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रामायण - समर्पण क़ी पराकाष्ठा

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"लक्ष्मण सा भाई हो, कौशल्या माई हो, स्वामी तुम जैसा, मेरा रघुराइ हो..  नगरी हो अयोध्या सी, रघुकुल सा घराना हो,  चरण हो राघव के, जहाँ मेरा ठिकाना हो.. हो त्याग भरत जैसा, सीता सी नारी हो,  लव कुश के जैसी, संतान हमारी हो..  श्रद्धा हो श्रवण जैसी, सबरी सी भक्ति हो,  हनुमत के जैसी निष्ठा और शक्ति हो... " ये रामायण है, पुण्य कथा श्री राम की।   “रामायण” क्या है हम कथा सुनाते, रामसकल गुण धाम की, हम कथा सुनाते, रामसकल गुण धाम की, ये रामायण है,पुण्य कथा श्री राम की  रामायण का एक छोटा सा वृतांत है, उसी से शायद कुछ समझा जा सकता है। एक रात की बात हैं, माता कौशल्या जी को सोते में अपने महल की छत पर किसी के चलने की आहट सुनाई दी।  नींद खुल गई, पूछा कौन हैं ? मालूम पड़ा श्रुतकीर्ति जी (सबसे छोटी बहु, शत्रुघ्न जी की पत्नी)हैं । माता कौशल्या जी ने उन्हें नीचे बुलाया | श्रुतकीर्ति जी आईं, चरणों में प्रणाम कर खड़ी रह गईं माता कौशिल्या जी ने पूछा, श्रुति ! इतनी रात को अकेली छत पर क्या कर रही हो बेटी ?  क्या नींद नहीं आ रही ? शत्रुघ्न कहाँ है ? श्रुतिकीर...