अयोध्या में हमारे आठ दिन : कवि ब्रजेन्द्र सोनी
साभार
By Kavi Brajendra soni
नगर (भरतपुर) के लाडले कवि ब्रजेन्द्र सोनी
अयोध्या में हमारे आठ दिन ,,,। न भूलने वाली दास्तान।28 नव 1992
यह समय वो था जब राम मंदिर का आंदोलन चरम पर था बच्चा बच्चा राम का, जन्मभूमि के काम का। जैसे नारों से देश गुंजायमान था। कुछ लोगों की भूमिकायें हिन्दू समाज के लिये संदिग्ध हो गई थी तो कुछ हिन्दू समाज के सर्वे सर्वा हो गये थे। राजनीति अपना खेल खेल रही थी पर जनता इन सब बातों से बेखबर केवल मंदिर निर्माण के लिये संकल्पित हो गई थी। इसे हिन्दू समाज की एकजुटता का काल भी कह सकते हैं। मुलायम सिंह और लालू प्रसाद यादव जैसे नेता गण, हिन्दुओं की आँख की किरकिरी बन गये थे।यही वो समय था जब विश्व हिन्दू परिषद् के आह्वान पर लाखों कार सेवक, अपने आराध्य प्रभु श्री राम की जन्म भूमि को मुक्त कराने के संकल्प के साथ अयोध्या में एकत्रित थे। सभी के मन में एक ही विचार, एक ही दिशा और एक ही संकल्प था कि कैसे भी, कुछ भी करना पडे इस बार मंदिर की भूमि को मुक्त करा के ही अयोध्या से वापिस जायेंगे। 31 अक्टूबर1990 की कारसेवा में हुऐ कारसेवकों पर मुलायम सरकार के निर्मम अत्याचार की वो खूनी दास्तान भी मन को शंकित किये थी। पर अभी कल्याण सिंह की सरकार थी। पर राजनीति का कुछ कहा नही जा सकता कब कौन सी करबट बैठ जाये। अतः कारसेवक हर अनहोनी का सामना करने का संकल्प लिये अयोध्या में एकत्रित हो गये थे वो भी लाखों की संख्या में।
हम भी कस्बे से 22 कारसेवक 28 नव की प्रातः अयोध्या पहुँच गये थे। हमारे साथ सबसे बुजुर्ग कारसेवक के रूप में श्री मदनमोहन जी मालवीय थे। जो उस समय 70 वर्ष के थे। और सबसे कम उम्र थे किशन अरोडा । देवीसहाय जी और भगवान सिंह जी कुम्हारेडी ऐसे कारसेवक थे जिनके होने से ही माहौल हास्यमय और हल्का रहता था। इनके अलावा कृष्णा जी जो बाद में विद्यार्थी बाबा हो गये थे वो सब याद आ रहे हैं। हम सबने( कृष्णा जी को छोडकर वो 1990 की कारसेवा में भी थे) पहली बार अयोध्या की भूमि को नमन किया और रामलला के दर्शन को कतार में लगे। जैसे जैसे लाइन में आगे बढते जाते वैसे वैसे मन का संकल्प उग्र होकर नारे के रूप में पूरी ऊर्जा से दोहराते कि" रामलला हम आये हैं, उससे दूनी आवाज में प्रत्युत्तर मिलता" मंदिर भव्य बनाने को " कुछ ही समय में हम सभी रामलला के सन्मुख थे। मन में अजीब संतोष का भाव था पर जब गर्भग्रह के ऊपर देखा तो असीम वेदना हमारे चेहरे पर छा गई। 100 करोड हिन्दुओं के देश में उसके ही आराध्य को विवादित बना दिया गया। अयोध्या जिसको कोई योद्धा जीत नही सका वो अपने ही लोगों से पराजित हो गई थी। इससे पहले 1528 से लेकर 1990 तक 87 बार हमको लडाई लडनी पडी। लाखों हिन्दुओं का बलिदान हो गया। 88 वीं लडाई के आन्दोलन में सौभाग्य से हम भी शामिल थे। पर मन में शंका इस बात की थी अभी कितनी और लडाईयाँ लडनी पडेंगी,,? इस का उत्तर तो स्वयं राम ही दे सकते थे। पर एक आवाज थी जो रह रह कर आ रही थी इस बार " कुछ अलग होगा और वो अलग क्या होगा ये भविष्य के गर्त में था। हमारा रामलला के सन्मुख ये पहला साक्षात्कार था। और अयोध्या में हमारा पहला दिन कल चर्चा करेंगे 29 नवम्बर की।✍✍✍✍✍✍✍
फोटो श्री कृष्णा जी उर्फ विद्यार्थी बाबा का है जो दुर्भाग्य से हमारे बीच नही रहे। ।
====
अयोध्या के वो आठ दिन,, न भूलने वाली दास्तान,,।
दूसरा दिन 29 नवम्बर 1992
