केरल में वामपंथी आतंक:पीड़ितों ने सुनाया अपना दर्द
मेरे पिता मेरे सपनों को पूरा करना चाहते थे .... फूलों से सुसज्जित ताबूत भेंट ....केरल में वामपंथी आतंक के पीड़ितों ने सुनाया अपना दर्द
हमारे कार्य का आधार घृणा, हिंसा नहीं, आत्मीयता है – डॉ. कृष्ण गोपाल जी
केरल में वामपंथी आतंक के पीड़ितों ने सुनाया अपना दर्द
मेरे पिता मेरे सपनों को पूरा करना चाहते थे ....................................
विस्मया, ये नाम अधिकांश ने सुना होगा. उसकी कविता सोशल मीडिया पर काफी वायरल हुई थी. वह पुलिस अधिकारी बनकर अपने गांव की सेवा करना चाहती है, लेकिन वामपंथी गुंडों ने उसके पिता की हत्या कर दी. वह कहती है कि ---- “मेरे पिता मेरे सपनों को पूरा करना चाहते थे, वह रात मेरे सारे सपनों को तबाह कर गई. उनकी (विस्मया के पिता संतोष कुमार, 52 वर्ष) बस एक ही गलती थी कि उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बीजेपी का समर्थन (पार्टी गांव में भाजपा के समर्थन से पंचायत का चुनाव लड़ा था) किया था. अब मुझे अपने भविष्य में सिर्फ अंधकार दिख रहा है. उन्होंने सिर्फ मेरे पिता को नहीं मारा बल्कि मेरे सपनों और भविष्य़ की भी हत्य़ा कर दी. मुझे सिर्फ अंधकार दिख रहा है, पूर्ण अंधकार. मुझे अब तक यह जवाब नहीं मिला कि उन्होंने मेरे पिता को क्यों मारा?”
अब किसके सहारे जियेंगी ..................... आंखों के सामने पुत्र की हत्या देख नारायणी अम्मा टूट गईं. अब वे इन वामपंथी गुंडों से दोनों हाथ जोड़कर एक ही प्रार्थना कर रही हैं कि “जिस चाकू से उन्होंने उनके पति और बेटे को मारा, उसी से उन्हें भी मार दें. उन्हें किस लिये छोड़ दिया, अब किसके सहारे जियेंगी?”
चलते फिरते शहीद ..................
विभाग प्रचार प्रमुख प्रजिल चलते फिरते शहीद हैं, उनके शरीर पर करीब ढाई दर्जन घावों के निशान हैं. खुशकिस्मत हैं कि वामपंथी गुंडों के हमले में उनका जीवन बच गया.
दोनों पैर चले गए ..................
श्रीधरन अपने घर के पास चीखने चिल्लाने की आवाजें सुनीं तो लोगों को बचाने के लिये दौड़े, लेकिन वामपंथी गुंडों ने उन पर बम फैंक दिया, जिसमें उनके दोनों पैर चले गए.
फूलों से सुसज्जित ताबूत भेंट ................
केरल के एक कॉलेज की पूर्व प्राचार्या डॉ. टीएन सरसू, उनकी सेवानिवृत्ति पर कॉलेज की एसएफआई इकाई ने अनोखा गिफ्ट दिया, उन्हें सेवानिवृत्ति पर फूलों से सुसज्जित ताबूत भेंट किया गया.
ये केवल कुछ घटनाएं मात्र हैं, कहानी केवल यहीं तक सीमित नहीं है. शिवदा, रजनी पीड़ितों की सूची काफी लंबी है. पिछले साठ साल के दौरान 400 से अधिक कार्यकर्ता वामपंथी गुंडों के हिंसक हमलों का शिकार हुए हैं. केरल में वामपंथी सरकार के गठन के पश्चात हिंसक घटनाओं में अचानक बढ़ोतरी हुई है. नई सरकार के छोटे से कार्यकाल में अकेले कन्नूर जिले में 436 हिंसक घटनाएं हो चुकी हैं. इसी कालखंड में 19 कार्यकर्ता मारे गए हैं, जिसमें 11 राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के, 4 कांग्रेस के थे. 4 सीपीआई एम के कार्यकर्ता, लेकिन ये वामपंथी विचार को छोड़कर कहीं न कहीं संघ की शाखा, भारतीय मजदूर संघ या भाजपा की ओर आकर्षित थे. इस कारण उनकी भी हत्या कर दी गई.
