लोकदेवता बाबा रामदेव
राजस्थान के प्रसिद्ध लोकदेवता बाबा रामदेव की जयंती
राजस्थान के लोक देवता रामदेव जो की रामसा पीर के नाम से भी प्रसिद्ध है, की जयंती भाद्रपद शुक्ल दशमी को मनाई जाती है। मान्यता है की इस दिन बाबा रामदेव ने जीवित समाधि ली थी। यह समाधी स्थल राजस्थान के जैसलमेर जिले के पोकरण तहसील के रामदेवरा में स्तिथ है। 'रुणेचा' रामदेवरा का प्राचीन नाम है।
रामदेवजी राजस्थान के एक लोकदेवता हैं। > 15वीं शताब्दी के आरंभ में भारत में लूट-खसोट, छुआछूत, हिन्दू-मुस्लिम झगड़ों आदि के कारण स्थितियां बड़ी अराजक बनी हुई थीं। ऐसे विकट समय में पश्चिम राजस्थान के पोकरण नामक प्रसिद्ध नगर के पास रुणिचा नामक स्थान में तोमरवंशीय राजपूत और रुणिचा के शासक अजमलजी के घर भादौ शुक्ल पक्ष दूज के दिन विक्रम संवत् 1409 को बाबा रामदेव पीर अवतरित हुए।>
द्वारकानाथ ने राजा अजमलजी के घर अवतार लिया जिन्होंने लोक में व्याप्त अत्याचार, वैर-द्वेष, छुआछूत का विरोध कर अछूतोद्धार का सफल आंदोलन चलाया।
श्री रामदेवजी का जन्म संवत् 1409 में भाद्रपद मास की दूज को राजा अजमलजी के घर हुआ। उस समय सभी मंदिरों में घंटियां बजने लगीं। तेज प्रकाश से सारा नगर जगमगाने लगा। महल में जितना भी पानी था, वह दूध में बदल गया। महल के मुख्य द्वार से लेकर पालने तक कुमकुम के पैरों के पदचिन्ह बन गए। महल के मंदिर में रखा शंख स्वत: बज उठा। उसी समय राजा अजमलजी को भगवान द्वारकानाथ के दिए हुए वचन याद आए और एक बार पुन: द्वारकानाथ की जय बोली। इस प्रकार ने द्वारकानाथ ने राजा अजमलजी के घर अवतार लिया।
संवत् 1442 को रामदेवजी ने अपने हाथ से श्रीफल लेकर सब बड़े-बुजुर्गों को प्रणाम किया तथा सबने पत्र पुष्प चढ़ाकर रामदेवजी का हार्दिक तन-मन व श्रद्धा से अंतिम पूजन किया। रामदेवजी ने समाधि में खड़े होकर सबके प्रति अपने अंतिम उपदेश देते हुए कहा कि प्रतिमाह की शुक्ल पक्ष की दूज को पूजा-पाठ, भजन-कीर्तन करके पर्वोत्सव मनाना, रात्रि जागरण करना।
प्रतिवर्ष मेरे जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में तथा अंतर्ध्यान समाधि होने की स्मृति में मेरे समाधि स्तर पर मेला लगेगा। मेरे समाधि पूजन में भ्रांति व भेदभाव मत रखना। मैं सदैव अपने भक्तों के साथ रहूंगा। इस प्रकार श्री रामदेवजी महाराज ने समाधि ली।
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बाबा का अवतरण वि.सं. 1409 को भाद्रपद महीने के शुक्ल दूज के दिन तोमर वंशीय राजपूत तथा रूणीचा के शासक अजमालजी तंवर के घर हुआ। उनकी माता का नाम मैणादे था। बाबा का संबंध राजवंश से था लेकिन उन्होंने पूरा जीवन शोषित, गरीब और पिछड़े लोगों के बीच बिताया। उन्होंने रूढ़ियों तथा छूआछूत का विरोध किया। उनकी पत्नी का नाम नेतलदे, गुरु का नाम बालीनाथ, घोड़े का नाम लाली रा था।
