राष्ट्रध्वज केसरिया से तिरंगा तक की गाथा



                                                           हिंदू भगवा ध्वज

http://www.ugtabharat.com 

विजय कुमार सिंघल
भगवा ध्वज हिन्दू संस्कृति और धर्म का शाश्वत प्रतीक है। यह हिन्दू धर्म के प्रत्येक आश्रम, मन्दिर पर फहराया जाता है। यही श्रीराम, श्रीकृष्ण और अर्जुन के रथों पर फहराया जाता था और छत्रपति शिवाजी सहित सभी मराठों की सेनाओं का भी यही ध्वज था। यह धर्म, समृद्धि, विकास, अस्मिता, ज्ञान और विशिष्टता का प्रतीक है। इन अनेक गुणों या वस्तुओं का सम्मिलित द्योतक है अपना यह भगवा ध्वज।
भगवा ध्वज का रंग केसरिया है। यह उगते हुए सूर्य का रंग है। इसका रंग अधर्म के अंधकार को दूर करके धर्म का प्रकाश फैलाने का संदेश देता है। यह हमें आलस्य और निद्रा को त्यागकर उठ खड़े होने और अपने कर्तव्य में लग जाने की भी प्रेरणा देता है। यह हमें यह भी सिखाता है कि जिस प्रकार सूर्य
स्वयं दिनभर जलकर सबको प्रकाश देता है, इसी प्रकार हम भी निस्वार्थ भाव से सभी प्राणियों की नित्य और अखंड सेवा करें।
यह यज्ञ की ज्वाला का भी रंग है। यज्ञ सभी कर्मों में श्रेष्ठतम कर्म बताया गया है। यह आन्तरिक और बाह्य पवित्रता, त्याग, वीरता, बलिदान और समस्त मानवीय मूल्यों का प्रतीक है, जो कि हिन्दू धर्म के आधार हैं। यह केसरिया रंग हमें यह भी याद दिलाता है कि केसर की तरह ही हम इस संसार को महकायें।
भगवा ध्वज में दो त्रिभुज हैं, जो यज्ञ की ज्वालाओं के प्रतीक हैं। ऊपर वाला त्रिभुज नीचे वाले त्रिभुज से कुछ छोटा है। ये त्रिभुज संसार में विविधता, सहिष्णुता, भिन्नता, असमानता और सांमजस्य के प्रतीक हैं।
ये हमें सिखाते हैं कि संसार में शान्ति बनाये रखने के लिए एक दूसरे के प्रति सांमजस्य,
सहअस्तित्व, सहकार, सद्भाव और सहयोग भावना होना आवश्यक है।
भगवा ध्वज दीर्घकाल से हमारे इतिहास का मूक साक्षी रहा है। इसमें हमारे पूर्वजों, ऋषियों और माताओं के तप की कहानियां छिपी हुई हैं। यही हमारा सबसे बड़ा गुरु, मार्गदर्शक और प्रेरक है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने किसी व्यक्ति विशेष को अपना गुरु नहीं माना है, बल्कि अपने परम पवित्र भगवा ध्वज को ही गुरु के रूप में स्वीकार और अंगीकार किया है। साल में एक बार हम सभी स्वयंसेवक अपने गुरु भगवा ध्वज के सामने ही अपनी गुरु दक्षिणा समर्पित करते हैं. मौलिक भगवा ध्वज में कुछ भी लिखा नहीं जाता।
लेकिन मंदिरों पर लगाये जाने वाले ध्वजों में ओउम् आदि लिखा जा सकता है। इसी प्रकार संगठन या व्यक्ति विशेष के ध्वज में अन्य चिह्न हो सकते हैं, जैसे अर्जुन के ध्वज में हनुमान का चिह्न था। लेकिन किसी भी स्थिति में उनका रंग भगवा ही होना चाहिए।
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                                   डा.हेडगेवार, राष्ट्र-ध्वज और कांग्रेस - कृष्णानंद सागर
http://panchjanya.com/arch/2009/4/12/File31.htm
पूर्ण स्वातंत्र्य के अग्रदूत और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डा. केशव बलिराम हेडगेवार की मान्यता थी कि भारत अत्यंत प्राचीन काल से एक राष्ट्र है और राष्ट्र जीवन के सभी प्रतीक, यहां सदा विद्यमान रहे हैं। फलत: हमारी राष्ट्रीय आकांक्षाओं, जीवन की आध्यात्मिक दृष्टि एवं सम्पूर्ण इतिहास के गौरव को हमारे सम्मुख रखने वाला भगवा ध्वज सदैव से राष्ट्र के मानबिन्दुओं के रूप में हमारे आदर और श्रद्धा का केन्द्र रहा है। इसलिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को कभी यह विचार करने की आवश्यकता ही नहीं पड़ी कि संघ का ध्वज कौन सा हो। परंपरा से चले आ रहे राष्ट्रध्वज रूपी भगवाध्वज को ही संघ ने अपने ध्वज के नाते अपना लिया।

