कहां जाएं पाकिस्तानी हिंदू ?

कहां जाएं पाकिस्तानी हिंदू ?

पाकिस्तानी हिंदू जान बचाकर इस उम्मीद से भारत आए थे कि यहां उनका जीवन सुखद होगा. मगर, भारत में न तो उन्हें नागरिकता मिल रही है और न ही शरणार्थी का दर्जा. मुसीबतों के पहाड़ तले जिंदगी को खींच रहे पाकिस्तानी हिंदुओं की दर्द भरी दास्तां बयां करती अदिति प्रसाद की विस्तृत रिपोर्ट और प्रमोद पुष्करणा के फोटो
अदिति प्रसाद | Issue Dated: सितंबर 30, 2012the sunday indian ki report
उनका धर्म ही उनके लिए सबसे बड़ा अभिशाप है. इस धर्म ने उनसे एक ऐसे देश में जीने का अधिकार छीन लिया जिसकी नींव ही धर्म के नाम पर रखी गई. बलात्कार, अपहरण, फिरौती और जबरन धर्म परिवर्तन से तंग आकर पाकिस्तानी हिंदू धर्मनिरपेक्ष भारत में पनाह लेने चले आए. मगर लगता है कि इस हिंदू बहुल राष्ट्र में भी उनका धर्म ही उन्हें दुश्वारी और दुराचार का शिकार बना रहा है.
अपनी इज्जत और जान बचाने के लिए भारत आए पाकिस्तानी हिंदुओं की यही कहानी है. डेविड पिनॉल्ट ने अपनी किताब 'नोट्स फ्रॉम द फॉच्र्यून टेलिंग पैरट: इस्लाम एंड द स्ट्रगल फॉर रिलीजियस प्लूरलिज्म इन पाकिस्तान' में 'पाकिस्तान में हिंदुओं के विरुद्ध वैचारिक युद्ध' के बारे में लिखा है और उनके शब्द भारत के लिए एकदम सटीक साबित हो रहे हैं, जहां आने के लिए पाकिस्तानी हिंदुओं की कतारें लगी हुई हैं. इन हिंदुओं ने 1947 में विभाजन के बाद पाकिस्तान में ही रहने का फैसला किया था मगर लगता है कि जिन्ना के देश में उनका महत्व खत्म हो चुका है. पिछले ही सप्ताह थार एक्सप्रेस में सवार होकर 171 पाकिस्तानी हिंदू जोधपुर रेलवे स्टेशन पहुंचे. पाकिस्तान से तीर्थयात्रा वीजा पर आए ये हिंदू अब भारत में शरणार्थियों का दर्जा चाहते हैं. उनका कहना है कि हिंदू होने के कारण पाकिस्तान में उनका जीना दूभर है और अब वे वहां लौटना नहीं चाहते.
भारत खुद ही धर्मनिरपेक्षता के चक्कर में उलझा हुआ है. उत्पीडऩ के शिकार इन हिंदुओं को स्वीकार करना भारत के लिए मुश्किल है क्योंकि ऐसा किया तो उस पर एक धर्म विशेष के प्रति झुकाव रखने का आरोप लगेगा. तथ्य यह है कि भारत कभी भी केवल हिंदुओं का देश नहीं रहा. अगर भारत ने पाकिस्तानी हिंदुओं की मदद करने में ज्यादा उत्साह दिखाया तो आलोचक तुरंत बात उठाएंगे कि फिर बांग्लादेशी विस्थापितों को गैरकानूनी क्यों करार दिया जाता है. आखिर वे भी तो यही शिकायत करते हैं कि बांग्लादेश में उनका शोषण होता है.