कल मैने आपसे जिक्र किया था कि अयोध्या पहुँचने के बाद जो सबसे पहला काम था श्री राम लला के दर्शन का, वो पूर्ण करने बाद अपने आवास और भोजन की व्यवस्था कहाँ और किस प्रकार रहेगी यह जानना जरूरी था। अपना रजिट्रेशन कराने के बाद हमें कारसेवकपुरम् के पास के मैदान में लगे तंबुओं में ठहराया गया। जिसमें राजस्थान से पहुँचे कारसेवकों की आवासीय व्यवस्था थी। और पास ही रसोई की सुविधा थी। इसी प्रकार हर प्रान्त की अलग अलग व्यवस्था थी। चार से पाँच लाख लोगों का आवास और उनकी भोजन की व्यवस्था ये काम कम विस्मयकारी नही था। सबको समय पर और गर्मागरम भोजन मिले कोई अफरा तफरी न हो सब कुछ बडा यंत्रवत् और इतना व्यवस्थित था कि किसी को कोई शिकायत नही थी। हमने भी अपना टाइम टेबल तय कर लिया था अतः दूसरे दिन यानि आज 29 नव को हम सबने तय किया कि ,, सबसे पहले नियमित पवित्र सरयु में स्नान होगा तत्पश्चात अयोध्या के सभी मंदिरों के दर्शन करना यह दिनचर्या में शामिल किया गया। कारसेवा करने की तिथी तो 6 दिसम्बर थी ,,पर इन पांच छः दिनों का उपयोग कैसे करेंगे,,? ये हम सब आपस में तय करने में लगे थे,,। तभी मंच से घोषणा हुई कि जो, कारसेवक अच्छे हलवाई हैं, मिस्त्री हैं, पेंटर हैं, इलैक्ट्रिशियन है,या कवि हैं , वो सभी कारसेवकपुरम में एकत्रित हों,,। मुझमें दो खूबिया तो थी ही। मैं पेंटर तो था ही और छोटा मोटा कवि भी था। तो मैं कारसेवकपुरम् में चला गया ,,वहाँ अलग अलग खूबियों के लोगों की अलग अलग बैठक चल रही थी मैने परिचय में अपने आपको "कवि" लिखा था तो मुझे भी अलग ग्रुप की बैठक में भेजा गया। मुझे अभी तक याद है । हम लोगों की बैठक में मात्र दस बारह लोग ही थे जो कवि और पेंटर इन दोनों खूबियों को समाहित करते थे। सत्यनारायण मोर्य जो अब बाबा लिखते हैं तब सत्यनारायण मोर्य ही थे उनके निर्देशन में हमें काम सोंपा गया। बाबा मोर्य और मैं, कवि और पेन्टर दोनों थे अतः पहले ही दिन मुझे खास कारसेवक की अनुभूति हो गई। पूरी अयोध्या को नारों रंगने का काम और रात्रि को मंच पर काव्यपाठ, इन दोनों ही कामों को प्रभु श्री राम की "कारसेवा" समझ कर पूरे मनोयोग से करना प्रारम्भ किया। शायद आज भी कुछ स्थानों पर मेरे लिखे श्लोगन मौजूद होंगे,,! रात्रि को भोजनोपरान्त श्री राम नाम संकीर्तन और श्रीराम केन्द्रित काव्यपाठ ये दैनिक कार्यक्रम थे। उन दिनों मेरी दो रचनायें बडी प्रसिद्ध हो गई थी। उनका काव्यपाठ जब अयोध्या के पावन मंच से करता था तो कारसेवक जय श्रीराम के नारे लगा कर मेरा उत्साह तो बढाते ही थे और पूरा जन समुदाय भी आनंद लेता था। उन कविताओं का उल्लेख कल के लेख में करुंगा। आज हमको अयोध्या के सभी मंदिरों का भ्रमण करना था। जिसमें विश्व प्रसिद्ध हनुमान गढी, रामायण मंदिर, कनक भवन, जानकी कूप, इत्यादि मंदिरों की जानकारी भी कल के लेख में आपको दुंगा।
अभी तो एनाउंस हो रहा है कि मंच पर संघ के सर कार्यवाह माननीय एच वी शेषाद्री, स्वामी चिन्मयानंद जी आचार्य धर्मेन्द्र जी और उमा भारती जैसे नेतागण पधार चुके हैं। सभी का उद्बोधन सुनना है,, शेष कल के लेख में विस्तार से पढियेगा,✍✍✍By brajendra soni
फोटो में बाबा सत्यनारायण मोर्य के साथ हम भी हैं पहचान सको तो जानें,,।
======
अयोध्या के वो 8 दिन ,,, न भूलने वाली दास्तान,,।
(3)
30 नवम्बर 1992 तीसरा दिन
आज मन बडा हल्का महसूस कर रहा है,,जब से यह सुना है कि केन्द्र सरकार बिना किसी बाधा के अयोध्या में कारसेवा होने देगी परन्तु शर्त भी लगाई है कि आन्दोलित संगठनों को हलफनामा देना होगा कि विवादित स्थल पर कानून की किसी प्रकार की कोई अवहेलना न होने पाये।दोनों तरफ से जब इस तरह का आश्वासन हो तो किसी प्रकार की अप्रिय स्थिति होने का सवाल ही नही था। परन्तु भावना का ज्वार जो इस बार कारसेवकों के अंदर हिलोरें ले रहा था वो इस राजनैतिक सौदेबाजी से शान्त हो पायेगा,,? इस का अंदाजा तो, न केन्द्र को था, न राज्य को। इस मनःस्थिति को आगे समझने की कोशिश करेंगे।
