करगिल में हमारा एक जवान 100 पाकिस्तानी जवानों पर भारी पड़ा - प्रधानमंत्री मोदी
करगिल में हमारा एक जवान 100 पाकिस्तानी जवानों पर भारी पड़ा - प्रधानमंत्री मोदी
पढ़ें: मन की बात में पीएम ने क्या-क्या कहा
July 26, 2015 11:26 AM IST | Updated on: July 26, 2015 12:41 PM IST
आईबीएन-7
नई दिल्ली। आज मन की बात में प्रधानमंत्री मोदी ने करगिल में शहीद जवानों को याद किया। पीएम ने कहा कि करगिल में हमारा एक जवान 100 पाकिस्तानी जवानों पर भारी पड़ा। 26 जुलाई, देश के इतिहास में करगिल विजय दिवस के रूप में अंकित है। देश के किसान का नाता, जमीन से जितना है, उतना ही देश के जवान का है। आज करगिल विजय दिवस पर इन सभी हमारे सेनानियों को मेरा शत-शत प्रणाम। पढ़ें- पीएम ने मन की बात में क्या-क्या कहा
मेरे प्यारे देशवासियों, नमस्कार!
इस वर्ष बारिश की अच्छी शुरुआत हुई है। हमारे किसान भाईयों, बहनों को खरीफ की बुआई करने में अवश्य मदद मिलेगी। और एक खुशी की बात मेरे ध्यान में आई है और मुझे बड़ा आनंद हुआ। हमारे देश में दलहन की और तिलहन की बहुत कमी रहती है। ग़रीब को दलहन चाहिये, खाने के लिये सब्ज़ी वगैरह में थोड़ा तेल भी चाहिये। मेरे लिये ख़ुशी की बात है कि इस बार जो उगाई हुई है, उसमें दलहन में क़रीब-क़रीब 50 प्रतिशत वृद्धि हुई है। और तिलहन में क़रीब-क़रीब 33 प्रतिशत वृद्धि हुई है। मेरे किसान भाई-बहनों को इसलिए विशेष बधाई देता हूं, उनका बहुत अभिनंदन करता हू।
मेरे प्यारे देशवासियों, 26 जुलाई, हमारे देश के इतिहास में कारगिल विजय दिवस के रूप में अंकित है। देश के किसान का नाता, ज़मीन से जितना है, उतना ही देश के जवान का भी है। कारगिल युद्ध में, हमारा एक-एक जवान, सौ-सौ दुश्मनों पर भारी पड़ा। अपने प्राणों की परवाह न करके, दुश्मनों की कोशिशों को नाकाम करने वाले उन वीर सैनिकों को शत-शत नमन करता हूं। कारगिल का युद्ध केवल सीमाओं पर नहीं लड़ा गया, भारत के हर शहर, हर गांव में, इस युद्ध में योगदान था। ये युद्ध, उन माताओं, उन बहनों के लिए लड़ा, जिनका जवान बेटा या भाई, कारगिल में दुश्मनों से लड़ रहा था। उन बेटियों ने लड़ा, जिनके हाथों से अभी, पीहर की मेहंदी नहीं उतरी थी। पिता ने लड़ा, जो अपने जवान बेटों को देखकर, ख़ुद को जवान महसूस करता था। और उस बेटे ने लड़ा, जिसने अभी अपने पिता की उंगली पकड़कर चलना भी नहीं सीखा था। इनके बलिदान के कारण ही आज भारत दुनिया में सर उठाकर बात कर पाता है। और इसलिए, आज कारगिल विजय दिवस पर इन सभी हमारे सेनानियों को मेरा शत-शत प्रणाम।
26 जुलाई, एक और दृष्टि से भी मैं जरा महत्वपूर्ण मानता हूं, क्योंकि, 2014 में हमारी सरकार बनने के बाद, कुछ ही महीनों में 26 जुलाई को हमने MyGov को प्रारंभ किया था। लोकतंत्र में जन-भागीदारी बढ़ाने का हमारा संकल्प, जन-जन को विकास के कार्य में जोड़ना, और मुझे आज एक साल के बाद यह कहते हुए यह ख़ुशी है, करीब दो करोड़ लोगों ने MyGov को देखा। करीब-करीब साढ़े पांच लाख लोगों ने कमेंट्स किए और सबसे ज्यादा खुशी की बात तो ये है कि पचास हजार से ज़्यादा लोगों ने पीएमओ पर सुझाव दिए, उन्होंने समय निकाला, इस काम को महत्वपूर्ण माना।
और कैसे महत्वपूर्ण सुझाव आये! कानपुर से अखिलेश वाजपेयी जी ने एक अच्छा सुझाव भेजा था, कि विकलांग व्यक्तियों को रेलवे के अंदर ।RCTC Website के माध्यम से कोटा वाला टिकट क्यों नहीं दिया जाना चाहिये? अगर विकलांग को भी टिकट पाने के लिए वही कठिनाइयां झेलनी पड़े, कितना उचित है? अब यूं तो बात छोटी है, लेकिन न कभी सरकार में किसी को ये ध्यान आया, न कभी इस पर सोचा गया। लेकिन भाई अखिलेश वाजपेयी के सुझाव पर सरकार ने गंभीरता से विचार किया, और आज हमारे विकलांग भाइयों-बहनों के लिए, इस व्यवस्था को लागू कर दिया गया। आज जो लोगों बनते हैं, टैग लाइन बनते हैं, कार्यक्रम की रचना होती है, पॉलिसी बनती है, MyGov पर बहुत ही सकारात्मक सुझाव आते हैं। शासन व्यवस्था में एक नई हवा का अनुभव होता है। एक नई चेतना का अनुभव होता है। इन दिनों मुझे MyGov पर ये भी सुझाव आने लगे हैं, कि मुझे 15 अगस्त को क्या बोलना चाहिेए।
