रामसेतु (Ram - setu) 17.5 लाख वर्ष पूर्व

नासा-पुरातत्व विभाग द्वारा कई वर्षो के संयुक्त शोध के बाद 2007 में ये सिद्ध हुआ के रामसेतू लगभग 18 लाख वर्ष पूर्व "continental drift" अस्तित्व मे आया है। करोड़ो वर्षो पूर्व के डायनासौर के अवशेष भी मिल। इस प्रकार के सेतू जापान -कोरिया के बीच मे भी है और यदि आप विश्व का नक्शा देखें तो उसमे North America & South America को जोड़ता हुआ भी एक सेतू है, ठीक वैसे ही आप नक्शे मे India - Sri Lanka के बीच भी देख सकते हैं। नासा के रिसर्च अनुसार राम सेतु जब 17.5 लाख वर्ष पुराना है।



हिन्दुत्व करोडों वर्ष पूर्व से है: नासा ने कहा है रामसेतु (एडम ब्रिज) 17.5 लाख वर्ष पूर्व का है।

राम सेतु नहीं, नल सेतु कहो...

अनिरुद्ध जोशी  

भारत के दक्षिण में धनुषकोटि तथा श्रीलंका के उत्तर पश्चिम में पम्बन के मध्य समुद्र में 48 किमी चौड़ी पट्टी के रूप में उभरे एक भू-भाग के उपग्रह से खींचे गए चित्रों को अमेरिकी अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (नासा) ने जब 1993 में दुनिया भर में जारी किया तो भारत में इसे लेकर राजनीतिक वाद-विवाद का जन्म हो गया था।
एडम ब्रिज नहीं, नल सेतु कहो : इस पुल जैसे भू-भाग को राम का पुल या रामसेतु कहा जाने लगा। सबसे पहले श्रीलंका के मुसलमानों ने इसे आदम पुल कहना शुरू किया था। फिर ईसाई या पश्चिमी लोग इसे एडम ब्रिज कहने लगे। वे मानते हैं कि आदम इस पुल से होकर गुजरे थे।

रामसेतु का चित्र नासा ने 14 दिसम्बर 1966 को जेमिनी-11 से अंतरिक्ष से प्राप्त किया था। इसके 22 साल बाद आई.एस.एस 1 ए ने तमिलनाडु तट पर स्थित रामेश्वरम और जाफना द्वीपों के बीच समुद्र के भीतर भूमि-भाग का पता लगाया और उसका चित्र लिया। इससे अमेरिकी उपग्रह के चित्र की पुष्टि हुई।

भारत के दक्षिणपूर्व में रामेश्वरम और श्रीलंका के पूर्वोत्तर में मन्नार द्वीप के बीच उथली चट्टानों की एक चेन है। समुद्र में इन चट्टानों की गहराई सिर्फ 3 फुट से लेकर 30 फुट के बीच है। इस पुल की लंबाई लगभग 48 किमी है। यह ढांचा मन्नार की खाड़ी और पाक जलडमरू मध्य को एक दूसरे से अलग करता है। इस इलाके में समुद्र बेहद उथला है।

रामसेतु पर कई शोध हुए हैं कहा जाता है कि 15वीं शताब्दी तक इस पुल पर चलकर रामेश्वरम से मन्नार द्वीप तक जाया जा सकता था, लेकिन तूफानों ने यहां समुद्र को कुछ गहरा कर दिया। 1480 ईस्वी सन् में यह चक्रवात के कारण टूट गया और समुद्र का जल स्तर बढ़ने के कारण यह डूब गया।

दूसरी और पुल की प्राचीनता पर शोधकर्ता एकमत नहीं है। कुछ इसे 3500 साल पुराना पुराना बताते हैं तो कछ इसे आज से 7000 हजार वर्ष पुराना बताते हैं। कुछ का मानना है कि यह 17 लाख वर्ष पूराना है।

धनुषकोटि : ल्मीकि रामायण कहता है कि जब श्रीराम ने सीता को लंकापति रावण से छुड़ाने के लिए लंका द्वीप पर चढ़ाई की, तो उस वक्त उन्होंने सभी देवताओं का आह्‍वान किया और युद्ध में विजय के लिए आशीर्वाद मांगा था। इनमें समुद्र के देवता वरुण भी थे। वरुण से उन्होंने समुद्र पार जाने के लिए रास्ता मांगा था। जब वरुण ने उनकी प्रार्थना नहीं सुनी तो उन्होंने समुद्र को सुखाने के लिए धनुष उठाया।

डरे हुए वरुण ने क्षमायाचना करते हुए उन्हें बताया कि श्रीराम की सेना में मौजूद नल-नील नाम के वानर जिस पत्थर पर उनका नाम लिखकर समुद्र में डाल देंगे, वह तैर जाएगा और इस तरह श्रीराम की सेना समुद्र पर पुल बनाकर उसे पार कर सकेगी। इसके बाद श्रीराम की सेना ने लंका के रास्ते में पुल बनाया और लंका पर हमला कर विजय हासिल की।

भगवान राम ने जहां धनुष मारा था उस स्थान को 'धनुषकोटि' कहते हैं। राम ने अपनी सेना के साथ लंका पर चढ़ाई करने के लिए उक्त स्थान से समुद्र में एक ब्रिज बनाया था इसका उल्लेख 'वाल्मिकी रामायण' में मिलता है।
नल सेतु : वाल्मीक रामायण में वर्णन मिलता है कि पुल लगभग पांच दिनों में बन गया जिसकी लम्बाई सौ योजन और चौड़ाई दस योजन थी। रामायण में इस पुल को ‘नल सेतु’ की संज्ञा दी गई है। नल के निरीक्षण में वानरों ने बहुत प्रयत्न पूर्वक इस सेतु का निर्माण किया था।- (वाल्मीक रामायण-6/22/76)।

वाल्मीक रामायण में कई प्रमाण हैं कि सेतु बनाने में उच्च तकनीक प्रयोग किया गया था। कुछ वानर बड़े-बड़े पर्वतों को यन्त्रों के द्वारा समुद्रतट पर ले आए ते। कुछ वानर सौ योजन लम्बा सूत पकड़े हुए थे, अर्थात पुल का निर्माण सूत से सीध में हो रहा था।- (वाल्मीक रामायण- 6/22/62)

वाल्मीकि रामायण के अलावा कालिदास ने 'रघुवंश' के तेरहवें सर्ग में राम के आकाश मार्ग से लौटने का वर्णन किया है। इस सर्ग में राम द्वारा सीता को रामसेतु के बारे में बताने का वर्णन है। यह सेतु कालांतर में समुद्री तूफानों आदि की चोटें खाकर टूट गया था।
गीताप्रेस गोरखपुर से छपी पुस्तक श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण-कथा-सुख-सागर में वर्णन है कि राम ने सेतु के नामकरण के अवसर पर उसका नाम ‘नल सेतु’ रखा। इसका कारण था कि लंका तक पहुंचने के लिए निर्मित पुल का निर्माण विश्वकर्मा के पुत्र नल द्वारा बताई गई तकनीक से संपन्न हुआ था। महाभारत में भी राम के नल सेतु का जिक्र आया है।