इससे पहले एक सुबह सरयु तट की देख लेते हैं । हमारी पूरी टीम में लगभग सभी अच्छे तैराक थे इसलिये सरयु के धीर गंभीर प्रवाह में डुबकी लगाने से किसी को कोई परेशानी भी नही थी अतः दूर तक तैर कर जाना, नहाना पूरी मस्ती करते थे। मालवीय जी सत्तर वर्ष की आयु में भी कलाबाजी कर जब सरयू में छलांग लगाते तो हम सभी दांतों में अंगुली दबा कर उनकी कलाबाजियाँ देख रोमान्चित होते। देवीसहाय जी, राकेश शर्मा जी, अशोक दीक्षित और अन्य सभी घण्टों सरयू में अठखेलियाँ करते थे। मालवीय जी , कृष्णा जी और राकेश जी तो बगैर हाथ पैर हिलाये घंटो पानी में स्थिर रहने की कला जानते थे।इसका एक कारण शायद यह भी था अयोध्या में सरयू का प्रवाह इतना तेज नही है जल ऊपर से ठहरा हुआ सा लगता है। जैसे वो भी सदियों से अपना स्वभाव भूल गया हो। जैसे उसकी गति में एक ठहराब सा आ गया था। जैसे वो भी रुक कर उस लम्हे की गवाह बनना चहाती थी।
स्नान के बाद अयोध्या के एक चाय वाले की दुकान, हमारी नियमित चाय वहीं होती, उसके मालिक ज्वालाप्रसाद जी तो जैसे हमारा ही इंतजार करते थे। वहाँ मालवीय जी एक लिलिहारी सुनाकर और हम सब उनका साथ देकर माहौल को खुशनुमा बना देते थे। राह चलते कारसेवकों की भीड हमारे इस कौतुक को देखने आस पास इकट्ठी होकर खूब आनंद लेती। उसके बाद चाय होती, बिस्कुट फैन या टोस का नास्ता।
आज कनक भवन के दर्शन करने जाना है अतः जल्दी ही चायनाश्ता आदि से फ्री होकर चल दिये कनक भवन । कनक भवन के बारे में मान्यता है कि यह श्रीराम और जानकी जी का व्यक्तिगत महल था यहाँ किसी पुरुष को आने की आज्ञा नही थी बाकी जानकारी तो आज के दौर में मैने भी गूगल महाराज से ही एकत्रित की हैं। पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की नगरी अयोध्या में तो प्राचीन मंदिरों और सिद्ध स्थानों की कोई कमी नहीं है लेकिन कुछ ऐसे मंदिर भवन और महल हैं, जिनका सीधा सम्बन्ध अयोध्या के राजा श्रीराम से रहा है। उन्ही में से एक है अयोध्या का प्राचीन कनक भवन मंदिर। सुन्दर निर्माण शैली और विशाल प्रांगण में बना यह महल स्थापत्य कला का अद्भुद उदाहरण है। इस भवन के बारे में कथा प्रचलित है कि कनक भवन राम विवाह के पश्चात माता कैकई के द्वारा सीता जी को मुंह दिखाई में दिया गया था। जिसे भगवान राम तथा सीता जी ने अपना निज भवन बना लिया। उस समय का यह भवन चौदह कोस में फैली अयोध्या नगरी में स्थित सबसे दिव्य तथा भव्य महल था।
प्राचीन धार्मिक इतिहास के अनुसार, कनक भवन का निर्माण महारानी कैकेयी के अनुरोध पर अयोध्या के राजा दशरथ द्वारा विश्वकर्मा की देखरेख में श्रेष्ठ शिल्पकारों के द्वारा कराया गया था। मान्यताओं के अनुसार, कनक भवन के किसी भी उपभवन में पुरुषों का प्रवेश वर्जित था। भगवान के परम भक्त हनुमान जी को भी बहुत अनुनय विनय करने के बाद आंगन में ही स्थान मिल पाया। इसी मान्यता के तहत कनक भवन के गर्भगृह में भगवान श्रीराम-जानकी के अलावा किसी अन्य देवता का विग्रह स्थापित नहीं किया गया है।
मंदिर के गर्भगृह के पास ही शयन स्थान है, जहां भगवान राम शयन करते हैं। इस कुन्ज के चारों ओर आठ सखियों के कुंज हैं, जिन पर उनके चित्र स्थापित किए गये हैं। सभी सखियों की भिन्न-भिन्न सेवाएं हैं। चारुशीला, जो भगवान के मनोरंजन तथा क्रीड़ा के लिये प्रबन्ध करती थी। इसी प्रकार क्षेमा, हेमा, वरारोहा, लक्ष्मण, सुलोचना, पद्मगंधा, सुभगा की भगवान के लिए सेवाएं भिन्न भिन्न हैं। ये आठों सखियां भगवान राम की सखियां कही जाती हैं। इनके अतिरिक्त आठ सखियां और हैं जिन्हें सीताजी की अष्टसखी कहा जाता है। उनमें चन्द्र कला, प्रसाद, विमला, मदन कला , विश्व मोहिनी, उर्मिला, चम्पाकला, रूपकला हैं। मान्यता है कि किशोरी जी प्रतिदिन श्रीराम को उनके भक्तों अर्थात भक्तमाल की कथा सुनातीं है। इसी भावना के तहत भक्तमाल की पुस्तक भी रखी रहती है। जानकी संग भगवान श्रीराम प्रतिदिन चौपड़ भी खेलते हैं, इसके लिए चौपड़ की भी व्यवस्था की गयी है।
