अखंड भारत



भारत की अखंडता का आधार भूगोल से ज्यादा संस्कृति और इतिहास में है। खंडित भारत में एक सशक्त, तेजोमयी राष्ट्र जीवन खड़ा करके ही अखंड भारत के लक्ष्य की ओर बढ़ना संभव होगा। भारत की सांस्कृतिक चेतना में और विविधता में एकता का प्रत्यक्ष दृश्य खड़ा करना होगा। इन सब प्रयासों को जोड़ने वाला महा व्यक्तित्व कहां से प्रगट होगा, इसी की सभी को प्रतीक्षा है।

विघटन की इस शृंखला का प्रारम्भ
अफ़ग़ानिस्तान (1876) भूटान (1906)श्रीलंका (1935)पाकिस्तान(1947)बंग्लादेश (1971)
अखण्ड भारत भारत के प्राचीन समय के अविभाजित स्वरूप को कहा जाता है। प्राचीन काल में भारत बहुत विस्तृत था जिसमें अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, बर्मा, थाइलैंड शामिल थे। कुछ देश जहाँ बहुत पहले के समय में अलग हो चुके थे वहीं पाकिस्तान, बांग्लादेश आदि अंग्रेजों से स्वतन्त्रता के काल में अलग हुये।

अखण्ड भारत वाक्यांश का उपयोग हिन्दू राष्ट्रवादी संगठनों शिवसेना राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तथा विश्व हिन्दू परिषद आदि द्वारा भारत की हिन्दू राष्ट्र के रूप में अवधारणा के लिये भी किया जाता है।

इन संगठनों द्वारा अखण्ड भारत के मानचित्र में पाकिस्तान, बांग्लादेश आदि को भी दिखाया जाता है। ये संगठन भारत से अलग हुये इन देशों को दोबारा भारत में मिलाकर अविभाजित भारत का निर्माण चाहते हैं। अखण्ड भारत का निर्माण सैद्धान्तिक रूप से संगठन (हिन्दू एकता) तथा 'शुद्धि से जुड़ा है।

संघ इस विचार का हमेशा मुखर वाहक रहा है। संघ के विचारक हो०वे० शेषाद्री की पुस्तक The Tragic Story of Partition में अखण्ड भारत के विचार की महत्ता पर बल दिया गया है। संघ के समाचारपत्र ऑर्गनाइजर में सरसंघचालक मोहन भागवत का वक्तव्य प्रकाशित हुआ जिसमें कहा गया कि केवल अखण्ड भारत तथा सम्पूर्ण समाज ही असली स्वतन्त्रता ला सकते हैं। वर्तमान परिस्थितियों में अखण्ड भारत के सम्‍बन्‍ध में यह कहना उचित होगा कि वर्तमान परिस्थियों में अखण्‍ड भारत की परिकल्‍पना केवल कल्‍पना मात्र है, ऐसा सम्‍भव प्रतीत नहीं होता है। शिवसेना के सुप्रिमो व हिन्दु ह्रदय सम्राट कहे जाने वाले बाल ठाकरे ने अखण्ड भारत कि स्थापना मे पहले बचे हुए भारत को हिन्दु राष्ट्र घोषित करने के लिए शिवसेना को चुनाव मे उतारा हैं।

अखंड भारत में आज के अफगानिस्थान, पाकिस्तान , तिब्बत, भूटान, म्यांमार, बांग्लादेश, श्रीलंका आते है केवल इतना ही नहीं कालांतर में भारत का साम्राज्य में आज के मलेशिया, फिलीपीन्स, थाईलैंड, दक्षिण वियतनाम, कंबोडिया ,इंडोनेशिया आदि में सम्मिलित थे। सन् 1875 तक (अफगानिस्थान, पाकिस्तान , तिब्बत, भूटान, म्यांमार, बांग्लादेश, श्रीलंका) भारत का ही हिस्सा थे लेकिन 1857 की क्रांति के पश्चात ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिल गई थी उन्हें लगा की इतने बड़े भू-भाग का दोहन एक केंद्र से करना संभव नहीं है एवं फुट डालो एवं शासन करो की नीति अपनायी एवं भारत को अनेकानेक छोटे-छोटे हिस्सो में बाँट दिया केवल इतना ही नहीं यह भी सुनिश्चित किया की कालांतर में भारतवर्ष पुनः अखंड न बन सके।

विघटन की इस शृंखला का प्रारम्भ
अफ़ग़ानिस्तान (1876)
भूटान (1906)
श्रीलंका (1935)
पाकिस्तान(1947)
बंग्लादेश (1971)

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अखंड भारत के 10 रहस्य जानकर रह जाएंगे हैरान
अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'|
अखंड भारत का इतिहास लिखने में कई तरह की बातों को शामिल किया जा सकता है। सर्व प्रथम तो उसकी निष्पक्षता के लिए जरूरी है पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर उसके बारे में बगैर किसी भेदभाव के सोचा जाए, जो प्रत्येक भारतीय का कर्तव्य हो सकता है और जो किसी भी जाति, धर्म और समुदाय से हो सकता है।
भारतीय हो तो यह स्वीकारना जरूरी है कि हम भी भारत के इतिहास के हिस्से हैं। हमारे पूर्वज ब्रह्मा, मनु, ययाति, राम और कृष्ण ही थे। इतिहास में उन लोगों के इतिहास का उल्लेख हो जिन्होंने इस देश को बनाया, कुछ खोजा, अविष्कार किए या जिन्होंने देश और दुनिया को कुछ दिया। जिन्होंने इस देश की एकता और अखंडता को कायम रखा। यहां प्रस्तुत है अखंड भारत के बारे में संक्षिप्त बातें।

''सुदर्शनं प्रवक्ष्यामि द्वीपं तु कुरुनन्दन। परिमण्डलो महाराज द्वीपोऽसौ चक्रसंस्थितः॥
यथा हि पुरुषः पश्येदादर्शे मुखमात्मनः। एवं सुदर्शनद्वीपो दृश्यते चन्द्रमण्डले॥ द्विरंशे पिप्पलस्तत्र द्विरंशे च शशो महान्।।- (वेदव्यास, भीष्म पर्व, महाभारत)

