जन्मदिन पर नरेंद्र मोदी ने : मां के पैर छू कर लिया आशीर्वाद
जन्मदिन पर घर पहुंचे मोदी,
मां के पैर छू लिया आशीर्वाद
आईबीएन-7 | Sep 17, 2014
नई दिल्ली। आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जन्मदिन है। प्रधानमंत्री मोदी आज 64 साल के हो गए। जन्मदिन से एक दिन पहले ही मोदी गुजरात पहुंचे हैं। इस खास मौके पर पीएम मोदी अपनी मां से भेंट करने घर पहुंचे। मोदी ने मां के पैर छूकर उनका आशीर्वाद लिया।
मां ने खुश होकर मोदी को मिठाई खिलाई और तोहफे के रूप में मोदी को शगुन के पांच हजार रुपये भी दिए। मोदी ने मां के दिए हुए 5 हजार रुपये बाढ़ पीड़ितों की राहत के लिए प्रधानमंत्री राहत कोष में जमाकरवा दिए। बता दें प्रधानमंत्री मोदी ने पहले ही अपील की है कि उनका जन्मदिन न मनाया जाए। बल्कि जम्मू-कश्मीर में आई बाढ़ से बेहाल लोगों की मदद की जाए। मोदी को जन्मदिन के मौके पर जापान के पीएम और राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी दी बधाई दी।
यही नहीं आज एक और खास मौका है क्योंकि चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग 3 दिवसीय दौरे पर भारत आ रहे हैं। दोपहर ढाई बजे के लगभग वो सीधे अहमदाबाद आएंगे। वहीं पर मोदी और चिनफिंग की मुलाकात होगी। अहमदाबाद में चीनी राष्ट्रपति के स्वागत की तैयारियां जोर शोर से की गईं हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी जिंदगी के 64 सालों में अथक संघर्ष किया।
गुजरात के मेहसाणा जिले में छोटी सी आबादी वाला शहर है वडनगर, कौन जानता था कि एक दिन इसी शहर की गलियों में खेलने-कूदने वाला एक छोटा सा बच्चा देश की बागडोर संभालेगा। वडनगर में ही 1950 में जन्म हुआ था हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी का। पिता रेलवे स्टेशन पर चाय की दुकान चलाते थे। और मोदी पढ़ाई के साथ-साथ पिता के काम में हाथ बंटाते थे। स्कूल के अलावा नरेंद्र मोदी रोज दो बार संघ की शाखा में भी जाते थे। स्कूल में सिर्फ थिएटर और परिचर्चाएं ही थींजहां मोदी का मन लगता था।
18 साल की उम्र में नरेंद्र मोदी ने दो साल के लिए घर छोड़ दिया। कहा जाता है कि ये समय मोदी ने हिमालय में बिताया। इसी दौरान वो संघ के मुख्यालय नागपुर जा पहुंचे। जहां प्रशिक्षण के बाद मोदी 1970 में संघ के पूर्ण प्रचारक बन गए।
मोदी के लिए संघ हमेशा प्राथमिकता रहा। मोदी ने खुद को संघ के लिए पूरी तरह से समर्पित कर दिया। अपने काम के प्रति मोदी के समर्पण का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि परिवार को उनका साथ कभी-कभी ही मिल पाता था। नरेंद्र मोदी का विवाह छोटी उम्र में ही हो गया था। लेकिन देश की सेवा का व्रत ले चुके मोदी पत्नी को छोड़ सियासी यात्रा पर निकल पड़े। मोदी की धर्मपत्नी जशोदा बेन मेहसाणा के ऊंझा में अपने भाई के साथ रहती हैं।
मोदी की मां हीराबेन भी अपने इस बेटे से बरसों तक नहीं मिल पाईं। बीते कुछ सालों में भी वो उन्हें सिर्फ टीवी पर देखती रहीं। लेकिन जीत के बाद हीराबेन पहली शख्स थीं जिससे मोदी मिलने गए। मोदी के लिए उनकी साधारण सी सलाह थी जब वो मुख्यमंत्री बने थे।
नरेंद्र मोदी सियासत के कर्मक्षेत्र में आगे, और आगे बढ़ते गए। 80 और 90 के दशक में मोदी ने खुद को चुनावी राजनीति से दूर रखा। वो संगठन में रहे और बीजेपी को गुजरात चुनाव जिताने के लिए काम करते रहे। 1991 में मोदी ने मुरली मनोहर जोशी की कन्याकुमारी से श्रीनगर तक की एकता यात्रा का जिम्मा संभाला। स्वर्ण जयंती यात्रा के दौरान वो आडवाणी के सारथी भी रहे। मोदी की एक कुशल प्रशासक और संगठनकर्ता की जो छवि बनी, उसी के चलते साल 2001 में भूकंप राहत कार्य में केशुभाई सरकार की नाकामी के बाद उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया।
मुख्यमंत्री बनने से पहले भले ही मोदी को चुनाव लड़ने का तजुर्बा नहीं था। लेकिन उसके बाद गुजरात में 2002, 2007 और 2012 में लगातार जीत हासिल कर उन्होंने चुनावी सफलताओं का इतिहास लिख दिया। फिर बारी आई 2014 के आम चुनावों की। यहां भी मोदी की अगुवाई में बीजेपी को अब तक की सबसे ने बड़ी जीत मिली। और नरेंद्र मोदी ने 15वें प्रधानमंत्री के तौर पर देश की बागडोर संभाली।