फरसोमल मनसुखानी लगभग चार महीने पहले पाकिस्तान से जोधपुर आए थे. उनकी  कहानी पाकिस्तानी हिंदुओं के असमंजस का आईना है. पाकिस्तान के सूबा-ए-सिंध के शहर काजी अहमद में पले-बढ़े इस 46 वर्षीय सिंधी हिंदू की 16 वर्षीय चचेरी बहन का अपहरण हुआ तो उनके पास इसके अलावा कोई चारा नहीं बचा कि वे अच्छा-भला कारोबार छोड़कर पत्नी और तीन बच्चों को लेकर भारत चले आएं. फरसोमल के माता-पिता और भाई पाकिस्तान में ही हैं और यही बात उन्हें रातो-दिन परेशान करती है. वह कहते हैं, 'हमने अखबार में पढ़ा कि उसने धर्म परिवर्तन कर लिया है और एक मुसलमान से शादी कर ली है. हम कुछ नहीं कर सके.' मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, हर महीने पाकिस्तान के सिंध और बलूचिस्तान प्रांतों में 25 लड़कियां उठा ली जाती हैं. पाकिस्तान के 90 फीसदी हिंदू इन्हीं दो प्रांतों में बसे हैं. विभाजन के समय 15 फीसदी पाकिस्तानी हिंदू थे मगर आज यह संख्या घटकर सिर्फ 2 फीसदी रह गई है.

पहचान का संकट
जब फरसोमल की चचेरी बहन का अपहरण हुआ था तब उनकी बेटी हिना की उम्र 15 वर्ष थी. उसी की सुरक्षा की चिंता में वे सबकुछ छोड़कर भारत चले आए. मगर, चार महीने में सारी असलियत सामने आ गई. हिना ने पाकिस्तान में 12वीं तक की पढ़ाई की थी मगर यहां उसे अब तक किसी भी कॉलेज में दाखिला नहीं मिला. कुछ कॉलेज पाकिस्तानी बोर्ड की मान्यता का सवाल खड़ा कर देते हैं तो कुछ कॉलेजों में साफ-साफ कह दिया जाता है कि पाकिस्तानियों को दाखिला दिया ही नहीं जा सकता. फरसोमल के बेटे ज्यादा भाग्यशाली रहे. उन्हें छठवीं और नौवीं में दाखिला मिल गया है. फरसोमल कहते हैं, 'मुझे स्कूल से नोटिस मिला है कि राज्य के शिक्षा विभाग से लंबित अनुमति नहीं मिली तो दोनों बच्चों को निकाल दिया जाएगा.'
क्या हमारे विश्वविद्यालय पाकिस्तान से 12वीं तक पढ़कर आए बच्चों को दाखिला देंगे? इस सवाल पर जोधपुर के कलक्टर सिद्धार्थ महाजन कहते हैं, 'उच्च शिक्षा के मामले में कुछ समस्या है. स्थिति साफ नहीं है.' जोधपुर में कछ महीने पहले तक आने वाले पाकिस्तानी हिंदुओं की संख्या 5100 का आंकड़ा पार कर चुकी थी. उसके बाद से हर सप्ताह वहां से हिंदुओं का आना जारी है.
फरसोमल पाकिस्तान में 2400 वर्ग फुट के बंगले में रहते थे मगर आज यह परिवार जोधपुर के सीमाई इलाके में पहली मंजिल पर एक छोटे से अपार्टमेंट में गुजर-बसर कर रहा है. फरसोमल अब पुराने नाम 'सागर' से ही अपना परिचय देने लगे हैं मगर इसने भी काम दिलाने में उनकी कोई खास मदद नहीं की. वह कहते हैं, 'पाकिस्तान में हम हिंदू होने की पहचान छुपाया करते थे. यहां हम पाकिस्तानी होने की पहचान छुपाने की कोशिश में लगे रहते हैं.'