हिन्दी अर्थ : हे कुरुनन्दन! सुदर्शन नामक यह द्वीप चक्र की भांति गोलाकार स्थित है, जैसे पुरुष दर्पण में अपना मुख देखता है, उसी प्रकार यह द्वीप चन्द्रमण्डल में दिखाई देता है। इसके दो अंशों में पिप्पल और दो अंशों में महान शश (खरगोश) दिखाई देता है।

अर्थात : दो अंशों में पिप्पल का अर्थ पीपल के दो पत्तों और दो अंशों में शश अर्थात खरगोश की आकृति के समान दिखाई देता है।

आप कागज पर पीपल के दो पत्तों और दो खरगोश की आकृति बनाइए और फिर उसे उल्टा करके देखिए, आपको धरती का मानचित्र दिखाई देखा। यह श्लोक 5 हजार वर्ष पूर्व लिखा गया था। इसका मतलब लोगों ने चंद्रमा पर जाकर इस धरती को देखा होगा तभी वह बताने में सक्षम हुआ होगा कि ऊपर से समुद्र को छोड़कर धरती कहां-कहां नजर आती है और किस तरह की।

पहले संपूर्ण हिन्दू धर्म जम्बू द्वीप पर शासन करता था। फिर उसका शासन घटकर भारतवर्ष तक सीमित हो गया। फिर कुरुओं और पुरुओं की लड़ाई के बाद आर्यावर्त नामक एक नए क्षेत्र का जन्म हुआ जिसमें आज के हिन्दुस्थान के कुछ हिस्से, संपूर्ण पाकिस्तान और संपूर्ण अफगानिस्तान का क्षेत्र था। लेकिन मध्यकाल में लगातार आक्रमण, धर्मांतरण और युद्ध के चलते अब घटते-घटते सिर्फ हिन्दुस्तान बचा है।

यह कहना सही नहीं होगा कि पहले हिन्दुस्थान का नाम भारतवर्ष था और उसके भी पूर्व जम्बू द्वीप था। कहना यह चाहिए कि आज जिसका नाम हिन्दुस्तान है वह भारतवर्ष का एक टुकड़ा मात्र है। जिसे आर्यावर्त कहते हैं वह भी भारतवर्ष का एक हिस्साभर है और जिसे भारतवर्ष कहते हैं वह तो जम्बू द्वीप का एक हिस्सा है मात्र है। जम्बू द्वीप में पहले देव-असुर और फिर बहुत बाद में कुरुवंश और पुरुवंश की लड़ाई और विचारधाराओं के टकराव के चलते यह जम्बू द्वीप कई भागों में बंटता चला गया।

1-पहला रहस्य...
एंजिया बना भारत : वैज्ञानिकों की मानें तो लगभग 19 करोड़ साल पहले सभी द्वीपराष्ट्र एक थे और चारों ओर समुद्र था। यूरोप, अफ्रीका, एशिया, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका सभी एक दूसरे से जुड़े हुए थे। अर्थात धरती का सिर्फ एक टुकड़ा ही समुद्र से उभरा हुआ था।
इस इकट्ठे द्वीप के चारों ओर समुद्र था और इसे वैज्ञानिकों ने नाम दिया- 'एंजिया'। सवाल उठता है कि यह द्वीप कहां था और इस द्वीप पर क्या-क्या था। क्या एंजिया ही बना बाद में एशिया?

वैज्ञानिक खोजों से पता चला कि हिमालय और उसके आसपास के क्षेत्र प्राचीन धरती हैं। पुराणों में कैलाश पर्वत को धरती का केंद्र माना है। वैज्ञानिकों अनुसार तिब्बत सबसे पुरानी धरती है। तिब्बत को वेद और पुराणों में त्रिविष्टप कहा है जहां सबसे प्राचीन मानव रहते थे।

प्रारंभिक वैदिक काल में कैलाश पर्वत धरती का मुख्य केंद्र हुआ करता था। भौगोलिक दृष्टि से यह स्थान सबसे महत्वपूर्ण है। यह हिमालय का भी केंद्र है। हिमालय की पर्वत श्रेणियां, वादियां, घाटियां और जंगली जानवर प्राचीनतम माने जाते हैं। हालांकि भूवैज्ञानिकों के एक शोध अनुसार आरावली की पहाड़ियां विश्व की सबसे प्राचीन पहाड़ियां मानी गई है, लेकिन तब वह जल में डुबी हुई थी।

इस तरह बनें द्वीप या महाद्वीप : बीसवीं सदी के दौरान, भूवैज्ञानिकों ने प्लेट टेक्टॉनिक सिद्धांत को स्वीकार किया, जिसके अनुसार महाद्वीप पृथ्वी के ऊपरी सतह पर सरकते हैं, जिसे कॉन्टिनेन्टल ड्रीफ्ट कहते हैं।

पृथ्वी की सतह पर सात बड़े और कई छोटे टेक्टॉनिक प्लेट होते हैं और यही टेक्टॉनिक प्लेट्स एक दूसरे से दूर होते हैं, टूटकर अलग होते हैं, जो समय बीतते महाद्वीप बन जाते हैं। इसी कारण से, भूवैज्ञानिक इतिहास से पहले और आज के महाद्वीपों से पहले कई दूसरे महाद्वीप हुआ करते थे।

भूवैज्ञानिक मानते हैं कि महाद्वीपों के निर्माण में ज्वालामुखी, भूकंप के अलावा धरती की घूर्णन और परिक्रमण गति का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

पृथ्वी के अक्ष पर चक्रण को घूर्णन कहते हैं। पृथ्वी पश्चिम से पूर्व दिशा में घूमती है और एक घूर्णन पूरा करने में 23 घण्टे, 56 मिनट और 4.091 सेकेण्ड का समय लेती है। इसी से दिन व रात होते हैं।

