हिन्दुत्व – नए संदर्भ, नई परिभाषा
हिन्दुत्व – नए संदर्भ, नई परिभाषा
हिन्दुत्व के संदर्भ बदल रहे हैं. हिन्दुत्व की ओर देखने का दृष्टिकोण भी बदल रहा है. और यह घटनाक्रम अत्यंत तेज गति से घटित हो रहा है. राजनीतिक परिदृश्य में हिन्दुत्व पर गर्व (अभिमान) करने वाली पार्टी के शासन में आते ही, अनेकों का हिन्दुत्व और हिन्दूवादी संगठनों की और देखने का नजरिया बदल रहा है, बदल गया है.
हिन्दुत्व क्या है? हिन्दू की पहचान, हिन्दू की अस्मिता याने हिन्दुत्व. वीर सावरकर जी ने अपने हिन्दुत्व ग्रन्थ में हिन्दू की अत्यंत सरल परिभाषा दी है –
आ सिंधु-सिंधु पर्यन्ता, यस्य भारत भूमिका.
पितृभू-पुण्यभू भुश्चेव सा वै हिन्दू रीती स्मृता.
अर्थात् – ‘हिन्दू वह है जो सिंधु नदी से समुद्र तक के भारतवर्ष को अपनी पितृभूमि और पुण्यभूमि माने. इस विचारधारा को ही हिन्दुत्व नाम दिया गया है. इसका अर्थ स्पष्ट है – हिन्दुत्व यह अंग्रेजी शब्द रिलिजन के सन्दर्भ में प्रयोग होने वाला पर्यायवाची शब्द नहीं है. उस अर्थ में हिन्दुत्व यह धर्म ही नहीं है. यह तो इस देश को पुण्यभूमि मानने वाले लोगों की जीवन पद्धति है.
अब इस हिन्दुत्व में गलत क्या है, या बुरा क्या है? हिन्दुत्व की पद्धति से जीवन यापन करने वालों ने किसी के विरोध में अत्याचार किये हों, ऐसा कोई उदाहरण सामने नहीं है. हिन्दुत्व को मानने वालों ने कभी भी आक्रान्ता के रूप में दुनिया के किसी भी भू-भाग पर आक्रमण नहीं किया है. सुदूर दक्षिण एशिया तक हिन्दुत्व का फैलाव हुआ था. जावा, सुमात्रा, कंबोज (अर्थात् इंडोनेशिया, वियतनाम, कंबोडिया, लाओस) आदि सभी देश किसी जमाने में हिन्दू देश थे. किन्तु उनको हिन्दू बनाने में कभी भी अस्त्र-शस्त्र का प्रयोग नहीं किया गया. वहां हिन्दुत्व बढा, तो उसके विचारों के आधार पर. हिन्दुत्व की जीवनशैली के आधार पर. हिन्दुओं ने, हिन्दुत्व ने हमेशा ही अन्य धर्मों के सह-अस्तित्व को माना है. हिन्दुओं का कोई भी धर्म ग्रन्थ, उन्हें हिंसा कर, धर्म को बढ़ाने के लिए नहीं कहता है. हिन्दुत्व में अतिवाद को या आतंकवाद को कोई जगह ही नहीं है.
किन्तु फिर क्या ऐसे कारण थे, कि वर्षों तक अपने देश में ‘हिन्दुत्व’ इस शब्द को सकुचा कर बोलने वाला शब्द माना गया था ? हिन्दुत्व इस शब्द का उच्चार करना मतलब कुछ गलत करना ऐसा माना गया था. हिन्दुत्व को हमेशा ‘अतिवादी’ के रूप में ही देखा गया.
लार्ड मेघनाथ देसाई इंग्लैंड के अत्यंत प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं और अनेक वर्षों से इंग्लैंड की पार्लियामेंट में संसद सदस्य हैं. वे लिखते हैं –
“मैं एक आंग्लिकन ईसाई राजतंत्र में रहता हूं, किसी धर्मनिरपेक्ष देश में नहीं. इस देश के हाउस ऑफ लॉर्ड्स में 26 बिशप हैं और प्रत्येक नया दिन आंग्लिकन प्रार्थना के साथ शुरू होता है. इसके बावजूद ऐसा मानता हूं कि मैं एक अच्छे सहिष्णु समाज में रहता हूं. देश में बहुत सारे ईसाई स्कूल चलाए जाते हैं. बहुत सारे सरकारी स्कूल भी चलाए जाते हैं, जो धर्मनिरपेक्ष हैं. इसके अलावा यूरोप के कई देशों में ईसाई प्रजातांत्रिक और ईसाई समाजवादी पार्टियां भी हैं. लेकिन, कोई भी उनके बारे में ऐसा नहीं सोचता कि वे धर्मनिरपेक्षता को कमजोर कर रही हैं.
