शशिकला का राजनैतिक षड़यंत्र फ़िलहाल फैल
शशिकला का राजनैतिक षड़यंत्र फ़िलहाल फैल
शशीकला के षड़यंत्रों की जांच होनी चाहिये।
शशीकला ने मूलतः जयललिता के घर में शरण ली थी और वहां के कुछ कार्यों में हिस्सा बंटाती थी। वह जयललिता के घर की मालकिन किस तरह बन गई ? चिकित्सालय में परिवार से जुड़े लोगों को क्यों आनें नहीं दिया गया ? अस्पताल का व्यवहार भी अपराधयुक्त है। वह किसी नाते रिस्तेदार को कैसे रोक सकता है। चिकित्सालय ने चिकित्सा सम्बंधी सही तथ्यों को क्यों झुपाये रखा । सभी तथ्य बहुत ही अधिक सक्षम संस्था के द्वारा जांच के योग्य है। सबसे महत्वपूर्ण बात कि जब जयललिता को धीमें जहर से मारे जानें की बात उजागर हो गई थी तब भी उसके अपनों को दूर क्यों रखा गया । बहुत गहरा षड़यंत्र रहा है। जांच सर्वोच्च न्यायालय की देखरेख में ही संभव है। शशीकला के षड़यंत्रों की जांच होनी चाहिये।
भवदीय
अरविन्द सिसोदिया, कोटा
शशिकला का राजनैतिक भविष्य शुरू होने से पहले ही खत्म,
Amitabh Kumar | 15 Feb 2017
नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने आय से अधिक संपत्ति मामले में अन्नाद्रमुक महासचिव शशिकला को दोषी करार देते हुए निचली अदालत के चार साल की सजा और 10 करोड़ जुर्माने को बरकरार रखा. मामले में शशिकला के अलावा उनके दो रिश्तेदार इलावरसी और सुधाकरण को भी दोषी पाया गया. पूर्व सीएम जयललिता के निधन के बाद उन पर चल रहे सभी मामलों को खत्म कर दिया गया. कोर्ट ने भ्रष्टाचार को लेकर कड़ी टिप्पणी भी की.
जस्टिस पीसी घोष और अमिताव रॉय की खंडपीठ ने शशिकला और अन्य आरोपियों को बंगलुरु की विशेष अदालत के सामने समर्पण करने और बाकी सजा को जेल में बिताने का आदेश दिया. खंडपीठ ने कहा कि आरोपियों ने अवैध धन कमाने के लिए गहरी साजिश रची. फर्जी कंपनियां बना कर धन को छिपाने की कोशिश की, ताकि कानून की नजरों से बचा जा सके. भ्रष्टाचार के बढ़ते स्वरुप और समाज के हर क्षेत्र में व्यापक रूप को देखते हुए सख्त सजा देना जरूरी है, ताकि भ्रष्टाचार के प्रति सख्त रवैया अपना सके.
खंडपीठ ने कहा कि भ्रष्टाचारी समाज और देश के प्रति जबावदेह हैं, खासकर जनप्रतिनिधि, जिन पर समाज के कल्याण की जिम्मेवारी है. ऐसे में सार्वजनिक पद पर बैठे लोग सत्ता का बेजा इस्तेमाल कर भ्रष्ट आचरण करते हैं, तो उन्हें सजा होनी चाहिए. शपथ लेकर भ्रष्ट आचरण करनेवाले समाज के दोषी हैं. उन्हें दंड देना जरूरी है.
आठ मिनट में आ गया फैसला
शशिकला की किस्मत का फैसला करनेवाला शीर्ष अदालत का बहुप्रतीक्षित निर्णय महज आठ मिनट में घोषित हो गया. दोनों जज, जस्टिस पीसी घोष और अमिताव रॉय कोर्ट छह में सुबह 10:32 बजे आसन पर पहुंचे. कर्मियों द्वारा इस फैसले की सील खोले जाने के बाद जजों ने कुछ देर चर्चा की.
क्या है मामला
जनता पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष सुब्रहमण्यम स्वामी ने इस मामले में सबसे पहले 1996 में एक मामला दर्ज कराया. उन्होंने जयललिता पर आरोप लगाया कि 1991 से 1996 तक तमिलनाडु की मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने 66.65 करोड़ की संपत्ति जमा की और यह उनके आय के स्रोत से अधिक है.