बाबा रामदेव को सभी भक्त ‘जै बाबा री’ से जयकार करते हैं। रामदेव जी हिन्दू और मुस्लिम दोनों समुदाय के आराध्य देवता माने जाते हैं।हिन्दू उन्हें रामदेवजी और मुस्लिम उन्हें रामसा पीर कहते हैं। बाबा रामदेव को रामदेवजी, रामसा पीर, रामदेव पीर, आदि नामो से भी पुकारा जाता हैं। रामदेवजी द्वारिकाधीश (श्रीकृष्ण) के अवतार माने गये हैं। मान्यता है की बाबा रामदेव ने भाद्रपद शुक्ल दशमी को जीवित समाधि ली थी। हिन्दू-मुस्लिम एकता (सांप्रदायिक सौहार्द) के प्रतीक बाबा रामदेव के समाधि स्थल राजस्थान के जैसलमेर जिले के पोकरण (जहां भारत ने परमाणु परीक्षण किया था) तहसील के रामदेवरा (रुणिचा) में स्थित है।
रुणेचा’ रामदेवरा का प्राचीन नाम है। रुणिचा (जैसलमेर) में बाबा की समाधि के निकट ही उनका भव्य मंदिर है जो बीकानेर के महाराजा गंगासिंह द्वारा 1931 में बनवाया गया था। भारत और पाकिस्तान से लाखों की तादाद में श्रद्धालु (जातरू) उन्हें नमन करने आते हैं। इस मेले में राजस्थान के अलावा हरियाणा, मध्यप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र सहित विभिन्न प्रदेशों से लोग बाबा के दर्शन को आते हैं। जातरू पहले जोधपुर के मसूरिया पहाड़ी पर स्थित बाबा रामदेव मंदिर मे उनके गुरु बालीनाथ के दर्शन कर फिर रामदेवरा के लिए निकलते हैं।
कुछ विद्वान मानते हैं कि विक्रम संवत 1409 (1352 ईस्वी सन्) को उडूकासमीर (बाड़मेर) में बाबा का जन्म हुआ था और विक्रम संवत 1442 में उन्होंने रुणिचा में जीवित समाधि ले ली।
बाबा रामदेव जी की जन्मकथा
राजा अजमल जी द्वारिकानाथ के परमभक्त होते हुए भी उनको दु:ख था उनके कोई पुत्र नहीं था। दूसरा दु:ख था कि उनके ही राज्य में पड़ने वाले पोकरण से 3 मील उत्तर दिशा में भैरव राक्षस ने परेशान कर रखा था।
राजा अजमल जी पुत्र प्राप्ति के लिये दान पुण्य करते, साधू सन्तों को भोजन कराते, यज्ञ कराते, नित्य ही द्वारिकानाथ की पूजा करते थे। भैरव राक्षस को मारने का उपाय सोचते हुए राजा अजमल जी द्वारका जी पहुंचे। जहां अजमल जी को भगवान के साक्षात दर्शन हुए, राजा के आखों में आंसू देखकर भगवान में अपने पिताम्बर से आंसू पोछकर कहा, हे भक्तराज रो मत मैं तुम्हारा सारा दु:ख जानता हूँ। मैं तेरी भक्ति देखकर बहुत प्रसन्न हूँ।
भगवान की असीम कृपा प्राप्त कर राजा अजमल जी बोले हे प्रभु अगर आप मेरी भक्ति से प्रसन्न हैं तो मुझे आपके समान पुत्र चाहिये, आपको मेरे घर पुत्र बनकर आना पड़ेगा और राक्षस को मारकर धर्म की स्थापना करनी पड़ेगी।
भगवान श्रीकृष्ण ने इस पर उन्हें आश्वस्त किया कि वे स्वयं उनके घर अवतार लेंगे। बाबा रामदेव के रूप में जन्मे श्रीकृष्ण संवत् 1409 में भाद्र मास की दूज को पालने में खेलते अवतरित हुए और अपने चमत्कारों से लोगों की आस्था का केंद्र बनते गए। इसीलिए बाबा रामदेव को कृष्ण (द्वारिकानाथ) का अवतार माना जाता है।