भारत में काफी समय से अगर कोई शब्द सबसे ज़्यादा डराने वाला रहा है, तो वह है हिन्दुत्व. भाजपा को लगातार हिन्दू राष्ट्रवादी पार्टी के रूप में परिभाषित किया जाता रहा है. ऐसा माना जाता है कि पार्टी की यह छवि लगभग प्रत्येक भारतीय के भीतर चिंता तो भर ही देती है. जब लोकसभा चुनाव चल रहे थे, उस दौरान नरेंद्र मोदी को ऐसा नेता बताया जा रहा था, जो देश में हिन्दुत्व थोप देगा. हिटलर से उनकी तुलना अक्सर की जाती थी. इसका मतलब यह था कि अगर वह प्रधानमंत्री बन जाएंगे, तो देश से मुसलमानों को समाप्त कर देंगे. कई धर्मनिरपेक्ष पार्टियों को ऐसा लगा था कि मुसलमानों ने उनकी इस कहानी पर विश्वास कर लिया है और चुनाव में वे उन्हें ही वोट देंगे. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. आख़िर यह हिंदुत्व क्या है ? यह इतना ख़तरनाक है क्या, जैसा कि आलोचक इसे बनाना चाहते हैं ?”
लार्ड मेघनाथ देसाई जैसी ही भावना अनेकों की रही थी. अनेक वर्षों तक थी. राजनीतिक रूप से हिन्दू कभी वोट बैंक नहीं रहे, इसलिए हिन्दुत्व के प्रति राजनीतिक दलों की सहानुभूति का प्रश्न ही नहीं था. लेकिन ‘हिन्दुत्व के प्रति सहानुभूति रखना यानि अपनी धर्मनिरपेक्षता खोना’, ऐसा समाजवादी और साम्यवादी विचारों को मानने वालों ने मानो ठान लिया था. इन सबका परिणाम था, सार्वजनिक रूप से हिन्दुत्व के बारे में बोलना हीन माना जाता था.
2014 के लोकसभा चुनावों के पहले हिन्दुत्व का मुद्दा खूब उछला था. यह ‘हिन्दुत्व बनाम विकास’ का चुनाव रहेगा, ऐसा भी कहा गया था. इस बहस के माध्यम से हिन्दुत्व यह विकास विरोधी है, ऐसा सन्देश देने का भी प्रयास हुआ. मीडिया के एक हिस्से ने हिन्दुत्व को उग्र चेहरा देने का भी प्रयास किया. चुनाव के पहले उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में दंगे हुए. उसका ठीकरा भी हिन्दुत्व पर ही फोड़ा गया. लेकिन 16 मई. 2014 को भारत की 16वीं लोकसभा का परिणाम सबके सामने आया और लोगों का नजरिया बदलने लगा. लंदन के गार्डियन दैनिक ने अपने 18 मई के सम्पादकीय में लिखा कि भारत के इतिहास से कल अंतिम अंग्रेज की विदाई हुई. “Today, 18 May, 2014, may well go down in history as the day when Britain finally left India. Narendera Modi’s victory in the elections marks the end of a long era in which the structures of power did not differ greatly from those through which Britain ruled the subcontinent”