चेन्नई से सुचित्रा राघवाचारी, उन्होंने काफ़ी कुछ सुझाव भेजे हैं। बेटी-बचाओ, बेटी-पढ़ाओ पर बोलिए, क्लीन गंगा पर बोलिे, स्वच्छ भारत पर बोलिए, लेकिन इससे मुझे एक विचार आया, क्या इस बार 15 अगस्त को मुझे क्या बोलना चाहिए। क्या आप मुझे सुझाव भेज सकते हैं? MyGov पर भेज सकते हैं, आकाशवाणी पर चिठ्ठी लिख सकते हैं। प्रधानमंत्री कार्यालय में चिठ्ठी लिख सकते हैं।
देखें! मैं मानता हूं, शायद ये एक अच्छा विचार है कि 15 अगस्त के मेरे भाषण को, जनता जनार्दन से सुझाव लिए जाएं। मुझे विश्वास है कि आप जरूर अच्छे सुझाव भेजेंगे। एक बात की ओर मैं अपनी चिंता जताना चाहता हूं। मैं कोई उपदेश नहीं देना चाहता हूं और न ही मैं राज्य सरकार, केंद्र सरकार या स्थानीय स्वराज की संस्थाओं की इकाइयों की ज़िम्मेवारियों से बचने का रास्ता खोज रहा हूं।
अभी दो दिन पहले, दिल्ली की एक दुर्घटना के दृश्य पर मेरी नजर पड़ी। और दुर्घटना के बाद वो स्कूटर चालक 10 मिनट तक तड़पता रहा। उसे कोई मदद नहीं मिली। वैसे भी मैंने देखा है कि मुझे कई लोग लगातार इस बात पर लिखते रहते हैं कि भई आप रोड सेफ्टी पर कुछ बोलिये। लोगों को सचेत कीजिए। बेंगलूरु के होशा कोटे अक्षय हों, पुणे के अमेय जोशी हों, कर्नाटक के मुरबिदरी के प्रसन्ना काकुंजे हों। इन सबने, यानि काफ़ी लोगों के हैं नाम, मैं सबके नाम तो नहीं बता रहा हूं - इस विषय पर चिंता जताई है और कहा। है आप सबकी चिंता सही है। और जब आंकड़ों की तरफ देखते हैं तो हृदय हिल जाता है।
हमारे देश में हर मिनट एक दुर्घटना होती है। दुर्घटना के कारण, रोड एक्सीडेंट के कारण, हर 4 मिनट में एक मृत्यु होती है। और सबसे बड़ी चिंता का विषय ये भी है, करीब-करीब एक तिहाई मरने वालों में 15 से 25 साल की उम्र के नौजवान होते हैं और एक मृत्यु पूरे परिवार को हिला देती है। शासन को तो जो काम करने चाहिए वो करने ही चाहिए, लेकिन मैं मां-बाप से गुज़ारिश करता हूं, अपने बच्चों को - चाहे दो पहिया चलाते हों या चार पहिया चलाते हों - सेफ्टी की जितनी बातें है, उस पर जरूर ध्यान देने का माहौल परिवार में भी बढाना चाहिए। कभी-कभी हम ऑटो-रिक्शा पर देखते हैं, पीछे लिखा होता है ‘पापा जल्दी घर आ जाना’, पढते हैं तो कितना टचिंग लगता है, और इसलिए मैं कहता हूं, ये बात सही है कि सरकार ने इस दिशा में काफी नए इनिशिएटिव लिए हैं। रोड सेफ्टी के लिए चाहे एजुकेश का मामला हो, रोड की रचना का इंजीनियरिगं हो, क़ानून को लागू करने की बात हो - या एक्सीडेंट के बाद घायल लोगों को इमरजेंसी केयर की बात हो, इन सारी बातों को ध्यान में रखते हुए रोड ट्रांसपोर्ट एंड सेफ्टी बिल हम लाने जा रहे हैं। आने वाले दिनों में नेशनल रोड सेफ्टी पॉलिसी और रोड सेफ्टी एक्शन प्लान का अमल करने की दिशा में भी हम कई महत्वपूर्ण कदम उठाने के लिए सोच रहे हैं।
एक और प्रोजेक्ट हमारे लिए है, आगे चलकर इसका विस्तार भी होने वाला है, कैशलेश ट्रीटमेंट गुडगांव, जयपुर और वड़ोदरा वहां से लेकर के मुंबई, रांची, रणगांव, मौंडिया राजमार्गों के लिए, हम एक कैशलेश ट्रीटमेंट और उसका अर्थ है कि पहले पचास घंटे - पैसे हैं कि नहीं, पैसे कौन देगा, कौन नहीं देगा, इन सारी चिंता छोड़कर के - एक बार रोड एक्सीडेंट में जो घायल है, उसको उत्तम से उत्तम सेवा कैसे मिले, सारवार कैसे मिले, उसको हम प्राथमिकता दे रहे हैं। देशभर में हादसों के संबंध में जानकारी देने के लिए टोल-फ्री 1033 नंबर, एंबुलेंस की व्यवस्था, ये सारी बातें, लेकिन ये सारी चीजें एक्सीडेंट के बाद की हैं। एक्सीडेंट न हो इसके लिए तो हम सबने सचमुच में... एक-एक जान बहुत प्यारी होती है, एक-एक जीवन बहुत प्यारा होता है, उस रूप में उसको देखने की आवश्यकता है।