अधिकतर पाकिस्तानी हिंदू इसी उम्मीद में भारत आते हैं कि यहां आकर उनकी मुसीबतें दूर हो जाएंगी मगर यहां आकर बस चुके लोगों को पता चल गया है कि उनकी मुसीबतें तो अब शुरू हुई हैं. हालांकि कई लोगों को 'लॉन्ग टर्म वीजा' यानी लंबे समय तक के लिए वीजा मिल गया है, जिससे भारत में उनका रहना कानूनी तो बन गया है मगर इससे उनकी समस्याएं हल नहीं हुई हैं. उनकी रोजमर्रा की जरूरतें तक पूरी नहीं होतीं. उन्हें राशन कार्ड, फोन कनेक्शन, गैस कनेक्शन और ड्राइविंग लाइसेंस तक नहीं मिलते क्योंकि इसके लिए भारतीय नागरिक होने का सुबूत चाहिए, जो कम से कम सात साल भारत में रहने के बाद ही मिल सकता है.
गौरी शंकर चार साल से भारत में रह रहे हैं. पाकिस्तान के सिंध प्रांत में हिंदुओं के अपहरण की ताबड़तोड़ घटनाओं ने गौरी शंकर को भारत आने पर मजबूर कर दिया. उन्होंने वहां यह बताकर वीजा लिया कि वे बेऔलाद हैं और अपनी पत्नी के साथ इलाज के लिए अहमदाबाद जाना चाहते हैं. ऐसा नहीं कि उनकी यह बात पूरी तरह झूठी थी. उनकी गोद में आज आठ माह का टेस्टट्यूब बेबी है जो उनके सच्चे होने की गवाही है. मगर, गौरी शंकर ने तय कर लिया है कि अब वे कभी पाकिस्तान नहीं लौटेंगे.
गौरी शंकर कराची में कपड़ा मिल मालिक थे, जिसका लाखों का कारोबार था. मगर, गौरी ने अपना कारोबार समेटा और भारत चले आए. वह कहते हैं, 'जब मैं यहां आया तो मैंने अपने दस्तावेज जमा किए. मगर, सीआईडी ने मुझे परेशान करना शुरू कर दिया क्योंकि मैं अक्सर जोधपुर से अहमदाबाद आया-जाया करता था. उन्होंने आरोप लगाया कि मैं आईएसआई एजेंट हूं और मेरे घर पर छापा मारा. उन्होंने मुझे धमकी दी कि वापस पाकिस्तान भेज देंगे. ये सब मेरे लिए बेहद शर्मनाक था.' गौरी ने जोधपुर में अपना घर तो बनवा लिया है मगर कहते हैं, 'मैं भारतीय नागरिक नहीं हूं इसलिए जमीन मेरे रिश्तेदार के नाम है. वह जब चाहे मेरे घर पर दावा ठोक सकता है.'

गरीबी का दंश

अच्छे माली हालात वाले पाकिस्तानी हिंदुओं की संख्या बहुत कम है. भारत आए ज्यादातर पाकिस्तानी हिंदुओं की आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर है. दरअसल, जिनके पास पैसा है वे अमेरिका या ब्रिटेन में शरण लेना पसंद करते हैं. भारत आने वालों में से अधिकतर मजदूरी पेशा या खेतों में काम करने वाले होते हैं. उनमें से भी अधिकतर अनुसूचित जाति एवं जनजाति से होते हैं. उनका कोई वतन नहीं. उनके पास न पैसा है, न रहने को घर. रोजमर्रा की जरूरत पूरी करना भी उनके लिए दूभर है.
दिहाड़ी मजदूर भोमला राम 14 साल पहले जैसलमेर आए थे. मगर, उनकी आजादी ज्यादा दिनों तक नहीं रही. खुफिया एजेंसी वालों ने 2002 में उन्हें धमकी दी कि अगर पाकिस्तान जाकर जासूसी नहीं की तो उन्हें हमेशा के लिए वहीं वापस भेज दिया जाएगा. चूंकि भोमला गैरकानूनी तरीके से सीमा पार करके भारत आए थे, इसलिए उनके पास खुफिया एजेंसियों की बात मानने के अलावा कोई चारा नहीं था. उन्हें हर महीने 15 दिनों के लिए पाकिस्तान की सीमा में धकेल दिया जाता था. ये सिलसिला वर्षों जारी रहा. भोमला राम अशिक्षित और सीधे-सादे व्यक्ति हैं. उन्हें हर बार अपने आकाओं के लिए पाकिस्तानी पत्रिकाएं लानी पड़ती थीं. मगर, एक दिन उनकी किस्मत धोखा दे गई. पाकिस्तानी पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया. वह बताते हैं, 'उन्हें पूरा विश्वास था कि मुझे रॉ या एमआई ने भेजा होगा. वे मुझसे भारतीय सेना के राज उगलवाना चाहते थे. मैंने लाख कहा कि मैं कुछ नहीं जानता मगर वे मुझे प्रताडि़त करते रहे.'