पहले जो भारतीय जनता पार्टी, ‘अतिवादी हिन्दू पार्टी’ लग रही थी, वह धीरे धीरे राष्ट्रवादी विचारों की पार्टी लगने लगी है. पश्चिमी देशों की मीडिया ने भी अपनी भाषा में कुछ हद तक बदल किया है. राजनीतिक दलों के नेताओं को भी अब ‘हिन्दुत्व’ अछूता नहीं रहा है. अगर भाजपा प्रवेश देने को तैयार है, तो कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस, जनता दल (यु) के अनेक नेता हिन्दुत्व के झंडाबरदार बनने को तैयार हैं. अनेक मुसलमान नेताओं ने भी हिन्दुत्व को मानने वाली संस्थाओं के प्रति अपना रुख सौम्य किया है. हिन्दुत्व के प्रति यह ‘आकर्षण’, बदली हुई राजनीतिक परिस्थिति का परिणाम है. यह न तो शाश्वत है, और न ही प्रामाणिक. यह तो राजनीतिक फायदे के लिए गढ़ी गयी रणनीति है. किन्तु इस राजनीतिक आकर्षण को बाजू में रखें, तो भी सामाजिक स्तर पर हिन्दुत्व के प्रति एक बहुत बड़ा अनुकूल झुकाव दिख रहा है. सामान्य व्यक्ति हिन्दुत्व का काम करने वाली संस्थाओं के साथ जुड़ना चाह रहा है. हिन्दुत्व की और ज्यादा जानकारी लेना चाह रहा है. पिछले चार महीनों में हिन्दुत्व से संबंधित पुस्तकों की बिक्री में भारी उछाल आया है. हिन्दुत्व के प्रतीक के रूप में जिसकी पहचान होती है, ऐसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ जुड़ने के लिए हजारों युवक प्रति माह ऑन-लाइन आवेदन कर रहे हैं. दुनिया के अनेक देशों में भी हिन्दुत्व के प्रति जगा हुआ कौतुहल दिख रहा है.
यह एक सम्पूर्णत: अलग अनुभव हैं. हिन्दुत्व पर आलोचनाओं की बौछार सुनने के आदि हिन्दू संगठनों के कार्यकर्ताओं के लिए यह सुखद आश्चर्य है. यह बदल राजनीतिक कारणों से होता हुआ दिख रहा है, तो भी इसके पीछे प्रतिकूल परिस्थितियों में हिंदुत्व का झंडा थामे रहने वाले लाखों कार्यकर्ताओं की अनेकों वर्षों की तपस्या है. इस प्रक्रिया में हिन्दुत्व पर चर्चा हो रही है. हिन्दुत्व के सारे पहलु सामने आ रहे हैं. पर्यावरण को प्राथमिकता देने वाली, संस्कार, निर्मल आरोग्य और शांत मानसिकता पर जोर देने वाली इस जीवन पद्धति का महत्व लोगों के समझ में आ रहा है, यह सारे शुभ संकेत हैं…..!
हिन्दुत्व के संदर्भ बदल रहे हैं. हिन्दुत्व की ओर देखने का दृष्टिकोण भी बदल रहा है. और यह घटनाक्रम अत्यंत तेज गति से घटित हो रहा है. राजनीतिक परिदृश्य में हिन्दुत्व पर गर्व (अभिमान) करने वाली पार्टी के शासन में आते ही, अनेकों का हिन्दुत्व और हिन्दूवादी संगठनों की और देखने का नजरिया बदल रहा है, बदल गया है.
हिन्दुत्व क्या है? हिन्दू की पहचान, हिन्दू की अस्मिता याने हिन्दुत्व. वीर सावरकर जी ने अपने हिन्दुत्व ग्रन्थ में हिन्दू की अत्यंत सरल परिभाषा दी है –
आ सिंधु-सिंधु पर्यन्ता, यस्य भारत भूमिका.
पितृभू-पुण्यभू भुश्चेव सा वै हिन्दू रीती स्मृता.
अर्थात् – ‘हिन्दू वह है जो सिंधु नदी से समुद्र तक के भारतवर्ष को अपनी पितृभूमि और पुण्यभूमि माने. इस विचारधारा को ही हिन्दुत्व नाम दिया गया है. इसका अर्थ स्पष्ट है – हिन्दुत्व यह अंग्रेजी शब्द रिलिजन के सन्दर्भ में प्रयोग होने वाला पर्यायवाची शब्द नहीं है. उस अर्थ में हिन्दुत्व यह धर्म ही नहीं है. यह तो इस देश को पुण्यभूमि मानने वाले लोगों की जीवन पद्धति है.