अयोध्या के प्राचीन कनक भवन का महत्व इतना है कि संतों का मत है कि आज भी भगवान श्री राम सीता माता के साथ इस परिसर में विचरण करते हैं। इस आस्था पर विशवास करते हुए संतजन और श्रद्धालु इस परिसर में आकर अपने आप को प्रभु के समीप अनुभव करते हैं। मंदिर परिसर में भगवान श्री राम का प्रकटोत्सव बड़ी ही धूम धाम से मनाया जाता है। इसके अतिरिक्त भगवान श्री राम को सजीव स्वरूप मानकर सावन में उन्हें झूला झुलाया जाता है। वर्ष में पड़ने वाले (अन्नकूट, दीपावली श्रीहनुमत-जयन्ती, महालक्ष्मी पूजन, दीपावली, अन्नकूट, तथा ग्यारस) देव उत्थानी एकादशी आदि पर्व तीज त्यौहार बड़ी ही आस्था के साथ हर्ष और उल्लास के साथ मंदिर परिसर में मनाये जाते हैं।
आज कुछ ज्यादा ही हो गया है अपनी कविता भी नही डाल रहा पर क्या करूँ पाँच अगस्त पर समापन भी तो करना है। अतः कल 1 दिसम्बर का वर्णन ज्यादा रोचक रहेगा। महंत नृत्यगोपालदास से भेंट भी होगी सो इंतजार करें✍✍✍✍✍✍✍✍ By Brajendra soni🙏🙏🙏
======
अयोध्या के वो 8 दिन ,,न भूलने वाली दास्तान,,।
(4)
1 दिसम्बर और 2 दिसम्बर 1992,,।
आज कुछ हलचल सी मची है,, बी बी सी लंदन, अयोध्या से सम्बन्धित समाचारों में कारसेवकों के बारे में ऊल जलूल खबरें प्रसारित कर रहा है। तमाम विदेशी मीडिया ने अयोध्या को केन्द्रित कर हिन्दू समाज को हिंसक प्रजाति की तरह प्रस्तुत करना शुरू कर दिया है। कारसेवकों के मुख में माइक डाल कर उनसे बार बार पूछा जा रहा है कि आपके नेता तो समझौता कर चुके हैं आप बार बार अयोध्या आकर अपना समय क्यूँ बर्बाद कर रहे हैं,, आपको ठगा गया है,, आपको उल्लू बनाया गया है,, ऐसे में आप अब क्या करेंगे,,? आदि आदि तमाम ऐसे प्रश्नों की बौछार कारसेवकों को उद्देलित करने की मानसिकता से छोडी जा रही थी। ये बात सही भी थी की केन्द्र और संगठनों बीच वार्ता तो चल ही रही थी। लेकिन हमारी टोली इन सब बातों से बे खबर और यह सोचकर जैसा आदेश होगा उसी के अनुसार चलेंगे,,। क्योंकि सभी स्वयंसेवक थे और सभी शिक्षण प्राप्त ( संघ शिक्षा वर्ग किये हुये) स्वयंसेवक थे अतः व्यवस्था के अनुसार ही अनुशासन में रहना हमने सीखा था। सो हर परस्थिति का सामना करने को भी तैयार थे। लेकिन मीडिया पूरी तरह से माहौल को गर्माने में लगा था इसमें कोई दो राय नही। जिस जगह हम रुके थे वो मैदान कुछ ऊबड खाबड सा था कुछ कारसेवकों ने उसको समतल किया था जाहिर है इसमें फावडे आदि का इस्तेमाल तो होना ही था इसको भी बी बी सी ने सनसनीखेज खबर बना दिया और समाचार में कुछ इस तरह से प्रसारित किया कि "कार सेवा से पहले अयोध्या में मजारों का टूटना शुरू"हमको बडा अफसोस हुआ कि एक गैर जिम्मेदाराना पत्रकारिता किस तरह से देश और दुनियाँ के लिये घातक है जिसको हम प्रत्यक्ष देख रहे थे। रात्रि को स्वयं माननीय सह सर कार्यवाह एच वी शेषाद्री ने हमारे शिविर का दौरा किया और इस झूंठी और भ्रामक खबर का खंडन किया। हमको भी सचेत किया कि कोई अंजान व्यक्ति कारसेवक के वेश में किसी प्रकार का अनर्थ न कर जाये इसके लिये सबको सावधान भी किया।
अगले दिन यानि दो दिसम्बर को हमारा संत मणिराम की छावनी देखने का कार्यक्रम था तो जल्दी ही सो गये ।प्रातः स्नानादि से निवृत होकर हम सभी संत मणिराम की छावनी गये। वहीं संत नृत्यगोपोलदास जी से मुलाकात हुई। नृत्यगोपालदास जी मूलतः मथुरा के रहने वाले थे तो हम बृजवासियों को अतिरेक स्नेह मिला।