अंन्य ग्रंथों में कालीदास की रघुवंश में सेतु का वर्णन है। स्कंद पुराण (तृतीय, 1.2.1-114), विष्णु पुराण (चतुर्थ, 4.40-49), अग्नि पुराण (पंचम-एकादश) और ब्रह्म पुराण (138.1-40) में भी श्रीराम के सेतु का जिक्र किया गया है।

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If Ram Setu is 1.75 million years ago and Ramayan happened 7,000 years ago, then doesn't it prove the theory that Ram built the Rama Setu false?
यदि राम सेतु 17.5 लाख वर्ष पूर्व का है और रामायण 7,000 वर्ष पूर्व हुई, तो क्या यह इस सिद्धांत को झूठा साबित नहीं करता कि राम ने राम सेतु बनाया था ?

Ananya Agarwal :-
Why is the time of the battle of Ramayana told a few thousand years ago, while Tretayuga itself is considered to be 8,64,000 years old and Ramayana was fought in Treta Yuganta?
Your very good question, brothers. I will try to give you the literary / historical proof of this question. Hope more and more people get benefitted. You made a mistake in the question, correct them earlier, Tretayug was 12,96,000 years old, Dwaparyug was 8,64,000 years old.
अनन्या अग्रवाल :-
रामायण के युद्ध का समय कुछ हजार वर्ष पूर्व क्यों बताया जाता है, जबकि त्रेतायुग ही 8,64,000 वर्ष पुराना माना जाता है और रामायण का युद्ध त्रेता युगांत में हुआ था?
आपका प्रश्न बहुत अच्छा है भाइयों. मैं आपको इस प्रश्न का साहित्यिक/ऐतिहासिक प्रमाण देने का प्रयास करूँगा। आशा है अधिक से अधिक लोग लाभान्वित होंगे। आपने प्रश्न में गलती कर दी है, उसे पहले सुधार लें, त्रेतायुग 12,96,000 वर्ष पुराना था, द्वापरयुग 8,64,000 वर्ष पुराना था।

Coming to the first fact, the theory or theory of which today's scientists are assessing archeology is based on the imagination. We have gone from 0 to time count. As of today, it has been 1,96,08,53,121 years of creation. But Western scientists also go. For example, he determined the time from birth of Jesus. But when he saw that the history of India is going even older than this, then he created the imagination of BC (Before christ) BC, after AD (anno Domini). Historians in India are mostly leftist. This is a group that does not believe in the existence of Sanatan. Foreign Marx and Lenin have been his ideals. These historians have listened to Suni and never written anything down on the ground. But when the Supreme Court asked for evidence, then the pole strip of history supported by this western and leftist opened.

5550 years ago, there was a war of Mahabharata. Which happened at the end of Dwaparyuga. While Ramayana took place in Tretayuga.
पहले तथ्य पर आते हैं, आज के वैज्ञानिक जिस सिद्धांत या थ्योरी के आधार पर पुरातत्व का आकलन कर रहे हैं, वह कल्पना पर आधारित है। हम 0 से टाइम काउंट पर आ गए हैं। आज तक इसकी रचना को 1,96,08,53,121 वर्ष हो चुके हैं। लेकिन पश्चिमी वैज्ञानिक भी जाते हैं. उदाहरण के लिए, उन्होंने यीशु के जन्म से समय निर्धारित किया। लेकिन जब उन्होंने देखा कि भारत का इतिहास इससे भी पुराना होता जा रहा है तो उन्होंने ईसा पूर्व (ईसा से पहले) ईसा पूर्व, ईस्वी के बाद (अन्नो डोमिनी) की कल्पना रची। भारत में इतिहासकार अधिकतर वामपंथी हैं। यह एक ऐसा समूह है जो सनातन के अस्तित्व को नहीं मानता। विदेशी मार्क्स और लेनिन उनके आदर्श रहे हैं। इन इतिहासकारों ने सुनी की बात सुनी है और ज़मीन पर कभी कुछ नहीं लिखा। लेकिन जब सुप्रीम कोर्ट ने सबूत मांगे तो इस पश्चिमी और वामपंथी समर्थित इतिहास की पोल खुल गई.

आज से 5550 वर्ष पूर्व महाभारत का युद्ध हुआ था। जो द्वापरयुग के अंत में हुआ था। जबकि रामायण त्रेतायुग में हुई थी।

First I come during the era of Ramayana. See, the period of Bandhu Ramayana is Vaivaswat, the Tretayug of Chaturugi, the 28th of Manvantar. According to Vedic mathematics / science, this creation lasts for 14 manvantars. There are 71 chaturyugi in each manvantara. There are 4 yugas in 1 Chaturyugi - Sat, Treta, Dwapar and Kali Yuga. So far 6 manvantaras have passed, 7th manvantar Vaivaswat Manvantar is going on.

See, brothers, Satyug is a period of 17,28,000 years, similarly Tretayug is 12,96,000 years, Dwaparyug is 8,64,000 years and Kaliyug is 4,32,000 years. At present the Kali Yuga of 28th Chaturyugi is going on. That is, there is Dwaparyuga between the birth of Shri Ram and our time. Which is 8,64,000 years old above. Now come forward, about 5200 years of Kali Yuga have passed. It was believed that the great mathematician and astrologer Varahamihi ji. According to him
सबसे पहले मैं रामायण के काल में आता हूँ। देखिये, बन्धु रामायण का काल वैवस्वत, चतुर्युगी त्रेतायुग, मन्वन्तर का 28वाँ भाग है। वैदिक गणित/विज्ञान के अनुसार यह सृष्टि 14 मन्वन्तरों तक चलती है। प्रत्येक मन्वंतर में 71 चतुर्युगी होते हैं। 1 चतुर्युगी में 4 युग होते हैं - सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग। अब तक 6 मन्वंतर बीत चुके हैं, 7वां मन्वंतर वैवस्वत मन्वंतर चल रहा है।

देखिये भाइयों, सतयुग 17,28,000 वर्ष का होता है, इसी प्रकार त्रेतायुग 12,96,000 वर्ष का, द्वापरयुग 8,64,000 वर्ष का और कलियुग 4,32,000 वर्ष का होता है। इस समय 28 चतुर्युगी का कलियुग चल रहा है। अर्थात श्रीराम के जन्म और हमारे समय के बीच द्वापरयुग है। जो कि 8,64,000 वर्ष से भी अधिक पुराना है। अब आगे आओ, कलियुग के लगभग 5200 वर्ष बीत चुके हैं। ऐसा मानना था महान गणितज्ञ और ज्योतिषी वराहमिही जी का। उसके अनुसार

“असन्मथासु मुनय: शासति पृथिवी: युधिष्ठिरै नृपतौ :
षड्द्विकपञ्चद्वियुत शककालस्य राज्ञश्च:”

At the time when Yudhishthira ruled, Saptarishi was in Magha Nakshatra. There are 27 Nakshatras in Vedic mathematics and the Saptarishi lives for 100 years in each constellation. This cycle goes on. At the time of Rasha Yudhishthira, the Saptarishyas had completed 27 cycles, after that there have been 24 cycles till date and in total there have been 51 cycles of Saptarishi Tara Mandal. Thus, the total number of years spent was 51 × 100 = 5100 years. King Yudhishthira ruled for nearly 38 years. And some time after that Kali Yuga started, so let's assume that a total of 5155 years of Kali Yuga have passed.

