया कि उनकी दो बेटियां हैं। ज्योति और श्वेता।
- कमलेश चाहती थी हमारी बेटियों की पढ़ाई अच्छे से हो इसलिए हम दिल्ली में रहते थे।
- 'मेरी बेटियां भी अपनी मां की तरह बहादुर हैं। देश सेवा करना चाहती हैं। लोग जितनी बार अफजल और आजादी का नाम लेते हैं उतनी बार शहीदों का लेते तो हमें गर्व होता कि कोई याद तो करता है।'
- 'अफजल को ऐसे बनाया जैसे कारगिल वॉर जीतकर आया हो। घर में तलवार चला रहे हैं। चलो पाकिस्तान के बॉर्डर पर।'
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शहीदों के घर कोई नहीं जाता
- शहीद मातबर सिंह नेगी के बेटे गौतम नेगी ने कहा कि उन्होंने पिता की मौत से पहले कभी घर में बिजली का बिल भी नहीं भरा था। सारी जिम्मेदारी पापा ने निभाई थी।
- मातबर सिंह संसद की सिक्युरिटी में थे। अब गौतम उन्हीं की जगह नौकरी करता है।
- गौतम के मुताबिक, कोई शहीद होता है तो उसके घर एक दिन नेता जाते हैं। बाकी दिन परिवार उन नेताओं और सरकारी अधिकारियों के चक्कर काटता है।
- 'नेता जानते हैं वोट बैंक कन्हैया और अफजल हैं।'
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अफजल के नाम पर जलसे क्यों ?
- सुनीता के पति विक्रम बिष्ट एएनआई न्यूज एजेंसी के कैमरामैन थे।
- वो कहती हैं कि मेरे पति हमला हुआ तो भागे नहीं, रिकॉर्डिंग करते रहे। पेट में गोली लगी थी।
- 'जब हमला हुआ मेरी बेटी तीन महीने की थी। वो भी बहुत अच्छा पढ़ती है। स्कूल में अच्छे नंबर लाती है। उसको भी मैं डॉक्टर बनाऊंगी। लेकिन उसके नंबर तो कोई नहीं पूछता।
- 'वो आतंकवादी अफजल का बेटा 95 फीसदी ले आया तो बड़ी तारीफें हुई उसकी।'
- 'अफजल के नाम पर जलसे हो रहे हैं। कश्मीर से लेकर दिल्ली तक बरसी मनाई जाती है।'
- सुनीता कहती हैं, मैं पहली बार दिल्ली आई थी तो सारे मकान एक से दिखते थे। नहीं जानती थी कि शहर में रहते कैसे हैं।
- 'हमले के बाद पति का एम्स में एक साल इलाज चला। फिर उनकी मौत हो गई।'
- 'मैं दसवीं पास थी। फिर बच्चों के लिए नौकरी करनी पड़ी। बेटा पूछता था सबके पापा हैं तो मेरे क्यों नहीं। मैं कहती थी वो ऊपर हैं जब तुम बड़े हो जाओगे तो वो आ जाएंगे।'
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