बाबा रामदेव जी की परचा (चमत्कार )
बाबा रामदेव के पिता और राजा अजमलजी को द्वारकाद्धीश श्रीकृष्ण ने ये वरदान दिया था कि वो स्वंय उनके घर अवतरित होंगे। उन्होंने बचपन में ही अपनी लीलाएं दिखानी शुरू कर दीं। माता के आंचल से दूध खुद ही उनके मुहं में चला जाता था। पांच साल की उम्र में उन्होंने लकड़ी और कपड़े का घोड़ा आकाश में उड़ाया और आदू राक्षस को मार गिराया। बाद में भैरव राक्षस का भी वध किया। बोहिता राजसेठ की नाव को समुद्र के तूफान से निकालकर किनारे लगाया। स्वारकीया सखा को सांप ने डस लिया और वह मर गया, तब रामदेव जी ने उसका नाम पुकारा और वो जिंदा हो गया। पीर रामदेव ने अंधों को आंखें दी, कोढिय़ों का कोढ़ ठीक किया, लंगड़ों को चलाया। बाद में उन्होंने पोखरण राज्य अपनी बहन को दहेज में दे दिया और रूणिचा के राजा बने।
रामापीर बनने का रहस्य
बाबा रामदेवजी के चमत्कार की परीक्षा लेने मुल्तान से 5 पीर रुणिचा पहुंचे। इस दौरान रामदेवजी ने पीरों का जोरदार आवभगत की और ‘अतिथि देवो भव:‘ की भावना से उन्हें भोजन के लिए आमंत्रित किया। जब भोजन कराने के लिए बाबा ने पीरों के लिए जाजम लगाई तो पीरों ने कहा कि वे केवल अपने स्वयं के बर्तनों में ही भोजन करते हैं। दूसरों के बर्तनों में भोजन नहीं करते हैं यह उनका प्रण है। लेकिन सारे बर्तन मुल्तान में छोड़ आए हैं। आप यदि मुल्तान से वे कटोरे मंगवा सकते हैं तो मंगवा दीजिए, वर्ना हम आपके यहां भोजन नहीं कर सकते।
तब बाबा रामदेव ने उन्हें विनयपूर्वक कहा कि उनका भी प्रण है कि घर आए अतिथि को बिना भोजन कराए नहीं जाने देते। यदि आप अपने बर्तनों में ही खाना चाहते हैं तो ऐसा ही होगा। इस पर रामदेवजी ने अपना हाथ आगे बढ़ाते हुए उनके बर्तनों को उनके सामने रखकर चमत्कार कर दिया। इस चमत्कार (परचा) से वे पीर सकते में रह गए। तब उन पीरों ने कहा कि आप तो पीरों के पीर हैं।
इसे देखकर पांचों पीरों ने उन्हें दुनिया में रामशापीर, रामापीर, रामपुरी, हिंदवपीर के नाम से पहचाने जाने का आशिर्वाद दिया। इस तरह से पीरों ने भोजन किया और श्रीरामदेवजी को ‘पीर’ की पदवी मिली और रामदेवजी, रामापीर कहलाए।
समाधि के अंतिम वक़्त रामापीर ने दिया था ये उपदेश
श्रद्धालुओं में मान्यता है कि भाद्रपद शुक्ल दशमी को बाबा रामदेव ने जीवित समाधि ली थी। बताया जाता है कि रामदेव जी ने अपने हाथ से श्रीफल लेकर सब बड़े बुजुर्गों को प्रणाम किया और श्रद्धा से अन्तिम पूजन किया था। साथ ही रामदेव जी ने समाधी में खड़े होकर अन्तिम उपदेश देते हुए कहा कि प्रति माह की शुक्ल पक्ष की दूज को पूजा पाठ, भजन कीर्तन करके पर्वोत्सव मनाना, रात्रि जागरण करना। बाबा ने जाते-जाते अपने ग्रामीणों को कहा कि इस युग में न तो कोई ऊँचा हैं, और न ही कोई नीचा, सभी जन एक समान हैं। सभी को एक समान ही समझना और उनमे किसी भी प्रकार का भेद न करना। मेरे जन्मोत्सव पर समाधि स्थल पर मेला लगेगा। मेरे समाधि पूजन में भ्रान्ति व भेद भाव मत रखना। मैं सदैव अपने भक्तों के साथ रहुंगा।