Thus a total of 8,64,000 + 5155 = 8,69,155 years from Kali Yuga to Dwaparyuga.

Shriram was born at the end of Tretayuga. In this way, the period of Sri Ram and Ramayana comes at least around 9 lakh years.

Now let's get to the facts.

Maharishi Valmiki writes in Ramayana Sundarkand Canto 5, Verse 12 -
जिस समय युधिष्ठिर का शासन था उस समय सप्तऋषि मघा नक्षत्र में थे। वैदिक गणित में 27 नक्षत्र हैं और प्रत्येक नक्षत्र में सप्तऋषि 100 वर्षों तक रहते हैं। यह चक्र चलता रहता है. रास युधिष्ठिर के समय सप्तर्षियों ने 27 चक्र पूरे किये थे, उसके बाद आज तक 24 चक्र हो गये हैं और कुल मिलाकर सप्तऋषि तारा मण्डल के 51 चक्र हो गये हैं। इस प्रकार, बिताए गए वर्षों की कुल संख्या 51 × 100 = 5100 वर्ष थी। राजा युधिष्ठिर ने लगभग 38 वर्षों तक शासन किया। और उसके कुछ समय बाद कलियुग प्रारंभ हो गया, तो मान लीजिए कि कलियुग के कुल 5155 वर्ष बीत गए।

इस प्रकार कलियुग से द्वापरयुग तक कुल 8,64,000 + 5155 = 8,69,155 वर्ष।

श्रीराम का जन्म त्रेतायुग के अंत में हुआ था। इस प्रकार श्रीराम और रामायण का काल कम से कम 9 लाख वर्ष के आसपास आता है।

अब आइए तथ्यों पर आते हैं।

महर्षि बाल्मीकि रामायण सुन्दरकाण्ड सर्ग 5, श्लोक 12 में लिखते हैं -

“वारणैश्चै चतुर्दन्तै श्वैताभ्रनिचयोपमे
भूषितं रूचिद्वारं मन्तैश्च मृगपक्षिभि:||”

That is, when Hanuman ji goes to Shri Ram and Lakshmana in the forest, then he sees the white colored 4-tooth drain elephant. These elephant fossils were found in the year 1870. Their lifespan is around 10 lakh to 5 million by carbon dating method.


In scientific language, this elephant was named Gomphothere. With this, scientific evidence of Ramayana happening around 10 lakh years is also available.
यानि कि जब हनुमान जी वन में श्रीराम और लक्ष्मण के पास जाते हैं तो उन्हें सफेद रंग का 4 दांत वाला हाथी दिखाई देता है। हाथियों के ये जीवाश्म वर्ष 1870 में पाए गए थे। कार्बन डेटिंग विधि से इनका जीवनकाल लगभग 10 लाख से 5 मिलियन है। वैज्ञानिक भाषा में इस हाथी का नाम गोम्फोथेर रखा गया। इसके साथ ही रामायण के लगभग 10 लाख वर्ष पूर्व घटित होने के वैज्ञानिक प्रमाण भी उपलब्ध हैं।

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Ajay Kumar Singh

When and where was Lord Rama born and what evidence is there to substantiate this?

Originally Answered: When & Where was Lord Rama born and what evidence is there to substantiate this?

I have tried after referring to various sources to have an idea on Age of Lord Rama in my following blogs at speaking tree website...

Please go through the content i m pasting here...in this i have also discussed this issue of 5114 BCE...


LORD RAMA FACT OR FICTION PART 3: AGE OF INCARNATION OF LORD RAMA
One of the most anticipated topics in this modern era is that when was Lord Rama born? In my previous blogs in this category LORD RAMA FACT OR FICTION PART 2; I said we will discuss about DOB of Lord Rama, I will be trying to shed some light on this issue…let me put some points from my previous blogs…

From Part 1 we shall revise this thing…

Before dwelling onto this point, we have to understand that our great Maharishis have systematically divided the period of shristi into Manvantars. Each Manvantar is further divided into chaturyugis. Each chaturyugis consist of Krita (satyuga), traita, dwapar, and kaliyuga. The present Manvantar is Vaivasvat Manvantar. So far, twenty-seven chaturyugies have already been passed. Right now, it is the 28th chaturyugi, and we are still in the first charan (period) of this chaturyugi.
It is a well-known fact that Rama was born during the latter part of traita. Hence, if we assume that Rama was born in the present chaturyugi, then it means that he was born at least 1,000,000 years ago. The period of his birth will probably be more than this.
However, Vayu purana provides us the correct chronological period of Ramayana. If we take Vayu puraan into consideration then the period of Rama becomes at least 18,000,000 years old. Hence, we can easily conclude that the period of Rama in the time scale is at least 1000,000 to 18,000, 000 years and I will try to relate why this postulation of Vayu Purana holds an important point.
अजय कुमार सिंह

भगवान राम का जन्म कब और कहाँ हुआ था और इसकी पुष्टि के लिए क्या प्रमाण हैं?

सबसे पहले उत्तर दिया गया: भगवान राम का जन्म कब और कहाँ हुआ था और इसे प्रमाणित करने के लिए क्या प्रमाण हैं?

मैंने विभिन्न स्रोतों का संदर्भ लेने के बाद स्पीकिंग ट्री वेबसाइट पर अपने निम्नलिखित ब्लॉगों में भगवान राम के युग के बारे में एक विचार प्राप्त करने का प्रयास किया है...

कृपया उस सामग्री को पढ़ें जिसे मैं यहां चिपका रहा हूं...इसमें मैंने 5114 ईसा पूर्व के इस मुद्दे पर भी चर्चा की है...