अपने हाथ दिखाते हुए भोमला राम बताते हैं कि पाकिस्तानी रेंजरों ने उनके हाथों-पैरों से बीसों नाखून खींच लिए थे. यह बताते हुए उनकी आवाज भर्रा जाती है. भोमला को छह साल तीन महीने पाकिस्तान की जेल में बिताने पड़े. उनके मुरझाए हुए चेहरे पर गहरे गड्ढों में धंसी उनकी आंखें यह कहते हुए भीग जाती हैं कि 'मैं पाकिस्तानी हिंदू हूं. मुझे भारत और पाकिस्तान दोनों से धोखा मिला. मुझे इंसाफ चाहिए. मुझे जीने दो!'
भोमला की कहानी एक अपवाद है जिसमें भारतीय खुफिया एजेंसियां उनके दुख का सबसे बड़ा कारण बनीं, मगर अधिकतर पाकिस्तानी हिंदुओं के लिए रोजमर्रा के जीवन की परेशानियां सबसे बड़े खलनायक की भूमिका में हैं. गुमन राम और उनके पिता अर्जुन राम दोनों पाकिस्तान में दिहाड़ी मजदूर थे. 2008 में उनके परिवार की एक महिला का अपहरण हुआ तो वे भारत चले आए. मगर, उन्हें और बुरे दिन देखने थे. 2009 में वे बीकानेर में अपने एक रिश्तेदार के यहां विवाह समारोह में शरीक होने गए थे, जहां पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया. उनके पास जोधपुर का वीजा था और कानूनन वे किसी दूसरे शहर नहीं जा सकते थे. 78 वर्षीय अर्जुन को पिछले साल रिहा किया गया. वे कहते हैं, 'हमारी गलती के लिए हमें बुरी तरह पीटा गया और ढाई साल तक बीकानेर जेल में रखा गया.'

भारत आए पाकिस्तानी हिंदुओं के अधिकारियों की सुरक्षा के लिए काम करनेवाली संस्था सीमांत लोक संगठन के अध्यक्ष एचएस सोढा कहते हैं, 'इन लोगों को लंबे समयावधि का वीजा देने समस्या का हल नहीं है. ये एक ही शहर में कैदी बनकर रह जाते हैं. न फोन कनेक्शन ले सकते हैं और न बैंक में खाता खोल सकते हैं. ऐसे कामों के लिए इन्हें बिचौलियों का सहारा लेना पड़ता है, हर जगह रिश्वत देनी पड़ती है.' सोढा भारत सरकार से अपील करते हैं कि पाकिस्तान से जान बचाकर आए हिंदुओं के लिए कम से कम कोई नीति तो निर्धारित कर दी जाए.

हतोत्साहित करने की नीति
भारत में आए पाकिस्तानी हिंदुओं के लिए कोई नीति नहीं बनाई गई है और यही तथ्य उन्हें हर दिन परेशान करता रहता है. उनके लिए भारत में बिताया हर दिन किरायेदार की हैसियत से बीतता है. उनमें से अधिकतर लोगों की मांग है कि उन्हें या तो नागरिकता दी जाए या फिर शरणार्थी घोषित किया जाए. मगर, भारत सरकार ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया है.
पिछले महीने ही उप विदेश मंत्री प्रणीत कौर ने राष्ट्रीय समाचार चैनल पर खुलकर कहा कि पाकिस्तान से आने वाले किसी भी परिवार ने भारत में शरण नहीं मांगी है. इसी सिलसिले में गृह मंत्रालय में विदेशियों से संबंधित मामलों के संयुक्त सचिव जीवीवी सरमा ने द संडे इंडियन को बताया, 'नई दिल्ली स्थित मजनू का टीला में रहने वाले 400 पाकिस्तानी हिंदुओं में से किसी ने भी पिछले एक साल में हमसे मदद नहीं मांगी'. (बॉक्स में साक्षात्कार पढ़ें)
सोढा कहते हैं, 'भारत आए पाकिस्तानी हिंदुओं के मामले में तो केवल हतोत्साहित करने की नीति ही लागू की जा रही है.' सोढा का आरोप है कि भारत सरकार सिर्फ बातें कर रही है, इन लोगों की मदद के लिए आज तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है. सोढा के मुताबिक, उनकी संस्था ने कई बार राज्य और केंद्र सरकार से अपील की है कि पाकिस्तान से आए हिंदुओं को या तो नागरिकता दे दी जाए या फिर उन्हें शरणार्थी ही घोषित कर दिया जाए. मगर, किसी ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया.
कई पाकिस्तानी हिंदू कहते हैं कि उन्हें हतोत्साहित करने की नीति इस्लामाबाद में भारतीय दूतावास से ही शुरू हो जाती है. कई साल पहले कभी वापस न जाने के लिए अहमदाबाद आए डॉ. महादेवन कहते हैं, 'ए बेसी के अधिकारी हमें वीजा देने में बार-बार अड़चनें डालते रहते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि हम में से बहुत सारे लोग कभी नहीं लौटेंगे.' डॉ. महादेवन एमबीबीएस और एमडी हैं मगर उन्हें अपनी क्लीनिक इसलिए बंद करनी पड़ी क्योंकि मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया ने उन्हें भारत में प्रैक्टिस करने की अनुमति नहीं दी. दूसरी बड़ी अड़चन यह है कि वीजा मांगने वाले हर व्यक्ति को भारत में एक प्रायोजक की जरूरत होती है, जिसे सुनिश्चित करना होता है कि कोई भारतीय राजपत्रित अधिकारी उनके प्रार्थनापत्र पर हस्ताक्षर करे और आने वाली की गारंटी ले. डॉ. महादेवन कहते हैं, 'ऐसी मदद मिलना बेहद मुश्किल है.'

वीजा मिलने में आने वाली अड़चनों से छुटकारा पाने के लिए बड़ी संख्या में लोगों ने तीर्थयात्री वीजा लेना शुरू कर दिया है. पिछले साल नवंबर में लोकसभा में एक सवाल का लिखित जवाब देते हुए गृह राज्यमंत्री मुल्लापल्ली रामचंद्र ने तीर्थयात्री वीजा पर आए पाकिस्तानी हिंदुओं को आगाह किया था कि वे वीजा समाप्त होने से पहले ही पाकिस्तान लौट जाएं. फिर भी तीर्थयात्री वीजा पर आए सैकड़ों पाकिस्तानी हिंदू आज भी भारत में हैं. द संडे इंडियन की टीम ने ऐसे लगभग दर्जन भर पाकिस्तानी हिंदुओं से राजस्थान, गुजरात और नई दिल्ली में मुलाकात की. वे वापस जाने को तैयार नहीं हैं. उन्हीं में से एक मोहन का कहना है, 'मुझे 24 अगस्त को वापस जाना था. मगर, मैं नहीं जाऊंगा. अगर गया तो मुझे धर्म परिवर्तन कर मुसलमान बनना पड़ेगा.'

भारत की दुविधा
भारत के लिए सबसे बड़ी दुविधा (जो जल्द ही ऐसी दुविधा बन जाएगी जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता) यह है कि अब पाकिस्तानी हिंदुओं की बाढ़ सी आ गई है. हर सप्ताह उनकी संख्या बढ़ती ही जा रही है. हाल ही में जोधपुर आए 171 पाकिस्तानी हिंदुओं से पहले पिछले साल दिल्ली के मजनू का टीला इलाके में 146 लोगों का जत्था आया था, जो बदहाल झुग्गियों में गुजर-बसर कर रहा है.

साल भर पहले तक हालत यह थी कि महीने भर में नौ-दस पाकिस्तानी हिंदू परिवार भारत आया करते थे. जो सात साल गुजार लिया करते थे, उन्हें भारत सरकार चुपचाप नागरिकता दे दिया करती थी. ऐसा किसी नीतिगत फैसले के आधार पर नहीं किया जाता था बल्कि अपने ही देश से पीडि़त होकर भारत आए परेशान समुदाय के लोगों की मदद के लिए अस्थायी समाधान के तौर पर किया जाता था. नीति की कमी का ही नतीजा है कि 1990 से लेकर आज तक राजस्थान और गुजरात में हजारों पाकिस्तानी हिंदू बस तो गए हैं मगर उन्हें आज तक नागरिकता नहीं मिल सकी है. उनमें से कुछ ने तो नागरिकता शुल्क भी अदा कर दिया है मगर उनका इंतजार खत्म ही नहीं होता. सैकड़ों गरीब और जरूरतमंद लोगों ने तो नागरिकता शुल्क बढऩे के कारण (2005 में नागरिकता शुल्क कई गुना बढ़ा दिया गया था) इसकी मांग तक नहीं की है.