कभी-कभी मैं कहता हूं, कर्मचारी कर्मयोगी बनें। पिछले दिनों कुछ घटनाएं मेरे ध्यान में आई, मुझे अच्छा लगा कि मैं आपसे बात करूं, कभी-कभार नौकरी करते-करते इंसान थक जाता है, और कुछ सालों की बात तो “ठीक है, तनख़्वाह मिल जाती है, काम कर लेंगे”, यही भाव होता है, लेकिन मुझे पिछले दिनों, रेलवे के कर्मचारी के विषय में एक जानकारी मिली, नागपुर डिवीजन में विजय बिस्वाल करके एक टीटीई हैं, अब उनको पेंटिंग का शौक है, अब वो कहीं पर भी जाके पेंटिग कर सकते थे, लेकिन उन्होंने रेलवे को ही अपना आराध्य माना और वे रेलवे में नौकरी करते हैं और रेलवे के ही संबंधित भिन्न-भिन्न दृश्यों का पेंटिग करते रहते हैं, उनको एक आनंद भी मिलता है और उस काम के अंदर इतनी रूचि बढ़ जाती है। मुझे बड़ा ये उदाहरण देख कर के अच्छा लगा कि अपने काम में भी कैसे प्राणतत्व लाया जा सकता है। अपनी रुचि, अपनी कला, अपनी क्षमता को अपने कार्य के साथ कैसे जोड़ा जा सकता है, ये विजय बिस्वाल ने बताया है। हो सकता है अब विजय बिस्वाल के पेंटिंग की चर्चा आने वाले दिनों में जरुर होगी।
और भी मेरे ध्यान में एक बात आई - मध्य प्रदेश के हरदा ज़िले के सरकारी अधिकारियों की पूरी टीम, पूरी टोली ने एक ऐसा काम शुरू किया जो मेरे मन को छू गया और मुझे बहुत पसंद है उनका ये कामI उन्होंने शुरु किया “ऑपरेशन मलयुद्ध” - अब ये कोई, इसका सुनते हुए लगेगा कुछ और ही बात होगीI लेकिन मूल बात ये है उन्होंने स्वच्छ भारत अभियान को नया मोड़ दिया है और उन्होंने पूरे जिले में एक अभियान चलाया है ‘ब्रदर नंबर वन’, यानि वो सबसे उत्तम भाई जो अपनी बहन को रक्षाबंधन पर एक शौचालय भेंट करे, और उन्होंने बीड़ा उठाया है कि ऐसे सभी भाइयों को प्रेरित करके उनकी बहनों को टॉयलेट देंगे और पूरे जिले में खुले में कहीं माताओं-बहनों को शौच ना जाना पड़े, ये काम रक्षाबंधन के पर्व पर वो कर रहे हैं। देखिए रक्षाबंधन का अर्थ कैसा बदल गया, मैं हरदा जिले के सरकारी अधिकारियों की पूरी टीम को बहुत-बहुत बधाई देता हूं।
अभी एक समाचार मेरे कान पे आए थे, कभी-कभी ये छोटी-छोटी चीजें बहुत मेरे मन को आनंद देती हैं। इसलिए मैं आपसे शेयर कर रहा हूं। छत्तीसगढ़ के राजनंदगांव में केश्ला करके एक छोटा सा गांव है। उस गांव के लोगों ने पिछले कुछ महीनों से कोशिश करके शाैचालय बनाने का अभियान चलाया। और अब उस गांव में किसी भी व्यक्ति को खुले में शौच नहीं जाना पड़ता है। ये तो उन्होंने किया, लेकिन, जब पूरा काम पूरा हुआ तो पूरे गांव ने जैसे कोई बहुत बड़ा उत्सव मनाया जाता है वैसा उत्सव मनाया। गांव ने ये सिद्धि प्राप्त की। केश्ला गांव समस्त ने मिलकर के एक बहुत बड़ा आनंदोत्सव मनाया। समाज जीवन में मूल्य कैसे बदल रहे हैं, जन-मन कैसे बदल रहा है और देश का नागरिक देश को कैसे आगे ले जा रहा है इसके ये उत्तम उदाहरण मेरे सामने आ रहे हैं।
मुझे भावेश डेका, गुवाहाटी से लिख रहे हैं, नॉर्थ-ईस्ट के सवालों के संबंध में। वैसे नॉर्थ-ईस्ट के लोग एक्टिव भी बहुत हैं। वो काफी कुछ लिखते रहते हैं, अच्छी बात है। लेकिन मैं आज ख़ुशी से उनको कहना चाहता हूं कि नॉर्थ-ईस्ट के लिए एक अलग मिनिस्ट्री बनी हुई है। जब अटल बिहारी वाजपेयी जी प्रधानमंत्री थे तब एक डोनियर मिनिस्ट्री बनी थी ‘Development of North-East Region’. हमारी सरकार बनने के बाद, हमारे इस विभाग में बड़ा महत्वपूर्ण निर्णय किया है कि नॉर्थ-ईस्ट का भला दिल्ली में बैठकर के हो जाएगा क्या? और सबने मिलकर के तय किया कि भारत सरकार के अधिकारियों की टीम नॉर्थ-ईस्ट के उन राज्यों में जाएगी। नागालैंड हो, मणिपुर हो, अरुणाचल हो, त्रिपुरा हो, असम हो, सिक्किम हो और सात दिन वहां कैंप करेंगे। जिलों में जाएंगे, गांवों में जाएंगे, वहां के स्थानीय सरकार के अधिकारियों से मिलेंगे, जनप्रतिनिधियों से बातें करेंगे, नागरिकों से बातें करेंगे। समस्याओं को सुनेंगे, समस्याओं का समाधान करने की दिशा में भारत सरकार को जो करना है, उसको भी करेंगे। ये प्रयास आने वाले दिनों में बहुत अच्छे परिणाम लाएगा। और जो अधिकारी जा कर के आते हैं, उनको भी लगता है कितना सुंदर प्रदेश, कितने अच्छे लोग, अब इस इलाके को विकसित करके ही रहना है, उनकी समस्याओं का समाधान करके ही रहना है। इस संकल्प के साथ लौटते हैं तो दिल्ली आने के बाद भी अब उनको वहां की समस्याओं को समझना भी बहुत सरल हो गया है। तो एक अच्छा प्रयास, दिल्ली से दूर-दूर पूरब तक जाने का प्रयास, जो मैं ‘ एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ कह रहा हूं ना, यही तो एक्ट है।