श्री रामदेव जी की आरती
जय श्री रामदेव अवतारी, कलयुग में धणी आप पधारे ।
सतयुग में बाबा विष्णु बन आए, मधु-कटैभ को मार गिराये
ब्रह्मा जी को आप ऊबारो, देव श्री कहलाये ।। जय श्री रामदेव…
त्रेता में बाबा राम बन आए, रावण को मार गिराये
महाबीर की आप उबारो, पुरूषोत्तम कहलाये ।। जय श्री रामदेव…
द्वापर में बाबा कृष्ण बन आए, कंस को मार गिराये
सुदामा को आप उबारो, वासुदेव कहलाये ।। जय श्री रामदेव…
कलयुग में बाबा रामदेव बन आए, भैरों-राकस को मार गिराये
बोहिता बनिए को आप उबारो, रामपीर कहलाये ।। जय श्री रामदेव…
माता मैनादे पिता अजमाल जी, बाबा संग में डाली आये
देबो साबो पुत्र थारे, नेतली कहलाये ।। जय श्री रामदेव…
श्री रामपीर की आरती, जो कोई नर गाये
जन्म-जन्म के कष्ट मिटे, भव सागर तर जाये ।। जय श्री रामदेव…
जय श्री रामदेव अवतारी, कलयुग में धणी आप पधारे ।
जै बाबा रामदेव्… पीरों के पीर रामापीर, हरे सब की पीर..!!
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🏆 *बाबा रामदेव जी जन्म कथा इतिहास और मेला*
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माना जाता हैं कि बाबा रामदेव जी का जन्म 1409 ई में हिन्दू कैलेंडर के मुताबिक भादवे की बीज (भाद्रपद शुक्ल द्वित्या) के दिन रुणिचा के शासक अजमल जी के घर अवतार लिया था. इनकी माता का नाम मैणादे था. इनके एक बड़े भाई का नाम विरमदेव जी था.
तोमर वंशीय राजपूत में जन्म लेने वाले बाबा रामदेव जी के पिता अजमल जी निसंतान थे. सन्तान सुख प्राप्ति के लिए इन्होने द्वारकाधीश जी की भक्ति की उनकी सच्ची भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान् ने वरदान दिया था. कि भादवे सुदी बीज को वे स्वय आपके घर बेटा बनकर अवतरित होंगे.
पोकरण के राजा अजमाल जी निसंतान थे, उन्हें इस बात से इतना दुःख नही होता था. वे अपनी प्रजा को ही सन्तान समझते थे. दूसरी तरफ भैरव राक्षस के आतंक से सम्पूर्ण पोकरण क्षेत्र में लोगों के भय का माहौल बना हुआ था. एक दिन की बात थी. मुसलाधार वर्षा होने के बाद किसान पुत्र खेत जोतने जा रहे थे.
🏆 *बाबा रामदेव जी जन्म कथा*
तभी उन्हें अजमाल जी महाराज के दर्शन हो गये. इनके बाँझ होने के कारण बड़ा अपशगुन हुआ और वही से वापिस लौट गये. जब अजमल जी ने उन किसानो को रोककर यु वापिस चले जाने का कारण पूछा तो पता चला वे निसंतान हैं. और खेती की वेला बाँझ व्यक्ति के दर्शन से अपशगुन होता हैं. ये शब्द अजमल जी के कलेजे को चीरने लगे. अब तक प्रजा की भलाई के लिए भगवान् द्वारकाधीश से आशीर्वाद मागने वाले अजमल जी अब पुत्र कामना करने लगे.