किंतु राजनीतिक क्षेत्र में भारत के राष्ट्रीय ध्वज के संबंध में लोगों में बहुत अज्ञान दिखायी देता है। सन् 1906 से लेकर 1929 तक विभिन्न व्यक्तियों और विभिन्न संस्थाओं ने अपनी-अपनी कल्पना के अनुसार समय-समय पर अनेक झंडों को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में स्वीकार किया था। इन्हीं में तिरंगे झंडे का भी भारत की राजनीति में आविर्भाव हुआ। ये सारे झंडे भारतीय राष्ट्र जीवन से संबंधित अज्ञान और विस्मरण में से उत्पन्न हुए थे।

कांग्रेस के तिरंगे का जन्म

भारत सरकार के प्रकाशन विभाग ने "अवर फ्लैग" नामक पुस्तक प्रकाशित की हुई है। इस पुस्तक के पृष्ठ क्र.6 पर निम्नलिखित विवरण दिया है-

"1929 के लगभग बैजवाड़ा में हुए कांग्रेस अधिवेशन में आंध्र के एक युवक ने एक ध्वज तैयार किया और उसे गांधी जी के पास ले गया। यह दो रंग का था-लाल और हरा-दो प्रमुख समुदायों का प्रतीक। गांधी ने बीच में एक सफेद पट्टी जोड़ने का सुझाव दिया ताकि भारत के शेष समुदायों का भी प्रतिनिधित्व हो सके और चर्खे का भी सुझाव दिया जोकि प्रगति का प्रतीक था। इस प्रकार तिरंगे का जन्म हुआ। पर अभी इसे अखिल भारतीय कांग्रेस समिति ने अधिकृत रूप से स्वीकार नहीं किया था। फिर भी गांधी जी के अनुमोदन का प्रभाव यह पड़ा कि वह पर्याप्त लोकप्रिय हो गया और सभी कांग्रेस अधिवेशनों के अवसर पर फहराया जाने लगा।"

राष्ट्र ध्वज का प्रश्न

इसी कारण 1931 की कराची कांग्रेस में राष्ट्र ध्वज का प्रश्न विचार के लिए आया। तब तक हिन्दू, मुसलमान तथा अन्यों का प्रतिनिधित्व करते हुए तीन रंग कांग्रेस के झंडे में प्रयुक्त होते जा रहे थे। अब सिखों ने अपना अलग से पीला रंग जोड़ने का आग्रह किया। वास्तव में उन्होंने तिरंगे झंडे में तीन रंगों के चयन पर आपत्ति भी की। उनका कहना था कि ध्वज असाम्प्रदायिक होना चाहिए और यदि वह साम्प्रदायिक आधार पर ही रहता है तो उसमें सिख समुदाय के प्रतीक पीले रंग का भी समावेश किया जाए।

ध्वज समिति का प्रतिवेदन

अत: राष्ट्रीय ध्वज के विषय में ठीक से निर्णय करने के लिए सात सदस्यों की एक समिति बना दी गई। इस समिति के सदस्य थे-1-सरदार वल्लभ भाई पटेल, 2-पं.जवाहर लाल नेहरू, 3-डा.पट्टाभि सीतारमैया, 4-डा.ना.सु.हर्डीकर, 5-आचार्य काका कालेलकर, 6-मास्टर तारा सिंह और 7-मौलाना आजाद।

इस ध्वज समिति ने सब दृष्टि से विचार कर सर्वसम्मति से अपना जो प्रतिवेदन दिया, उसमें लिखा-"हम लोगों का एक मत है कि अपना राष्ट्रीय ध्वज एक ही रंग का होना चाहिए। भारत के सभी लोगों का एक साथ उल्लेख करने के लिए उन्हें सर्वाधिक मान्य केसरिया रंग ही हो सकता है। अन्य रंगों की अपेक्षा यह रंग अधिक स्वतंत्र स्वरूप का तथा भारत की पूर्व परंपरा के अनुकूल है।" निष्कर्ष के रूप में उन्होंने आगे लिखा, "भारत का राष्ट्रीय ध्वज एक रंगा हो और उसका रंग केसरिया रहे तथा उसके दंड की ओर नीले रंग में चर्खे का चित्र रहे।"