पाकिस्तान में भारत के पूर्व राजदूत जी पार्थसारथी इन लोगों को शरण देने की बात का समर्थन करते हैं. वह कहते हैं, 'हमने लगभग 90 लाख बांग्लादेशियों को नागरिकता दी है, जिनमें हिंदू और मुसलमान दोनों शामिल हैं. मुझे लगता है कि पाकिस्तान में हिंदू असुरक्षित हैं. अगर उन्हें पाकिस्तान छोडऩे पर मजबूर किया जा रहा है और उन्हें शरण मिलनी ही चाहिए.' नागरिकता हासिल करने की प्रक्रिया में कम से कम पांच साल का समय तो लग ही जाता है.

भले ही भारत ने शरणार्थियों के मामले में संयुक्त राष्ट्र समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं मगर तिब्बत,  म्यांमार, श्रीलंका, बर्मा तथा अन्य पड़ोसी देशों से आने वाले शरणार्णियों के प्रति भारत का रवैया काफी उदारवादी रहा है. पिछले 50 वर्षों में भारत आने वाले डेढ़ लाख से ज्यादा तिब्बतियों को केंद्र व राज्य सरकारों ने कई अन्य सुविधाओं के साथ-साथ जमीनें भी दी हैं, जिन पर वे रहते-बसते हैं.
पाकिस्तानी हिंदू भारत सरकार से बहुत ज्यादा कुछ नहीं मांग रहे हैं. वे केवल इतना चाहते हैं कि उन्हें शरणार्थी मान लिया जाए ताकि वे बिना डर के जी सकें और उन्हें नागरिकता दिए जाने पर विचार किया जाए क्योंकि उन्होंने इतना तो तय कर ही लिया है कि अब वे कभी पाकिस्तान नहीं लौटेंगे. अपनी धर्मनिरपेक्ष छवि बरकरार रखने के लिए भारत सरकार खुलकर पाकिस्तानी हिंदुओं का समर्थन करने से बच रही है. मगर, कई भाजपा सांसदों ने संसद में यह मुद्दा उठाना शुरू कर दिया है. इनमें सांसदों में भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह भी शामिल हैं. उन्होंने द संडे इंडियन से बातचीत में कहा, 'धर्मनिरपेक्ष भारत को इस मुद्दे पर बोलने का नैतिक अधिकार है. भारत सरकार इस मुद्दे पर दबाव बनाने और इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक ले जाने में नाकाम रही है.'

सच यही है कि पाकिस्तान से आए हिंदुओं के मानवाधिकारों की सुरक्षा के मुद्दे पर राजनेताओं ने बहुत आक्रामक होकर अभी तक कुछ नहीं किया है. अफसोस, तथाकथित धर्मनिरपेक्ष गैरसरकारी संगठन भी इस मुद्दे से जुडऩे कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं. पार्थसारथी कहते हैं, 'गैरसरकारी संगठनों को लगता है कि अगर उन्होंने हिंदुओं से संबंधित कोई मुद्दा उठाया तो वे धर्मनिरपेक्ष नहीं रह जाएंगे.'
फिलहाल तो यही लगता है कि इन विस्थापित हिंदुओं को जीने का अधिकार ही नहीं है. न तो ये पाकिस्तान में चैन से रह सके और न भारत में इन्हें चैन मिल रहा है. कुछ आत्मसम्मान, थोड़ी सी उम्मीद और मुट्ठी भर दस्तावेज के अलावा इनके पास कुछ भी तो नहीं है!

(aditi.prasad@planmanmedia.com)
(इनपुट: आदित्य राज कॉल और प्रथम द्विवेदी)


क्या से क्या हो गया....... 
राजस्थान में जोधपुर, जैसलमेर और बारमेर की अस्थायी बस्ती की गर्म और धूल भरी आवोहवा में हजारों पाकिस्तान हिंदू बदहाल जिंदगी बसर कर रहे हैं. गुजरात, पंजाब और नई दिल्ली में भी उनका यही हाल है. गृह मंत्रालय के मुताबिक, 30 जून 2012 तक 18,185 पाकिस्तानी नागरिक दीर्घकालीन वीजा पर भारत में रह रहे थे. पिछले साल ही 5,012 हिंदू भारत आए, जिनमें से 1,248 पाकिस्तान नहीं लौटे. इनमें वे लोग शामिल नहीं हैं जो इतने गरीब हैं कि पासपोर्ट और वीजा तक भी उनकी पहुंच से बाहर हैं और जो गुजरात, राजस्थान या पंजाब की सीमा पार करते हुए रोज अपनी जान जोखिम में डालते हैं.
शुमार राम, भगवान राम और पहलवान राम, जो एक पाकिस्तानी जमींदार के खेत पर बंधुआ मजदूर थे, से द संडे इंडियन ने बातचीत की. रोज-रोज की मारपीट और उत्पीडऩ से तंग आकर कुछ साल पहले वे पाकिस्तान के पंजाब स्थित रहीम यार खान के समीप सीमा को पार करके एक रात भारत आ गए थे. भगवान राम कहते हैं, 'हम यह तय कर चुके थे कि या तो हम भारत में रहेंगे या फिर यहां आने की कोशिश में ही जान दे देंगे'. उन्हें दिशा बोध तक नहीं था. उन्होंने तो बस अपनी दादी मां से सुन रखा था कि उनका गांव भारत में ही कहीं है. वह कहते हैं, 'हम चले तो बस चलते ही रहे. हमारी खुशकिस्मती थी कि उस रात कंटीले तार रेत के टीलों से ढक गए थे और हम सुरक्षित सीमा पार कर आए.' मगर, कुछ ही देर बाद भारतीय सुरक्षा बलों ने उन्हें पकड़ लिया. वे एक साल छह दिन तक वे जेल में रहे. इसके बाद जैसलमेर से उनका एक रिश्तेदार उन्हें छुड़ाने पहुंचा....


'पाक पाकिस्तान सरकार कदम उठाए'
असद चांडियो- कराची में रहने वाले एक पत्रकार
क्या यह सही है कि हाल के वर्षों में पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के खिलाफ अत्याचार की घटनाएं बढ़ी हैं?
पाकिस्तान में केवल मुसलमानों को ही इंसान माना जाता है. इतना ही नहीं, कुछ अल्पसंख्यक मुसलमान जातियों जैसे अहले-तशी (शियाओं) का भी कत्लेआम हुआ क्योंकि कुछ इस्लामिक धड़ों ने उन्हें गैर-मुस्लिम करार दिया है. पाकिस्तान एक ऐसा देश है जहां मुसलमानों को ही गैर-मुस्लिम बताकर मारना पवित्र माना जाता है. ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि गैर-मुस्लिमों पर अत्याचार किस हद तक बढ़े होंगे. इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि पाकिस्तान की सेना भारत और हिंदुओं को अपना दुश्मन मानती है. उनके हिसाब से हिंदू इंसान ही नहीं होते.

क्या सिंध में रहने वाले हिंदू सबसे ज्यादा प्रभावित हैं?
पाकिस्तान के अधिकतर हिंदू सिंधी हैं और सिंध प्रांत में ही बसे हैं. यही कारण है कि सिंध में हिंदुओं पर सबसे अधिक अत्याचार होता है. घोटके, जैकबाबाद, कशिमोर और शिकारपुर जिलों में हालात सबसे ज्यादा खराब हैं. इन सभी जिलों में, क्षेत्रीय प्रतिनिधि पीपीपी से संबंध रखते है. हिंदू लड़कियों को अगवा करना उन्होंने अपना व्यापार बना लिया है. चूंकि अधिकतर हिंदू परिवार उच्च व मध्यम वर्ग के हैं, इसलिए वे पैसा कमाने का आसान जरिया बन गए हैं.

इस मसले में सरकार की क्या भूमिका है?
सरकार ही इन सब चीजों के लिए जिम्मेदार है. यह सेना की नीति का भी हिस्सा है. जब तक सोच नहीं बदलेगी, तब तक यही चलता रहेगा. इस मामले में तो बस अमेरिका का दबाव ही काम आ सकता है क्योंकि पाकिस्तानी सेना का वेतन बिना अमेरिकी खैरात के संभव नहीं.

क्या यह जुल्म केवल गरीब मजदूर तबके तक सीमित है या फिर आर्थिक रूप से संपन्न लोग भी परेशान हैं?
सभी हिंदू अत्याचार झेल रहे हैं. अमीरों की आवाज कुछ हद तक सुनी जाती है मगर इसका मतलब यह नहीं कि उन्हें इंसाफ मिल सकता है. रही का तो बहुत बुरा हाल है. वे तो आवाज तक नहीं उठा सकते. हर इलाके में गुंडे उनके घरों में घुसते हैं, उनकी औरतों से जबरदस्ती करते हैं मगर वे किसी को कुछ बता तक नहीं सकते. वैसे भी पाकिस्तान में हिंदू होने का मतलब ही गरीब होना है. इसलिए हर वर्ग के हिंदू जुल्म के शिकार हैं.

भारत सरकार के लिए आपकी सलाह?
भारत को पाकिस्तान सरकार पर दबाव बनाना चाहिए, उसे विशेषकर अमेरिका को समझाकर पाकिस्तानी सेना पर रवैया बदलने का दबाव डलवाना चाहिए. इसके अलवा कोई चारा नहीं. जब तक हिंदुओं को इंसान नहीं समझा जाएगा और उन पर अत्याचार करने वालों को सजा नहीं मिलेगी, तब तक हालात नहीं सुधरेंगे.




'पाकिस्तानी हिंदूओं के लिए अलग नीति नहीं'
जी.वी.वी. सरमा (गृह मंत्रालय में विदेशियों से संबंधित मामलों के संयुक्त सचिव)
क्या पाकिस्तानी हिंदुओं के भारी तादाद में भारत आने के मामले में भारत सरकार की कोई ठोस नीति है?
भारत सरकार की नीति एक धर्मनिरपेक्ष संविधान के अनुरूप कार्य करती है, जहां हम धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करते.  विदेशी पंजीकरण कार्यालयों और क्षेत्रीय विदेशी पंजीकरण कार्यालयों को आदेश दिया है कि सभी प्रवासियों (जो अपने देश में धर्म, संप्रदाय, जाति, वर्ण, लिंग और राजनीतिक विचारधारा के आधार पर अत्याचार की शिकायत करते हैं) की मामलों की जांच करे. किसी भी देश के लोगों के साथ विशेष रवैया नहीं अपनाया जाता.
पिछले वर्ष अगस्त में एक आरटीआई याचिका के संदर्भ में, गृह मंत्रालय ने शिमला समझौते के हवाले से कहा 'यह देश का आंतरिक मामला है'. क्या अब भी भारत सरकार का वही रुख है?
विदेशी मामलों के मंत्री एस.एम. कृष्णा ने संसद में स्पष्ट कर दिया है कि पाकिस्तान सरकार को अल्पसंख्यकों के प्रति संवैधानिक दायित्वों को पूरा करना चाहिए.

मगर, विस्थापित पाकिस्तानी हिंदू तो नागरिकता के लिए भारत सरकार के सामने गिड़गिड़ा रहे हैं क्योंकि पाकिस्तान में हो रहे अत्याचार की वजह से वे लौटना नहीं चाहते?
भारतीय नागरिकता कानून के तहत पाकिस्तानी नागरिकों के लिए कोई भेदभाव नहीं है. उन्हें कानूनी रूप से आवश्यक सात साल पूरे होने पर भारत में नागरिकता के लिए आवेदन करना होगा. हर मामले को उसकी योग्यता पर परखा जाएगा.

क्या शरणार्थी दर्जा देने की योजना है?
भारत ने शरणार्थियों के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किया है पर सदैव शरणार्थियों के विषय में उदार रवैया अपनाया है. दीर्घकालीन वीजा पहला कदम है. यह उन्हें भारत में नौकरी और पढ़ाई की अनुमति देता है.



पड़ोसी देशों से भारत आने वाले प्रवासियों की संख्या

(2001 की जनगणना के अनुसार)

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