इस दोरान कई बार वो गुजरात के द्वारका नगरी दर्शन भी करने गये. मगर उनकी मनोइच्छा पूर्ण ना हो सकी थी.
आखिर उन्होंने हार मानकर मैनादे से यह कहकर अंतिम दवारका यात्रा को निकल गये कि यदि इस बार भगवान् नही मिले तो वे अपना मुह लेकर वापिस नही आएगे. अजमल जी के द्वारका जाने पर वे मन्दिर की मूर्ति से पूछने लगे – हे भगवान् आखिर मैंने ऐसा क्या पाप किया, जिसकी सजा मुझे दे रहे हो. आप जवाब क्यों नही देते. कई बार ये कहने पर उन्हें मूर्ति से कोई जवाब नही मिला तो तामस में आकर अजमल ने बाजरे के लड्डू द्वारकाधीश की मूर्ति को मारे. यह देख पुजारी बौखला गया और पूछा तुम्हे क्या चाहिए.
अजमल जी कहने लगे मुझे- भगवान् के दर्शन चाहिए. पुजारी ने सोचा इसको भगवान् के दर्शन का कितना प्यासा हैं? सोचकर कह दिया इस दरिया में द्वाराधिश रहते हैं. अजमल जी ने आव देखा न ताव झट से उसमे कूद पड़े. भगवान् द्वारकाधीश सच्चे भक्ति की भक्ति भावना देखकर गद्गद हो उठे. उन्होंने उस दरिया में ही अजमल जी को दर्शन दिए और भादवा सुदी बीज सोमवार को उनके घर अवतरित होने का वचन देकर सम्मान विदा किया.
🏆 *बाबा रामदेव जी का बचपन*
हिन्दुओं के लिए बाबा रामदेव जी और मुस्लिम सम्प्रदाय के लिए रामसा पीर कहे जाने वाले बाबा ने ईश्वर का अवतार लेकर कई ऐसे चमत्कार दिखाए और कार्य किये जिन्हें कोई भी साधारण मनुष्य नही कर सकता. चमत्कारी पुरुष बाबा रामदेव जी के इन्ही चमत्कारों को 24 पर्चे भी कहा जाता हैं. जिनमे बाबा ने पहला पर्चा झूले झूलते हुए माँ मैनादे को दिया था. ऐसे रामसा पीर बचपन से छुआछूत और भेदभाव के कट्टर विरोधी थे. जब बाबा रामदेव जी पोकरण रजवाड़े के राजा बने तो इन्होने शासक की बजाय एक जनसेवक के रूप में कई महान कार्य किये.
उस समय दलित समुदाय को उच्च जाति के लोग दीन-हीन समझकर उनसे बात करना पसंद नही करते थे. राजपूत परिवार में जन्मे इन्ही बाबा रामदेव जी दलित बालिका डालीबाई को अपनी धर्म बहिन बनाया और जीवन पर्यन्त उन्होंने खुद से ज्यादा वरीयता अपनी बहिन को दी. यहाँ तक कि जब रामदेवजी समाधि लेने लगे तो डाली बाई ने इसे अपनी समाधि बताकर जीवित समाधि ले ली थी. जो बाबा राम सा पीर की समाधि के पास ही स्थित हैं. इन्ही हिन्दू-मुस्लिम दलित प्रेम के कारण आज बाबा रामदेवजी को सभी धर्म और सम्प्रदाय के लोग बड़ी आस्था से ध्याते हैं.