पृथ्वी सूर्य के चारों ओर अंडाकार पथ पर 365 दिन, 5 घण्टे, 48 मिनट व 45.51 सेकेण्ड में एक चक्कर पूरा करती है, जिसे उसकी परिक्रमण गति कहते हैं। पृथ्वी की इस गति की वजह से ऋतु परिवर्तन होता है।

2_दूसरा रहस्य....
प्राचीनकाल में संपूर्ण धरती में सिर्फ एशिया ही रहने लायक सबसे उत्तम जगह माना गया था। इस एशिया को हिन्दू पुराणों में जम्बूद्वीप कहा गया था। हालांकि इसमें योरप के कुछ हिस्से भी शामिल है।
हिन्दू शब्द की उत्पत्ति इंदु शब्द से हुई है यह इंदू ही इंडस हो गया। इंदु शब्द चंद्रमा का पर्यायवाची शब्द है। आर्य किसी जाती का नहीं बल्कि वैदिक विचारधारा मानने वाले लोगों का नाम था जिसमें सभी जाती के लोग सम्मलित थे जैसे दास, वानर, किन्नर, द्रविड़, सुर, असुर आदि। जो लोग यह कहते हैं कि आर्य बाहर से आए थे उनका ज्ञान सही नहीं है या कि उनमें नफरत और साजिश की भावना है।

''हिमालयात् समारभ्य यावत् इन्दु सरोवरम्। तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थान प्रचक्षते॥- (बृहस्पति आगम)

अर्थात : हिमालय से प्रारंभ होकर इन्दु सरोवर (हिन्द महासागर) तक यह देव निर्मित देश हिन्दुस्थान कहलाता है। इसका मतलब हिन्दुस्थान चंद्रगुप्त मौर्य के काल में था लेकिन आज जिसे हिन्दुस्थान कहते हैं वह क्या है? दरअसल यह हिन्दुस्थान का एक हिस्सा मात्र है।

प्राचीन काल में संपूर्ण जम्बू द्वीप पर ही आर्य विचारधारा के लोगों का शासन था। जम्बू द्वीप के आसपास 6 द्वीप थे- प्लक्ष, शाल्मली, कुश, क्रौंच, शाक एवं पुष्कर। जम्बू द्वीप धरती के मध्य में स्थित है और इसके मध्य में इलावृत नामक देश है। इस इलावृत के मध्य में स्थित है सुमेरू पर्वत।

इलावृत के दक्षिण में कैलाश पर्वत के पास भारतवर्ष, पश्चिम में केतुमाल (ईरान के तेहरान से रूस के मॉस्को तक), पूर्व में हरिवर्ष (जावा से चीन तक का क्षेत्र) और भद्राश्चवर्ष (रूस), उत्तर में रम्यकवर्ष (रूस), हिरण्यमयवर्ष (रूस) और उत्तकुरुवर्ष (रूस) नामक देश हैं।

मिस्र, सऊदी अरब, ईरान, इराक, इसराइल, कजाकिस्तान, रूस, मंगोलिया, चीन, बर्मा, इंडोनेशिया, मलेशिया, जावा, सुमात्रा, हिन्दुस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, पाकिस्तान और अफगानिस्तान का संपूर्ण क्षेत्र जम्बू द्वीप था।

3_ तीसरा रहस्य...
धरती के सात द्वीप : पुराणों और वेदों के अनुसार धरती के सात द्वीप थे- जम्बू, प्लक्ष, शाल्मली, कुश, क्रौंच, शाक एवं पुष्कर। इसमें से जम्बू द्वीप सभी के बीचोबीच स्थित है।
जम्बूद्वीप चित्र साभार यूट्यूब
'जम्बूद्वीप: समस्तानामेतेषां मध्य संस्थित:,
भारतं प्रथमं वर्षं तत: किंपुरुषं स्मृतम्‌,
हरिवर्षं तथैवान्यन्‌मेरोर्दक्षिणतो द्विज।
रम्यकं चोत्तरं वर्षं तस्यैवानुहिरण्यम्‌,
उत्तरा: कुरवश्चैव यथा वै भारतं तथा।
नव साहस्त्रमेकैकमेतेषां द्विजसत्तम्‌,
इलावृतं च तन्मध्ये सौवर्णो मेरुरुच्छित:।
भद्राश्चं पूर्वतो मेरो: केतुमालं च पश्चिमे।
एकादश शतायामा: पादपागिरिकेतव: जंबूद्वीपस्य सांजबूर्नाम हेतुर्महामुने।- (विष्णु पुराण)

जम्बू द्वीप का वर्णन : जम्बू द्वीप को बाहर से लाख योजन वाले खारे पानी के वलयाकार समुद्र ने चारों ओर से घेरा हुआ है। जम्बू द्वीप का विस्तार एक लाख योजन है। जम्बू (जामुन) नामक वृक्ष की इस द्वीप पर अधिकता के कारण इस द्वीप का नाम जम्बू द्वीप रखा गया था।

जम्बू द्वीप के 9 खंड थे : इलावृत, भद्राश्व, किंपुरुष, भारत, हरि, केतुमाल, रम्यक, कुरु और हिरण्यमय। इनमें भारतवर्ष ही मृत्युलोक है, शेष देवलोक हैं। इसके चतुर्दिक लवण सागर है। इस संपूर्ण नौ खंड में इसराइल से चीन और रूस से भारतवर्ष का क्षेत्र आता है।

जम्बू द्वीप में प्रमुख रूप से 6 पर्वत थे : हिमवान, हेमकूट, निषध, नील, श्वेत और श्रृंगवान।

