अखण्ड भारत संकल्प दिवस : 14 अगस्त



अग्रेजों ने बहुत ही सुनियोजित तरीके से भारत का विभाजन किया और उसमें 14 अगस्त को पाकिस्तान को स्वतंत्रता देकर भारत को विभाजित किया, जिसे हम अपनी इच्छाशक्ति एवं सकल्पना से समाप्त कर पुनः पूर्ण भारत बनायेंगे

अखण्ड भारत महज सपना नहीं, श्रद्धा है, निष्ठा है. जिन आंखों ने भारत को भूमि से अधिक माता के रूप में देखा हो, जो स्वयं को इसका पुत्र मानता हो, जो प्रात: उठकर “समुद्रवसने देवी पर्वतस्तन मंडले, विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यम् पादस्पर्शं क्षमस्वमे. “कहकर उसकी रज को माथे से लगाता हो, वन्देमातरम् जिनका राष्ट्रघोष और राष्ट्रगान हो, ऐसे असंख्य अंत:करण मातृभूमि के विभाजन की वेदना को कैसे भूल सकते हैं, अखण्ड भारत के संकल्प को कैसे त्याग सकते हैं? किन्तु लक्ष्य के शिखर पर पहुंचने के लिये यथार्थ की कंकरीली-पथरीली, कहीं कांटे तो कहीं दलदल, कहीं गहरी खाई तो कहीं रपटीली चढ़ाई से होकर गुजरना ही होगा.

15 अगस्त को हमें आजादी मिली और वर्षों की परतंत्रता की रात समाप्त हो गयी. किन्तु स्वातंत्र्य के आनंद के साथ-साथ मातृभूमि के विभाजन का गहरा घाव भी सहन करना पड़ा. 1947 का विभाजन पहला और अन्तिम विभाजन नहीं है. भारत की सीमाओं का संकुचन उसके काफी पहले शुरू हो चुका था. सातवीं से नवीं शताब्दी तक लगभग ढाई सौ साल तक अकेले संघर्ष करके हिन्दू अफगानिस्तान इस्लाम के पेट में समा गया. हिमालय की गोद में बसे नेपाल, भूटान आदि जनपद अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण मुस्लिम विजय से बच गये. अपनी सांस्कृतिक अस्मिता की रक्षा के लिये उन्होंने राजनीतिक स्वतंत्रता का मार्ग अपनाया पर अब वह राजनीतिक स्वतंत्रता संस्कृति पर हावी हो गयी है. श्रीलंका पर पहले पुर्तगाल, फिर हॉलैंड और अन्त में अंग्रेजों ने राज्य किया और उसे भारत से पूरी तरह अलग कर दिया. किन्तु मुख्य प्रश्न तो भारत के सामने है. तेरह सौ वर्ष से भारत की धरती पर जो वैचारिक संघर्ष चल रहा था, उसी की परिणति 1947 के विभाजन में हुई. पाकिस्तानी टेलीविजन पर किसी ने ठीक ही कहा था कि जिस दिन आठवीं शताब्दी में पहले हिन्दू ने इस्लाम को कबूल किया, उसी दिन भारत विभाजन के बीज पड़ गये थे.

इसे तो स्वीकार करना ही होगा कि भारत का विभाजन हिन्दू-मुस्लिम आधार पर हुआ. पाकिस्तान ने अपने को इस्लामी देश घोषित किया. वहां से सभी हिन्दू-सिखों को बाहर खदेड़ दिया. अब वहां हिन्दू-सिख जनसंख्या लगभग शून्य है. भारतीय सेनाओं की सहायता से बंगलादेश स्वतंत्र राज्य बना. भारत के प्रति कृतज्ञतावश चार साल तक मुजीबुर्रहमान के जीवन काल में बंगलादेश ने स्वयं को पंथनिरपेक्ष राज्य कहा किन्तु एक दिन मुजीबुर्रहमान का कत्ल करके स्वयं को इस्लामी राज्य घोषित कर दिया. विभाजन के समय वहां रह गये हिन्दुओं की संख्या 34 प्रतिशत से घटकर अब 10 प्रतिशत से कम रह गई है और बंगलादेश भारत के विरुद्ध आतंकवादी गतिविधियों का मुख्य केन्द्र बन गया है. करोड़ों बंगलादेशी घुसपैठिये भारत की सुरक्षा के लिये भारी खतरा बन गये हैं.

विभाजन के पश्चात् खंडित भारत की अपनी स्थिति क्या है? ब्रिटिश संसदीय प्रणाली के अन्धानुकरण ने हिन्दू समाज को जाति, क्षेत्र और दल के आधार पर जड़मूल तक विभाजित कर दिया है. पूरा समाज भ्रष्टाचार की दलदल में आकंठ फंस गया है. हिन्दू समाज की बात करना साम्प्रदायिकता है और मुस्लिम कट्टरवाद व पृथकतावाद की हिमायत करना सेकुलरिज्म. अनेक छोटे-छोटे राजनीतिक दलों में बिखरा हिन्दू नेतृत्व सत्ता के कुछ टुकड़े पाने के लोभ में मुस्लिम वोटों को रिझाने में लगा है.