ध्वज समिति का यह प्रतिवेदन राष्ट्रीय एकात्मता की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण था, क्योंकि इसमें अलग अलग सम्प्रदायों के प्रतिनिधित्व के रूप में अलग-अलग रंगों को स्थान नहीं दिया गया था, जैसा कि तब तक तिरंग झंडे में चला आ रहा था।

यद्यपि यह ध्वज समिति की सर्वसम्मत संस्तुति थी, तो भी इस पर कांग्रेस कार्यसमिति की मुहर लगना आवश्यक था। अंतिम निर्णय वहीं होना था।

डा.हेडगेवार के प्रयत्न




ध्वज समिति का यह प्रतिवेदन प्रकाशित होने पर डा.हेडगेवार को बहुत प्रसन्नता हुई। किंतु उन्हें आशंका थी गांधी जी की ओर से। गांधी जी को मुसलमानों की बहुत चिंता रहती थी और तिरंगा गांधी जी द्वारा ही प्रचलित किया गया था, किंतु ध्वज समिति ने तिरंगे को पूरी तरह से नकार दिया था, अत: गांधी जी इस प्रतिवेदन को अस्वीकार कर सकते हैं। यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति होगी। डाक्टर हेडगेवार ऐसी स्थिति को टालने के लिए सक्रिय हो गए।

लोकनायक बापूजी अणे कांग्रेस कार्य समिति के सदस्य थे। कार्य समिति की बैठक दिल्ली में होने वाली थी और लोकनायक अणे भी उसमें भाग लेने दिल्ली जाने वाले थे। वे केसरिया रंग के पक्षधर नहीं थे, भगवा रंग के पक्षधर थे। डाक्टर हेडगेवार उनके पास गए और उन्हें समझाया कि केसरिया और भगवा रंग कोई दो रंग नहीं हैं। इनमें बहुत ही मामूली सा अंतर है, मूलत: वे एक ही हैं। दोनों ही लाल व पीले रंग के सम्मिश्रण हैं। केसरिया रंग में लाल की तुलना में पीला रंग थोड़ा सा अधिक होता है और भगवा रंग में पीले की अपेक्षा लाल रंग थोड़ा सा अधिक होता है। अत: केसरिया ध्वज के समर्थन का अर्थ भगवा ध्वज का ही समर्थन है। डाक्टर जी ने आगे कहा-"यद्यपि काफी अध्ययन और खोज के उपरांत समिति ने केसरिया रंग का सुझाव दिया है, पर गांधी जी के सम्मुख सब मौन हो जाएंगे। गांधी जी ने केसरिया को अमान्य कर तिरंगे को ही बनाए रखने का आग्रह किया, तो ये नेता मुंह नहीं खोलेंगे। अत: आपको आगे आकर निर्भयतापूर्वक अपने पक्ष का प्रतिपादन करना चाहिए।"-डा.हेडगेवार चरित्र, प्रथम संस्करण, पृ.251

डाक्टर जी के यह बताने पर कि केसरिया रंग और भगवा रंग में कोई विशेष अंतर नहीं है, बापू जी मान गए और उन्होंने कांग्रेस कार्य समिति में केसरिया ध्वज का समर्थन करने का आश्वासन दे दिया। किंतु डा.हेडगेवार जी ने अपने कर्तव्य की इतिश्री यहीं नहीं मान ली। वे किसी भी विषय में प्रयत्न एक साथ कई दिशाओं से करते थे। अत: वे स्वयं भी दिल्ली पहुंच गए और लोकनायक अणे के आवास पर ही जम गए। लोकनायक के ही कथनानुसार-"वे दिन भर दिल्ली में इधर उधर घूमते रहते थे। अत: निश्चय ही वे कार्यसमिति के अन्य सदस्यों से भी इस संबंध में मिले होंगे।"

