जब नेता बेईमान हो जाता है.......! (कविता....)

 जब नेता बेईमान हो जाता है.......! (कविता....)

Arvind Sisodia 

 जब नेता बेईमान हो जाता है.......!

Arvind S Sisodia (@ArvindSSisodia) / Twitter
अरविन्द सीसौदिया,
राष्ट्रवाद के प्रखर प्रवक्ता,
इनके लेख अक्सर आप पढते रहते हैं, आपातकाल की स्थिति - परिस्थिति पर व्यंग्य करती हुई एक ओजस्वी कविता.....


जब नेता बेईमान हो जाता है,
नीति मर जाती है, न्याय मर जाता है,
जिधर देखो उधर शैतान नजर आता है,
विश्वास में विष, आशीर्वाद में आघात,
हमदर्दी में दुखः-दर्द, मिठास में मधुमेह,
पावनता में महापतन और...,
ईमान में महाबेईमान घटित हो जाता है।
    (1)
भगवान भी जिसके भय से कांपने लगता है,
राष्ट्रधर्म प्राण बचाकर भागने लगता है,
सूरज भी पश्चिम से उगता है यारों,
जब राजसिंहासन बेईमान हो जाता है...!
लोगों, जीवन नर्क बन जाता है
बातों की नकाबों में, इन शैतानों में,
सम्पत्ति की होड़ - धनलूट की दौड़ ,
बीस साल पहले, जिस पर कोड़ी भी नहीं थी यारों,
वह करोपतियों में भी सिरमौर नजर आता है।
    (2)
गले में महानता के उसूल टांगे,
वाणी में संतों की सम्प्रभुता की बांगें,
जो मिले उसे लूट लेना हैं मकशद,
अपनी तो हवस मिट ही जायेगी,
असल इंतजाम तो,
अगली अस्सी पीढ़ी का कर जाना है यारों...!
    (3)
जो मिले, जहां मिले, जितना मिले,सब स्वीकार है,
भिष्ठा में मिले, मदिरा में मिले, मंदिर में मिले..,
किसी की घर गृहस्थी और जायदाद में मिले,
किसी के सुख-सुकून और संतान में मिले,
वह सब हमें मिले, यही प्रार्थना, यही कामना है,
इसी का इंतजार है !
    (4)
गद्दार-ए-वतन को तो फांसी दे सकते हैं यारों,
मक्कार को मुसीबत खडी कर सकते हैं यारों,
जो ईमान पर चले उस पर ठहाके लगा सकते हैं,
मगर क्या करें इन नेताओं के प्रभुत्व का,
इनके खिलाफ कानून भी दुम दबाकर भाग जाता है,
कितना भी बड़ा भ्रष्टाचार हो,
कितनी भी बड़ी रकम डकार हो,
कितने भी महल फैक्ट्रियां ध्ंाधे
क्यों न पल-क्षण में खडे़ हों,
इन से क्या पूछे ,
ये तो कानून पालनहार हैं ?
    (5)
अमरीका से आयात होता नहीं,
चीनी सामान में मिलता नहीं,
इन्हें सुधारे कौन सा यंत्र ?
इन्हे नापे तौले कौन सा तंत्र ?
हर धर्म, हर मजहब में टटोला,
सुधारने की कोई इबारत काम कर जाये,
पता चला कि अब ये ही सब आदर्श पुरूष हैं,
ये स्वयंभू ईश्वर से कम नहीं,
ये इबादत हैं, धर्मप्राण हैं,
महान है, मंत्र हैं,अनुष्ठान हैं,
इनसेे संसद चलती है, गिरती है,
इनसे विधानसभाएं बनती हैं, बिगड़ती हैं,
जिला परिषद हो, पंचायत समिति हो,
संगठन से सरपंच तक इनका ही बोलवाला है,
इसलिए यारों आजकल ये ही महाप्रभुत्वमय हैं।
इनकी जयजयकार करो, इसी में निहाल है !
    (6)
क्या हो गया इस देश की जवानी को ?
क्या हो गया इस देश की कुर्बानी को ?
कहां चले गए सब मजहब और धर्मों के कुनबे ?
कहां चली गई नीतियों और सि(ान्तों की इबारतें ?
क्या नई गुलामी कुबूल करना ही स्वतंत्रता है !
क्या राम से लेकर गांधी तक,
सबको दीवारों पर टंगना है?
अच्छाईयां और आदर्शं,
भग्नावशेषी खण्डहर बनने थे ?
    (7)
सारे प्रचार तंत्र, बन गये दुष्चारक,
सेवासदन बन गये षडयंत्र सदन,
किस राष्ट्रवाद पर विश्वास करें,
जो सिर्फ गुलछर्रे उडाता हो,
धनबल की मौलतौल में योग्यता को भुलाता है,