मेरे प्यारे देशवासियो, हम सब इस बात के लिए गर्व करते हैं कि ‘मार्स मिशन’ की सफलता का हमें आनंद होता है। अभी पिछले दिनों भारत के PSLV C-28 ने UK के पांच सेटेलाइट लॉन्च किए। भारत ने अब तक लॉन्च किए हुए ये सबसे ज़्यादा हैवी वेट सैटेलाइट लॉन्च किए हैं। ये खबरें ऐसी होती है कि कुछ पल के लिए आती हैं, चली जाती हैं, इस पर हमारा ध्यान नहीं जाता। लेकिन ये बहुत बड़ा अचीवमेंट है। लेकिन कभी-कभी ये भी विचार आता है, आज हम युवा पीढ़ी से अगर बात करते हैं और उनको पूछें कि आप आगे क्या बनना चाहते हो, तो 100 में से बड़ी मुश्किल से एक-आध कोई छात्र मिल जाएगा जो ये कहेगा कि मुझे साइंटिस्ट बनना है। साइंस के प्रति रुझान कम होना ये बहुत चिंता का विषय है।
साइंस और टेक्नोलॉजी एक प्रकार से विकास का डीएनए है। हमारी नई पीढ़ी साइंटिस्ट बनने के सपने देखे, उनको प्रोत्साहन मिले, उनकी क्षमताओं को जाना जाए, एक बहुत बड़ी आवश्यकता है। अभी भारत सरकार के मानव संसाधन मंत्रालय ने एक राष्ट्रीय आविष्कार अभियान शुरु किया है। हमारे राष्ट्र के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. कलाम जी ने इसका आरम्भ किया है। इस अभियान के तहत IIT, NIT, Central और State Universities एक मेंटर के तौर पर, जहां-जहां इस प्रकार की संभावनाएं हैं, वहां उन बालकों को प्रोत्साहित करना, उनको मार्गदर्शन करना, उनको मदद करना, उस पर ध्यान केंद्रित करने वाले हैं। मैं तो सरकार के IAS अफसरों को भी कहता रहता हूं कि आप इतना पढ़ लिखकर आगे बढ़े हो तो आप भी तो कभी सप्ताह में दो चार घंटे अपने नजदीक के किसी स्कूल-कॉलेज में जा करके बच्चों से जरुर बात कीजिए। आपका जो अनुभव है, आपकी जो शक्ति है वो जरुर इस नई पीढ़ी के काम आएगी।
हमने एक बहुत बड़ा बीड़ा उठाया हुआ है, क्या हमारे देश के गांवों को 24 घंटे बिजली मिलनी चाहिए कि नहीं मिलनी चाहिए? काम कठिन है, लेकिन करना है। हमने इसका शुभारम्भ कर दिया है। और आने वाले वर्षों में, हम गांवों को 24 घंटे बिजली प्राप्त हो। गांव के बच्चों को भी, परीक्षा के दिनों में पढ़ना हो तो बिजली की तकलीफ न हो। गांव में भी छोटे-मोटे उद्योग लगाने हों तो बिजली प्राप्त हो। आज तो मोबाइल चार्ज करना हो तो भी दूसरे गांव जाना पड़ता है। जो लाभ शहरों को मिलता है वो गांवों को मिलना चाहिए। गरीब के घर तक जाना चाहिए। और इसीलिए हमने प्रारंभ किया है ‘दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति कार्यक्रम’। मैं जानता हूं इतना बड़ा देश, लाखों गांव, दूर-दूर तक पहुंचना है, घर-घर पहुंचना है। लेकिन, ग़रीब के लिए ही तो दौड़ना है। हम इसको करेंगे, आरम्भ कर दिया है। जरुर करेंगे। आज मन की बात में भांति-भांति की बातें करने का मन कर गया।
एक प्रकार से हमारे देश में अगस्त महीना, सितंबर महीना, त्योहारों का ही अवसर रहता है। ढेर सारे त्यौहार रहते हैं। मेरी आप सबको बहुत-बहुत शुभकामनाएं। 15 अगस्त के लिए मुझे ज़रुर सुझाव भेजिये। आपके विचार मेरे बहुत काम आएंगे।
बहुत-बहुत धन्यवाद।
पढ़ें: मन की बात में पीएम ने क्या-क्या कहा
July 26, 2015 11:26 AM IST | Updated on: July 26, 2015 12:41 PM IST
आईबीएन-7
नई दिल्ली। आज मन की बात में प्रधानमंत्री मोदी ने करगिल में शहीद जवानों को याद किया। पीएम ने कहा कि करगिल में हमारा एक जवान 100 पाकिस्तानी जवानों पर भारी पड़ा। 26 जुलाई, देश के इतिहास में करगिल विजय दिवस के रूप में अंकित है। देश के किसान का नाता, जमीन से जितना है, उतना ही देश के जवान का है। आज करगिल विजय दिवस पर इन सभी हमारे सेनानियों को मेरा शत-शत प्रणाम। पढ़ें- पीएम ने मन की बात में क्या-क्या कहा
मेरे प्यारे देशवासियों, नमस्कार!