1990 की कारसेवा में मुलायम सरकार द्वारा अयोध्या में परिन्दा भी पर नही मार सकेगा कि घोषणा को नृत्यगोपालदास जी ने ठेंगा दिखा कर कारसेवकों से भरी बस राम जन्म भूमि परिषर में प्रवेश करा दी थी, तो हमारे लिये तो उनका दर्शन रोमान्च से कम नही था। उन्ही के द्वारा निर्मित वाल्मीकि रामायण भवन अयोध्या की धरोहर बन गया है।
अयोध्या की प्रतिनिधि इमारत वाल्मीकि रामायण भवन आदि कवि और उनकी रचना के प्रति समर्पित है। यह भवन भव्य एवं विशाल सभागार के रूप में है। सफेद संगमरमर से आच्छादित सभागार की आंतरिक सतह पर वाल्मीकीय रामायण के सभी 24 हजार श्लोक उत्कीर्ण हैं। एक दर्जन से अधिक विशाल स्तंभों से सुसज्जित सभागार के केंद्र में भगवान राम के पुत्र लव एवं कुश के साथ ऋषि वाल्मीकि की प्रतिमा स्थापित है।
वासुदेवघाट मुहल्ला स्थित इस भवन को देखने प्रतिदिन हजार के करीब लोग आते हैं। मेलों के दौरान यह संख्या कई गुना अधिक होती है। दर्शक सामान्य तौर पर इन पंक्तियों को देखते हुए गुजर जाते हैं पर कई ऐसे भी होते हैं, जो संस्कृत भाषा की पंक्तियों को पढ़ने और उनका अर्थ जानने की कोशिश करते हैं।
महाकाव्य में भगवान राम के जन्म से लेकर लंका विजय एवं विजय के बाद राज्याभिषेक तक का विस्तृत विवेचन है। रामायण भवन के निर्माण की शुरुआत 1965 में मणिरामदास जी की छावनी के महंत नृत्यगोपालदास ने की और करीब 10 वर्ष के अनवरत प्रयास के बाद इसका लोकार्पण संभव हुआ। महंत नृत्यगोपालदास की उपलब्धियों में सेवा एवं निर्माण के आज अनेक प्रकल्प शामिल हैं पर छावनी के ठीक सामने स्थित रामायणभवन चार दशक से स्थापत्य के वैभव का प्रतीक बना हुआ है।
इसी में बने वाल्मीकि कुन्ड में नीचे जाना मना है पर हमें नीचे जाने की अनुमति भी मिली और कुन्ड से आचमन भी लेने दिया गया। यह भी अयोध्या की उन यादों की मधुरिम छवि है जो अभी तक मस्तिष्क में अमिट है,, आज तो कई जगह नये नारों को दीवारों पर लिखना है अतः कृष्णा जी और राकेश जी के साथ अपनी ब्रुश और पेन्टिंग का रंग उठाये हम चल दिये अयोध्या की गलियों में,, कल तीन और चार दिसम्बर के संस्मरण के साथ मिलेंगे,,✍✍✍Brajendra soni
======
अयोध्या के वो आठ दिन,, न भूलने वाली दास्तान।
(5)
3 दिसम्बर और 4 दिसम्बर।
आज अयोध्या के आसमान का सूर्य बिल्कुल तेजहीन लग रहा है। सर्दी ने जैसे सूर्य का सारा ताप सोख लिया है। हमें भी आज सरयू तट पर जाने में आलस हो रहा है।
मन कर रहा है बस कंबल में सोया जाये। एक ही तरह की दिनचर्या से बोरियत सी होने लगी है। उस पर यह खबर और भी बिचलित कर रही है कि कारसेवा बस प्रतीकात्मक होगी। वो प्रतीकात्मक क्या होगा,,इस पर भी संशय था। कोई कह रहा था कि कारसेवकों को वापिस भेजने की प्रक्रिया शुरू हो रही है। मन में बडी उलझन सी है कुछ समझ में नही आ रहा कि क्या हो रहा है,,? क्या होगा,,? तभी देवी सहाय जी ने हमारे कंबल खींचे और जबरदस्ती तंबू से बाहर निकाला और एक गीत गाने लगे " नौती देवी, जै गयौ रसिया, कर गयौ नाश मढैया कौ" जय श्री राम भई जय श्री राम।मुझे यह सब अच्छा नही लग रहा था। पर देवी सहाय जी बार बार इस लाइन को दोहराये जा रहे थे तब मैने पूछा क्या हो आपको,,,? सुबह सुबह ये तानसेन कैसे हो गये। बस हँसते रहे और जोर जोर से हँसते रहे। सब फ्रेश होकर आ गये आज नहाना केंसिल कर दिया। तब जाके देवी सहाय जी ने बताया जो नाश्ता (रात के खाने का हम सुबह कुछ बचा के रख लेते थे) वो सब भगवान सिंह जी कुम्हारेडी हजम कर गये थे बस इसी बात को बो गाने में गाकर सबको चिढा रहे थे। भगवान सिंह जी भूख के मामले में सबसे अलग थे। वो मुझे माफ करें अब इस दुनियाँ में नही हैं पर उनका