देश फिर से एक करने के लिये जिन कारणों से मनों में दरार पैदा होती है, उन कारणों को दूर करना आवश्यक है. यह आसान काम नहीं है. धार्मिक, राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय शक्तियां सभी बाधाओं के रूप में खड़ी हैं. लेकिन क्या मुसलमानों और हिन्दुओं में सांस्कृतिक एकता का कोई प्रवाह है? हिन्दुओं और मुसलमानों के पुरखे एक हैं, उनका वंश एक है. ये मुसलमान अरबी, तुर्की या इराकी नहीं हैं. हिन्दू एक जीवन-पद्धति है और इसे पूर्णत: त्यागना हिन्दू से मुसलमान बने आज के मुसलमानों के लिये भी संभव नहीं है.

सैन्य सामर्थ्य भारत के पास है. लेकिन क्या पाकिस्तान पर जीत से अखंड भारत बन सकता है? जब लोगों में मनोमिलन होता है, तभी राष्ट्र बनता है. अखंडता का मार्ग सांस्कृतिक है, न की सैन्य कार्रवाई या आक्रमण. देश का नेतृत्व करने वाले नेताओं के मन में इस संदर्भ में सुस्पष्ट धारणा आवश्यक है. भारत की अखंडता का आधार भूगोल से ज्यादा संस्कृति और इतिहास में है. खंडित भारत में एक सशक्त, एक्यबद्ध, तेजोमयी राष्ट्रजीवन खड़ा करके ही अखंड भारत के लक्ष्य की ओर बढ़ना संभव होगा.


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आज १४ अगस्त है.आज ही के दिन १४ अगस्त १९४७ को देश का विभाजन हुआ था और पाकिस्तान नाम से एक अलग देश का निर्माण हुआ था.पाकिस्तान आज के दिन अपना स्वतंत्रता दिवस मनाता है.१५ अगस्त १९४७ को भारत का स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है.इसी दिन महँ क्रन्तिकारी ,देशभक्त योगिराज मह्रिषी अरविन्द का जन्मदिन भी है.१५ अगस्त १९४७ को मह्रिषी अरविन्द ने कहा था की नियति ने इस भारत भूखंड को एक राष्ट्र के रूप में बनाया है. और ये विभाजन अस्थायी है.देश के लोगों को संकल्प लेना चाहिए की चाहे जैसे भी हो और चाहे कोई भी रास्ता अपनाना पड़े विभाजन समाप्त होंकर पुनः अखंड भारत का निर्माण होना चाहिए.इसीलिए देश में रा.स्व.स.द्वारा प्रति वर्ष १४ अगस्त को अखंड भारत दिवस मनाया जाता है.और देश को पुनः अखंड और सम्पूर्ण बनाने का संकल्प करोड़ों स्वयंसेवकों द्वारा देश भर में मनाया जाता है.
कुछ लोगों को अखंड भारत शब्द प्रयोग समझ नहीं आता है.लेकिन ये एक सर्व सामान्य जानकारी की बात है की पिछले लगभग बारह सौ वर्षों में भारतवर्ष या हिंदुस्तान की सीमायें लगातार सिकुड़ती गयी हैं.और जहाँ भी हिन्दुओं की आबादी घटी है वही भाग भारत से अलग हो गया है.राजनीतिक रूप से इस ”जम्बुद्वीप” क्षेत्र में अनेकों राज्य थे लेकिन उन सब में सांस्कृतिक रूप से एक ही राष्ट्र तत्व मौजूद था.लेकिन जिसेआज म्यांमार कहते हैं वो ब्रह्मदेश,बांग्लादेश,पाकिस्तान १९३७ से १९४७ के मध्य ही भारत से अलग हुए थे.और आज ये तीनों देश ही अस्थिरता के दौर से गुजर रहे हैं.और जब तक नियति द्वारा निर्धारित अखंडता को पुनः स्थापित नहीं किया जायेगा तब तक ये अशांति समाप्त नहीं होगी.इसके लिए जैसा की कुछ राजनीतिक नेता कहते हैं पहले भारत पाकिस्तान बांग्लादेश का एक महासंघ बनाने की दिशा में प्रयास होना चाहिए.उसके बाद अपने इतिहास का सबको बोध कराया जाना चाहिए.ताकि एक दुसरे के प्रति असहिष्णुता का जो वर्तमान स्वरुप है वो दूर हो सके.
अखंड भारत का संकल्प प्रति वर्ष दोहराना इसलिए भी आवश्यक है ताकि हमें ये याद रहे की हमें पुनः जुड़कर एक होना है.हमारे सामने यहूदी राष्ट्र इजराईल का उदहारण है.लगभग दो हज़ार वर्षों तक दुनिया के सत्तर देशों में विस्थापित जीवन बिताते हुए और हर प्रकार के अत्याचार और भेदभाव का शिकार बनने (भारत को छोड़कर) के बाद बीसवीं सदी के प्रारंभ में कुछ यहूदी नेताओं ने प्रतिवर्ष एक स्थान पर मिलने का क्रम प्रारंभ किया और अपने यहूदी राष्ट्र को पुनः स्थापित करने का संकल्प दोहराने का क्रम बनाया.उनका ये संकल्प लगभग आधी सदी से भी कम समय में पूरा हो गया और नवम्बर १९४७ में यहूदी राष्ट्र इजराईल का उदय हुआ.
अतः हम सब को आज १४ अगस्त को इस बात का संकल्प लेना होगा की इस प्राचीन राष्ट्र को पुनः अपना खोया हुआ गौरव प्राप्त कराने और एक संगठित,समृद्ध, शक्तिशाली सामर्थ्यवान राष्ट्र का लक्ष्य प्राप्त करने की दिशा में आगे बढ़ाना ही हमारी नियति है.जिसे अपने पुरुषार्थ से हमें प्राप्त करना है.

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