इस वर्ष बारिश की अच्छी शुरुआत हुई है। हमारे किसान भाईयों, बहनों को खरीफ की बुआई करने में अवश्य मदद मिलेगी। और एक खुशी की बात मेरे ध्यान में आई है और मुझे बड़ा आनंद हुआ। हमारे देश में दलहन की और तिलहन की बहुत कमी रहती है। ग़रीब को दलहन चाहिये, खाने के लिये सब्ज़ी वगैरह में थोड़ा तेल भी चाहिये। मेरे लिये ख़ुशी की बात है कि इस बार जो उगाई हुई है, उसमें दलहन में क़रीब-क़रीब 50 प्रतिशत वृद्धि हुई है। और तिलहन में क़रीब-क़रीब 33 प्रतिशत वृद्धि हुई है। मेरे किसान भाई-बहनों को इसलिए विशेष बधाई देता हूं, उनका बहुत अभिनंदन करता हू।
मेरे प्यारे देशवासियों, 26 जुलाई, हमारे देश के इतिहास में कारगिल विजय दिवस के रूप में अंकित है। देश के किसान का नाता, ज़मीन से जितना है, उतना ही देश के जवान का भी है। कारगिल युद्ध में, हमारा एक-एक जवान, सौ-सौ दुश्मनों पर भारी पड़ा। अपने प्राणों की परवाह न करके, दुश्मनों की कोशिशों को नाकाम करने वाले उन वीर सैनिकों को शत-शत नमन करता हूं। कारगिल का युद्ध केवल सीमाओं पर नहीं लड़ा गया, भारत के हर शहर, हर गांव में, इस युद्ध में योगदान था। ये युद्ध, उन माताओं, उन बहनों के लिए लड़ा, जिनका जवान बेटा या भाई, कारगिल में दुश्मनों से लड़ रहा था। उन बेटियों ने लड़ा, जिनके हाथों से अभी, पीहर की मेहंदी नहीं उतरी थी। पिता ने लड़ा, जो अपने जवान बेटों को देखकर, ख़ुद को जवान महसूस करता था। और उस बेटे ने लड़ा, जिसने अभी अपने पिता की उंगली पकड़कर चलना भी नहीं सीखा था। इनके बलिदान के कारण ही आज भारत दुनिया में सर उठाकर बात कर पाता है। और इसलिए, आज कारगिल विजय दिवस पर इन सभी हमारे सेनानियों को मेरा शत-शत प्रणाम।
26 जुलाई, एक और दृष्टि से भी मैं जरा महत्वपूर्ण मानता हूं, क्योंकि, 2014 में हमारी सरकार बनने के बाद, कुछ ही महीनों में 26 जुलाई को हमने MyGov को प्रारंभ किया था। लोकतंत्र में जन-भागीदारी बढ़ाने का हमारा संकल्प, जन-जन को विकास के कार्य में जोड़ना, और मुझे आज एक साल के बाद यह कहते हुए यह ख़ुशी है, करीब दो करोड़ लोगों ने MyGov को देखा। करीब-करीब साढ़े पांच लाख लोगों ने कमेंट्स किए और सबसे ज्यादा खुशी की बात तो ये है कि पचास हजार से ज़्यादा लोगों ने पीएमओ पर सुझाव दिए, उन्होंने समय निकाला, इस काम को महत्वपूर्ण माना।
और कैसे महत्वपूर्ण सुझाव आये! कानपुर से अखिलेश वाजपेयी जी ने एक अच्छा सुझाव भेजा था, कि विकलांग व्यक्तियों को रेलवे के अंदर ।RCTC Website के माध्यम से कोटा वाला टिकट क्यों नहीं दिया जाना चाहिये? अगर विकलांग को भी टिकट पाने के लिए वही कठिनाइयां झेलनी पड़े, कितना उचित है? अब यूं तो बात छोटी है, लेकिन न कभी सरकार में किसी को ये ध्यान आया, न कभी इस पर सोचा गया। लेकिन भाई अखिलेश वाजपेयी के सुझाव पर सरकार ने गंभीरता से विचार किया, और आज हमारे विकलांग भाइयों-बहनों के लिए, इस व्यवस्था को लागू कर दिया गया। आज जो लोगों बनते हैं, टैग लाइन बनते हैं, कार्यक्रम की रचना होती है, पॉलिसी बनती है, MyGov पर बहुत ही सकारात्मक सुझाव आते हैं। शासन व्यवस्था में एक नई हवा का अनुभव होता है। एक नई चेतना का अनुभव होता है। इन दिनों मुझे MyGov पर ये भी सुझाव आने लगे हैं, कि मुझे 15 अगस्त को क्या बोलना चाहिेए।
चेन्नई से सुचित्रा राघवाचारी, उन्होंने काफ़ी कुछ सुझाव भेजे हैं। बेटी-बचाओ, बेटी-पढ़ाओ पर बोलिए, क्लीन गंगा पर बोलिे, स्वच्छ भारत पर बोलिए, लेकिन इससे मुझे एक विचार आया, क्या इस बार 15 अगस्त को मुझे क्या बोलना चाहिए। क्या आप मुझे सुझाव भेज सकते हैं? MyGov पर भेज सकते हैं, आकाशवाणी पर चिठ्ठी लिख सकते हैं। प्रधानमंत्री कार्यालय में चिठ्ठी लिख सकते हैं।