कब क्या हुआ
1996 : सात दिसंबर को अम्मा अरेस्ट
1997 : जयललिता के साथ-साथ तीन अन्य के खिलाफ भी चेन्नई की एक अदालत में आइपीसी की धारा 120 बी, 13 (2) और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13(1) (ई) के तहत मामले की सुनवाई हुई.
1997 : एक अक्तूबर को तत्कालीन राज्यपाल फातिमा बीबी ने मुकदमा चलाने की मंजूरी दी. इसके खिलाफ जयललिता ने मद्रास हाइकोर्ट में याचिका दाखिल की. लेकिन, अदालत ने इसे खारिज कर दिया.
2001 : विधानसभा चुनाव में जयललिता की पार्टी एआइएडीएम को बहुमत मिला और दोबारा सीएम बनी.
2003 : द्रमुक महासचिव के अनबझगम ने इस मामले को कर्नाटक स्थानांतरित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की. 18 नवंबर, 2003 को सुप्रीम कोर्ट ने आय से अधिक मामले को बेंगलुरु हस्तांतरित कर दिया.
2011 : आय से अधिक संपत्ति मामले में जयललिता अक्तूबर-नवंबर 2011 में विशेष अदालत में पेश हुईं.
2014 : 27 सितंबर को विशेष अदालत ने जयललिता और शशिकला समेत चार को दोषी करार दिया. चार साल की जेल और 10 करोड़ रुपये के जुर्माने की सजा. 29 सितंबर को जयललिता ने कर्नाटक हाइकोर्ट में फैसले को चुनौती दी. अक्तूबर में जमानत याचिका खारिज कर. नौ अक्तूबर को सुप्रीम कोर्ट में जमानत याचिका दायर की. 14 अक्तूबर को जमानत मिली.
2015 : 11 मई को कर्नाटक हाइकोर्ट ने जयललिता और तीन अन्य को बरी कर दिया. कर्नाटक सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी.
2016 : 23 फरवरी को अम्मा को दोषमुक्त किये जाने के खिलाफ याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. सात जून, 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया.
1996 : सात दिसंबर को अम्मा अरेस्ट
1997 : जयललिता के साथ-साथ तीन अन्य के खिलाफ भी चेन्नई की एक अदालत में आइपीसी की धारा 120 बी, 13 (2) और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13(1) (ई) के तहत मामले की सुनवाई हुई.
1997 : एक अक्तूबर को तत्कालीन राज्यपाल फातिमा बीबी ने मुकदमा चलाने की मंजूरी दी. इसके खिलाफ जयललिता ने मद्रास हाइकोर्ट में याचिका दाखिल की. लेकिन, अदालत ने इसे खारिज कर दिया.
2001 : विधानसभा चुनाव में जयललिता की पार्टी एआइएडीएम को बहुमत मिला और दोबारा सीएम बनी.
2003 : द्रमुक महासचिव के अनबझगम ने इस मामले को कर्नाटक स्थानांतरित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की. 18 नवंबर, 2003 को सुप्रीम कोर्ट ने आय से अधिक मामले को बेंगलुरु हस्तांतरित कर दिया.
2011 : आय से अधिक संपत्ति मामले में जयललिता अक्तूबर-नवंबर 2011 में विशेष अदालत में पेश हुईं.
2014 : 27 सितंबर को विशेष अदालत ने जयललिता और शशिकला समेत चार को दोषी करार दिया. चार साल की जेल और 10 करोड़ रुपये के जुर्माने की सजा. 29 सितंबर को जयललिता ने कर्नाटक हाइकोर्ट में फैसले को चुनौती दी. अक्तूबर में जमानत याचिका खारिज कर. नौ अक्तूबर को सुप्रीम कोर्ट में जमानत याचिका दायर की. 14 अक्तूबर को जमानत मिली.
2015 : 11 मई को कर्नाटक हाइकोर्ट ने जयललिता और तीन अन्य को बरी कर दिया. कर्नाटक सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी.
2016 : 23 फरवरी को अम्मा को दोषमुक्त किये जाने के खिलाफ याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. सात जून, 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया.
अब तक इन्हें सजा
रशीद मसूद : एमबीबीएस सीट आवंटन घोटाला
लालू प्रसाद : चारा घोटाला
जगदीश शर्मा : चारा घोटाला
ओमप्रकाश चौटाला : अध्यापक भर्ती में गड़बड़ी
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