बहला फुसला कर महज बर्बादी पर अटकाता है,
इनसे तो वे सैनिक महान है ,
जो सीमा पर अपनी आहूती से सत्य को निभाते हंै,
कुछ सीखो समय से,
आने वाले कल में सब इतिहास बन जाता है।
    (8)
देखो, सुनो, बदलनी होगी ये तस्वीर,
सत्य का सामना सत्य से ही करना होगा,
देखो, सुनो, सुननी होगी, गरीब की आह,
उसके दुखदर्द के लिये जम कर लडना होगा,
देखो, सुनो, छोड़ना होगा, आलस्य और स्वार्थ,
तुम्हें वीर बनना होगा, प्रजातंत्र की हीर बनना होगा,
पुरखे नहीं आएंगे, हक परस्ती के मैदाने जंग में,
मगर इतिहास की स्फूर्ति संग, तुम्हें विजेता बनना होगा।
    (9)
हम देश हैं, हम धर्म हैं, नैतिकता और जनतंत्र हैं,
हक हमारे लूटे हैं, हुक्म हमारा छिना है,
हम जो थे, उसे छला गया है,
पुरखों को जलील किया गया है,
मगर, गुलामी के अवशेषों पर जश्न है,
हम जो होने थे, उसे भी लूटा गया है,
नेताओं की सत्तामदी धृतराष्ट्रों से,
प्रशासन हुआ दुशासन ,
अन्याय, लूट, डकैती, चोरी और शोषण का आसन।
शकुनियों ने घेरा सिंहासन,राजधर्म हुआ निद्रासन,
सुबह स्वार्थपूजा, शाम को मदिरासन है,
क्या हो गया यह? क्यों हो गया है ?
    (10)
सुनो कान खोल,
चंद पूंजीपतियों के लिए,
सारा देश गरीब नहीं होगा,
चंद महली खुशियों के लिए,
सारा देश आंसू नहीं पियेगा,
चंद कंपनियों की खातिर,
घर-घर का धंधा बंद नहीं होगा,
मत छेडो इस आग को,
इसमें तुम्हे भी स्वाहा होना होगा,
    (11)
उद्योग में, व्यापार में, खेत में खलिहान में,
दूसरे मुल्कों का सिक्का चलना स्वीकार नहीं,
हम गोलियां खाएं, आत्महत्या करें,
जहर पिएं, फांसी लगाएं,       
मुनाफा बाहरी खायें,ये नहीं चलेगा ! ये नहीं चलेगा !!
    (12)
ललकार भी हम बनें, हूंकार भी हम बनें,
तोड़ें ये बेडियां सारी, हर घर में सुख का दिया जले,
इसके लिए यदि जीवन ज्योति अपनी बुझे,
तो बुझा दें अभी,मगर चुप न बैठो, चैराहों पर आओ,
चर्चा करो, प्रश्न पूछो,उत्तरों से जूझो,खूब बहस करो,
देश हमारा, धरती अपनी,
इसका मर्म हमारा दुख-दर्द है!
    (13)
प्रजातंत्र जन्मसि( अधिकार है,
राष्ट्र रक्षा सर्वोपरि स्वीकार है,
जो गरीब को सुख समृद्धि दे उसके पीछे चलो,
जो गरीब का निवाला छीने,
न्याय का, नैतिकता का, व्यवस्था का गला घोंटे,
अपने स्वार्थ के लिए समाज का,
समर्थन का मोल वसूले,
उसे धक्का देकर पीछे करो-पीछे करो,
खुद आगे बढो,आगे बढो ,
संभालों अपने ताज को, संभालो अपने काज को,
कहो जोर से, जय श्री राम, नहीं लेंगे अब विश्राम।
- राधाकृष्ण मंदिर रोड़, डडवाड़ा, कोटा जंक्शन।
9414180151

 

 

 

टिप्पणियाँ

इन्हे भी पढे़....

हमारा देश “भारतवर्ष” : जम्बू दीपे भरत खण्डे

सेंगर राजपूतों का इतिहास एवं विकास

Veer Bal Diwas वीर बाल दिवस और बलिदानी सप्ताह

चुनाव में अराजकतावाद स्वीकार नहीं किया जा सकता Aarajktavad

‘फ्रीडम टु पब्लिश’ : सत्य पथ के बलिदानी महाशय राजपाल

महाराष्ट्र व झारखंड विधानसभा में भाजपा नेतृत्व की ही सरकार बनेगी - अरविन्द सिसोदिया

भारत को बांटने वालों को, वोट की चोट से सबक सिखाएं - अरविन्द सिसोदिया

शनि की साढ़े साती के बारे में संपूर्ण

ईश्वर की परमशक्ति पर हिंदुत्व का महाज्ञान - अरविन्द सिसोदिया Hinduism's great wisdom on divine supreme power

देव उठनी एकादशी Dev Uthani Ekadashi