4_चौथा रहस्य...
भारत बना हिन्दुस्तान : पहले संपूर्ण हिन्दू जाति जम्बू द्वीप पर शासन करती थी। फिर उसका शासन घटकर भारतवर्ष तक सीमित हो गया। फिर कुरुओं और पुरुओं की लड़ाई के बाद आर्यावर्त नामक एक नए क्षेत्र का जन्म हुआ जिसमें आज के हिन्दुस्थान के कुछ हिस्से, संपूर्ण पाकिस्तान और संपूर्ण अफगानिस्तान का क्षेत्र था। लेकिन लगातार आक्रमण, धर्मांतरण और युद्ध के चलते अब घटते-घटते सिर्फ हिन्दुस्तान बचा है।
यह कहना सही नहीं होगा कि पहले हिन्दुस्थान का नाम भारतवर्ष था और उसके भी पूर्व जम्बू द्वीप था। कहना यह चाहिए कि आज जिसका नाम हिन्दुस्तान है वह भारतवर्ष का एक टुकड़ा मात्र है। जिसे आर्यावर्त कहते हैं वह भी भारतवर्ष का एक हिस्साभर है और जिसे भारतवर्ष कहते हैं वह तो जम्बू द्वीप का एक हिस्सा है मात्र है। जम्बू द्वीप में पहले देव-असुर और फिर बहुत बाद में कुरुवंश और पुरुवंश की लड़ाई और विचारधाराओं के टकराव के चलते यह जम्बू द्वीप कई भागों में बंटता चला गया।

भारतवर्ष का वर्णन : समुद्र के उत्तर तथा हिमालय के दक्षिण में भारतवर्ष स्थित है। इसका विस्तार 9 हजार योजन है। यह स्वर्ग अपवर्ग प्राप्त कराने वाली कर्मभूमि है।

इसमें 7 कुल पर्वत हैं : महेन्द्र, मलय, सह्य, शुक्तिमान, ऋक्ष, विंध्य और पारियात्र।

भारतवर्ष के 9 खंड : इन्द्रद्वीप, कसेरु, ताम्रपर्ण, गभस्तिमान, नागद्वीप, सौम्य, गन्धर्व और वारुण तथा यह समुद्र से घिरा हुआ द्वीप उनमें नौवां है।

मुख्य नदियां : शतद्रू, चंद्रभागा, वेद, स्मृति, नर्मदा, सुरसा, तापी, पयोष्णी, निर्विन्ध्या, गोदावरी, भीमरथी, कृष्णवेणी, कृतमाला, ताम्रपर्णी, त्रिसामा, आर्यकुल्या, ऋषिकुल्या, कुमारी आदि नदियां जिनकी सहस्रों शाखाएं और उपनदियां हैं।

तट के निवासी : इन नदियों के तटों पर कुरु, पांचाल, पुण्ड्र, कलिंग, मगध, दक्षिणात्य, अपरान्तदेशवासी, सौराष्ट्रगण, तहा शूर, आभीर एवं अर्बुदगण, कारूष, मालव, पारियात्र, सौवीर, सन्धव, हूण, शाल्व, कोशल, मद्र, आराम, अम्बष्ठ और पारसी गण रहते हैं। इसके पूर्वी भाग में किरात और पश्चिमी भाग में यवन बसे हुए हैं।

5_पांचवां रहस्य...
किसने बसाया भारतवर्ष : त्रेतायुग में अर्थात भगवान राम के काल के हजारों वर्ष पूर्व प्रथम मनु स्वायंभुव मनु के पौत्र और प्रियव्रत के पुत्र ने इस भारतवर्ष को बसाया था, तब इसका नाम कुछ और था।
वायु पुराण के अनुसार महाराज प्रियव्रत का अपना कोई पुत्र नहीं था तो उन्होंने अपनी पुत्री के पुत्र अग्नीन्ध्र को गोद ले लिया था जिसका लड़का नाभि था। नाभि की एक पत्नी मेरू देवी से जो पुत्र पैदा हुआ उसका नाम ऋषभ था। इसी ऋषभ के पुत्र भरत थे तथा इन्हीं भरत के नाम पर इस देश का नाम 'भारतवर्ष' पड़ा। हालांकि कुछ लोग मानते हैं कि राम के कुल में पूर्व में जो भरत हुए उनके नाम पर भारतवर्ष नाम पड़ा। यहां बता दें कि पुरुवंश के राजा दुष्यंत और शकुन्तला के पुत्र भरत के नाम पर भारतवर्ष नहीं पड़ा।

इस भूमि का चयन करने का कारण था कि प्राचीनकाल में जम्बू द्वीप ही एकमात्र ऐसा द्वीप था, जहां रहने के लिए उचित वातारवण था और उसमें भी भारतवर्ष की जलवायु सबसे उत्तम थी। यहीं विवस्ता नदी के पास स्वायंभुव मनु और उनकी पत्नी शतरूपा निवास करते थे।

राजा प्रियव्रत ने अपनी पुत्री के 10 पुत्रों में से 7 को संपूर्ण धरती के 7 महाद्वीपों का राजा बनाया दिया था और अग्नीन्ध्र को जम्बू द्वीप का राजा बना दिया था। इस प्रकार राजा भरत ने जो क्षेत्र अपने पुत्र सुमति को दिया वह भारतवर्ष कहलाया। भारतवर्ष अर्थात भरत राजा का क्षे‍त्र।

सप्तद्वीपपरिक्रान्तं जम्बूदीपं निबोधत।
अग्नीध्रं ज्येष्ठदायादं कन्यापुत्रं महाबलम।।
प्रियव्रतोअभ्यषिञ्चतं जम्बूद्वीपेश्वरं नृपम्।।
तस्य पुत्रा बभूवुर्हि प्रजापतिसमौजस:।
ज्येष्ठो नाभिरिति ख्यातस्तस्य किम्पुरूषोअनुज:।।
नाभेर्हि सर्गं वक्ष्यामि हिमाह्व तन्निबोधत। (वायु 31-37, 38)

जब भी मुंडन, विवाह आदि मंगल कार्यों में मंत्र पड़े जाते हैं, तो उसमें संकल्प की शुरुआत में इसका जिक्र आता है:

।।जम्बू द्वीपे भारतखंडे आर्याव्रत देशांतर्गते….अमुक...।

* इनमें जम्बू द्वीप आज के यूरेशिया के लिए प्रयुक्त किया गया है। इस जम्बू द्वीप में भारत खण्ड अर्थात भरत का क्षेत्र अर्थात ‘भारतवर्ष’ स्थित है, जो कि आर्यावर्त कहलाता है।

।।हिमालयं दक्षिणं वर्षं भरताय न्यवेदयत्। तस्मात्तद्भारतं वर्ष तस्य नाम्ना बिदुर्बुधा:.....।।

* हिमालय पर्वत से दक्षिण का वर्ष अर्थात क्षेत्र भारतवर्ष है।

जम्बू द्वीप का विस्तार
* जम्बू दीप : सम्पूर्ण एशिया
* भारतवर्ष : पारस (ईरान), अफगानिस्तान, पाकिस्तान, हिन्दुस्थान, नेपाल, तिब्बत, भूटान, म्यांमार, श्रीलंका, मालद्वीप, थाईलैंड, मलेशिया, इंडोनेशिया, कम्बोडिया, वियतनाम, लाओस तक भारतवर्ष।

6_छठा रहस्य...
आर्यावर्त : बहुत से लोग भारतवर्ष को ही आर्यावर्त मानते हैं जबकि यह भारत का एक हिस्सा मात्र था। वेदों में उत्तरी भारत को आर्यावर्त कहा गया है। आर्यावर्त का अर्थ आर्यों का निवास स्थान। आर्यभूमि का विस्तार काबुल की कुंभा नदी से भारत की गंगा नदी तक था। हालांकि हर काल में आर्यावर्त का क्षेत्रफल अलग-अलग रहा।
चित्र साभार यूट्यूब
ऋग्वेद में आर्यों के निवास स्थान को 'सप्तसिंधु' प्रदेश कहा गया है। ऋग्वेद के नदीसूक्त (10/75) में आर्यनिवास में प्रवाहित होने वाली नदियों का वर्णन मिलता है, जो मुख्‍य हैं:- कुभा (काबुल नदी), क्रुगु (कुर्रम), गोमती (गोमल), सिंधु, परुष्णी (रावी), शुतुद्री (सतलज), वितस्ता (झेलम), सरस्वती, यमुना तथा गंगा। उक्त संपूर्ण नदियों के आसपास और इसके विस्तार क्षेत्र तक आर्य रहते थे।

वेद और महाभारत को छोड़कर अन्य ग्रंथों में जो आर्यावर्त का वर्णन मिलता है वह भ्रम पैदा करने वाला है, क्योंकि आर्यों का निवास स्थान हर काल में फैलता और सिकुड़ता गया था इसलिए उसकी सीमा क्षेत्र का निर्धारण अलग-अलग ग्रंथों में अलग-अलग मिलता है। मूलत: जो प्रारंभ में था वही सत्य है।

7_ सातवां रहस्य...
हिन्दुस्थान बनने की कहानी महाभारत काल में ही लिख दी गई थी जबकि महाभारत हुई थी। महाभारत के बाद वेदों को मानने वाले लोग हमेशा से यवन और मलेच्छों से त्रस्त रहते थे। महाभारत काल के बाद भारतवर्ष पूर्णत: बिखर गया था। सत्ता का कोई ठोस केंद्र नहीं था। ऐसे में खंड-खंड हो चला आर्यखंड एक अराजक खंड बनकर रह गया था।
महाभारत के बाद : मलेच्छ और यवन लगातार आर्यों पर आक्रमण करते रहते थे। हालांकि ये दोनों ही आर्यों के कुल से ही थे। आर्यों में भरत, दास, दस्यु और अन्य जाति के लोग थे। गौरतलब है कि आर्य किसी जाति का नाम नहीं बल्कि वेदों के अनुसार जीवन-यापन करने वाले लोगों का नाम है। वेदों में उल्लेखित पंचनंद अर्थात पांच कुल के लोग ही यदु, कुरु, पुरु, द्रुहु और अनु थे। इन्हीं में से द्रहु और अनु के कुल के लोग ही आगे चलकर मलेच्छ और यवन कहलाए।

बौद्धकाल में विचारधाराओं की लड़ाई अपने चरम पर चली गई। ऐसे में चाणक्य की बुद्धि से चंद्रगुप्त मौर्य ने एक बार फिर भारतवर्ष को फिर से एकजुट कर एकछत्र के नीचे ला खड़ा किया। बाद में सम्राट अशोक तक राज्य अच्छे से चला। अशोक के बाद भारत का पतन होना शुरू हुआ।

नए धर्म और संस्कृति के अस्तित्व में आने के बाद भारत पर पुन: आक्रमण का दौर शुरू हुआ और फिर कब उसके हाथ से सिंगापुर, मलेशिया, ईरान, अफगानिस्तान छूट गए पता नहीं चला और उसके बाद मध्यकाल में संपूर्ण क्षे‍त्र में हिन्दुओं का धर्मांतरण किया जाने लगा और अंतत: बच गया हिन्दुस्तान। धर्मांतरित हिन्दुओं ने ही भारतवर्ष को आपस में बांट लिया।