🏆 *बाबा रामदेव जी की बाल लीला*
अवतारी पुरुष बाबा रामदेव जी की लीलाए उनके जन्म के साथ ही शुरू हो गईं थी. उनके जन्म के समय सारे महल में जल से भरे बर्तन दूध में बदल गये, घंटिया बजने लगी, आकाश आकाश वाणी होने लगी, आँगन में कुमकुम के पद चिह बन गये. माँ के एक बार झुला झुलाते समय दूध उफनने लगा तो बाबा रामदेव जी ने अपने हाथ के इशारे से दूध को थमा दिया था.
बचपन में बाबा रामदेव जी दवरा कपड़े का घोड़ा बनवाने की जिद पर अड़ जाने के बाद अजमल जी ने एक दर्जी को कपडे देकर बालक रामदेव के लिए घोड़ा बनाने को कहा. बाबा रामदेव जी जब उस कपड़े के घोड़े पर बैठे तो वह आकाश में उड़ गया. खेलते खेलते बाबा रामदेव जी द्वारा दैत्य भैरव का वध करना जैसे बहुत चमत्कारिक पर्चे (चमत्कार) इन्होने बेहद कम आयु अपने बाल समय में बाबा रामदेव जी ने दिखाकर सभी लोगों का दिल जीत लिया था.
🏆 *बाबा रामदेव जी द्वारा भैरव राक्षस वध कथा*
इन्ही बाबा रामदेवजी के अवतार की एक वजह भैरव नाम के दैत्य के बढ़ते अपराध भी था. भैरव पोकरण के आस-पास किसी भी व्यक्ति अथवा जानवर को देखते ही खा जाता था. इस क्रूर दैत्य से आमजन बेहद त्रस्त थे. रामदेव जी की कथा के अनुसार बचपन में एक दिन गेद खेलते हुए, मुनि बालिनाथ जी की कुटिया तक पहुच जाते हैं. तभी वहाँ भैरव दैत्य भी आ जाता हैं, मुनिवर बालक रामदेव को गुदड़ी से ओढ़कर बालक को छुपा देते हैं. दैत्य को इसका पता चल जाता हैं. वह गुदड़ी खीचने लगता हैं. द्रोपदी के चीर की तरह वह बढती जाती हैं.
अत: भैरव हारकर भागने लगता हैं. तभी ईश्वरीय शक्ति पुरुष बाबा रामदेव जी घोड़े पर चढ़कर इसका पीछा करते हैं. लोगों की किवदन्ती की माने तो उन्हें एक पहाड़ पर मारकर वही दफन कर देते हैं. जबकि मुह्नौत नैणसी की मारवाड़ रा परगना री विगत के अनुसार इसे जीवनदान देकर आज से कुकर्म न करने व मारवाड़ छोड़ चले जाने पर बाबा रामदेव जी भैरव को माफ़ कर देते हैं. और वह चला जाता हैं. इस प्रकार एक मायावी राक्षसी शक्ति से जैसलमेर के लोगों को रामसा पीर ने पीछा छुड़वाया.
🏆 *बाबा रामदेव जी का विवाह*
संवत सन 1426 में बाबा रामदेव जी का विवाह अमरकोट जो वर्तमान में पाकिस्तान में स्थित हैं. यहाँ के दलपत जी सोढा की पुत्री नैतलदे के साथ श्री बाबा रामदेवजी का विवाह हुआ. नैतलदे जन्म से विकलाग थी, जो चल फिर नही सकती थी, मगर अवतारी पुरुष (कृष्ण अवतार) ने पूर्व जन्म में रुखमनी (नैतलदे) को वचन दिया था. कि वे अगले जन्म में आपके साथ ही विवाह करेगे.