साथ हम भूल नही सकते। एक नाम जिसे में अब तक भूलता रहा वो ठाकुर पदम सिंह जी का वो भी हमारी टोली के सबसे बुजुर्ग कार सेवक थे। आज तय किया कि राम मंदिर निर्माण की कार्यशाला देखनी है जहाँ मंदिर के लिये पत्थर तराशने का काम चल रहा है। देखें भी क्यों न जब हमारे ही जिले से सारा पत्थर इस निर्माण में काम आ रहा है। हाँ मित्रों बंशी पहाडपुर का पत्थर ही इस भव्य और अमर निशानी को साकार करने वाला है। हमें हमारे कस्बे की श्रीराम शिला को भी पहचानना था जिसका पूजन करके हमने अयोध्या भेजा था। फरवरी 1992 से ही पत्थरों को तराशने का काम चालू हो गया था। जैसे जैसे मंदिर का विवाद लंबा होता गया इसमें भी शिथिलता आई पर निरंतरता बनी रही। अब तक लगभग एक लाख घनफुट से ज्यादा पत्थर तराशा जा चुका है। हमने सारे दिन कार्यशाला का अवलोकन किया और मन में संतुष्टि का भाव था कि आज नही तो भविष्य में कभी यह शुभ अवसर तो आयेगा ही। हम नही तो हमारे बच्चे इस का दर्शन करेंगे। ऐसा आत्मविश्वास लेकर हम कार्यशाला से लौटे। सुबह जो हताशा सी थी अब मन से निराशा के वो भाव मिट चुके थे।
आज शायं को मंच पर कई बडे नेताओं का भाषण सुना ( भाषण इसलिये की आज उसमें उद्बोधन जैसा कुछ था नही) कुछ ने जरूर कारसेवकों का मनोबल बढाने का प्रयास किया पर अधिकांश ने बस लीपा पोती जैसी भाषा का ही इस्तेमाल किया,, शायद वो समझ ही नही पा रहे थे कि उनके इस प्रकार के भाषण से कारसेवकों के अंदर एक ज्वालामुखी को रोपित कर दिया है। क्योंकि कारसेवकों में केवल संघ के स्वयंसेवक ही नही थे। संघ के कार्यकर्ता तो अनुशासन का दूसरा नाम होते हैं। शिवसेना,, बजरंग दल और अति उत्साहित हिंदू संगठनों के कार्यकर्ता भी लाखों की संख्या में थे। सबका ध्येय तो एक ही था " राम मंदिर निर्माण"पर अन्य संगठनों के लोग वि हि प ,संघ या भाजपा के नेताओं की बातों का अक्षरसः पालन करेंगे इसमें संशय था। उनकी मुख मुद्रा बता रही थी कि वो जो निर्णय करके आये हैं उस पर कायम रहेंगे। सच पूछो तो आज मुझे भी उनका यह गुस्सा अच्छा लग रहा था। और हो भी क्यों न आखिर राम ज्योति से, श्रीराम शिला पूजन से, सैंकडो किलोमीटर की पैदल यात्रा और जेल जाने से, उसपर 2 नव 1990 को सैंकडों कारसेवकों के बलिदान से संपूर्ण भारत का हिन्दू समाज आज एक जुटता से खडा हो गया था। पूरे देश में पहुँचे कारसेवकों के अस्थि कलश सबकी आँखों में एक शान्त परन्तु धधकते ज्वालामुखी को चेतन कर चुके थे।
4 तारीख रात्रि को हम सभी तंबू में लेटे लेटे ही वार्तालाप कर रहे थे। हमें हमारे बुजुर्ग साथियों की सबसे ज्यादा चिंता थी पर हमारे बुजुर्ग कारसेवक भी अजीब मिट्टी के बने थे। उनके मुख पर डर नाम की कोई लकीर तक नही थी। यहाँ भी मनोविनोद ही होता रहा। भगवान सिंह कुम्हारेडी ने फिर वही गीत " नौती देवी जै गयो रसिया कर गयौ नाश मढैया कौ" जय श्री राम भई जय श्री राम,, सुनाकर इसकी व्याख्या भी की और आज जो अर्थ बताया वो सुनकर हम बहुत हँसे। वो बोले देखो भाई अहिरावण ने राम लक्ष्मण को बलि चढाने को तो देवी को बुलाया था न पर आया कौन,, हमने प्रत्युत्तर दिया ,,हनुमान जी,, फिर क्या हुआ,,? अहिरावण का अंत।जो जब हुआ था वही तो 6 तारीख को होगा,, अब चिन्ता किस बात की । हमारा हँसते हँसते बुरा हाल हो गया। भगवानसिंह जी बोले अब सो जाओ हमको तो न्योता ही आया है,, पर वास्तव में आयेंगे तो हनुमान जी ही और वो वही करेंगे जो राम जी चाहेंगे,,,। विद्यावान गुणी अति चातुर। राम काज करिबै कू आतुर। कह कर वो नींद के आगोश में चले गये। हमने भी मन में बजरंग बली का स्मरण किया और कंबल खींच कर,,,,,,,।
कल 5 दिसम्बर बहुत लम्बा दिन रहा और उससे लम्बी रात,,✍✍✍By Brajendra soni.
