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शबरी के श्री राम shabri ke shree Ram

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शबरी को आश्रम सौंपकर महर्षि मतंग जब देवलोक जाने लगे, तब शबरी भी साथ जाने की जिद करने लगी। शबरी की उम्र दस वर्ष थी। वो महर्षि मतंग का हाथ पकड़ रोने लगी। महर्षि शबरी को रोते देख व्याकुल हो उठे। शबरी को समझाया "पुत्री इस आश्रम में भगवान आएंगे, तुम यहीं प्रतीक्षा करो।" अबोध शबरी इतना अवश्य जानती थी कि गुरु का वाक्य सत्य होकर रहेगा, उसने फिर पूछा- कब आएंगे..? महर्षि मतंग त्रिकालदर्शी थे। वे भूत भविष्य सब जानते थे, वे ब्रह्मर्षि थे। महर्षि शबरी के आगे घुटनों के बल बैठ गए और शबरी को नमन किया।  आसपास उपस्थित सभी ऋषिगण असमंजस में डूब गए।ये उलट कैसे हुआ। गुरु यहां शिष्य को नमन करे, ये कैसे हुआ??? महर्षि के तेज के आगे कोई बोल न सका। महर्षि मतंग बोले-  पुत्री अभी उनका जन्म नहीं हुआ। अभी दशरथ जी का लग्न भी नहीं हुआ। उनका कौशल्या से विवाह होगा।फिर भगवान की लम्बी प्रतीक्षा होगी।  फिर दशरथ जी का विवाह सुमित्रा से होगा।फिर प्रतीक्षा..फिर उनका विवाह कैकई से होगा।फिर प्रतीक्षा..  फिर वो जन्म लेंगे, फिर उनका विवाह माता जानकी से होगा।फिर उन्हें 14 वर्ष वनवास होगा और फिर वनवास ...