लेकिन हुआ वही, जिसकी डाक्टर जी को आशंका थी। श्री हो.वे. शेषाद्रि के अनुसार-"परंतु, अखिल भारतीय कांग्रेस समिति गांधीजी के मन की तिरंगी योजना से मतभेद करने का साहस न कर सकी और उसने सीधे उसे ही स्वीकृति दे दी। जिस मानसिक पृष्ठभूमि के कारण यह निर्णय लिया गया, वह घोर दुर्भाग्यपूर्ण सिद्ध हुआ।"(...और देश बंट गया, पृष्ठ-138)

डा.हेडगेवार की सारी मेहनत बेकार गई। ध्वज समिति का प्रतिवेदन अमान्य कर दिया गया और तिरंगे को बनाए रखने का निर्णय ले लिया गया। हां, डाक्टर जी की दौड़ धूप का इतना परिणाम अवश्य निकला कि तिरंगे में गहरे लाल रंग के स्थान पर केसरिया रंग मान लिया गया और इस रंग का क्रम सबसे ऊपर कर दिया गया। इससे पहले लाल रंग की पट्टी सबसे नीचे रहती थी।

चारों ओर से होने वाली साम्प्रदायिकता विषयक आलोचनाओं से बचने के लिए कांग्रेस द्वारा रंगों की व्याख्या में परिवर्तन किया गया और कहा गया कि तीन रंग विभिन्न सम्प्रदायों के द्योतक न होकर गुणों के प्रतीक हैं-केसरिया रंग त्याग का, सफेद रंग शांति का तथा हरा रंग हरियाली का प्रतीक है। किंतु यह व्याख्या आज तक किसी के गले नहीं उतरी, स्वयं कांग्रेस के भी नहीं। यदि वास्तव में यह कांग्रेस के गले उतर गई होती, तो आज कांग्रेस भगवाकरण अथवा केसरिया से इतना बिदकती नहीं।

नारायण हरि पालकर के अनुसार, "इस प्रकार समिति के सारे परिश्रम पर पानी फिर गया तथा राष्ट्र ध्वज का प्रश्न इतिहास और परंपरा के आधार पर निश्चित न होते हुए, व्यक्ति की इच्छा और धारणा से तय हुआ। (डा.हेडगेवार चरित्र, पृ.251)

राष्ट्र ध्वज के विषय में चर्चा करते समय हमें इतिहास के इस पृष्ठ की ओर से आंख नहीं मूंदनी चाहिए।


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भारतीय ध्वज


http://hindi.mapsofindia.com/indian-flag.html

भारतीय राष्ट्रीय ध्वज को स्वतंत्रता के प्रतीक के तौर पर डिजाइन किया गया था। स्वर्गीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ने इसके लिए कहा था ‘यह ना सिर्फ हमारी स्वतंत्रता का ध्वज हैै बल्कि सबकी आजादी का प्रतीक है’।

भारतीय राष्ट्रीय ध्वज एक हाॅरीजोंटल तिरंगा है, जिसमें बराबर अनुपात में गहरा भगवा रंग सबसे उपर, मध्य में सफेद और गहरा हरा रंग नीचे है। ध्वज की लंबाई चैड़ाई का अनुपात 2:3 है। सफेद पट्टी के बीच में एक गहरे नीले रंग का पहिया है जो धर्म चक्र का प्रतीक है। इस पहिये की 24 तीलियां हैं।

ध्वज में भगवा रंग साहस, बलिदान और त्याग का प्रदर्शन करता है। इसका सफेद रंग पवित्रता और सच्चाई तथा हरा रंग विश्वास और उर्वरता का प्रतीक है।


भारतीय राष्ट्रीय ध्वज का इतिहास


भारतीय राष्ट्रीय ध्वज बहुत महत्वपूर्ण है और यह भारत के लंबे स्वतंत्रता संग्राम का प्रतिनिधित्व करता है। यह भारत के एक स्वतंत्र गणतंत्र होने का प्रतीक है। भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के वर्तमान स्वरुप का अस्तित्व 22 जुलाई 1947 को हुई संवैधानिक सभा की बैठक मेें आया। इस ध्वज ने 15 अगस्त 1947 से 26 जनवरी 1950 तक डोमिनीयन आॅफ इंडिया और उसके बाद से भारत गणराज्य के राष्ट्रीय ध्वज के तौर पर देश का प्रतिनिधित्व किया। भारतीय राष्ट्रीय ध्वज को पिंगली वैंकया ने डिजाइन किया और इसमें भगवा, सफेद और हरे रंगों की समान पट्टियां हैं। इसकी चैड़ाई का अनुपात इसकी लंबाई के मुकाबले 2:3 है।