विवाह प्रसंग में नैतलदे को फेरे दिलवाने के लिए बैशाखिया लाई गयीं, मगर चमत्कारी श्री रामदेवजी ने नैतलदे का हाथ पकड़कर खड़ा किया और वे अपने पैरो पर चलने लगी. इस तरह बाबा रामदेवजी का विवाह बड़े हर्षोल्लास के साथ सम्पन्न हुआ. दुल्हन नैतलदे ने साथ अपने ग्राम रामदेवरा पहुचने पर उनकी बहिन सुगना बाई (चचेरी बहिन) उन्हें तिलक नही लगाने आई. जब इसका कारण पूछा गया तो पता चला उसके पुत्र यानि रामदेवजी के भांजे को सर्प ने डस लिया था. तब बाबा स्वय गये और अपने भानजे को उठाकर साथ लाए तो लोग हक्के बक्के से रह गये.
🏆 *बाबा रामदेव जी के 24 पर्चे (चमत्कार)*
लोक देवता बाबा रामदेव जी ने जन्म से लेकर अपने जीवन में 24 ऐसे चमत्कार दिखाए, जिन्हें आज भी बाबा रामदेव जी के भजनों में याद किया था. माँ मैनादे को इन्होने पहला चमत्कार दिखाया, दरजी को चिथड़े का घोड़ा बनाने पर चमत्कार, भैरव राक्षस को बाबा रामदेव जी का चम्त्कार सेठ बोहितराज की डूबती नाव उभारकर उनको पर्चा, लक्खी बिनजारा को पर्चा, रानी नेतल्दे को पर्चा, बहिन सुगना को पर्चा, पांच पीरों को पर्चा सहित बाबा रामदेव जी ने कुल 24 परचे दिए.
🏆 *बाबा रामदेव जी की समाधि*
मात्र तैतीस वर्ष की अवस्था में चमत्कारी पुरुष श्री बाबा रामदेव जी ने समाधि लेने का निश्चय किया. समाधि लेने से पूर्व अपने मुताबिक स्थान बताकर समाधि को बनाने का आदेश दिया. उसी वक्त उनकी धर्म बहिन डालीबाई आ पहुचती हैं. वो भाई से पहले इसे अपनी समाधि बताकर समाधि में से आटी डोरा आरसी के निकलने पर अपनी समाधि बताकर समाधि ले ली. डालीबाई के पास ही बाबा रामदेव जी की समाधि खुदवाई गईं. हाथ में श्रीफल लेकर सभी ग्रामीण लोगों के पैर छूकर आशीर्वाद प्राप्त कर उस समाधि में बैठ गये और बाबा रामदेव के जयकारे के साथ सदा अपने भक्तो के साथ रहने का वादा करके अंतर्ध्यान हो गये.
🏆 *बाबा रामदेव जी का रामदेवरा मेला & जन्म स्थान*
आज बाबा रामदेव जी राजस्थान के प्रसिद्ध लोकदेवता हैं. उनके द्वारा बसाए गये. रामदेवरा गाँव में वर्ष भर मेले का हुजूम बना रहता हैं. भक्त वर्ष भर बाबा के दर्शन करने आते हैं.बाबा रामदेव जी के जन्म दिन भादवा सुदी बीज को रामदेवरा में विशाल मेला भरता हैं. लाखों की संख्या में भक्त दर्शन की खातिर पहुचते हैं. पुरे राजस्थान में बाबा रामदेव जी के भक्तो द्वारा दर्शनार्थियों के लिए जगह-जगह पर भंडारे और रहने की व्यवस्था हैं.
लगभग तीन महीने तक चलने वाले इस रामदेवरा मेले में सभी धर्मो के लोग अपनी मुराद लेकर पहुचते हैं. बाबा रामदेव जी की समाधि के दर्शन मात्र से व्यक्ति की सभी इच्छाए और दुःख दर्द स्वत: दूर हो जाते हैं. बाबा रामदेवजी का जन्म स्थान उन्डू काश्मीर हैं, जो बाड़मेर जिले में स्थित हैं. वहां पर बाबा रामदेव जी का विशाल मन्दिर हैं. समाधि के दर्शन करने वाले सभी भक्त गन जन्म स्थान को देखे बिना घर लौटने का मन ही नही करते.