देखें! मैं मानता हूं, शायद ये एक अच्छा विचार है कि 15 अगस्त के मेरे भाषण को, जनता जनार्दन से सुझाव लिए जाएं। मुझे विश्वास है कि आप जरूर अच्छे सुझाव भेजेंगे। एक बात की ओर मैं अपनी चिंता जताना चाहता हूं। मैं कोई उपदेश नहीं देना चाहता हूं और न ही मैं राज्य सरकार, केंद्र सरकार या स्थानीय स्वराज की संस्थाओं की इकाइयों की ज़िम्मेवारियों से बचने का रास्ता खोज रहा हूं।
अभी दो दिन पहले, दिल्ली की एक दुर्घटना के दृश्य पर मेरी नजर पड़ी। और दुर्घटना के बाद वो स्कूटर चालक 10 मिनट तक तड़पता रहा। उसे कोई मदद नहीं मिली। वैसे भी मैंने देखा है कि मुझे कई लोग लगातार इस बात पर लिखते रहते हैं कि भई आप रोड सेफ्टी पर कुछ बोलिये। लोगों को सचेत कीजिए। बेंगलूरु के होशा कोटे अक्षय हों, पुणे के अमेय जोशी हों, कर्नाटक के मुरबिदरी के प्रसन्ना काकुंजे हों। इन सबने, यानि काफ़ी लोगों के हैं नाम, मैं सबके नाम तो नहीं बता रहा हूं - इस विषय पर चिंता जताई है और कहा। है आप सबकी चिंता सही है। और जब आंकड़ों की तरफ देखते हैं तो हृदय हिल जाता है।
हमारे देश में हर मिनट एक दुर्घटना होती है। दुर्घटना के कारण, रोड एक्सीडेंट के कारण, हर 4 मिनट में एक मृत्यु होती है। और सबसे बड़ी चिंता का विषय ये भी है, करीब-करीब एक तिहाई मरने वालों में 15 से 25 साल की उम्र के नौजवान होते हैं और एक मृत्यु पूरे परिवार को हिला देती है। शासन को तो जो काम करने चाहिए वो करने ही चाहिए, लेकिन मैं मां-बाप से गुज़ारिश करता हूं, अपने बच्चों को - चाहे दो पहिया चलाते हों या चार पहिया चलाते हों - सेफ्टी की जितनी बातें है, उस पर जरूर ध्यान देने का माहौल परिवार में भी बढाना चाहिए। कभी-कभी हम ऑटो-रिक्शा पर देखते हैं, पीछे लिखा होता है ‘पापा जल्दी घर आ जाना’, पढते हैं तो कितना टचिंग लगता है, और इसलिए मैं कहता हूं, ये बात सही है कि सरकार ने इस दिशा में काफी नए इनिशिएटिव लिए हैं। रोड सेफ्टी के लिए चाहे एजुकेश का मामला हो, रोड की रचना का इंजीनियरिगं हो, क़ानून को लागू करने की बात हो - या एक्सीडेंट के बाद घायल लोगों को इमरजेंसी केयर की बात हो, इन सारी बातों को ध्यान में रखते हुए रोड ट्रांसपोर्ट एंड सेफ्टी बिल हम लाने जा रहे हैं। आने वाले दिनों में नेशनल रोड सेफ्टी पॉलिसी और रोड सेफ्टी एक्शन प्लान का अमल करने की दिशा में भी हम कई महत्वपूर्ण कदम उठाने के लिए सोच रहे हैं।
एक और प्रोजेक्ट हमारे लिए है, आगे चलकर इसका विस्तार भी होने वाला है, कैशलेश ट्रीटमेंट गुडगांव, जयपुर और वड़ोदरा वहां से लेकर के मुंबई, रांची, रणगांव, मौंडिया राजमार्गों के लिए, हम एक कैशलेश ट्रीटमेंट और उसका अर्थ है कि पहले पचास घंटे - पैसे हैं कि नहीं, पैसे कौन देगा, कौन नहीं देगा, इन सारी चिंता छोड़कर के - एक बार रोड एक्सीडेंट में जो घायल है, उसको उत्तम से उत्तम सेवा कैसे मिले, सारवार कैसे मिले, उसको हम प्राथमिकता दे रहे हैं। देशभर में हादसों के संबंध में जानकारी देने के लिए टोल-फ्री 1033 नंबर, एंबुलेंस की व्यवस्था, ये सारी बातें, लेकिन ये सारी चीजें एक्सीडेंट के बाद की हैं। एक्सीडेंट न हो इसके लिए तो हम सबने सचमुच में... एक-एक जान बहुत प्यारी होती है, एक-एक जीवन बहुत प्यारा होता है, उस रूप में उसको देखने की आवश्यकता है।
