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भगवान कृष्ण का जलवा पूजन : डोल ग्यारस

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भगवान कृष्ण का जलवा पूजन भाद्रपद की परिवर्तिनी एकादशी को डोल ग्यारस है. इस दिन भगवान विष्णु नींद में करवट बदलते हैं। परिवर्तिनी एकादशी डोल ग्यारस, पद्मा एकादशी और जलझूलनी एकादशी के नाम से भी प्रसिद्ध है। इस दिन जगत के पालनहार भगवान श्रीहरि विष्णु और धन की देवी मां लक्ष्मी की पूजा-उपासना की जाती है। डोल ग्यारस व्रत का महत्व - मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत करने से वाजपेय यज्ञ के समान पुण्य-फल मिलता है। इस दिन व्रत करने से रोग-दोष आदि से मुक्ति मिलती है। व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि व मान-प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है। इस दिन दान-पुण्य करने से सौभाग्य में वृद्धि होती है। कृष्ण जन्माष्टमी के पश्चात् आने वाली एकादशी को डोल ग्यारस बोलते हैं। श्रीकृष्ण जन्म के 18वें दिन माता यशोदा ने उनका जल पूजन (घाट पूजन) किया था। इसी दिन को ’डोल ग्यारस’ के तौर पर मनाया जाता है। जलवा पूजन के पश्चात् ही संस्कारों का आरम्भ होता है। कहीं इसे सूरज पूजा बोलते हैं तो कहीं दश्टोन पूजा बोला जाता है। जलवा पूजन को कुआं पूजा भी बोला जाता है। इस ग्यारस को परिवर्तिनी एकादशी, जलझूलनी एकादशी, वामन एकादशी आदि के नाम...