नरोडा केस : अत्याधिक कठोर दण्डों के लिये क्यों चुना गया ?????


 











नरोडा केस में विषेश अदालत ने सजा सुनाने में अभी तक के तमाम प्रकरणों से हटते हुये, अत्याधिक कठोरता को अपनाया है, इसी तरह की कठोरता को देश भर के अन्य तमाम हत्याकाण्डों, सामूहिक हत्याकाण्डों और नरसंहारों में भी अपनाया होता तो कोई प्रश्न नहीं था। गोधरा में सावरमती में आग लगाने वालों के प्रति भी यह दृष्टिकोंण रखा होता तो यह प्रश्न नहीं उभरता। मगर 1984 के सिख नरसंहार में 5000 से ज्यादा लोग मारे गये आज तक एक को भी सजा नहीं ? जम्मू और कश्मीर तथा विभिन्न आतकी हमलों के दोषियों के प्रति यह दृष्टिकोंण क्यों नहीं ... यह मामला ही मात्र अत्याधिक कठोर दण्डों के लिये क्यों चुना गया ????? यह प्रश्न समाज के मानस में तो उभरा है, संतोषजनक उत्तर आना चाहिये।
 

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नरोडा केस:कोर्ट ने की कडी टिप्पणियां, दोषियों की यंत्रणा का भी जिक्र

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Ramesh Vyas I Aug 31, 2012



अहमदाबाद। वर्ष 2002 में गुजरात में फैले दंगों के दौरान हुए नरोडा पाटिया नरसंहार मामले में विशेष अदालत ने बजरंग दल के नेता बाबू बजरंगी को मामले का मुख्य सूत्रधार और सबसे जघन्य अपराधी मानते हुए मरते दम तक जेल में रहने की सजा सुनाई है।
विशेष अदालत की न्यायाधीश ज्योत्सना याग्निक ने बहुत ही तल्ख टिप्पणियां की। फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने कहा, अत्यंत घृणास्पद, अमानवीय और शर्मजनक घटना है ये,मानवाधिकार और संवैधानिक अधिकारों का दमन हुआ इसमें, 97 लोगों को बिना किसी उनके उकसावे के मारा गया,बीस दिन का बालक भी दंगे का शिकार हुआ। कोर्ट ने कहा, माया कोडनानी का सक्रिय सहयोग रहा इस हिंसा को अंजाम देने में, लोगों को उकसाने से लेकर साजिश रचने में। कोर्ट ने कहा,कानून का भय दिखाना जरूरी है, अन्यथा सजा पर्याप्त नहीं रहने पर समाज में कानून का सम्मान नहीं रह जाएगा।
सांप्रदायिक दंगे कैंसर के समान हैं। दोषियों ने दंगे के दिन कानून पूरी तरह से अपने हाथ में ले लिया था, जिसकी इजाजत नहीं दी जा सकती। इनकी ये हरकत पूरी तरह से देश के कानून का मखौल उडाना था, 28 फरवरी 2002 का दिन खून से भरा दिन बन गया था। अदालत ने कहा,ये घटना ऎसी है जिसमें उम्र और पारिवारिक-सामाजिक स्थिति के आधार पर दोषियों से ज्यादा सहानुभूति नहीं दिखाई जा सकती। न्याय होना ही नहीं चाहिए, दिखना भी चाहिए, ये कोशिश की गई है इसमें।
कोर्ट ने ये भी कहा कि चूंकि इस वाकये को दस साल हो गये हैं, इसलिए इस मामले में आरोपियों ने भी काफी मानसिक यंत्रणा भुगती है। चूंकि दुनिया के 139 देशों में फांसी की सजा को खत्म कर दिया गया है और फांसी की सजा पर बहस चल रही है भारत सहित दुनिया के बाकी देशों में भी, इसलिए इस मामले में फांसी की सजा नहीं दी जा रही है। लेकिन गुनाहों की गंभीरता को देखते हुए अलग-अलग दोषियों के मामले में अलग-अलग सजा दी जा रही है।
चूंकि माया कोडनानी एमएलए जैसे जिम्मेदार लोक प्रतिनिधि के पद पर थीं, इसलिए उनका गुनाह और बढ जाता है, ऎसे में माया कोडनानी के लिए आजीवन कारावास की सजा 18 साल होगी, इससे पहले उन्हें और गुनाहों के लिए दस साल की सजा भुगतनी होगी। बाबू बजरंगी का गुनाह इनता बडा है कि उनके मामले में आजीवन कारावास की सजा जेल में उनका प्राकृतिक मृत्यु हो जाने तक है। सात दोषियों के मामले में आजीवन कारावास की सजा 21 साल की होगी, इससे पहले उन्हें बाकी गुनाहों के लिए दस साल की सजा भुगतनी होगी। बाकी 22 दोषियों के लिए आजीवन कारावास की अवधि चौदह साल की होगी, इससे पहले उन्हें बाकी गुनाहों के लिए दस साल की सजा भुगतनी होगी। इस मामले में जो कुल 32 दोषी थे, उसमें से एक को सजा नहीं सुनाई जा सकी क्योंकि वह बेल जंप कर फरार है।



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