भगवान राम तथ्य या कल्पना भाग 3: भगवान राम के अवतार की आयु
इस आधुनिक युग में सबसे प्रतीक्षित विषयों में से एक यह है कि भगवान राम का जन्म कब हुआ था? इस श्रेणी में मेरे पिछले ब्लॉगों में भगवान राम तथ्य या कथा भाग 2; मैंने कहा कि हम भगवान राम की जन्मतिथि के बारे में चर्चा करेंगे, मैं इस मुद्दे पर कुछ प्रकाश डालने की कोशिश करूंगा... मुझे अपने पिछले ब्लॉग से कुछ बिंदु डालने दीजिए...

भाग 1 से हम इस बात को संशोधित करेंगे...

इस बिंदु पर विचार करने से पहले हमें यह समझना होगा कि हमारे महान महर्षियों ने सृष्टि काल को व्यवस्थित रूप से मन्वन्तरों में विभाजित किया है। प्रत्येक मन्वंतर को चतुर्युगियों में विभाजित किया गया है। प्रत्येक चतुर्युगी में कृत (सतयुग), त्रैत, द्वापर और कलियुग शामिल हैं। वर्तमान मन्वंतर वैवस्वत मन्वंतर है। अब तक सत्ताईस चतुर्युगी बीत चुकी हैं। अभी, यह 28वीं चतुर्युगी है, और हम अभी भी इस चतुर्युगी के पहले चरण में हैं।
यह सर्वविदित तथ्य है कि राम का जन्म लक्षण के उत्तरार्ध में हुआ था। इसलिए, यदि हम यह मान लें कि राम का जन्म वर्तमान चतुर्युगी में हुआ था, तो इसका मतलब है कि उनका जन्म कम से कम 1,000,000 वर्ष पहले हुआ था। उनके जन्म का काल संभवतः इससे भी अधिक होगा।
हालाँकि, वायु पुराण हमें रामायण का सही कालानुक्रमिक काल प्रदान करता है। वायु पुराण को ध्यान में रखें तो राम का काल कम से कम 18000000 वर्ष पुराना बनता है। इसलिए, हम आसानी से यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि समय के पैमाने पर राम की अवधि कम से कम 1000,000 से 18,000, 000 वर्ष है और मैं यह बताने की कोशिश करूंगा कि वायु पुराण की यह धारणा एक महत्वपूर्ण बिंदु क्यों रखती है।

From part 2 we shall revise that…

Ancient poet Valmiki, who wrote the Ramayana, is said to be a contemporary of Lord Rama. While narrating the events of the epic, he has mentioned the position of the planets at several places. By using recently developed planetary software, it has been possible to verify that these planetary positions actually took place precisely as specified in the Ramayana. These were not just stray events, but the entire sequence of the planetary positions as described by Valmiki at various stages of Rama's life can be verified even today as having taken place. Bhatnagar goes on to explain: "This information is significant, since these configurations do not repeat for lakhs of years and cannot be manipulated or imagined so accurately, without the help of sophisticated software. The inference that one can draw is that someone was present there to witness the actual happening of these configurations, which got recorded in the story of Rama."
Now let us move further in this discussion of the age of Incarnation of Lord Rama…

Obviously there have been long debates over the historical evidence of Lord Ram. Some people believe him to be just an another great man, while others believe him to be an incarnation of the Lord supreme, the complete Brahm , The One and absolute whole. There had also been misconception about the Date of Birth of Lord. Over the time a lot of scholars have prophesized various philosophies in the matter according to their studies.

According to studies of English historian Jones’ study Lord took incarnation around the year 2029 BCE, according to Todd it was 1100 BC, year 950 BC by Venthli and year 1360 BC due to Wilfred. But we all know this is not correct and moreover till Indian philosophers view is not considered nothing can be nodded on to. Indian philosophers too are having different views; having difference in views is also quite logical too, as to indicate Lord’s DOB in Treta Epoch in terms of current system of Gregorian calendar which is conversant with hardly 5000 years of history is definitely a tedious task. So taking Indian philosophers and astrologers view into consideration will be best suitable for correct indication of date.
भाग 2 से हम उसे संशोधित करेंगे...

रामायण लिखने वाले प्राचीन कवि वाल्मिकी को भगवान राम का समकालीन कहा जाता है। महाकाव्य की घटनाओं का वर्णन करते हुए उन्होंने कई स्थानों पर ग्रहों की स्थिति का उल्लेख किया है। हाल ही में विकसित ग्रहीय सॉफ़्टवेयर का उपयोग करके, यह सत्यापित करना संभव हो गया है कि ये ग्रह स्थितियाँ वास्तव में ठीक उसी प्रकार घटित हुई हैं जैसा कि रामायण में बताया गया है। ये केवल छिटपुट घटनाएँ नहीं थीं, बल्कि राम के जीवन के विभिन्न चरणों में वाल्मिकी द्वारा वर्णित ग्रहों की स्थिति के पूरे क्रम को आज भी घटित होने के रूप में सत्यापित किया जा सकता है। भटनागर आगे बताते हैं: "यह जानकारी महत्वपूर्ण है, क्योंकि ये कॉन्फ़िगरेशन लाखों वर्षों तक दोहराए नहीं जाते हैं और परिष्कृत सॉफ़्टवेयर की सहायता के बिना, इतनी सटीक रूप से हेरफेर या कल्पना नहीं की जा सकती है। कोई भी निष्कर्ष निकाल सकता है कि कोई वहां मौजूद था इन विन्यासों की वास्तविक घटना को देखने के लिए, जो राम की कहानी में दर्ज किया गया।"
आइए अब हम भगवान राम के अवतार के युग की इस चर्चा में आगे बढ़ें...

जाहिर है भगवान राम के ऐतिहासिक साक्ष्यों पर लंबी बहस होती रही है. कुछ लोग उन्हें एक और महान व्यक्ति मानते हैं, जबकि अन्य उन्हें सर्वोच्च भगवान, पूर्ण ब्रह्म, एक और पूर्ण संपूर्ण का अवतार मानते हैं। भगवान की जन्मतिथि को लेकर भी भ्रांति बनी हुई थी। समय के साथ बहुत से विद्वानों ने अपने अध्ययन के अनुसार इस विषय में विभिन्न दर्शनों की भविष्यवाणी की है।

अंग्रेजी इतिहासकार जोन्स के अध्ययन के अनुसार भगवान ने लगभग 2029 ईसा पूर्व, टॉड के अनुसार 1100 ईसा पूर्व, वेंथली के अनुसार 950 ईसा पूर्व और विल्फ्रेड के अनुसार 1360 ईसा पूर्व के आसपास अवतार लिया था। लेकिन हम सभी जानते हैं कि यह सही नहीं है और इसके अलावा जब तक भारतीय दार्शनिकों के दृष्टिकोण पर विचार नहीं किया जाता तब तक किसी भी बात पर सहमति नहीं जताई जा सकती। भारतीय दार्शनिक भी भिन्न-भिन्न मत रखते हैं; विचारों में अंतर होना भी काफी तर्कसंगत है, क्योंकि ग्रेगोरियन कैलेंडर की वर्तमान प्रणाली के संदर्भ में त्रेता युग में लॉर्ड्स डीओबी को इंगित करना, जो कि मुश्किल से 5000 वर्षों के इतिहास से परिचित है, निश्चित रूप से एक कठिन काम है। इसलिए तिथि के सही संकेत के लिए भारतीय दार्शनिकों और ज्योतिषियों के दृष्टिकोण को ध्यान में रखना सबसे उपयुक्त होगा।