8_ आठवां रहस्य...
महाभारत अनुसार में प्राग्ज्योतिष (असम), किंपुरुष (नेपाल), त्रिविष्टप (तिब्बत), हरिवर्ष (चीन), कश्मीर, अभिसार (राजौरी), दार्द, हूण हुंजा, अम्बिस्ट आम्ब, पख्तू, कैकेय, गंधार, कम्बोज, वाल्हीक बलख, शिवि शिवस्थान-सीस्टान-सारा बलूच क्षेत्र, सिंध, सौवीर सौराष्ट्र समेत सिंध का निचला क्षेत्र दंडक महाराष्ट्र सुरभिपट्टन मैसूर, चोल, आंध्र, कलिंग तथा सिंहल सहित लगभग 200 जनपद महाभारत में वर्णित हैं, जो कि पूर्णतया आर्य थे या आर्य संस्कृति व भाषा से प्रभावित थे। इनमें से आभीर अहीर, तंवर, कंबोज, यवन, शिना, काक, पणि, चुलूक चालुक्य, सरोस्ट सरोटे, कक्कड़, खोखर, चिन्धा चिन्धड़, समेरा, कोकन, जांगल, शक, पुण्ड्र, ओड्र, मालव, क्षुद्रक, योधेय जोहिया, शूर, तक्षक व लोहड़ आदि आर्य खापें विशेष उल्लेखनीय हैं।
बाद में महाभारत के अनुसार भारत को मुख्‍यत: 16 जनपदों में स्थापित किया गया। जैन 'हरिवंश पुराण' में प्राचीन भारत में 18 महाराज्य थे। पालि साहित्य के प्राचीनतम ग्रंथ 'अंगुत्तरनिकाय' में भगवान बुद्ध से पहले 16 महाजनपदों का नामोल्लेख मिलता है। इन 16 जनपदों में से एक जनपद का नाम कंबोज था। बौद्ध ग्रंथों के अनुसार कंबोज जनपद सम्राट अशोक महान का सीमावर्ती प्रांत था। भारतीय जनपदों में राज्याणि, दोरज्जाणि और गणरायाणि शासन था अर्थात राजा का, दो राजाओं का और जनता का शासन था।

*राम के काल 5114 ईसा पूर्व में नौ प्रमुख महाजनपद थे जिसके अंतर्गत उप जनपद होते थे। ये नौ इस प्रकार हैं- 1.मगध, 2.अंग (बिहार), 3.अवन्ति (उज्जैन), 4.अनूप (नर्मदा तट पर महिष्मती), 5.सूरसेन (मथुरा), 6.धनीप (राजस्थान), 7.पांडय (तमिल), 8. विन्ध्य (मध्यप्रदेश) और 9.मलय (मलावार)।

*16 महाजनपदों के नाम : 1. कुरु, 2. पंचाल, 3. शूरसेन, 4. वत्स, 5. कोशल, 6. मल्ल, 7. काशी, 8. अंग, 9. मगध, 10. वृज्जि, 11. चे‍दि, 12. मत्स्य, 13. अश्मक, 14. अवंति, 15. गांधार और 16. कंबोज। उक्त 16 महाजनपदों के अंतर्गत छोटे जनपद भी होते थे।

9_ नौवां रहस्य...
वेद, रामायण, महाभारत, गीता और कृष्ण के समय के संबंध में मेक्समूलर, बेबेर, लुडविग, हो-ज्मान, विंटरनिट्स फॉन श्राडर आदि सभी विदेशी विद्वानों ने भ्रांतियां फैलाईं और उनके द्वारा किए गए भ्रामक प्रचार का हमारे यहां के इतिहासकारों ने भी अनुसरण किया और भगवान बुद्ध के पूर्व के संपूर्ण काल को इतिहास से काटकर रख दिया। भगवान बुद्ध के पूर्व और बौद्ध काल में भी अखंड भारत में 16 जनपदों के आर्य राजाओं का ही राज था। प्राचीन भारत का अधिकतर इतिहास महाभारत में दर्ज है, जिसमें 16 महान राजाओं का जिक्र है।
नि‍म्नलिखित समय सारणी अनुमानित है:-
1.ब्रह्म काल : (सृष्टि उत्पत्ति से प्रजापति ब्रह्मा की उत्पत्ति तक)
2.ब्रह्मा काल : (प्रजापति ब्रह्मा, विष्णु और शिव का काल)
2.स्वायम्भुव मनु काल : (प्रथम मानव का काल 9057 ईसा पूर्व से प्रारंभ)
4.वैवस्वत मनु काल : (6673 ईसा पूर्व से) :
5.राम का काल : (5114 ईस्वी पूर्व से 3000 ईस्वी पूर्व के बीच) :
6.कृष्ण का काल : (3112 ईस्वी पूर्व से 2000 ईस्वी पूर्व के बीच) :
7.सिंधु घाटी सभ्यता का काल : (3300-1700 ईस्वी पूर्व के बीच) :
8.हड़प्पा काल : (1700-1300 ईस्वी पूर्व के बीच) :
9.आर्य सभ्यता का काल : (1500-500 ईस्वी पूर्व के बीच) :
10.बौद्ध काल : (563-320 ईस्वी पूर्व के बीच) :
11,मौर्य काल : (321 से 184 ईस्वी पूर्व के बीच) :
12.गुप्तकाल : (240 ईस्वी से 800 ईस्वी तक के बीच) :
13.मध्यकाल : (600 ईस्वी से 1800 ईस्वी तक) :
14.अंग्रेजों का औपनिवेशिक काल : (1760-1947 ईस्वी पश्चात)
15. आजाद और विभाजित भारत का काल : (1947 से प्रारंभ)

एक समय था जबकि वेद संपूर्ण मानव जाति के ग्रंथ थे, लेकिन आज वे सिर्फ हिन्दुओं के हैं। सवाल किसी धर्मग्रंथ का नहीं, ऐसे बहुत से ग्रंथ और प्रमाण हैं, जो ईसा पूर्व के भारतीय और मानव इतिहास की गौरवगाथा का वर्णन करते हैं।

10_ दसवां रहस्य...

