सोमनाथ- हिन्दू स्वाभिमान का प्रतीक
जय सोमनाथ हिन्दू स्वाभिमान की पुनप्र्रतिष्ठा का अमर प्रतीक - आलोक गोस्वामी भारत के पश्चिमी सागर तट पर स्थित है भगवान सोमनाथ का विशाल मंदिर। मंदिर के चारों ओर जो क्षेत्र है उसे प्रभास पाटण अथवा पट्टण कहते हैं। पट्टण का अर्थ है सागर के निकट का स्थान। गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में जूनागढ़ जिले का अंग प्रभास पाटण सोमनाथ मंदिर के कारण भारत का एक प्रमुख तीर्थ बन गया है। पूर्व में सोमनाथ मंदिर पर मुगल आक्रांताओं ने बार-बार आक्रमण करके उसे ध्वस्त किया और लूटा था। इस पर सबसे पहला आक्रमण मोहम्मद गनजी ने 1026 ईसवी में किया था। सोमनाथ पर अंतिम आक्रमण औरंगजेब के अधीन गुजरात के मुगल सूबेदार मोहम्मद आजम ने 1701 ईसवी में किया था। मन्दिर न्यास का स्वरूप 18 अक्तूबर, 1949 में सर्वप्रथम सोमनाथ मन्दिर न्यास का गठन किया गया, जिसके सदस्य थे- श्री दिग्विजय सिंह (जामसाहब, नवानगर), श्री सामलदास गांधी, श्री एन.वी. गाडगिल, श्री डी.वी. रेगे (प्रांतीय आयुक्त, सौराष्ट्र), श्री बृजमोहन बिरला व डा.क.मा. मुंशी। तत्पश्चात् 15 मार्च, 1950 को श्री सोमनाथ न्यास के अनुबंध-पत्र की प्रस्तुति की गई।