नई दिल्ली। आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जन्मदिन है। प्रधानमंत्री मोदी आज 64 साल के हो गए। जन्मदिन से एक दिन पहले ही मोदी गुजरात पहुंचे हैं। इस खास मौके पर पीएम मोदी अपनी मां से भेंट करने घर पहुंचे। मोदी ने मां के पैर छूकर उनका आशीर्वाद लिया।
मां ने खुश होकर मोदी को मिठाई खिलाई और तोहफे के रूप में मोदी को शगुन के पांच हजार रुपये भी दिए। मोदी ने मां के दिए हुए 5 हजार रुपये बाढ़ पीड़ितों की राहत के लिए प्रधानमंत्री राहत कोष में जमाकरवा दिए। बता दें प्रधानमंत्री मोदी ने पहले ही अपील की है कि उनका जन्मदिन न मनाया जाए। बल्कि जम्मू-कश्मीर में आई बाढ़ से बेहाल लोगों की मदद की जाए। मोदी को जन्मदिन के मौके पर जापान के पीएम और राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी दी बधाई दी।
यही नहीं आज एक और खास मौका है क्योंकि चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग 3 दिवसीय दौरे पर भारत आ रहे हैं। दोपहर ढाई बजे के लगभग वो सीधे अहमदाबाद आएंगे। वहीं पर मोदी और चिनफिंग की मुलाकात होगी। अहमदाबाद में चीनी राष्ट्रपति के स्वागत की तैयारियां जोर शोर से की गईं हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी जिंदगी के 64 सालों में अथक संघर्ष किया।
गुजरात के मेहसाणा जिले में छोटी सी आबादी वाला शहर है वडनगर, कौन जानता था कि एक दिन इसी शहर की गलियों में खेलने-कूदने वाला एक छोटा सा बच्चा देश की बागडोर संभालेगा। वडनगर में ही 1950 में जन्म हुआ था हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी का। पिता रेलवे स्टेशन पर चाय की दुकान चलाते थे। और मोदी पढ़ाई के साथ-साथ पिता के काम में हाथ बंटाते थे। स्कूल के अलावा नरेंद्र मोदी रोज दो बार संघ की शाखा में भी जाते थे। स्कूल में सिर्फ थिएटर और परिचर्चाएं ही थींजहां मोदी का मन लगता था।
18 साल की उम्र में नरेंद्र मोदी ने दो साल के लिए घर छोड़ दिया। कहा जाता है कि ये समय मोदी ने हिमालय में बिताया। इसी दौरान वो संघ के मुख्यालय नागपुर जा पहुंचे। जहां प्रशिक्षण के बाद मोदी 1970 में संघ के पूर्ण प्रचारक बन गए।
मोदी के लिए संघ हमेशा प्राथमिकता रहा। मोदी ने खुद को संघ के लिए पूरी तरह से समर्पित कर दिया। अपने काम के प्रति मोदी के समर्पण का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि परिवार को उनका साथ कभी-कभी ही मिल पाता था। नरेंद्र मोदी का विवाह छोटी उम्र में ही हो गया था। लेकिन देश की सेवा का व्रत ले चुके मोदी पत्नी को छोड़ सियासी यात्रा पर निकल पड़े। मोदी की धर्मपत्नी जशोदा बेन मेहसाणा के ऊंझा में अपने भाई के साथ रहती हैं।
मोदी की मां हीराबेन भी अपने इस बेटे से बरसों तक नहीं मिल पाईं। बीते कुछ सालों में भी वो उन्हें सिर्फ टीवी पर देखती रहीं। लेकिन जीत के बाद हीराबेन पहली शख्स थीं जिससे मोदी मिलने गए। मोदी के लिए उनकी साधारण सी सलाह थी जब वो मुख्यमंत्री बने थे।
नरेंद्र मोदी सियासत के कर्मक्षेत्र में आगे, और आगे बढ़ते गए। 80 और 90 के दशक में मोदी ने खुद को चुनावी राजनीति से दूर रखा। वो संगठन में रहे और बीजेपी को गुजरात चुनाव जिताने के लिए काम करते रहे। 1991 में मोदी ने मुरली मनोहर जोशी की कन्याकुमारी से श्रीनगर तक की एकता यात्रा का जिम्मा संभाला। स्वर्ण जयंती यात्रा के दौरान वो आडवाणी के सारथी भी रहे। मोदी की एक कुशल प्रशासक और संगठनकर्ता की जो छवि बनी, उसी के चलते साल 2001 में भूकंप राहत कार्य में केशुभाई सरकार की नाकामी के बाद उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया।
मुख्यमंत्री बनने से पहले भले ही मोदी को चुनाव लड़ने का तजुर्बा नहीं था। लेकिन उसके बाद गुजरात में 2002, 2007 और 2012 में लगातार जीत हासिल कर उन्होंने चुनावी सफलताओं का इतिहास लिख दिया। फिर बारी आई 2014 के आम चुनावों की। यहां भी मोदी की अगुवाई में बीजेपी को अब तक की सबसे ने बड़ी जीत मिली। और नरेंद्र मोदी ने 15वें प्रधानमंत्री के तौर पर देश की बागडोर संभाली।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें