आतंक पालने-पोसने वाले देशों को अलग-थलग करें : सुषमा स्वराज
पुनः संशोधित सोमवार, 26 सितम्बर 2016
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संयुक्त राष्ट्र। भारत ने दुनिया के सभी देशों से आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होने की अपील करते हुए सोमवार को कहा कि आतंकवाद को पालने-पोसने वाले देशों की पहचान करके उन्हें विश्व समुदाय से अलग-थलग किया जाना चाहिए।
विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने संबोधन में आतंकवाद को मानवाधिकारों का सबसे बड़ा उल्लंघन करार देते हुए कहा, सबसे पहले तो हम सबको यह स्वीकारना होगा कि आतंकवाद मानवाधिकारों का सबसे बड़ा उल्लंघन है, क्योंकि यह निर्दोष लोगों को निशाना बनाता है, बेगुनाहों को मारता है, यह किसी व्यक्ति या देश का ही नहीं, बल्कि मानवता का अपराधी है।
उन्होंने पाकिस्तान या किसी अन्य देश का नाम लिए बिना आतंकवादियों को पनाह देने वाले देशों की पहचान करने की भी आवश्यकता जताई। उन्होंने कहा, आतंकवादियों का न तो कोई अपना बैंक है, न हथियारों की फैक्ट्रियां, तो कहां से उन्हें धन मिलता है, कौन इन्हें हथियार देता है, कौन इन्हें सहारा देता है, कौन इन्हें संरक्षण देता है? ऐसे ही सवाल इसी मंच से अफगानिस्तान ने भी कुछ दिन पहले उठाए थे।
श्रीमती स्वराज ने कहा कि दुनिया में ऐसे देश हैं जो बोते भी हैं आतंकवाद, उगाते भी हैं आतंकवाद, बेचते हैं आतंकवाद और निर्यात भी करते हैं आतंकवाद। आतंकवादियों को पालना उनका शौक बन गया है। ऐसे शौकीन देशों की पहचान करके उनकी जबावदेही सुनिश्चित की जानी चाहिए।
उन्होंने कहा, हमें उन देशों को भी चिह्नित करना चाहिए, जहां संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित आतंकवादी सरेआम जलसे कर रहे हैं, प्रदर्शन निकालते हैं, जहर उगलते हैं और उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती। इसके लिए उन आतंकवादियों के साथ वे देश भी दोषी हैं जो उन्हें ऐसा करने देते हैं। ऐसे देशों की विश्व समुदाय में कोई जगह नहीं होनी चाहिए।
विदेश मंत्री ने कहा कि इस सभा में बैठा हर व्यक्ति आतंकवाद को लेकर चिंतित ही नहीं, बल्कि सोचने पर भी मजबूर है। उन्होंने कहा, इसी महीने इस शहर में हुए 9/11 आतंकी हमले की 15वीं वर्षगांठ थी। पिछले 15 दिनों में इसी शहर में एक और आतंकी हमले में मासूमों को मारने की कोशिश की गई थी। हम इस शहर का दर्द समझते हैं, हम पर भी उड़ी में इन्हीं आतंकी ताकतों ने हमला किया था। विश्व इस अभिशाप से बहुत समय से जूझ रहा है, लेकिन आतंकवाद का शिकार हुए मासूमों के खून और आसुओं के बावजूद, इस वर्ष काबुल, ढाका, इस्ताम्बुल, मोगादिशू, ब्रुसेल्स, बैंकॉक, पेरिस, पठानकोट और उड़ी में हुए आतंकवादी हमले और सीरिया एवं इराक में रोजमर्रा की बर्बर त्रासदियां हमें यह याद दिलाती हैं कि हम इसे रोकने में सफल नहीं हुए हैं।
उन्होंने कहा कि इतिहास गवाह है कि जिन्होंने भी अतिवादी विचारधारा के बीज बोए हैं उन्हें ही उसका कड़वा फल मिला है। आज उस आतंकवाद ने एक राक्षस का रूप धारण कर लिया है, जिसके अनगिनत हाथ हैं, अनगिनत पांव और अनगिनत दिमाग और साथ में अति आधुनिक तकनीक।
विदेश मंत्री ने कहा, अब अपना या पराया, मेरा या दूसरे का आतंकवादी कहकर हम इस जंग को नहीं जीत पाएंगे। पता नहीं यह दैत्य किस समय किस तरफ का रुख कर ले। इसीलिए यदि हमें आतंकवाद को जड़ से उखाड़ना है तो एक ही तरीका है- हम अपने मतभेद भुलाकर आतंकवाद के खिलाफ एकजुट हों, उसका मुकाबला दृढ़ संकल्प से करें और अपने प्रयासों में तेजी लाएं।
उन्होंने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में साथ न देने वाले देशों को अलग-थलग करने की सलाह देते हुए कहा, हम पुराने समीकरण तोड़ें, अपनी पसंदगियां-नापसंदगियां एक तरफ रखें, मोह त्यागें, अहसानों को भूलें और एक दृढ़ निश्चय के साथ इकट्ठा होकर इस आतंकवाद का सामना करने की रणनीति बनाएं। यह मुश्किल काम नहीं है केवल इच्छाशक्ति की कमी है। ये काम हो सकता है और ये काम हमें करना है, नहीं करेंगे तो हमारी आने वाली संततियां हमें माफ नहीं करेंगी। हां, यदि कोई देश इस तरह की रणनीति में शामिल नहीं होना चाहता तो फिर उसे अलग-थलग कर दें।
अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद से संबंधित व्यापक संधि (सीसीआईटी) के भारत के 1996 के प्रस्ताव पर आज तक किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचने का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, बीस साल गुजर जाने के बावजदू हम सीसीआईटी को निष्कर्ष तक नहीं पहुंचा सके। यही कारण है कि हम कोई ऐसा अंतरराष्ट्रीय मानक नहीं बना सके, जिसके अंतर्गत आतंकवादियों को सजा दी जा सके या उनका प्रत्यर्पण हो सके। उन्होंने दुनिया के सभी देशों से पूरे दृढ़ निश्चय के साथ यथाशीघ्र सीसीआईटी पारित करने की अपील भी की। (वार्ता)
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