लोकलुभावन रास्ते की बजाय अधिक कठिन मार्ग चुना :मोदी
नई दिल्ली, एजेंसी 28-05-15
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि उन्होंने जानबूझ कर लोकलुभावन रास्ता नहीं चुना और उसकी बजाय त्रुटिपूर्ण सरकारी मशीनरी को ठीक करने के लिए अधिक कठिन मार्ग को अपनाया। यह पूछे जाने पर कि उनकी सरकार के एक साल पूरे होने पर क्या उन्हें लगता है कि वह कुछ अलग कर सकते थे, उन्होंने कहा कि उनके पास दो विकल्प थे।
एक विकल्प था सरकारी मशीनरी को लामबंद करने, व्यवस्था में आई कई त्रुटियों और खराबियों को दूर करने के लिए प्रक्रियात्मक रूप से (मथाडिकली) काम किया जाए जिससे कि देश को लंबे समय तक स्वच्छ, कुशल और निष्पक्ष शासन के रूप में लाभ दिया जा सके।
दूसरा विकल्प यह था कि जनादेश का उपयोग करते हुए नई लोकलुभावन योजनाएं घोषित की जाएं और जनता को बेवकूफ बनाने के लिए मीडिया के जरिए ऐसी घोषणाओं की बमबारी करदी जाए।। यह रास्ता आसान है और लोग इसके आदी हैं।
मोदी ने कहा कि हालांकि, मैंने इसे नहीं चुना और इसके बजाय शांत और व्यवस्थित ढंग से त्रुटिपूर्ण सरकारी मशीनरी को ठीक करने का अधिक कठिन मार्ग अपनाया। अगर मैंने लोकलुभावन विकल्प चुना होता, तो वह मुझपर जनता द्वारा जताए गए विश्वास का उल्लंघन होता।
सरकार के काम करने के तरीकों को बदले जाने के लिए उनके द्वारा उठाए गए कदमों के बारे में पूछे जाने पर प्रधानमंत्री ने कहा कि हमने सरकारी सेवकों को यह याद दिलाने का प्रयास किया कि वे जन सेवक हैं और केन्द्र सरकार के अधिकारियों में अनुशासन को बहाल किया।
मैंने एक छोटा सा काम किया, ऐसा जो बाहर से देखने में छोटा लगता है। मैं नियमित रूप से चाय पर अधिकारियों से बातचीत करता हूं।, यह मेरे काम काज के तरीके का हिस्सा है। मोदी ने दार्शनिक अंदाज में कहा कि वह महसूस करते हैं कि देश तभी प्रगति करेगा जब वे एक टीम की तरह काम करेंगे।
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री एक टीम हैं। कैबिनेट मंत्री और राज्यों के मंत्री अन्य टीम हैं। केन्द्र और राज्यों के लोकसेवक भी एक अन्य टीम हैं। यही एक तरीका है जब हम देश को सफलतापूर्वक विकसित कर सकते हैं।
इसके लिए हमने कई सारे कदम उठाए और योजना आयोग को समाप्त किया और उसकी जगह नीति आयोग गठित किया जिसमें राज्य बराबर के पार्टनर हैं। प्रधानमंत्री द्वारा दिए गए इंटरव्यू का मूलपाठ इस प्रकार है:
प्रश्न : प्रधानमंत्री के रूप में आपने एक साल पूर किया है। कपया क्या अपने अनुभवों को बता सकते हैं?
उत्तर : जब मैंने पद संभाला, लोकसेवा पूरी तरह हतोत्साहित थी और निर्णय लेने से डरती थी। बाहर से संविधानेतर प्राधिकारियों और भीतर से मंत्रियों के समूहों के कारण कैबिनेट व्यवस्था भी जीर्णावस्था में थी। राज्यों और केन्द्र के बीच गहरी खाई और गहरा अविश्वास था। विदेशी और भारतीय दोनों भारतीय शासन से हताश थे। उस निराशा के वातावरण को बदलना बहुत बड़ी चुनौती थी और हालात को सुधारने तथा विश्वास एवं उम्मीद बहाली करने में मैंने कई कठिनाइयों का सामना किया।
प्रश्न : प्रधानमंत्री बनने के तत्काल बाद, आपने कहा था कि चूंकि यहां नये हैं और दिल्ली को समझने का प्रयास कर रहे हैं। क्या आपने दिल्ली को समझ लिया?
उत्तर : जब मैं दिल्ली की बात करता हूं तब मेरा आशय केंद्र सरकार से है। मेरा अनुभव यह है कि दिल्ली उसी तरह से चलती है जो रास्ता नेतृत्व तय करता है। हमारी टीम दिल्ली में कामकाज की संस्कृति में बदलाव लाने की दिशा में काम कर रही है ताकि सरकार को और सक्रिय तथा पेशेवर बनाया जा सके। जब मैंने पदभार संभाला, मैंने पाया कि दिल्ली में सत्ता के गलियारे विभिन्न तरह के एजेंटों से भरे हुए थे। सत्ता के गलियारों को साफ करने का कार्य महत्वपूर्ण था ताकि सरकार के तंत्र खुद बेहतर बन सके। सुधार और साफ करने की प्रक्रिया में थोड़ा समय लगा लेकिन इससे स्वच्छ एवं निष्पक्ष शासन के संदर्भ में दीर्घकालीन लाभ होगा।
प्रश्न : और आपने क्या समझा
उत्तर : एक बात मैं समझने में विफल रहा कि कैसे कुछ दलों की राज्य सरकारें भूमि अधिग्रहण कानून में बदलाव की मांग करती हैं लेकिन जब वे दल दिल्ली में बैठते हैं तब संशोधनों का विरोध करते हैं।
प्रश्न : पिछले एक वर्ष पर नजर डालें तब क्या आप सोचते हैं कि कुछ ऐसी चीजें जो आपने कीं, उसे दूसरी तरह से कर सकते थे या किया जाना चाहिए था।
उत्तर : मेरे पास दो विकल्प थे। एक विकल्प था सरकारी मशीनरी को लामबंद करके, व्यवस्था में आई कई त्रुटियों और खराबियों को दूर करने के लिए प्रक्रियात्मक रूप से (मथाडिकली) काम किया जाए जिससे कि देश को लंबे समय तक स्वच्छ, कुशल और निष्पक्ष शासन के रूप में लाभ दिया जा सके।
दूसरा विकल्प यह था कि जनादेश का उपयोग करते हुए नयी लोकलुभावन योजनाएं घोषित की जाएं और जनता को बेवकूफ बनाने के लिए मीडिया के जरिए ऐसी घोषणाओं की बमबारी कर दी जाए।। यह रास्ता आसान है और लोग इसके आदी हैं।
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