🏆 *रामदेवरा जाने का रास्ता*
यदि आप भी कभी बाबा रामदेव जी के दर्शन करना चाहे तो शिक्षा विभाग समाचार टीम भी आपकों न्यौता देती हैं. आपकी यात्रा के लिए अच्छा समय सावन, भाद्रपद यानि जुलाई अगस्त महीने में आप राजस्थान के जैसलमेर जिले के पोकरण तहसील में स्थित रामदेवरा पहुच सकते हैं. यदि आप गुजरात के रास्ते सफर करते हैं.
रेल बस, अथवा पैदल यात्रा के लिए जोधपुर,बाड़मेर से होते हुए पोकरण के रास्ते रामदेवरा जा सकते हैं. पहली बार यात्रा करने का सोच रहे पाठको को बताना चाहेगे रामदेवरा गाँव तक आप ट्रेन से भी यात्रा कर सकते हैं |
📔🏆 *जहां झुकते हैं हिंदू मुसलमान, दोनों के सिर*
मरू प्रदेश राजस्थान में जैसलमेर जनपद के रामदेवरा में मध्यकालीन लोक देवता बाबा रामदेव के दर्शन के लिए इन दिनों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है.
सांप्रदायिक सदभाव के प्रतीक माने जाने वाले इस लोक देवता की समाधि के दर्शन के लिए विभिन्न धर्मों को मानने वाले, ख़ास तौर पर आदिवासी श्रद्धालु देश भर से इस सालाना मेले में आते हैं.
🏆 *भगवान श्रीकृष्ण का अवतार हैं रामदेव*
बाबा रामदेव को कृष्ण भगवान का अवतार माना जाता है.
उनकी अवतरण तिथि भाद्र माह के शुक्ल पक्ष द्वितीय को रामदेवरा मेला शुरू होता है. यह मेला एक महीने से अधिक चलता है.
वैसे बहुत से श्रद्धालु भाद्र माह की दशमी यानी रामदेव जयंती पर रामदेवरा अवश्य पहुँचना चाहते हैं
🏆 *रामसा पीर*
मुस्लिम दर्शनार्थी इन्हें “बाबा रामसा पीर” कह कर पुकारते हैं.
इस बार 633 वें रामदेवरा मेले में भी श्रद्धालु गाते बजाते और ढोल नगाड़ों पर थाप देते हुए बाबा की लंबी ध्वज पताकाएं लिए रामदेवरा की ओर बढ़ते हुए देखे जा सकते हैं. जैसलमेर से रामदेवरा तक का पूरा मार्ग भजन “ओ अजमाल जी रा कंवरा, माता मेनादे रा लाल, रानी नेतल रा भरतार, म्हारो हेलो सुणो जी राम पीरजी” से गुंजायमान रहता है.
🏆 *लम्बी क़तारें*
मेले के दौरान बाबा के मंदिर में दर्शन के लिए चार से पांच किलोमीटर लंबी कतारें लगती हैं और जिला प्रशासन के अलावा विभिन्न स्वयंसेवी संगठन दर्शनार्थियों की सुविधा के लिए निःस्वार्थ भोजन, पानी और स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध कराते हैं.
श्रद्धालु पहले जोधपुर में बाबा के गुरु के मसूरिया पहाड़ी स्थित मंदिर में भी दर्शन करना नहीं भूलते. उसके बाद जैसलमेर की ओर कूच करते हैं.
लोककथाओं के अनुसार बाबा के पिता अजमाल और माता मीनल ने द्वारिका के मंदिर में प्रार्थना कर प्रभु से उन जैसी संतान प्राप्ति की कामना की थी. इसीलिए बाबा रामदेव को कृष्ण का अवतार माना जाता है.
🏆 *मन्नतें*
बहुत से लोग रामदेवरा में मन्नत भी मांगते हैं और मुराद पूरी होने पर कपड़े का घोड़ा बनाकर मंदिर में चढ़ाते हैं. कोई छोटा घोड़ा बनता है
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