लेकिन ये समस्त घटनाएं, परिवारों की पीड़ी कभी नेशनल मीडिया की सुर्खियां नहीं बनीं, न ही मानवाधिकार आयोग का कभी इन पीड़ितों की ओर ध्यान गया. न ही तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग का ध्यान इनकी ओर गया.
भगवान की धरती कहलाने वाला केरल आज मार्क्सवादी हिंसा का प्रतीक बन चुका है. केरल मार्क्सवादी हिंसा के चेहरे को सबके समक्ष लाने के उद्देश्य से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अभियान शुरू किया है. जिसके तहत विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है, इन कार्यक्रमों में केरल में मार्क्सवादी हिंसा के शिकार पीड़ित कुछ स्वयंसेवक परिवारों के सदस्य भी भाग ले रहे हैं. इसी निमित्त शनिवार 15 अप्रैल को दिल्ली में तीन कार्यक्रमों का आयोजन किया गया, पहला कार्यक्रम जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में था, इसके पश्चात मीडिया जगत में कार्यरत पत्रकार बंधुओं के साथ गोष्ठी का आयोजन किया गया, तीसरे कार्यक्रम में दिल्ली के बुद्धिजीवी वर्ग (प्राध्यापक, अध्यापक, अधिवक्ता, व अन्य) के लिये नेशनल डेमोक्रेटिक टीचर फ्रंट एवं योगक्षेम न्यास ने संगोष्ठी का आयोजन किया. इन कार्यक्रमों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्णगोपाल जी, प्रज्ञा प्रवाह के राष्ट्रीय संयोजक जे. नंदकुमार जी (मूलतः केरल निवासी) तथा पीड़ित परिवारों के सदस्य उपस्थित रहे. कार्यक्रम में शहीद स्वयंसेवकों की जानकारी पर आधारित पुस्तक आहुति का लोकार्पण किया गया.
हमारे कार्य का आधार घृणा, हिंसा नहीं, आत्मीयता है – डॉ. कृष्ण गोपाल जी
बम बनाना केरल में कुटीर उद्योग
नई दिल्ली. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्णगोपाल जी ने कहा कि बम बनाना केरल में कुटीर उद्योग जैसा बन गया है. पुलिस राज्य सरकार के आदेश पर सबूत इकट्ठे करती और बाद में उन्हें नष्ट कर देती है. इसलिए वहां मार्क्सवादी विचारधारा से अलग विचार रखने वालों के लिए बहुत संकट पैदा हो गया है. केरल हमारे देश का ही एक अंग है, इसलिए यह सारे देश की समस्या है. वैचारिक भिन्नता से कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन इस देश का महान दर्शन, महान परम्पराओं को नष्ट नहीं करने दिया जा सकता. राज्य के मुख्यमंत्री, जिनके पास गृह विभाग भी है, उन्हें अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी का पालन करना चाहिए. एक पार्टी कार्यकर्ता के रूप में नहीं बल्कि एक मुख्यमंत्री की तरह व्यवहार करना चाहिए. उन्हें राज्य में कानून, न्याय और शांति सुनिश्चित करनी चाहिए.