कभी-कभी मैं कहता हूं, कर्मचारी कर्मयोगी बनें। पिछले दिनों कुछ घटनाएं मेरे ध्यान में आई, मुझे अच्छा लगा कि मैं आपसे बात करूं, कभी-कभार नौकरी करते-करते इंसान थक जाता है, और कुछ सालों की बात तो “ठीक है, तनख़्वाह मिल जाती है, काम कर लेंगे”, यही भाव होता है, लेकिन मुझे पिछले दिनों, रेलवे के कर्मचारी के विषय में एक जानकारी मिली, नागपुर डिवीजन में विजय बिस्वाल करके एक टीटीई हैं, अब उनको पेंटिंग का शौक है, अब वो कहीं पर भी जाके पेंटिग कर सकते थे, लेकिन उन्होंने रेलवे को ही अपना आराध्य माना और वे रेलवे में नौकरी करते हैं और रेलवे के ही संबंधित भिन्न-भिन्न दृश्यों का पेंटिग करते रहते हैं, उनको एक आनंद भी मिलता है और उस काम के अंदर इतनी रूचि बढ़ जाती है। मुझे बड़ा ये उदाहरण देख कर के अच्छा लगा कि अपने काम में भी कैसे प्राणतत्व लाया जा सकता है। अपनी रुचि, अपनी कला, अपनी क्षमता को अपने कार्य के साथ कैसे जोड़ा जा सकता है, ये विजय बिस्वाल ने बताया है। हो सकता है अब विजय बिस्वाल के पेंटिंग की चर्चा आने वाले दिनों में जरुर होगी।
और भी मेरे ध्यान में एक बात आई - मध्य प्रदेश के हरदा ज़िले के सरकारी अधिकारियों की पूरी टीम, पूरी टोली ने एक ऐसा काम शुरू किया जो मेरे मन को छू गया और मुझे बहुत पसंद है उनका ये कामI उन्होंने शुरु किया “ऑपरेशन मलयुद्ध” - अब ये कोई, इसका सुनते हुए लगेगा कुछ और ही बात होगीI लेकिन मूल बात ये है उन्होंने स्वच्छ भारत अभियान को नया मोड़ दिया है और उन्होंने पूरे जिले में एक अभियान चलाया है ‘ब्रदर नंबर वन’, यानि वो सबसे उत्तम भाई जो अपनी बहन को रक्षाबंधन पर एक शौचालय भेंट करे, और उन्होंने बीड़ा उठाया है कि ऐसे सभी भाइयों को प्रेरित करके उनकी बहनों को टॉयलेट देंगे और पूरे जिले में खुले में कहीं माताओं-बहनों को शौच ना जाना पड़े, ये काम रक्षाबंधन के पर्व पर वो कर रहे हैं। देखिए रक्षाबंधन का अर्थ कैसा बदल गया, मैं हरदा जिले के सरकारी अधिकारियों की पूरी टीम को बहुत-बहुत बधाई देता हूं।
अभी एक समाचार मेरे कान पे आए थे, कभी-कभी ये छोटी-छोटी चीजें बहुत मेरे मन को आनंद देती हैं। इसलिए मैं आपसे शेयर कर रहा हूं। छत्तीसगढ़ के राजनंदगांव में केश्ला करके एक छोटा सा गांव है। उस गांव के लोगों ने पिछले कुछ महीनों से कोशिश करके शाैचालय बनाने का अभियान चलाया। और अब उस गांव में किसी भी व्यक्ति को खुले में शौच नहीं जाना पड़ता है। ये तो उन्होंने किया, लेकिन, जब पूरा काम पूरा हुआ तो पूरे गांव ने जैसे कोई बहुत बड़ा उत्सव मनाया जाता है वैसा उत्सव मनाया। गांव ने ये सिद्धि प्राप्त की। केश्ला गांव समस्त ने मिलकर के एक बहुत बड़ा आनंदोत्सव मनाया। समाज जीवन में मूल्य कैसे बदल रहे हैं, जन-मन कैसे बदल रहा है और देश का नागरिक देश को कैसे आगे ले जा रहा है इसके ये उत्तम उदाहरण मेरे सामने आ रहे हैं।
मुझे भावेश डेका, गुवाहाटी से लिख रहे हैं, नॉर्थ-ईस्ट के सवालों के संबंध में। वैसे नॉर्थ-ईस्ट के लोग एक्टिव भी बहुत हैं। वो काफी कुछ लिखते रहते हैं, अच्छी बात है। लेकिन मैं आज ख़ुशी से उनको कहना चाहता हूं कि नॉर्थ-ईस्ट के लिए एक अलग मिनिस्ट्री बनी हुई है। जब अटल बिहारी वाजपेयी जी प्रधानमंत्री थे तब एक डोनियर मिनिस्ट्री बनी थी ‘Development of North-East Region’. हमारी सरकार बनने के बाद, हमारे इस विभाग में बड़ा महत्वपूर्ण निर्णय किया है कि नॉर्थ-ईस्ट का भला दिल्ली में बैठकर के हो जाएगा क्या? और सबने मिलकर के तय किया कि भारत सरकार के अधिकारियों की टीम नॉर्थ-ईस्ट के उन राज्यों में जाएगी। नागालैंड हो, मणिपुर हो, अरुणाचल हो, त्रिपुरा हो, असम हो, सिक्किम हो और सात दिन वहां कैंप करेंगे। जिलों में जाएंगे, गांवों में जाएंगे, वहां के स्थानीय सरकार के अधिकारियों से मिलेंगे, जनप्रतिनिधियों से बातें करेंगे, नागरिकों से बातें करेंगे। समस्याओं को सुनेंगे, समस्याओं का समाधान करने की दिशा में भारत सरकार को जो करना है, उसको भी करेंगे। ये प्रयास आने