======
अयोध्या के वो 8 दिन,, न भूलने वाली दास्तान,,,।
(6) अंतिम किस्त।
5 दिसम्बर और 6 दिसम्बर 1992
आज अयोध्या के आसमान में मंडराते हैलीकोप्टर और पुलिस की गस्त जो पूरी अयोध्या में अपने कांधे पर संगीनें टांगे,, अपने बूटो की आहट से नीरवता को चीर रही थी। हम अपनी टोली के साथ सुबह की चाय के लिये अपने पसंद के,, पं ज्वाला प्रसाद दुबे की दुकान पर हैं।
आज ज्वाला प्रसाद जी भी खामोशी ओढे हैं,, और हम भी कोई मजाक के मूढ में नही हैं। आज कारसेवक अभी सडकों पर कम ही हैं,, सभी शायद अभी अपने आवास में हैं। जब से यह सूचना दी गई है कि सभी कारसेवक 6 तारीख को यानि कल सरयू से रेती लाकर जन्मभूमि परिषर में एक निश्चित स्थान पर डालेंगे,, यही कारसेवा होगी और तत्पश्चात सभी अपने अपने स्थानों को लौट जायेंगे। इस सूचना ने कारसेवको का उत्साह ठंडा कर दिया था। जो अयोध्या जयश्री राम के नारों से चोबीसों घंटे गुंजायमान थी उसकी जगह मातम सा पसर गया था।
गुस्सा हर ओर था, अयोध्या की महिलायें तो कारसेवकों को अपनी चूडियाँ तक भेंट करने लगी थी। उनका भी क्रोध सातवें आसमान पर था। चाय बन गई थी आज ज्वाला प्रसाद ने चाय को,, न कप से नापा न अपने बिस्कुटों के पैकेट की गिनती की सीधे ट्रे में परोस दी और कहा आप जी भर खाओ कोई पैसा भी नही लेंगे पर,, जिस काम को आये हो,, वो तो करके जाओ । ये भाव अकेले ज्वाला प्रसाद का नही था,,! बल्कि पूरी अवधपुरी इसी उम्मीद में थी,, कि यह कलंक अब की बार अवश्य मिट जायेगा। लेकिन राजनीति का कोई नापतोल तो होता नही,, वो तो अपने स्वार्थ को,,, लोगों की भावनाओं के उबाल में अच्छी तरह पकाना जानती है न,, तो बस यही सब हो रहा था। हमने भी अनमने ढंग से चाय नास्ता किया। आज हमारे पास न कोई लेखन का काम था न किसी स्थान को देखने की जिज्ञासा,, बस भोजन के बाद अपने तंबू में ही सारा दिन निकाला। आज शायं को कई बडे नेताओं को अयोध्या आना है शायद ये अंतिम मंचीय कार्यक्रम रहेगा यही सोच कर कारसेवक पुरम् की तरफ चल दिये। जो खबर आ रही थी,, उसी की अधिकारिक घोषणा की गई।
कि कैसे कारसेवा करनी है। इस समय जब नेताओं के भाषण चल रहे थे तो कारसेवकों के चेहरे पर जो गुस्सा था,, उसे शायद कोई नेता समझ नही पाया,, या समझने की कोशिश नही कर रहा था। कुल मिलाकर नेतागण अपना वक्तव्य देकर निश्चिंत थे ,,पर पाँच लाख से ज्यादा चेहरों पर तूफान से पहले की सी शान्ति थी। राजमाता विजयाराजे के नेतृत्व में तीन सदस्य दल ने कोर्ट में इस तरह की कारसेवा का हलफनामा भी दे दिया था। रात्रि को खाने के बाद जन्मभूमि परिषर में ही एक छोटा मंच लगाया गया था वहाँ से रात्रि को श्रीराम संकीर्तन और काव्यपाठ के लिये कवियों को मंच पर बुलाया गया था।
ज्यादा लोग भी इकट्ठे नही थे । अचानक द्वार पर हलचल सी हुई और परिषर की जी बाउण्ड्री थी उसका मुख्य द्वार,,दीवार के कुछ हिस्से के साथ,, धडाम से नीचे गिर गया। यह सब देखकर मुझे तो ऐसा ही लगा जैसे, हनुमान जी सीता मैया को खोजने का बाद ,,माता से अशोक वाटिका को उजाडने की इजाजत माँग रहे हैं।
तुरत फुरत प्रशासन हरकत में आया तब तक मंच पर विनय कटियार जी भी आ गये थे। उन्होंने मंच से ही ऐसा करने वालों को फटकार भी लगाई,,जैसे ही यह खबर अयोध्या में फैली तो कारसेवकों में अचानक उत्साह का संचार हो गया,, भीड बढने लगी कारसेवक इकट्ठे होने लगे तो मुझे काव्यपाठ का अवसर मिला यहाँ मैने आदरणीय करुण जी की कविता भारत माता की जय सुनकर जिसकी छाती फट जाती हो,,,जो उस समय पांचजन्य में प्रकाशित हुई थी और जो मुझे याद थी,, मैने उसका काव्यपाठ किया खूब समां बंधा,,,तभी अचानक कटियार जी ने कार्यक्रम को समाप्त करवा दिया। और अपने अपने आवास में जाने को कहा गया। पर तंबू में आज की रात नींद कहाँ आने वाली थी,,! सो बारह बजे तक यूँ ही हँसी मजाक चलता रहा अपना अपना सामान भी पैक कर लिया था,, सुबह वापिस जो आना था।
