केदारनाथ में लोग मरते रहे, और अधिकारी उड़ा रहे थे चिकन-मटन...





उत्तराखंड त्रासदी भ्रष्टाचार: राज्य सरकार ने दिए जांच के आदेश
aajtak.in [Edited by: चंदन कुमार] | नई दिल्ली, 30 मई 2015
साल 2013 में केदारनाथ में आई आपदा में एक ओर जहां हजारों लोग अपनी जान बचाने के लिए जूझ रहे थे, वहीं राहत और बचाव में लगे अधिकारी भ्रष्टाचार के जरिये अपनी काली कमाई में मशगूल थे. एक आरटीआई आवेदन के जरिए यह खुलासा हुआ है. ऐसे संवेदनशील मामलों में भी भ्रष्टाचार की इस घटना से घिरी मुख्यमंत्री हरीश रावत की सरकार ने मुख्य सचिव को जांच के आदेश दिए हैं.
केदारनाथ आपदा के बाद तब के सीएम विजय बहुगुणा को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी थी. 200 से अधिक पेजों के आरटीआई रिकॉर्ड से यह बात सामने आई है कि आपदा के बाद राहत और बचाव के दौरान एक ओर जहां लोग खुले आसमान के नीचे भूख से परेशान थे, वहीं बाढ़ से सबसे अधिक प्रभावित रूद्रप्रयाग जिले में अधिकारियों ने रोजाना 900 रुपये प्रति व्यक्ति सिर्फ खाने पर खर्च किया था.

आरटीआई से पता चला है कि लोगों को राहत पहुंचाने के लिए ड्यूटी पर तैनात अधिकारी चिकन-मटन और दूध-घी उड़ा रहे थे. इतना ही नहीं अधिकारियों ने इस दौरान होटल के जो कमरे किराए पर लिए थे, उनकी कीमत साढ़े 7 हजार रुपये दिखाई थी. आधे किलो दूध की कीमत 195 रुपये तक दिखाई गई थी.

उत्तराखंड के भीषण प्राकृतिक आपदा की चपेट में रहने के दौरान हुई इन कथित अनियमितताओं का संज्ञान लेते हुए राज्य के सूचना आयुक्त अनिल शर्मा ने सीबीआई जांच की सिफारिश की है. शिकायतकर्ता और नेशनल एक्शन फोरम फॉर सोशल जस्टिस के सदस्य भूपेंद्र कुमार की शिकायत पर सुनवाई करते हुए जारी 12 पन्नों के आदेश में शर्मा ने आरटीआई आवेदनों के जवाब में विभिन्न जिलों द्वारा उपलब्ध कराए गए बिलों का संज्ञान लिया है.
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केदारनाथ में लोग मरते रहे, और अधिकारी मौज करते रहे!
May 30, 2015 आईबीएन-7

नई दिल्ली। केदारनाथ त्रासदी के बाद चलाए गए राहत कार्यों में बड़े घोटाले का खुलासा एक आरटीआई से हुआ है। ये सच सामने आया है कि हादसे के बाद यहां ड्यूटी पर लगाए गए एक-एक अधिकारी एक दिन में 900 रुपए का खाना खा गए, दिखाए गए खर्च के मुताबिक कोई दिन ऐसा नहीं था जब अधिकारियों ने चिकन- मटन खाने का बिल ना लगाया हो। होटलों में रहने का बिल एक दिन का 7-7 हजार रुपए का है।
केदारनाथ में जून 2013 में आई आपदा अफसरों के लिए कमाई का जरिया बन गई। लोग मरते रहे, मदद के लिए चीखते रहे लेकिन अफसर मौज करते रहे। लोग एक टुकड़ा रोटी और बूंद- बूंद पानी के लिए तरस रहे थे। तमाम लोग भूखे मर गए, किसी के सिर पर छत नहीं थी तो कोई ठंड से मर गया। लेकिन मदद के लिए भेजे गए अफसर इस त्रासदी को पिकनिक समझ बैठे थे।