Goswami Tulsidas ji has mentioned the incarnation of Lord as follows:
Jog lagn grah baar tithi sakal bhaye anukool,
Char aru achar harshjut Ram janm sukhmool.
Navmi Tithi madhu maas punita,
Shukl paksh Abhijit Haripreeta.
गोस्वामी तुलसीदास जी ने भगवान के अवतार का उल्लेख इस प्रकार किया है:
जोग लग्न गृह बार तिथि सकल भये अनुकूल,
चर अरु अचर हर्षजुट राम जन्म सुखमूल।
नवमी तिथि मधु मास पुनिता,
शुक्लपक्ष अभिजित् हरिप्रीता।

Definitely Goswamiji considering various sources has indicated the birth; but it is very difficult to indicate actual date precisely merely by month of Chaitra, Shukl paksh, Navmi tithiand Abhijit constellation.

Ancient poet provided the description which works as a guiding light in the whole perplexity of darkness. He has clearly remarked that after passing of 12 months when king Dashrath performed the sacrifice of Putreshti Yagya; than in the month of chaitra, 9th day of bright fortnight, moon near Pollux star in Gemini constellation that is Punarwasu Nakshatra, Lagn was cancer, when five planets were in their aphelion, Jupiter was with moon at that time Lord incarnated (Valmiki Ramayan).

But still it was very difficult to comprehend which five planets were there in their top state. Considering various conditions as specified by different scholars Mr. Bhatnagar selected five planets to be Sun, Mars, Saturn, Jupiter, Venus to be present in Aries, Capricorn, Libra, Cancer and Pisces respectively, I would be trying to specify it with reasons ahead. By using recently developed powerful planetarium software, it can be found that the planetary positions mentioned in Ramayana for the date of birth of Lord Ram had occurred in the sky at around 12.30 p.m. of 10th January 5114 BCE.

Although this provides verification of the existence for Lord Rama according to calculations as given in the Ramayana, still there is a much higher possibility that the timing for the day and year of His birth may be different than what the planetarium software indicates. But according to Vedic astrology the calculation of Lord Rama's birth as 10th of January 5114 BCE - Birth Day of Rama, Observation at 12.30 PM cannot be correct and there is more than one reason for this. His rising sign, or lagn is Cancer. That places Aries in the tenth house, and he has the Sun in Aries. The placement of the Sun in any birth chart will tell the time of day of the birth. Sun in the tenth house means birth at noontime (approx. 11 AM to 2 PM), therefore are no exceptions to this. Whereas birth at sunrise means 1st house Sun, Lord Ram has Sun in first house so Lord’s time of incarnation as 12:30 PM doesn’t holds good. Also, in Lord Rama's chart the Sun is in Aries, and the dates for Sun in Aries are fixed, which means the same each year on April 14th to May 13th. So how did the January 10 date come up?
निश्चय ही गोस्वामीजी ने विभिन्न स्रोतों पर विचार करके जन्म का संकेत किया है; लेकिन केवल चैत्र माह, शुक्ल पक्ष, नवमी तिथि और अभिजीत नक्षत्र के आधार पर वास्तविक तिथि बताना बहुत कठिन है।

प्राचीन कवि ने वह वर्णन दिया जो अंधकार की संपूर्ण उलझन में मार्गदर्शक प्रकाश का काम करता है। उन्होंने स्पष्ट टिप्पणी की है कि 12 महीने बीतने पर जब राजा दशरथ ने पुत्रेष्ठि यज्ञ किया; चैत्र माह में, शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि, मिथुन राशि में पोलक्स तारे के निकट चंद्रमा अर्थात पुनर्वसु नक्षत्र, लग्न कर्क राशि का था, जब पांच ग्रह अपनी राशि में थे, बृहस्पति चंद्रमा के साथ था, उस समय भगवान ने अवतार लिया था (वाल्मीकि रामायण) .

लेकिन फिर भी यह समझना बहुत मुश्किल था कि कौन से पाँच ग्रह अपनी शीर्ष अवस्था में हैं। विभिन्न विद्वानों द्वारा निर्दिष्ट विभिन्न स्थितियों पर विचार करते हुए श्री भटनागर ने क्रमशः मेष, मकर, तुला, कर्क और मीन राशि में मौजूद होने के लिए सूर्य, मंगल, शनि, बृहस्पति, शुक्र जैसे पांच ग्रहों का चयन किया, मैं इसे आगे के कारणों के साथ निर्दिष्ट करने का प्रयास करूंगा। . हाल ही में विकसित शक्तिशाली तारामंडल सॉफ्टवेयर का उपयोग करके, यह पाया जा सकता है कि भगवान राम की जन्म तिथि के लिए रामायण में वर्णित ग्रहों की स्थिति दोपहर लगभग 12.30 बजे आकाश में हुई थी। 10 जनवरी 5114 ई.पू.

यद्यपि यह रामायण में दी गई गणनाओं के अनुसार भगवान राम के अस्तित्व का सत्यापन प्रदान करता है, फिर भी इस बात की बहुत अधिक संभावना है कि उनके जन्म के दिन और वर्ष का समय तारामंडल सॉफ्टवेयर द्वारा बताए गए समय से भिन्न हो सकता है। लेकिन वैदिक ज्योतिष के अनुसार भगवान राम के जन्म की गणना 10 जनवरी 5114 ईसा पूर्व - राम का जन्म दिवस, दोपहर 12.30 बजे की गणना सही नहीं हो सकती है और इसके एक से अधिक कारण हैं। उनकी उदीयमान राशि या लग्न कर्क है। वह मेष राशि को दसवें घर में रखता है, और मेष राशि में उसका सूर्य है। किसी भी जन्म कुंडली में सूर्य की स्थिति जन्म के दिन का समय बताती है। दसवें घर में सूर्य का अर्थ है दोपहर के समय जन्म (लगभग सुबह 11 बजे से दोपहर 2 बजे तक), इसलिए इसका कोई अपवाद नहीं है। जबकि सूर्योदय के समय जन्म का अर्थ प्रथम भाव में सूर्य है, भगवान राम का सूर्य पहले भाव में है, इसलिए भगवान के अवतार का समय दोपहर 12:30 बजे उपयुक्त नहीं है। इसके अलावा, भगवान राम की कुंडली में सूर्य मेष राशि में है, और सूर्य के मेष राशि में रहने की तारीखें निश्चित हैं, जिसका मतलब है कि हर साल 14 अप्रैल से 13 मई तक एक ही तारीख होती है। तो फिर 10 जनवरी की तारीख कैसे आई?