उन्होंने कहा कि आरएसएस का विरोध किसी कम्युनिस्ट से नहीं है, अपितु भारत के लिए प्रतिकूल कम्युनिज्म विचारधारा से है. क्योंकि हमारे देश में शास्त्रार्थ कर अपने विचारों से दूसरों को जीतने की परम्परा रही है. किसी की हत्या से आतंक उत्पन्न कर अपने विचार मनवाना यह भारतीय परंपरा कभी नहीं रही. वामपंथ की विचारधारा भारतीय परंपरा, आध्यात्मिक दर्शन के अनुकूल नहीं है. ये देश प्रेम, करुणा, दया का देश है. संघ के कार्यकर्ताओं का स्वभाव सभी जानते हैं. आपातकाल में हजारों कार्यकर्ताओं ने यातनाएं झेलीं. लेकिन सरसंघचालक बाला साहब देवरस जैसे ही जेल से बाहर आए, उन्होंने एक ही बात कही, जिन्होंने हमको बंद किया, कष्ट दिया वे अपने ही थे, अपने मन के अन्दर से यह बैर-भाव निकाल दो, सबसे मित्रता रखो. हमारा दर्शन ही ऐसा है कि हम लम्बे समय तक अपने ऊपर हुए अत्याचारों को याद ही नहीं रखना चाहते. संघ का कार्य का आधार घृणा, हिंसा नहीं, आत्मीयता है, हममें विचारधारा की भिन्नता से घृणा उत्पन्न नहीं होती. यही कारण है कि विरोध के बावजूद देश में सबसे अधिक शाखाएं (लगभग 4500) केरल में हैं.
प्रज्ञा प्रवाह के संयोजक जे. नंदकुमार जी ने कहा कि केरल में मार्क्सवादी आतंक से पीड़ित परिवारों को यहां लाना तथा उनके परिवार के सदस्यों की निर्मम हत्याओं का प्रस्तुतिकरण उनके तथा हमारे लिए अत्यंत कष्टकारी है, लेकिन केरल के बाहर वहां का सच तथाकथित बुद्धिजीवियों के सामने लाने का अन्य मार्ग न होने के कारण इस तरह के कार्यक्रम आयोजित करने पड़ रहे हैं. एक अखलाक की हत्या मीडिया में कई दिनों तक चर्चा व बहस का विषय बनी रहती है, लेकिन केरल में सत्ताधारी वामपंथियों की वैचारिक असहिष्णुता के कारण हुई नृशंस हत्याओं पर मीडिया में चर्चा नहीं होती. उन्होंने केरल से आये पीड़ित परिवारों का परिचय संगोष्ठी में आये बुद्धिजीवियों से करवाते हुए उनके परिजनों की मार्क्सवादियों द्वारा की गयी हत्याओं का उल्लेख किया. उन्होंने बताया कि पीड़ित परिवारों की ओर से मानवाधिकार आयोग और अनुसूचित जाति आयोग में भी मामले को ले जाया गया है.
डॉ. कृष्ण गोपाल जी ने कहा कि मुख्यमंत्री पिनरायी विजयन वास्तव में हिंसा को रोकना चाहते हैं या सच को सबके समक्ष लाना चाहते हैं तो सर्वोच्च न्यायालय के दो न्यायाधीशों से या पूर्व न्यायाधीशों से हिंसक घटनाओं की जांच करवाएं. पुलिस पर पार्टी का नियंत्रण है, पुलिस ट्रेड यूनियन में वामपंथी पदाधिकारी पुलिस विभाग में प्रमुख पदों पर विराजमान हैं. ऐसे में कैसे निष्पक्ष न्याय की उम्मीद की जा सकती है. उन्होंने बताया कि 1948 तक केरल में संघ की नाम मात्र की शाखाएं थीं, जनवरी 1948 में श्रीगुरूजी का प्रवास था. कार्यक्रम में 150-200 कार्यकर्ता उपस्थित थे, इस दौरान वामपंथी गुंडों ने हमला कर दिया था.
उल्लेखनीय है कि केरल में वामपंथी हिंसा के खिलाफ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ ही अन्य सामाजिक संगठनों ने धरना प्रदर्शन का आयोजन किया था . देशभर में लगभग 800 स्थानों पर विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया गया. जिसमें साढ़े चार लाख बंधु भगिनियों की भागीदारी रही. (केरल, पंजाब, उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश, गोवा, मणिपुर शामिल नहीं)
निकुंज सूद
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