वाले दिनों में बहुत अच्छे परिणाम लाएगा। और जो अधिकारी जा कर के आते हैं, उनको भी लगता है कितना सुंदर प्रदेश, कितने अच्छे लोग, अब इस इलाके को विकसित करके ही रहना है, उनकी समस्याओं का समाधान करके ही रहना है। इस संकल्प के साथ लौटते हैं तो दिल्ली आने के बाद भी अब उनको वहां की समस्याओं को समझना भी बहुत सरल हो गया है। तो एक अच्छा प्रयास, दिल्ली से दूर-दूर पूरब तक जाने का प्रयास, जो मैं ‘ एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ कह रहा हूं ना, यही तो एक्ट है।
मेरे प्यारे देशवासियो, हम सब इस बात के लिए गर्व करते हैं कि ‘मार्स मिशन’ की सफलता का हमें आनंद होता है। अभी पिछले दिनों भारत के PSLV C-28 ने UK के पांच सेटेलाइट लॉन्च किए। भारत ने अब तक लॉन्च किए हुए ये सबसे ज़्यादा हैवी वेट सैटेलाइट लॉन्च किए हैं। ये खबरें ऐसी होती है कि कुछ पल के लिए आती हैं, चली जाती हैं, इस पर हमारा ध्यान नहीं जाता। लेकिन ये बहुत बड़ा अचीवमेंट है। लेकिन कभी-कभी ये भी विचार आता है, आज हम युवा पीढ़ी से अगर बात करते हैं और उनको पूछें कि आप आगे क्या बनना चाहते हो, तो 100 में से बड़ी मुश्किल से एक-आध कोई छात्र मिल जाएगा जो ये कहेगा कि मुझे साइंटिस्ट बनना है। साइंस के प्रति रुझान कम होना ये बहुत चिंता का विषय है।
साइंस और टेक्नोलॉजी एक प्रकार से विकास का डीएनए है। हमारी नई पीढ़ी साइंटिस्ट बनने के सपने देखे, उनको प्रोत्साहन मिले, उनकी क्षमताओं को जाना जाए, एक बहुत बड़ी आवश्यकता है। अभी भारत सरकार के मानव संसाधन मंत्रालय ने एक राष्ट्रीय आविष्कार अभियान शुरु किया है। हमारे राष्ट्र के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. कलाम जी ने इसका आरम्भ किया है। इस अभियान के तहत IIT, NIT, Central और State Universities एक मेंटर के तौर पर, जहां-जहां इस प्रकार की संभावनाएं हैं, वहां उन बालकों को प्रोत्साहित करना, उनको मार्गदर्शन करना, उनको मदद करना, उस पर ध्यान केंद्रित करने वाले हैं। मैं तो सरकार के IAS अफसरों को भी कहता रहता हूं कि आप इतना पढ़ लिखकर आगे बढ़े हो तो आप भी तो कभी सप्ताह में दो चार घंटे अपने नजदीक के किसी स्कूल-कॉलेज में जा करके बच्चों से जरुर बात कीजिए। आपका जो अनुभव है, आपकी जो शक्ति है वो जरुर इस नई पीढ़ी के काम आएगी।
हमने एक बहुत बड़ा बीड़ा उठाया हुआ है, क्या हमारे देश के गांवों को 24 घंटे बिजली मिलनी चाहिए कि नहीं मिलनी चाहिए? काम कठिन है, लेकिन करना है। हमने इसका शुभारम्भ कर दिया है। और आने वाले वर्षों में, हम गांवों को 24 घंटे बिजली प्राप्त हो। गांव के बच्चों को भी, परीक्षा के दिनों में पढ़ना हो तो बिजली की तकलीफ न हो। गांव में भी छोटे-मोटे उद्योग लगाने हों तो बिजली प्राप्त हो। आज तो मोबाइल चार्ज करना हो तो भी दूसरे गांव जाना पड़ता है। जो लाभ शहरों को मिलता है वो गांवों को मिलना चाहिए। गरीब के घर तक जाना चाहिए। और इसीलिए हमने प्रारंभ किया है ‘दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति कार्यक्रम’। मैं जानता हूं इतना बड़ा देश, लाखों गांव, दूर-दूर तक पहुंचना है, घर-घर पहुंचना है। लेकिन, ग़रीब के लिए ही तो दौड़ना है। हम इसको करेंगे, आरम्भ कर दिया है। जरुर करेंगे। आज मन की बात में भांति-भांति की बातें करने का मन कर गया।
एक प्रकार से हमारे देश में अगस्त महीना, सितंबर महीना, त्योहारों का ही अवसर रहता है। ढेर सारे त्यौहार रहते हैं। मेरी आप सबको बहुत-बहुत शुभकामनाएं। 15 अगस्त के लिए मुझे ज़रुर सुझाव भेजिये। आपके विचार मेरे बहुत काम आएंगे।
बहुत-बहुत धन्यवाद।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें