राम सेतु : भगवान श्रीरामचन्द्रजी की निशानी को कांग्रेस तोडना चाहती है |




सरकार राम सेतु को तोड़ने का मन बना चुकी है लेकिन वो यह भूल गयी है की रामसेतु के लिये कितना बड़ा आन्दोलन हुआ था | अब अगर ऐसा कोई कदम उठाया गया जो देश की गरिमा, हिंदू समाज की आस्था को ठेस पहुचाये तो यह कदापि मंजूर नहीं होगा | हिन्दुओं की आस्था और भगवान श्री रामचन्द्र जी की निशानी को कांग्रेस सरकार अपने फ़ायदे के लिए तोडना चाहती है | ये राम का देश जहा कण-कण में राम है | जहा इंसान पंचतत्व में विलीन हो जाता तब भी उसे राम का अंश माना जाता है | सरकार की ऐसी कोई भी नापाक कोसिस कामयाब नहीं होगी | हम अपनी सांस्कृतिक विरासत की अपना बलिदान देकर भी रक्षा करेंगे | सरकार अपने मन से यह विचार निकाल दे की वह राम सेतु को एक इंच भी तोड़ पायेगी..........!!
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नई दिल्ली [जेएनएन]। सेतु समुद्रम परियोजना पर केंद्र सरकार ने एक बार फिर पलटी खाई है। उसने इस मसले पर गठित आरके पचौरी समिति की रपट को खारिज करते हुए कहा है कि वह इस परियोजना का काम आगे बढ़ाना चाहती है। उसने तर्क दिया है कि इस परियोजना पर आठ सौ करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं और ऐसे में काम बंद करने का कोई मतलब नहीं। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में सरकार ने यह भी कहा है कि रामसेतु हिंदू धर्म का आवश्यक अंग नहीं। इस परियोजना के तहत रामसेतु कहे जाने वाले एडम ब्रिज को तोड़कर जहाजों के आने-जाने का रास्ता तैयार करना है। भाजपा ने सरकार के ताजा रुख की कठोर आलोचना करते हुए कहा है कि रामसेतु से कोई छेड़छाड़ बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
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रामसेतु तोड़ने को तैयार सरकार

Updated on: Sat, 23 Feb 2013
सेतुसमुद्रम परियोजना के तहत भारत और श्रीलंका के बीच से जहाजों के गुजरने के लिए रामसेतु को पार करते हुए 30 मीटर चौड़े, 12 मीटर गहरे और 167 किलोमीटर लंबे रास्ते की खुदाई करनी है। सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद 2008 में गठित की गई पचौरी कमेटी की रिपोर्ट में यह कहा गया है कि सेतुसमुद्रम पोत परिवहन मार्ग बनाने की परियोजना आर्थिक एवं पर्यावरणीय दोनों ही दृष्टि से ठीक नहीं है। इसके अलावा भाजपा, अन्नाद्रमुक और हिंदू संगठनों की ओर से इस आधार पर परियोजना का विरोध किया जा रहा है कि रामसेतु भगवान राम से जुड़ा है और इस धार्मिक महत्व के कारण उसे तोड़ा नहीं जाना चाहिए। एक बार इस परियोजना से संबंधित अपना हलफनामा वापस ले चुकी केंद्र सरकार ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में पेश नए शपथपत्र में कहा है कि इस धार्मिक विश्वास की पुष्टि नहीं हो सकी है कि भगवान राम ने इस सेतु को श्रीलंका से लौटते समय तोड़ा था और फिर किसी तोड़ी गई चीज की पूजा नहीं की जाती। सरकार ने यह भी तर्क दिया है कि जो धार्मिक विश्वास संबंधित धर्म का आंतरिक और आवश्यक अंग न हो उसे संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के तहत संरक्षित नहीं किया जा सकता।

भाजपा को यह हलफनामा रास नहीं आया है। उसने शनिवार को सेतुसमुद्रम परियोजना पर आगे बढ़ने के खिलाफ सरकार को चेतावनी देते हुए इस परियोजना को रद करने की मांग की। भाजपा प्रवक्ता रविशंकर प्रसाद ने कहा, 'सरकार आरके पचौरी कमेटी की संस्तुतियों को उपेक्षा कर इस परियोजना को आगे बढ़ा रही है। प्रसाद ने सवाल किया कि क्या इसे तोड़ना ही एक मात्र समाधान है? उनके अनुसार बगैर रामसेतु के तो आप रामायण के बारे में सोच भी नहीं सकते।' रामसेतु एक पौराणिक सेतु है जिससे होकर राम और उनकी सेना ने रावण के राज्य पर आक्रमण करने के लिए समुद्र पार किया था।
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 टूटेगा राम सेतु

 पी7 ब्यूरो/दिल्ली 23 February 2013
सेतुसमुद्रम परियोजना पर एक बार फिर सियासत गरमा सकती है। केंद्र सरकार ने इस बारे में आरके पचौरी कमेटी को रिजेक्ट करने का फैसला किया है। यानी अब यह प्रोजेक्ट रामसेतु को तोड़कर ही पूरा किया जाएगा।
सरकार की ओर से शुक्रवार को इस सिलसिले में हलफनामा दायर किया गया है। परियोजना का आरएसएस जैसे धार्मिक संगठनों और एआईएडीएमके और सियासी पार्टियों के अलावा पर्यावरणविद् भी विरोध कर रहे हैं। पचौरी कमेटी के मुताबिक भी यह ढाई हज़ार करोड़ का प्रोजेक्ट पर्यावरण और आर्थिक दोनों नज़रियों से फायदेमंद नहीं है।
क्‍या है सेतुसमुद्रम परियोजना: यह भारत और श्रीलंका के बीच एक महत्वाकांक्षी समुद्री पुल परियोजना है जो कि बंगाल की खाड़ी और अरब सागर के बीच पूरी होनी है। सेतुसमुद्रम परियोजना पर तकरीबन ढाई हजार करोड़ खर्च होने का अनुमान है जिसमें अब तक 829 करोड़ रुपए खर्च भी हो चुके हैं।
बनने के बाद यह समुद्री पुल करीब 12 मीटर गहरा और 300 मीटर चौड़ा होगा। इसके लिए केन्द्र सरकार और स्वेज नहर प्राधिकरण के बीच समझौता है। उम्मीद है कि इस पुल के बनने से करीब 400 समुद्री मील की यात्रा कम हो जाएगी यानी भारत और श्रीलंका के बीच समुद्री यात्रा करने में करीब 36 घंटों की बचत होगी।
खास बात यह है कि सेतु समुद्रम परियोजना की परिकल्पना साल 1860 में एक ब्रिटिश कमांडर एडी टेलर ने की थी लेकिन इस पर काम शुरू हुआ पूरे 135 सालों बाद।


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