आवंटन प्रक्रिया में धांधली पर,अदालतें हस्तक्षेप के लिए स्वतंत्र हैं



 
 जनहित में क्या सर्वश्रेष्ठ है, इसका निर्णय सरकार को करना है.
नीलामी के द्वारा आवंटन संवैधानिक बाध्यता नहीं: सर्वोच्च न्यायालय
Published on: 28-SEP-2012


Jagran Josh Logo 
http://www.jagranjosh.com 
2जी स्पेक्ट्रम पर अनुच्छेद 143 के तहत राष्ट्रपति द्वारा मांगी गई सलाह के संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने निर्देश दिया कि प्राकृतिक संसाधनों को सिर्फ नीलामी के जरिए आवंटित करने के लिए सरकार को बाध्य नहीं किया जा सकता. प्राकृतिक संसाधनों का आवंटन सरकार की अपनी आर्थिक नीति के तहत किया जाता है. लेकिन किसी भी तरह की आवंटन प्रक्रिया में धांधली होने पर अदालतें हस्तक्षेप करने के लिए स्वतंत्र हैं. सर्वोच्च न्यायालय के 2 फरवरी 2012 के निर्णय के तहत सिर्फ स्पेक्ट्रम की नीलामी की जाए. 2जी के 122 लाईसेंस रद्द करने का सर्वोच्च न्यायालय का फैसला सिर्फ स्पेक्ट्रम की नीलामी के संदर्भ में है.
प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एसएच कपाड़िया की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय संविधान पीठ ने राष्ट्रपति द्वारा विचारार्थ निर्दिष्ट पर अपनी राय सर्वानुमति के साथ सरकार को 27 सितंबर 2012 को भेज दी. प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एसएच कपाड़िया के साथ न्यायाधीश न्यायमूर्ति डीके जैन, न्यायमूर्ति दीपक मिश्र, न्यायमूर्ति रंजन गगोई ने 145 पृष्ठ में अपनी राय व्यक्त की जबकि न्यायमूर्ति जगदीश सिंह केहर ने 63 पन्नों में अलग से अपना मशविरा लिखा. लेकिन सभी न्यायाधीश सभी प्राकृतिक संसाधनों को नीलामी के जरिए आवंटित करने की अनिवार्यता से सहमत नहीं थे. राजनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण राष्ट्रपति द्वारा विचारार्थ निर्दिष्ट पर सर्वोच्च न्यायालय की राय को अहमियत दी जा रही थी. संविधान पीठ ने स्पष्ट किया कि प्राकृतिक संसाधनों को सिर्फ नीलामी के जरिए आवंटित करने का मतलब होगा-नीलामी को संवैधानिक दर्जा प्रदान करना. संवैधानिक दर्जा तो दूर अदालत नीलामी को सरकार की आर्थिक नीति का अनिवार्य अंग मानने को भी तैयार नहीं है. प्राकृतिक संसाधनों का आवंटन किस प्रक्रिया के तहत किया जाए, इसका निर्णय सिर्फ सरकार ले सकती है. अदालतें आवंटन की विभिन्न प्रक्रियाओं का तुलनात्मक अध्ययन नहीं करतीं. जनहित में क्या सर्वश्रेष्ठ है, इसका निर्णय सरकार को करना है. हां, आवंटन के किसी भी तरीके में अनियमितता या हेराफेरी की शिकायत मिलने पर अदालतें हस्तक्षेप कर सकती हैं. सर्वोच्च न्यायालय के 2 फरवरी 2012 के निर्णय को इसी परिप्रेक्ष्य में देखने की जरूरत है.
सर्वोच्च न्यायालय की पीठ के समक्ष 2जी स्पेक्ट्रम के आवंटन में अनियमितता के आरोप में याचिका दायर की गई थी. इन आरोपों को सर्वोच्च न्यायालय ने सही पाया और सभी 122 लाईसेंस रद्द कर दिए. स्पेक्ट्रम का आवंटन संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता के अधिकार तथा अनुच्छेद 39(बी) के अंतर्गत दिए गए प्राकृतिक संसाधनों का जनहित में सर्वश्रेष्ठ उपयोग की कसौटी पर खरा नहीं उतरा. इसी कारण सर्वोच्च न्यायालय को स्पेक्ट्रम की नीलामी का आदेश देना पड़ा.
विदित हो कि अनुच्छेद 143 के तहत भारत का राष्ट्रपति किसी लोक महत्त्व के प्रश्न पर सर्वोच्च न्यायालय से विधिक सलाह ले सकता है. पंरतु यह सलाह भारत सरकार के लिए बाध्यकारी नहीं होती. साथ ही सर्वोच्च न्यायालय को भी यह अधिकार है कि अनुच्छेद 143 के अधीन उससे पूंछा गया प्रश्न व्यर्थ या अनावश्यक है तो वह उसका उत्तर देने से मना कर दे.

टिप्पणियाँ

इन्हे भी पढे़....

हमारा देश “भारतवर्ष” : जम्बू दीपे भरत खण्डे

सेंगर राजपूतों का इतिहास एवं विकास

Veer Bal Diwas वीर बाल दिवस और बलिदानी सप्ताह

चुनाव में अराजकतावाद स्वीकार नहीं किया जा सकता Aarajktavad

‘फ्रीडम टु पब्लिश’ : सत्य पथ के बलिदानी महाशय राजपाल

महाराष्ट्र व झारखंड विधानसभा में भाजपा नेतृत्व की ही सरकार बनेगी - अरविन्द सिसोदिया

भारत को बांटने वालों को, वोट की चोट से सबक सिखाएं - अरविन्द सिसोदिया

शनि की साढ़े साती के बारे में संपूर्ण

ईश्वर की परमशक्ति पर हिंदुत्व का महाज्ञान - अरविन्द सिसोदिया Hinduism's great wisdom on divine supreme power

देव उठनी एकादशी Dev Uthani Ekadashi