जल प्रलय ने बदला धरती का इतिहास : जल प्रलय ने धरती की भाषा, संस्कृति, सभ्यता, धर्म, समाज और परंपरा की कहानी को नए सिरे से लिखा। इस जल प्रलय के कारण राजा मनु को एक नाव बनाना पड़ी और फिर वे उस नाव में लगभग 6 माह तक रहे और अंत में वे तिब्बत की धरती पर उतरे। वहीं से वे जैसे जैसे जल उतरने लगा उन्होने पुन: भारत की भूमि को रहने लायक बनाया।

राजा मनु को ही हजरत नूह माना जाता हैं? माना जाता है कि नूह ही यहूदी, ईसाई और इस्लाम के पैगंबर हैं। इस पर शोध भी हुए हैं। जल प्रलय की ऐतिहासिक घटना संसार की सभी सभ्‍यताओं में पाई जाती है। बदलती भाषा और लम्बे कालखंड के चलते इस घटना में कोई खास रद्दोबदल नहीं हुआ है। मनु की यह कहानी यहूदी, ईसाई और इस्लाम में ‘हजरत नूह की नौका’ नाम से वर्णित की जाती है।

इंडोनेशिया, जावा, मलेशिया, श्रीलंका आदि द्वीपों के लोगों ने अपनी लोक परम्पराओं में गीतों के माध्यम से इस घटना को आज भी जीवंत बनाए रखा है। इसी तरह धर्मग्रंथों से अलग भी इस घटना को हमें सभी देशों की लोक परम्पराओं के माध्यम से जानने को मिलता है।

नूह की कहानी- उस वक्त नूह की उम्र छह सौ वर्ष थी जब यहोवा (ईश्वर) ने उनसे कहा कि तू एक-जोड़ी सभी तरह के प्राणी समेत अपने सारे घराने को लेकर कश्ती पर सवार हो जा, क्योंकि मैं पृथ्वी पर जल प्रलय लाने वाला हूँ।

सात दिन के उपरान्त प्रलय का जल पृथ्वी पर आने लगा। धीरे-धीरे जल पृथ्वी पर अत्यन्त बढ़ गया। यहाँ तक कि सारी धरती पर जितने बड़े-बड़े पहाड़ थे, सब डूब गए। डूब गए वे सभी जो कश्ती से बाहर रह गए थे, इसलिए वे सब पृथ्वी पर से मिट गए। केवल हजरत नूह और जितने उनके साथ जहाज में थे, वे ही बच गए। जल ने पृथ्वी पर एक सौ पचास दिन तक पहाड़ को डुबोए रखा। फिर धीरे-धीरे जल उतरा तब पुन: धरती प्रकट हुई और कश्ती में जो बच गए थे उन्ही से दुनिया पुन: आबाद हो गई।

मनु की कहानी- द्रविड़ देश के राजर्षि सत्यव्रत (वैवस्वत मनु) के समक्ष भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप में प्रकट होकर कहा कि आज से सातवें दिन भूमि जल प्रलय के समुद्र में डूब जाएगी। तब तक एक नौका बनवा लो। समस्‍त प्राणियों के सूक्ष्‍म शरीर तथा सब प्रकार के बीज लेकर सप्‍तर्षियों के साथ उस नौका पर चढ़ जाना। प्रचंड आँधी के कारण जब नाव डगमगाने लगेगी तब मैं मत्स्य रूप में बचाऊंगा।

तुम लोग नाव को मेरे सींग से बांध देना। तब प्रलय के अंत तक मैं तुम्‍हारी नाव खींचता रहूंगा। उस समय भगवान मत्स्य ने नौका को हिमालय की चोटी ‘नौकाबंध’ से बांध दिया। भगवान ने प्रलय समाप्‍त होने पर वेद का ज्ञान वापस दिया। राजा सत्‍यव्रत ज्ञान-विज्ञान से युक्‍त हो वैवस्‍वत मनु कहलाए। उक्त नौका में जो बच गए थे उन्हीं से संसार में जीवन चला।

तौरात, इंजिल, बाइबिल और कुरआन से पूर्व ही मत्स्य पुराण लिखा गया था, जिसमें उक्त कथा का उल्लेख मिलता है। यह मानव जाति का इतिहास है न कि किसी धर्म विशेष का।

अंतिम पन्ने पर जानिए कुछ खास...




भारत देश का प्राचीन नाम 'अजनाभ खंड' खंड था। अजनाभ खंड का अर्थ ब्रह्मा की नाभि या नाभि से उत्पन्न। बाद में इसके नाम बदलते रहे।
लेकिन वेद-पुराण और अन्य धर्मग्रंथों के साथ वैज्ञानिक शोधों का अध्ययन करें तो पता चलता है कि मनुष्य व अन्य जीव-जंतुओं की वर्तमान आदि सृष्टि (उत्पत्ति) हिमालय के आसपास की भूमि पर हुई थी जिसमें तिब्बत को इसलिए महत्व दिया गया क्योंकि यह दुनिया का सर्वाधिक ऊँचा पठार है। हिमालय के पास होने के कारण पूर्व में भारत वर्ष को हिमवर्ष भी कहा जाता था।

वेद-पुराणों में तिब्बत को त्रिविष्टप कहा गया है। महाभारत के महाप्रस्थानिक पर्व में स्वर्गारोहण में स्पष्ट किया गया है कि तिब्बत हिमालय के उस राज्य को पुकारा जाता था जिसमें नंदनकानन नामक देवराज इंद्र का देश था। इससे सिद्ध होता है कि इंद्र स्वर्ग में नहीं धरती पर ही हिमालय के इलाके में रहते थे। वहीं शिव और अन्य देवता भी रहते थे।

पूर्व में यह धरती जल प्रलय के कारण जल से ढँक गई थी। कैलाश, गोरी-शंकर की चोटी तक पानी चढ़ गया था। इससे यह सिद्ध होता है कि संपूर्ण धरती ही जलमग्न हो गई थी, लेकिन विद्वानों में इस विषय को लेकर मतभेद हैं। कुछ का मानना है कि कहीं-कहीं धरती जलमग्न नहीं हुई थी। पुराणों में उल्लेख भी है कि जलप्रलय के समय ओंकारेश्वर स्थित मार्कंडेय ऋषि का आश्रम जल से अछूता रहा।

कई माह तक वैवस्वत मनु (इन्हें श्रद्धादेव भी कहा जाता है) द्वारा नाव में ही गुजारने के बाद उनकी नाव गोरी-शंकर के शिखर से होते हुए नीचे उतरी। गोरी-शंकर जिसे एवरेस्ट की चोटी कहा जाता है। दुनिया में इससे ऊँचा, बर्फ से ढँका हुआ और ठोस पहाड़ दूसरा नहीं है।