सफेद पट्टी के बीच स्थित चक्र को अशोक चक्र कहा जाता है और इसमें 24 तीलियां होती हैं। भारतीय मानक संस्थान यानि आईएसआई के द्वारा निर्धारित मानक के अनुसार चक्र सफेद पट्टी के 75 प्रतिशत भाग पर फैला होना चाहिये। राष्ट्रीय ध्वज हमारे सबसे सम्मानजनक राष्ट्रीय चिन्हों में से एक है। इसके निर्माण और इसे फहराने को लेकर सख्त कानून बनाए गए हैं। आधिकारिक ध्वज ब्यौरे के अनुसार ध्वज का कपास, सिल्क और वूल को हाथ से कात कर बनाई खादी से बना होना आवश्यक है।

1904 : भारतीय राष्ट्रीय ध्वज का इतिहास स्वतंत्रता मिलने से भी पहले का है। सन् 1904 में पहली बार राष्ट्रीय ध्वज अस्तित्व में आया। इसे स्वामी विवेकानंद की एक आयरिश शिष्य ने बनाया था। उनका नाम सिस्टर निवेदिता था और कुछ समय बाद यह ‘सिस्टर निवेदिता का ध्वज’ के नाम से पहचाना जाने लगा। उस ध्वज का रंग लाल और पीला था। लाल रंग स्वतंत्रता के संग्राम और पीला रंग उसकी विजय का प्रतीक था। उस पर बंगाली में ‘बाॅन्दे मातरम्’ लिखा था। इसके साथ ही ध्वज पर भगवान इन्द्र के हथियार वज्र का भी निशान था और बीच में एक सफेद कमल बना था। वज्र का निशान शक्ति और कमल शुद्धता का प्रतीक था।

1906 में भारतीय ध्वज 1906 : सिस्टर निवेदिता के ध्वज के बाद सन् 1906 में एक और ध्वज डिजाइन किया गया। यह एक तिरंगा झंडा था और इसमें तीन बराबर पट्टियां थीं जिसमें सबसे उपर इसमें नीले, बीच में पीले और तल में लाल रंग था। इसकी नीली पट्टी में अलग अलग आकार के आठ सितारे बने थे। लाल पट्टी में दो चिन्ह थे, पहला सूर्य और दूसरा एक सितारा और अर्द्धचन्द्राकार बना था। पीली पट्टी पर देवनागरी लिपि में ‘वंदे मातरम्’ लिखा था।

सन् 1906 में इस ध्वज का एक और संस्करण बनाया गया। यह भी एक तिरंगा था पर इसके रंग अलग थे। इसमें नारंगी, पीला और हरा रंग था और इसे ‘कलकत्ता ध्वज’ या ‘लोटस ध्वज’ के नाम से जाना जाने लगा, इसमें आठ आधे खुले कमल थे। माना जाता है कि इसे सचिन्द्र प्रसाद बोस और सुकुमार मित्रा ने बनाया था। इसे 7 अगस्त 1906 को कलकत्ता के पारसी बागान में फहराया गया था। इसे बंगाल के विभाजन के खिलाफ बहिष्कार दिवस के दिन सर सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने भारत की एकता के प्रतीक के तौर पर फहराया था।

1907 में भारतीय ध्वज 1907 : यह ध्वज रंगों और इस पर बने फूल के अलावा सन् 1906 के ध्वज से काफी मिलता जुलता था। इस झंडे के तीन रंग थे, नीला, पीला और लाल और इसमें फूल का आकार काफी बड़ा था।

इसके बाद मैडम भीकाजी रुस्तम कामा का झंडा आया। इस ध्वज को मैडम भीकाजी कामा, वीर सावरकर और कृष्णा वर्मा ने मिलकर बनाया था। इस झंडे को मैडम कामा नेे जर्मनी में स्टूटग्राट में 22 अगस्त 1907 को फहराया और यह ध्वज विदेशी धरती पर फहराया जाने वाला पहला ध्वज बन गया। उस दिन से इसे बर्लिन कमेटी ध्वज भी कहा जाने लगा। यह ध्वज तीन रंगों से बना था, जिसमें सबसे उपर हरा, मध्य में भगवा और आखिरी में लाल रंग था। इस के उपर ‘वंदे मातरम’ लिखा था।