6 दिसम्बर,, आज सुबह जल्दी ही आँख खुल गई। नींद आई भी कहाँ थी। सरयू तट पर भारी भीड होने वाली थी अतः हम सब लगभग 6.30 बजे ही निकल लिये। हम में भी दो चार लोग ज्यादा ही उत्साही थे अतः सबको विशेष निर्देश दिया गया। कि हम सब अपनी टोली के साथ ही रहें। बच्चों और महिलाओं को भी सचेत किया गया कि वो अपना विशेष ध्यान रखें बुजुर्गों को भी ऐसी ही हिदायतें दी गई थी। आज के दिन हम सरयू में एक तरह से विशेष स्नान कर रहे थे कई को सरयू का जल,, हाथ में लेकर संकल्प करते भी देखा। लगभग 8.30 तक स्नान के बाद एक बोरे में सरयू की रज को भरा उसे काँधे पर लादे चल दिये कारसेवा करने,, यही आदेश था।
हमने उसका अक्षरशः पालन करने का सोच ही रखा था।
जैसे जैसे जन्मभूमि परिषर नजदीक आ रहा था उस रज के बोरे का भार बढता ही जा रहा था,, रामजन्मभूमि परिषर लगभग 30 मीटर ही दूर रह गया था। कि अचानक सामने से साधुओं की पूरी टुकडी ने हमसे( जो सरयू रज को अपने काँधे ला रहे जितने भी कार सेवक थे) कहा इस वजन को फेंकिये,, और उस कलंक को मिटाओ चलो,, दौडो,,जल्दी करो,,ये वो दृश्य था जो अब तक अदृश्य था,, अचानक साक्षात होने लगा,,आँखें जिसको देखने के लिये सदियों से तड़प रही थी,,वो इस तरह से यकायक सामने होने लगे तो कभी कभी विश्वास नही होता पर अविश्वास का कोई कारण भी नही था।
सब्र का ज्वालामुखी फट चुका था,,क्या प्रशासन,, क्या न्यायलय,,, क्या सरकार इस समय "काल" स्वयं हमको अपनी भाषा में उत्तर देने की कोशिश कर रहा था,, जिसको सुनना,पढना किसी भी श्रोता या भाष्यकार के लिये संभव नही था। मैं ठहरा छोटा सा कवि,,जो चलचित्र मेरे सामने था उसका दर्शन,, बिना किसी दैवीय अनुकम्पा के संभव ही नही था। सुबह के 9.45 पर सूर्य ने अपने रथ के घोडों की लगाम जैसे खींच ली हो वो भी स्थिर होकर इस दिव्य दर्शन का गवाह बन रहा था। अयोध्या असीम आनंद की समाधि में मग्न हो गई। जो सुरक्षा तंत्र उस गुलामी के प्रतीक की रक्षा में खुद गुलाम हो गया था वो भी आसमान की तरफ देखकर अपनी आजादी का जश्न मना रहे थे। 12.15 मिनट पर पहली कालिख को मिटाकर राम राज्य की उद्घोषणा का शंखनाद हो गया। अयोध्या,, कारसेवकों को कांधे पर उठा कर नाँचने लगी। सरयू भी जैसे सूर्य के प्रकाश में नहाकर सुनहरी हो गई थी। 2.42 मिनट अयोध्या के दूसरे कांधे का वजन हल्का हो गया। अब अयोध्या के दोनों हाथ मुक्त थे वो ताली बजा सकती थी। हाथ उठाकर खुद को सहला सकती थी और अपने सिर से उस भारी भरकम कलंक को स्वयं उतार सकती थी। पर आज तो उसके लाखों बेटों ने यह सब अपने हाथ में लिया हुआ था। तो 492 साल के उस बोझ को ठीक 4.45 मिनट पर अवधपुरी के सिर से उतार फेंका। श्री राम लौट आये,, उनके साथ हनुमान, सुग्रीव, अंगद ,नल नील और जामवंत सबने मिलकर दिवाली मनाई,,हम श्रीराम को चौदह साल का वनवास देने वाली कैकई और मंथरा को,, अभी तक आदर्श नही मानते उन्हें गालियाँ देते हैं सोचो 492 साल का,, प्रभु श्रीराम का यह वनवास यह हिंदू समाज कैसे सह रहा होगा । हम इस मिटते वनवास के और उस अलौकिक कौतुक के साक्षी बने , दर्शक बने,, इस जन्म की यही सबसे बडी उपलब्धि है। कल प्रभु श्री राम के भव्य और दिव्य मंदिर का निर्माण शुरू होने जा रहा है। यह हमारी संस्कृति के पुनः उत्थान का दिन है। भारत के स्वाभिमान का दिन है। अतः घर घर उत्सव मनायें, दीप प्रज्ज्वलित करें,, पकवान बनायें,, नये वस्त्र धारण करें। और अपने शुभचिंतकों को शुभकामना संदेश भेजें। आपने अपना स्नेह दिया आप सभी का आभार ,, समाप्त✍✍✍By Brajendra Soni
बहुत सुन्दर प्रसंग l आपने स्तुत्य कार्य किया है l आपकी कविताओं का फेसबुक पर प्रयोग करता हूँ l मैं तो मंच पर साधु संतो को पानी i पिलाने, चाय वितरण में लगा था l
जवाब देंहटाएंविजयप्रकाश त्रिपाठी
कानपुर
जय हो
जवाब देंहटाएं