अधिकारियों को लग रहा था कि मौज मस्ती का वक्त आ गया है और हुआ भी यही। जिस आपदा के लिए अफसरों को पैसा दिया गया वो अफसर इस पैसे से नॉनवेज खा रहे थे। होटलों में आराम फरमा रहे थे। हैरानी की बात ये है कि जिस पहाड़ पर स्कूटर से चढ़ना तो दूर की बात सोचना भी नामुमकिन है उस पहाड़ पर अधिकारी स्कूटर से लोगों को राहत पहुंचा रहे थे। जी हां यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ है आरटीआई के जरिए।
आरटीआई से ये भी खुलासा हुआ है कि राहत कार्यों में इस्तेमाल एक हेलीकॉप्टर का बिल 90 लाख का है और सबसे ज्यादा अचंभे वाली बात है कि डीजल के जो बिल दिए गए उनमें दर्ज वाहनों के नंबर, स्कूटर के नंबर निकले जबकि स्कूटरों में डीजल भरवाया नहीं जा सकता और पहाड़ों पर उससे राहत सामग्री पहुंचाई नहीं जा सकती। राज्य सूचना आयोग ने इस मामले में करोड़ों के घपले की आशंका जाहिर की है।
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उत्तराखंड त्रासदी : राहत कार्य का काला सच, लोग तिल-तिल को मोहताज थे और अधिकारी उड़ा रहे थे चिकन-मटन
NDTVIndia, Last Updated: मई 30, 2015
नई दिल्ली: उत्तराखंड में जून 2013 में आई विनाशकारी बाढ़ से मची तबाही के दौरान हज़ारों लोग बिना खाए-पिए जहां दिन गुज़ारने को मजबूर थे, उस वक्त राहत के काम में जुटे राज्य सरकार के अफसर मटन, चिकन और बेहतरीन खाने का लुत्फ उठा रहे थे। RTI के जरिए हुए इस सनसनीखेज खुलासे में कई चौंकाने वाली बातें सामने आई हैं।

आरटीआई में यह भी खुलासा हुआ है कि वहां अफ़सर 7 हज़ार रुपये रोज़ाना के किराए पर होटल में ठहरकर राहत व बचाव कार्य देख रहे थे। आरटीआई के जरिए राहत और बचाव कार्य में बड़े वित्तीय घोटाले की बात का भी खुलासा हुआ है। उत्तराखंड के सूचना आयुक्त अनिल शर्मा ने इस मामले में सीबीआई जांच की सिफारिश की है।

आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार सिर्फ आधे लीटर दूध के लिए 194 रुपये की कीमत वसूली गई। यही नहीं, धांधली का असली खेल तो ये है कि दो पहिया वाहनों को डीजल की सप्लाई की गई और एक ही व्यक्ति को दो-दो बार राहत दी गई। एक ही दुकान से सिर्फ तीन दिनों में 1800 रेन कोट की खरीद की गई। राहत के काम में लगे हेलिकॉप्टर में ईंधन भरने के लिए 98 लाख रुपये का भुगतान किया गया।

केदारनाथ त्रासदी के नाम पर जबरदस्त लूट मची और फर्जी बिलों के जरिए भुगतान कराया गया। अचंभे की बात ये है कि त्रासदी 16 जून 2013 को आयी तो जाहिर है राहत कार्य इसके बाद ही शुरू होना चाहिए था, लेकिन पिथौरागढ़ में 22 जनवरी 2013 को यानी करीब 115 दिन पहले ही शुरू हो गई थी। कई जगहों पर तो उल्टी गंगा बहाते हुए अधिकारियों ने घटना के करीब साढ़े 6 महीने बाद यानी 28 दिसंबर 2013 को राहत व बचाव कार्य शुरू किया और राहत कार्य शुरू होने से 43 दिन पहले ही 16 नवंबर 2013 को पूरा भी कर लिया।

नेशनल एक्शन फोरम फॉर सोशल जस्टिस से जुड़े भूपेंद्र कुमार की शिकायत पर उत्तराखंड के सूचना आयुक्त ने 12 पेज के अपने आदेश में कहा है, 'अपीलकर्ता की ओर से पेश रिकॉर्ड को देखकर लगता है कि उनकी शिकायत उत्तराखंड के मुख्य सचिव के पास भेजी जानी चाहिए। साथ ही यह निर्देश दिया जाता है कि मुख्यमंत्री को इस बारे में जानकारी दी जाए, ताकि वे सीबीआई जांच करवाने को लेकर फैसला ले सकें।'

गौरतलब है कि उत्तराखंड में 16 जून, 2013 को आई भीषण बाढ़ में 3000 से ज्यादा लोग मारे गए थे और हजारों लापता हो गए थे। कई लोगों के बारे में तो आज तक भी पता नहीं चल पाया है।

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