1916 : पूरे राष्ट्र को जोड़ने के उद्देश्य से सन् 1916 में एक लेखक और भूभौतिकीविद पिंगली वैंकया ने एक ध्वज डिजाइन किया। उन्होंने महात्मा गांधी से मिलकर ध्वज को लेकर उनकी मंजूरी मांगी। महात्मा गांधी ने उन्हें ध्वज पर भारत के आर्थिक उत्थान के प्रतीक के रुप में चरखे का चिन्ह बनाने का सुझाव दिया। पिंगली ने हाथ से काती गई खादी का एक ध्वज बनाया। उस झंडे पर दो रंग थे और उन पर एक चरखा बना था, लेकिन महात्मा गांधी ने उसे यह कहते हुए नामंजूर कर दिया कि उसका लाल रंग हिंदू और हरा रंग मुस्लिम समुदाय का तो प्रतिनिधित्व करता है पर भारत के अन्य समुदायों का इसमें प्रतिनिधित्व नहीं होता।

1917 : बाल गंगाधर तिलक द्वारा गठित होम रुल लीग ने सन् 1917 में एक नया झंडा अपनाया। उस समय भारत द्वारा डोमिनियन के दर्जे की मांग की जा रही थी। झंडे पर सबसे उपर यूनियन जैक बना था। ध्वज के बचे हुए हिस्से पर पांच लाल और चार नीली पट्टियां थी। इस पर हिंदुओं में पवित्र माने जाने वाले सप्तर्षि नक्षत्र के सात तारे भी बने थे। इस पर उपर की ओर एक सितारा और एक अर्धचन्द्र भी बना था। यह ध्वज आम जनता में ज्यादा लोकप्रिय नहीं हुआ।

1921 में भारतीय ध्वज 1921 : महात्मा गांधी चाहते थे कि राष्ट्रीय ध्वज में भारत के सभी समुदायों का प्रतिनिधित्व हो, इसलिए एक नया ध्वज बनाया गया। इस झंडे में तीन रंग थे। इसमें सबसे उपर सफेद, मध्य में हरा और सबसे नीचे लाल रंग था। इस ध्वज का सफेद रंग अल्पसंख्यकों का, हरा रंग मुस्लिमों का और लाल रंग हिंदू और सिख समुदायों का प्रतीक था। एक चरखा इन तीन पट्टियों पर फैलाकर बनाया गया था जो इनकी एकता का प्रतीक था। यह ध्वज आयरलैंड के ध्वज की तर्ज पर बनाया गया था जो कि भारत की तरह ही ब्रिटेन से स्वतंत्रता पाने के लिए संघर्ष कर रहा था। हालांकि कांग्रेस कमेटी ने इसे आधिकारिक ध्वज के तौर पर नहीं अपनाया पर भारत के स्वतंत्रता संग्राम में राष्ट्रीयता के प्रतीक के तौर पर इसका व्यापक इस्तेमाल हुआ।

1931 में भारतीय ध्वज 1931 : ध्वज की सांप्रदायिक व्याख्या से कुछ लोग खुश नहीं थे। इसे ध्यान में रखते हुए एक नया झंडा बनाया गया जिसमें लाल की जगह गेरुआ रंग रखा गया। यह रंग दोनों समुदायों की संयुक्त भावना का प्रतीक था क्योंकि भगवा हिंदू योगियों और मुस्लिम दरवेशों का रंग है। सिख समुदाय ने ध्वज में अपने प्रतिनिधित्व की मांग की अथवा धार्मिक रंगों को ध्वज से हटाने को कहा। नतीजतन, पिंगली वैंकया ने एक और ध्वज बनाया। इस नए ध्वज में तीन रंग थे। सबसे उपर भगवा, उसके नीचे सफेद और सबसे नीचे हरा रंग। सफेद पट्टी के मध्य में चरखा बना था। सन् 1931 में कांग्रेस कमेटी की बैठक में इस ध्वज को कमेटी के आधिकारिक ध्वज के तौर पर अपनाया गया था।


1947 में भारतीय ध्वज 1947 : भारत को आजादी मिलने के बाद भारत के राष्ट्रीय ध्वज पर चर्चा के लिए राजेन्द्र प्रसाद की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई गई। कमेटी ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के ध्वज को कुछ संशोधनों के साथ अपनाना तय किया। नतीजतन, 1931 के ध्वज को भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के तौर पर अपनाया गया, लेकिन चरखे की जगह मध्य में चक्र रखा गया और इस तरह भारतीय राष्ट्रीय ध्वज अस्तित्व में आया।


ब्रिटिश भारत ध्वज 1858 1947 ब्रिटिश भारत ध्वज 1858-1947 : ब्रिटिश भारत का ध्वज सन् 1858 में लाया गया। इसका डिजाइन पश्चिमी हेरैल्डिक मानकों के आधार पर था और यह कनाडा और आॅस्ट्रेलिया सहित अन्य ब्रिटिश काॅलोनियों के ध्वजों से मिलता जुलता था। इस नीले बैनर पर उपरी बाएं चतुर्थांश में यूनियन ध्वज और दाहिनीं तरफ मध्य में शाही ताज और स्टार आॅफ इंडिया बना हुआ था।


उत्पादन
ध्वज के उत्पादन के मानक तय करने के लिए एक कमेटी है। कमेटी ने इसे फहराने के लिए भी नियम बनाए हैं। इस कमेटी का नाम भारतीय मानक ब्यूरो है। इसने ध्वज संबंधी सभी बातों जैसे कपड़ा, डाई, रंग, धागों की गिनती और सभी बातों का विस्तृत विवरण दिया है। भारतीय ध्वज केवल खादी से बनाया जा सकता है। यह दो प्रकार की खादी से बनाया जाता है, एक प्रकार मुख्य हिस्से के काम आता है और दूसरा प्रकार जो ध्वज को डंडे से बांधे रखता है।

आचार संहिता


राष्ट्रीय प्रतीक होने के नाते हर भारतीय इसका सम्मान करता है। आम लोगों के लिए भारतीय ध्वज संबंधी कुछ नियम बनाए गए हैं।
  • राष्ट्रीय ध्वज को फहराते समय भगवा रंग सबसे उपर होना चाहिए।
  • कोई भी ध्वज या प्रतीक राष्ट्रीय ध्वज से उपर या दाहिनी ओर नहीं रखा जाना चाहिए।
  • यदि राष्ट्रीय ध्वज के साथ अन्य ध्वज भी एक ही कतार में लगाने हांे तो उन्हें बांई ओर लगाना चाहिए।
  • यदि राष्ट्रीय ध्वज को किसी परेड या जुलूस में थामा जाता है तो उसे दाहिनी ओर लेकर मार्च करना होता है। यदि दूसरे ध्वज भी साथ हांे तो उसे कतार के मध्य में रखना होता है।
  • सामान्यतः राष्ट्रीय ध्वज को महत्वपूर्ण इमारतों पर फहराया जाता है, जैसे राष्ट्रपति भवन, संसद भवन, सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट, सचिवालय, आयुक्त कार्यालय आदि।
  • राष्ट्रीय ध्वज या उसकी नकल का इस्तेमाल व्यापार, व्यवसाय या पेशे के लिए नहीं किया जाना चाहिए।
  • राष्ट्रीय ध्वज को सूर्यास्त के समय उतारना आवश्यक है।

ध्वज संहिता के अनुसार भारत के नागरिकों को राष्ट्रीय ध्वज को कुछ महत्वपूर्ण दिन, जैसे गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस और महात्मा गांधी के जन्मदिन के अलावा फहराने का अधिकार नहीं है। प्रसिद्ध उद्योगपति नवीन जिंदल ने अपने कार्यालय के भवन पर झंडा फहराने पर दी गई चेतावनी को कोर्ट में चुनौती दी। उन्होंने इसके खिलाफ एक जनहित याचिका दायर की जो कि अभी विचाराधीन है, लेकिन फैसला आने तक कोर्ट ने आम लोगों को सम्मानजनक तरीके से ध्वज फहराने की अस्थाई अनुमति दी है।

कुछ रोचक तथ्य


विश्व की सबसे उंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर 29 मई 1953 में भारतीय झंडा फहराया गया। विदेशी धरती पर पहली बार भारतीय झंडा मैडम भीकाजी कामा ने फहराया। उन्होंने इसेे जर्मनी में स्टूटग्राट में 22 अगस्त 1907 को फहराया।

भारतीय राष्ट्रीय ध्वज पहली बार अंतरिक्ष में विंग कमांडर राकेश शर्मा के साथ 1984 में गया। राकेश शर्मा के स्पेस सूट पर वह एक पदक की तरह जोड़ा गया था।

अंतिम संशोधन : अक्टूबर 3, 2014

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