These two astrological corrections seemingly imply that there must be a difference in what the planetarium software suggests to the reality. This also corroborates why we who follow the Vedic calendar to celebrate Lord Rama's appearance in April-May each year. So the traditional date appears accurate. Now let us move further in the discussion regarding the correct DOB and why those five planets were chosen to be in their aphelion.

Some people feel that the appearance of Lord Rama took place many thousands or even millions of years earlier, in the Treta-yuga. The Bhagavata Purana clearly states that Lord Rama became king during Treta yuga. We have been in Kali-yuga for 5000 years. Before this was Dvapara-yuga which lasts 864,000 years. Before that was Treta-yuga, which lasts over 432, 000 years. Thus, according to this, the existence of Lord Rama had to have been many thousands of years ago. And if Lord Rama appeared in one of the previous Treta-yugas, it would certainly indicate that Lord Rama appeared several million years ago. And this is the point where we need to look at Vayu purana.
इन दो ज्योतिषीय सुधारों से प्रतीत होता है कि तारामंडल सॉफ्टवेयर वास्तविकता को जो बताता है उसमें अंतर होना चाहिए। यह इस बात की भी पुष्टि करता है कि वैदिक कैलेंडर का पालन करने वाले हम लोग हर साल अप्रैल-मई में भगवान राम के प्रकट होने का जश्न क्यों मनाते हैं। इसलिए पारंपरिक तिथि सटीक प्रतीत होती है। आइए अब हम सही जन्मतिथि के बारे में चर्चा में आगे बढ़ें और उन पांच ग्रहों को उनके नक्षत्र में क्यों चुना गया।

कुछ लोगों का मानना है कि भगवान राम का आविर्भाव कई हजार या लाखों वर्ष पहले त्रेता युग में हुआ था। भागवत पुराण में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि भगवान राम त्रेता युग के दौरान राजा बने थे। हम 5000 वर्षों से कलियुग में हैं। इससे पहले द्वापर-युग था जो 864,000 वर्षों तक चलता है। उससे पहले त्रेता-युग था, जो 432,000 वर्षों से अधिक समय तक चलता है। इस प्रकार इसके अनुसार भगवान राम का अस्तित्व कई हजार वर्ष पूर्व रहा होगा। और यदि भगवान राम पिछले त्रेता-युग में से किसी एक में प्रकट हुए थे, तो यह निश्चित रूप से संकेत देगा कि भगवान राम कई मिलियन वर्ष पहले प्रकट हुए थे। और यही वह बिंदु है जहां हमें वायु पुराण को देखने की जरूरत है।

In the Vayu Purana there is a description about Ravan's life. It explains that when Ravan's credits of austerities began to decline, he met Lord Rama, the son of Dasarath, in a battle wherein Ravana and his followers were killed in the 24th Tretayuga. The Roman transliteration of the Sanskrit verse is:

Tretayuge chaturvinshe ravanastapasah kshayat
Ramam Dasharathim prapya saganah kshayamiyavan

There are 1000 Treta-yugas in one day of Brahma, and it is calculated that we are presently in the 28th cycle of the four yugas (called divya-yugas, which is a cycle of the four yugas, Satya-yuga, Treta-yuga, Dvapara-yuga, and then Kali-yuga) of Vaivasvata Manu, who is the seventh Manu in the series of 14 Manu rulers who exist in one kalpa or day of Brahma. Each Manu is considered to live for 71 such yug cycles. So, without getting too complicated about things, from the 24th Treta-yuga to the present age of this Kali-yuga, there is obviously a difference of millions of years when Lord Rama manifested here on earth. Of course, very few people may believe this, as this is how our Vedic Literature deals with phenomenal lengths of time. (Hopefully would try to write an article on Vedic time conception in future).

As discussed ancient poet told that five planets were in their climax state, Jupiter was with moon, is the correct guiding function, but still we need to know which five planets were there at that time. It is said that Lord ruled for around 11000 years this is because of the five planets according to general myth, but reality is that all five planets were actually influenced by him, but due to their position according to conventions of astrology they provided influence in his life too. Mars caused troubles in his life’s domestic arena this is one point so we need to consider mars as a candidate. Due to Pollux star of Gemini constellation, Jupiter influence remained for four years. After that Saturn’s influenced his life till age of 19 years, but still mercury, Dragon and its tail’s condition is very intriguing. Because of mercury he had to go to exile; which ended in year 41st of his life, this makes us assume that Mercury in 2nd house, Dragon’s Tail with Venus in 12th house and Dragon’s mouth to be in sixth house. Summing all these conditions we get final results as follows:
1. Sun in Aries
2. Saturn in Libra.
3. Jupiter in Cancer
4. Venus in Pisces
5. Mars in Capricorn
6. Lunar month of Chaitra
7. 9th day after New Moon (Navami Tithi, Shukla Paksh)
8. Moon near Punarvasu Nakshatra (Pollux star in Gemini constellation)
9. Cancer as Lagna (Cancer constellation rising in the east)
10. Jupiter above the horizon; so Lord’s chart can be said to be as of this type.



Also if we further consider Indian mathematician and astrologer’s conception regarding position of planets and stars it is said that Big Dipper visit each sign for 2250 years, Neptune for 14 years, Saturn for 2 and half years. Like this Sun visits each sign for one month, Jupiter for one year. Computing in this aspect along with position of five planets in their aphelion Lord Rama’s Date of birth can be deduced as 18 million 558 thousand and 112 years ago, this also goes in line with Vayu puran’s declaration...
वायु पुराण में रावण के जीवन के बारे में वर्णन मिलता है। यह बताता है कि जब रावण की तपस्या का श्रेय कम होने लगा, तो वह 24वें त्रेतायुग में एक युद्ध में दशरथ के पुत्र भगवान राम से मिला, जिसमें रावण और उसके अनुयायी मारे गए। संस्कृत श्लोक का रोमन लिप्यंतरण है:

त्रेतायुगे चतुर्विनशे रावणस्तपसः क्षयत्
रामं दाशरथिं प्राप्य सगणः क्षयमियावन्

ब्रह्मा के एक दिन में 1000 त्रेता-युग होते हैं, और यह गणना की जाती है कि हम वर्तमान में चार युगों के 28वें चक्र में हैं (जिन्हें दिव्य-युग कहा जाता है, जो चार युगों, सत्य-युग, त्रेता-युग का एक चक्र है) , द्वापर-युग, और फिर कलियुग) वैवस्वत मनु का, जो ब्रह्मा के एक कल्प या दिन में मौजूद 14 मनु शासकों की श्रृंखला में सातवें मनु हैं। प्रत्येक मनु को ऐसे 71 युग चक्रों तक जीवित माना जाता है। तो, चीजों के बारे में अधिक जटिल हुए बिना, 24वें त्रेता-युग से लेकर इस कलियुग के वर्तमान युग तक, स्पष्ट रूप से लाखों वर्षों का अंतर है जब भगवान राम पृथ्वी पर प्रकट हुए थे। बेशक, बहुत कम लोग इस पर विश्वास कर सकते हैं, क्योंकि इसी तरह से हमारा वैदिक साहित्य समय की अभूतपूर्व लंबाई से संबंधित है। (उम्मीद है कि भविष्य में वैदिक काल की अवधारणा पर एक लेख लिखने का प्रयास करूंगा)।

जैसा कि चर्चा की गई है, प्राचीन कवि ने बताया था कि पाँच ग्रह अपनी चरम अवस्था में थे, बृहस्पति चंद्रमा के साथ था, यह सही मार्गदर्शक कार्य है, लेकिन फिर भी हमें यह जानना होगा कि उस समय कौन से पाँच ग्रह थे। ऐसा कहा जाता है कि भगवान ने लगभग 11000 वर्षों तक शासन किया, ऐसा सामान्य मिथक के अनुसार पांच ग्रहों के कारण था, लेकिन वास्तविकता यह है कि सभी पांच ग्रह वास्तव में उनसे प्रभावित थे, लेकिन ज्योतिष की परंपराओं के अनुसार उनकी स्थिति के कारण उन्होंने उन पर प्रभाव डाला। जीवन भी. मंगल ने उनके जीवन के घरेलू क्षेत्र में परेशानियां पैदा कीं, यह एक बिंदु है इसलिए हमें मंगल को एक उम्मीदवार के रूप में विचार करने की आवश्यकता है। मिथुन तारामंडल के पोलक्स तारे के कारण बृहस्पति का प्रभाव चार वर्ष तक रहा। उसके बाद 19 वर्ष की आयु तक उनके जीवन पर शनि का प्रभाव रहा, लेकिन फिर भी बुध, ड्रैगन और उसकी पूंछ की स्थिति बहुत दिलचस्प है। पारे के कारण उन्हें वनवास जाना पड़ा; जो उनके जीवन के 41वें वर्ष में समाप्त हुआ, इससे हम यह मान सकते हैं कि बुध दूसरे घर में, ड्रैगन की पूंछ 12वें घर में शुक्र के साथ और ड्रैगन का मुंह छठे घर में होगा। इन सभी स्थितियों का योग करने पर हमें अंतिम परिणाम इस प्रकार मिलते हैं:
1. मेष राशि में सूर्य
2. तुला राशि में शनि.
3. बृहस्पति कर्क राशि में
4. शुक्र मीन राशि में
5. मंगल मकर राशि में
6. चैत्र का चन्द्र मास
7. अमावस्या के बाद 9वां दिन (नवमी तिथि, शुक्ल पक्ष)
8. पुनर्वसु नक्षत्र के निकट चंद्रमा (मिथुन नक्षत्र में पोलक्स तारा)
9. लग्न के रूप में कर्क (कर्क नक्षत्र पूर्व में उदय हो रहा है)
10. क्षितिज के ऊपर बृहस्पति; इसलिए भगवान का चार्ट इस प्रकार का कहा जा सकता है।


इसके अलावा यदि हम ग्रहों और तारों की स्थिति के संबंध में भारतीय गणितज्ञ और ज्योतिषी की अवधारणा पर विचार करें तो यह कहा जाता है कि बिग डिपर 2250 वर्षों तक प्रत्येक राशि का भ्रमण करता है, नेपच्यून 14 वर्षों तक, शनि ढाई वर्षों तक। जैसे सूर्य प्रत्येक राशि पर एक माह तक भ्रमण करता है, बृहस्पति एक वर्ष तक। इस पहलू में पांच ग्रहों की स्थिति के साथ गणना करने पर भगवान राम की जन्मतिथि 18 मिलियन 558 हजार 112 वर्ष पहले निकाली जा सकती है, यह भी वायु पुराण की घोषणा के अनुरूप है...


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क्या है रामसेतु और इस पर क्या है पूरा विवाद, जानिए 10 बातें
नई दिल्ली, लाइव हिन्दुस्तान टीम। | Published By: Rajesh  Wed, 13 Dec 2017
भारत और श्रीलंका को जोड़नेवाले रामसेतु जिसे दुनिया एडम्स ब्रिज के नाम से जानती है उस पर अमेरिका में एक चैनल की तरफ से डॉक्यूमेंट्री दिखाए जाने और वहां के वैज्ञानिकों की तरफ से नासा तस्वीर का विश्लेषण कर इसे मानव निर्मित बताने के बाद यह एक बार फिर से राष्ट्रीय सुर्खियों में आ गया है। रामसेतु भारत के दक्षिण-पूर्व स्थित तमिलनाडु के रामेश्वर द्वीप और श्रीलंका के पूर्वोत्तर में मन्नार द्वीप के बीच चूने की उथली चट्टानों की एक चेन है। इस पुल को भारत में राम सेतु के नाम से जाना जाता है। आइये जानते हैं रामसेतु के बारे में दस खास बातें और क्या है विवाद-
1-    श्रीलंका के मन्नार द्वीप से भारत के रामेश्वरम तक चट्टानों की जिस चेन को रामसेतु कहा जाता है दुनिया में एडम्स ब्रिज (आदम का पुल) नाम से जाना जाता है।
2-    इस पुल की लंबाई 30 मील यानि 48 किलोमीटर है। यह ढांचा मन्नार की खाड़ी और पाक जलडमरू मध्य को एक दूसरे से अलग करता है।
3-    इस इलाक में समुद्र काफी उथला है। समुद्र में इन चट्टानों की गहराई सिर्फ 3 फुट से लेकर 30 फुट के बीच है।
4-    अनेक जगहों पर यह सूखी और कई जगहों पर उथली है जिसके चलते जहाजों की आवाजाही मुमकिन नहीं है।
5-    इसके बारे में कहा जाता है कि 15वीं शताब्दी में इस ढांचे पर चलकर रामेश्वर से मन्नार द्वीप तक जाया जा सकता था।
6-    लेकिन, तूफानों ने समुद्र को कुछ और गहरा किया और 1480 ईस्वी में यह चक्रवात के चलते टूट गया।
7-    साल 2005 में भारत सरकार ने सेतुसमुद्रम परियोजना का ऐलान किया था। इसके तहत एडम्स ब्रिज के कुछ इलाकों को हरना कर समुद्री जहाजों के लायक बनाए जाने की योजना थी। इसके लिए कुछ चट्टों को तोड़ना जरुरी था।
8-    माना जा रहा है कि सेतु समुद्रम परियोजना पूरी होने के बाद सारे अंतरराष्ट्रीय जहाज कोलंबो बंदरगाह का लंबा मार्ग छोड़कर इसी नहर से गुजरेंगें, अनुमान है कि 2000 या इससे अधिक जलपोत प्रतिवर्ष इस नहर का उपयोग करेंगे।
9-    नासा से मिली तस्वीर का हवाला देकर दावा किया जाता है कि अवशेष मानवनिर्मित पुल के हैं। नासा का कहना है , ' इमेज हमारी है लेकिन यह विश्लेषण हमने नहीं दिया। रिमोट इमेज से नहीं कहा जा सकता कि यह मानवनिर्मित पुल है।
10-    अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा ने कहा है कि उसके खगोल वैज्ञानिकों द्वारा ली गई तस्वीरें यह साबित नहीं करतीं कि हिंदू ग्रंथ रामायण में वर्णित भगवान राम द्वारा निर्मित रामसेतु का वास्तविक रूप में कोई अस्तित्व रहा है।

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अमेरिकी भू-वैज्ञानिकों का दावा: भारत-श्रीलंका के बीच बना 'रामसेतु' है मानव निर्मित, जानें और भी रहस्य
नई दिल्ली, लाइव हिन्दुस्तान टीम।13 Dec 2017 Published By: Rajesh

अमेरिका में साइंस चैनल के पर एक शो ने एक बार फिर से पौराणिक ग्रंथ में जिस रामायण में जिस रामसेतु का जिक्र है उसे चर्चा के केन्द्र में लाकर रख दिया। इसमें यह दावा किया गया है कि यह ढांचा वास्तव में  मानव निर्मित है ना कि प्राकृतिक। चैनल की तरफ से जारी किए गए प्रोमो में यह बताया गया है कि दुनिया जिसे एडम्स ब्रिज के नाम से जानती है वह मानव निर्मित है।
“हिन्दू के पौराणिक ग्रंथों में जिस पुल का जिक्र है और जो भारत-श्रीलंका को जोड़ता है क्या वह सच है? भू-वैज्ञानिकों का विश्लेषण तो कुछ ऐसा ही बताता है।” एनसिएंट लैंड ब्रिज नाम के एक प्रोमो में ऐसा दावा किया गया है। ये डॉक्यूमेंट्री आज शाम साढ़े सात बजे डिस्कवरी कम्युनिशेन के साइंस चैनल पर अमेरिका में दिखाया जाएगा।
इसमें अमेरिकन भू-वैज्ञानिकों ने कहा है कि भारत में रामेश्वरम के नजदीक पामबन द्वीप से श्रीलंका के मन्नार द्वीप तक लंबी बनी पत्थरों की यह श्रृंखला मानव निर्मित है। इस प्रोमो को करीब ग्यारह लाख से ज्यादा लोग देख चुके हैं जिसे साइंस चैनल ने करीब 17 घंटे पर अपने सोशल मीडिया पर शेयर किया है। भू-वैज्ञानिक एरिन अर्गेईलियान ने इसका विश्लेषण करते हुए कहा है कि तस्वीर में दिख रहा पत्थर ‘सैंडबार’(बालू) पर है जो आसपास से पानी के साथ बहकर आया है। जबकि, डॉक्टर एलन लेस्टर का ऐसा मानना है कि यहां पर सैंड पहले से मौजूद था जबकि उसके ऊपर पत्थर बाद में लाकर रखा गया है।
सूचना प्रसारण मंत्री स्मृति ईरानी ने भी इस वीडियो को जय श्री राम कैप्शन के साथ री-ट्वीट किया है।
भारत के दक्षिण-पूर्वी तट के किनारे तमिलनाडु स्थित रामेश्वरम द्वीप और श्रीलंका के उत्तर-पश्चिमी तट मन्नार द्वीप के बीच चूना पत्थर से बनी एक श्रृंखला आज भी एक रहस्य बना हुआ है। हिन्दू पौराणिक कथाओं में इसे रामसेतु पुल बताया गया है। साइंस चैनल ने व्हाट ‘ऑन अर्थ एनसिएंट लैंड एंड ब्रिज’ नाम से एक डॉक्यूमेंट्री बनाई है। जिसमें भू-वैज्ञानिकों की तरफ से यह विश्लेषण इस ढांचे के बारे में किया गया है। आइये बताते है इस पुल को लेकर अमेरिकी भू-वैज्ञानिकों ने क्या निष्कर्ष निकाला है और उनका क्या दावा है-
1-    भू-वैज्ञानिकों ने नासा की तरफ से ली गई तस्वीर को प्राकृतिक बताया है।
2-    वैज्ञानिकों ने अपने विश्लेषण में यह पाया कि 30 मील लंबी यह श्रृंखला चेन मानव निर्मित है।
3-    अपने विश्लेषण में भू-वैज्ञानिकों को यह पता चला कि जिस सैंड पर यह पत्थर रखा हुआ है ये कहीं दूर जगह से यहां पर लाया गया है।
4-    उनके मुताबिक, यहां पर लाया गए पत्थर करीब 7 हजार साल पुराना है।
5-    जबकि, जिस सैंड के ऊपर यह पत्थर रखा गया है वह मजह सिर्फ चार हजार साल पुराना है।
6-    हालांकि, कुछ जानकार इसे पांच हजार साल पुराना मानते हैं जिस दौरान रामायण में इसे बनाने की बातें कही गई है।
जाहिर है, वैज्ञानिकों के विश्लेषण के बाद पत्थर के बारे में रहस्य और गहरा गया है कि आखिर ये पत्थर यहां पर कैसे पहुंचा और कौन लेकर आया है।
रामसेतु पुल के बारे में क्या है मान्यताएं
दरअसल, वाल्मीकि रामायण में यह कहा या है कि जब राम ने सीता को लंका के राजा रावण के चंगुल से छुड़ाने के लिए लंका द्वीप पर चढ़ाई की, तो उस वक्त उन्होंने सभी देवताओं का आह्वान किया और युद्ध में विजय के लिए आशीर्वाद मांगा था। इनमें समुद्र के देवता वरुण भी थे। वरुण से उन्होंने समुद्र पार जाने के लिए रास्ता मांगा था। जब वरुण ने उनकी प्रार्थना नहीं सुनी तो उन्होंने समुद्र को सुखाने के लिए धनुष उठाया।
डरे हुए वरुण ने क्षमायाचना करते हुए उन्हें बताया कि श्रीराम की सेना में मौजूद नल-नील नाम के वानर जिस पत्थर पर उनका नाम लिखकर समुद्र में डाल देंगे, वह तैर जाएगा और इस तरह श्री राम की सेना समुद्र पर पुल बनाकर उसे पार कर सकेगी। यही हुआ भी। इसके बाद राम की सेना ने लंका के रास्ते में पुल बनाया और लंका पर हमला कर विजय हासिल की।

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