तिब्बत में धीरे-धीरे जनसंख्या वृद्धि और वातावरण में तेजी से होते परिवर्तन के कारण वैवस्वत मनु की संतानों ने अलग-अलग भूमि की ओर रुख करना शुरू किया। विज्ञान मानता है कि पहले सभी द्वीप इकट्ठे थे। अर्थात अमेरिका द्वीप इधर अफ्रीका और उधर चीन तथा रूस से जुड़ा हुआ था। अफ्रीका भारत से जुड़ा हुआ था। धरती की घूर्णन गति और भू-गर्भीय परिवर्तन के कारण धरती द्वीपों में बँट गई।

इस जुड़ी हुई धरती पर ही हिमालय की निम्न श्रेणियों को पार कर मनु की संतानें कम ऊँचाई वाले पहाड़ी विस्तारों में बसती गईं। फिर जैसे-जैसे समुद्र का जल स्तर घटता गया वे और भी मध्य भाग में आते गए। राजस्थान की रेगिस्तान इस बाद का सबूत है कि वहाँ पहले कभी समुद्र हुआ करता था। दक्षिण के इलाके तो जलप्रलय से जलमग्न ही थे। लेकिन बहुत काल के बाद धीरे-धीरे जैसे-जैसे समुद्र का जलस्तर घटा मनु का कुल पश्चिमी, पूर्वी और दक्षिणी मैदान और पहाड़ी प्रदेशों में फैल गए।

जो हिमालय के इधर फैलते गए उन्होंने ही अखंड भारत की सम्पूर्ण भूमि को ब्रह्मावर्त, ब्रह्मार्षिदेश, मध्यदेश, आर्यावर्त एवं भारतवर्ष आदि नाम दिए। जो इधर आए वे सभी मनुष्य आर्य कहलाने लगे। आर्य एक गुणवाचक शब्द है जिसका सीधा-सा अर्थ है श्रेष्ठ। यही लोग साथ में वेद लेकर आए थे। इसी से यह धारणा प्रचलित हुई कि देवभूमि से वेद धरती पर उतरे। स्वर्ग से गंगा को उतारा गया आदि अनेक धारणाएँ।

इन आर्यों के ही कई गुट अलग-अलग झुंडों में पूरी धरती पर फैल गए और वहाँ बस कर भाँति-भाँति के धर्म और संस्कृति आदि को जन्म दिया। मनु की संतानें ही आर्य-अनार्य में बँटकर धरती पर फैल गईं। पूर्व में यह सभी देव-दानव कहलाती थीं। इस धरती पर आज जो भी मनुष्य हैं वे सभी वैवस्वत मनु की ही संतानें हैं इस विषय में विद्वानों में मतभेद हैं। यह अभी शोध का विषय है।

भारतीय पुराणकार सृष्टि का इतिहास कल्प में और सृष्टि में मानव उत्पत्ति व उत्थान का इतिहास मवन्तरों में वर्णित करते हैं। और उसके पश्चात् मन्वन्तरों का इतिहास युग-युगान्तरों में बताते हैं।

'प्राचीन ग्रन्थों में मानव इतिहास को पाँच कल्पों में बाँटा गया है। (1). हमत् कल्प 1 लाख 9 हजार 8 सौ वर्ष विक्रमीय पूर्व से आरम्भ होकर 85800 वर्ष पूर्व तक, (2). हिरण्य गर्भ कल्प 85800 विक्रमीय पूर्व से 61800 वर्ष पूर्व तक, ब्राह्म कल्प 60800 विक्रमीय पूर्व से 37800 वर्ष पूर्व तक, (3). ब्राह्म कल्प 60800 विक्रमीय पूर्व से 37800 वर्ष पूर्व तक, (4). पाद्म कल्प 37800 विक्रम पूर्व से 13800 वर्ष पूर्व तक और (5). वराह कल्प 13800 विक्रम पूर्व से आरम्भ होकर इस समय तक चल रहा है।

अब तक वराह कल्प के स्वायम्भु मनु, स्वरोचिष मनु, उत्तम मनु, तमास मनु, रेवत-मनु चाक्षुष मनु तथा वैवस्वत मनु के मन्वन्तर बीत चुके हैं और अब वैवस्वत तथा सावर्णि मनु की अन्तर्दशा चल रही है। सावर्णि मनु का आविर्भाव विक्रमी सम्वत प्रारम्भ होने से 5630 वर्ष पूर्व हुआ था।'--श्रीराम शर्मा आचार्य (गायत्री शक्ति पीठ)

गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड्स ने कल्प को समय का सर्वाधिक लम्बा मापन घोषित किया है।

त्रिविष्टप अर्थात तिब्बत या देवलोक से वैवस्वत मनु के नेतृत्व में प्रथम पीढ़ी के मानवों (देवों) का मेरु प्रदेश में अवतरण हुआ। वे देव स्वर्ग से अथवा अम्बर (आकाश) से पवित्र वेद पुस्तक भी साथ लाए थे। इसी से श्रुति और स्मृति की परम्परा चलती रही। वैवस्वत मनु के समय ही भगवान विष्णु का मत्स्य अवतार हुआ।

वैवस्वत मनु की शासन व्यवस्था में देवों में पाँच तरह के विभाजन थे: देव, दानव, यक्ष, किन्नर और गंधर्व। वैवस्वत मनु के दस पुत्र थे। इल, इक्ष्वाकु, कुशनाम, अरिष्ट, धृष्ट, नरिष्यन्त, करुष, महाबली, शर्याति और पृषध पुत्र थे। इसमें इक्ष्वाकु कुल का ही ज्यादा विस्तार हुआ। इक्ष्वाकु कुल में कई महान प्रतापी राजा, ऋषि, अरिहंत और भगवान हुए हैं।
इति।




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