अब इस हिन्दुत्व में गलत क्या है, या बुरा क्या है? हिन्दुत्व की पद्धति से जीवन यापन करने वालों ने किसी के विरोध में अत्याचार किये हों, ऐसा कोई उदाहरण सामने नहीं है. हिन्दुत्व को मानने वालों ने कभी भी आक्रान्ता के रूप में दुनिया के किसी भी भू-भाग पर आक्रमण नहीं किया है. सुदूर दक्षिण एशिया तक हिन्दुत्व का फैलाव हुआ था. जावा, सुमात्रा, कंबोज (अर्थात् इंडोनेशिया, वियतनाम, कंबोडिया, लाओस) आदि सभी देश किसी जमाने में हिन्दू देश थे. किन्तु उनको हिन्दू बनाने में कभी भी अस्त्र-शस्त्र का प्रयोग नहीं किया गया. वहां हिन्दुत्व बढा, तो उसके विचारों के आधार पर. हिन्दुत्व की जीवनशैली के आधार पर. हिन्दुओं ने, हिन्दुत्व ने हमेशा ही अन्य धर्मों के सह-अस्तित्व को माना है. हिन्दुओं का कोई भी धर्म ग्रन्थ, उन्हें हिंसा कर, धर्म को बढ़ाने के लिए नहीं कहता है. हिन्दुत्व में अतिवाद को या आतंकवाद को कोई जगह ही नहीं है.
किन्तु फिर क्या ऐसे कारण थे, कि वर्षों तक अपने देश में ‘हिन्दुत्व’ इस शब्द को सकुचा कर बोलने वाला शब्द माना गया था ? हिन्दुत्व इस शब्द का उच्चार करना मतलब कुछ गलत करना ऐसा माना गया था. हिन्दुत्व को हमेशा ‘अतिवादी’ के रूप में ही देखा गया.
लार्ड मेघनाथ देसाई इंग्लैंड के अत्यंत प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं और अनेक वर्षों से इंग्लैंड की पार्लियामेंट में संसद सदस्य हैं. वे लिखते हैं –
“मैं एक आंग्लिकन ईसाई राजतंत्र में रहता हूं, किसी धर्मनिरपेक्ष देश में नहीं. इस देश के हाउस ऑफ लॉर्ड्स में 26 बिशप हैं और प्रत्येक नया दिन आंग्लिकन प्रार्थना के साथ शुरू होता है. इसके बावजूद ऐसा मानता हूं कि मैं एक अच्छे सहिष्णु समाज में रहता हूं. देश में बहुत सारे ईसाई स्कूल चलाए जाते हैं. बहुत सारे सरकारी स्कूल भी चलाए जाते हैं, जो धर्मनिरपेक्ष हैं. इसके अलावा यूरोप के कई देशों में ईसाई प्रजातांत्रिक और ईसाई समाजवादी पार्टियां भी हैं. लेकिन, कोई भी उनके बारे में ऐसा नहीं सोचता कि वे धर्मनिरपेक्षता को कमजोर कर रही हैं.
भारत में काफी समय से अगर कोई शब्द सबसे ज़्यादा डराने वाला रहा है, तो वह है हिन्दुत्व. भाजपा को लगातार हिन्दू राष्ट्रवादी पार्टी के रूप में परिभाषित किया जाता रहा है. ऐसा माना जाता है कि पार्टी की यह छवि लगभग प्रत्येक भारतीय के भीतर चिंता तो भर ही देती है. जब लोकसभा चुनाव चल रहे थे, उस दौरान नरेंद्र मोदी को ऐसा नेता बताया जा रहा था, जो देश में हिन्दुत्व थोप देगा. हिटलर से उनकी तुलना अक्सर की जाती थी. इसका मतलब यह था कि अगर वह प्रधानमंत्री बन जाएंगे, तो देश से मुसलमानों को समाप्त कर देंगे. कई धर्मनिरपेक्ष पार्टियों को ऐसा लगा था कि मुसलमानों ने उनकी इस कहानी पर विश्वास कर लिया है और चुनाव में वे उन्हें ही वोट देंगे. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. आख़िर यह हिंदुत्व क्या है ? यह इतना ख़तरनाक है क्या, जैसा कि आलोचक इसे बनाना चाहते हैं ?”
लार्ड मेघनाथ देसाई जैसी ही भावना अनेकों की रही थी. अनेक वर्षों तक थी. राजनीतिक रूप से हिन्दू कभी वोट बैंक नहीं रहे, इसलिए हिन्दुत्व के प्रति राजनीतिक दलों की सहानुभूति का प्रश्न ही नहीं था. लेकिन ‘हिन्दुत्व के प्रति सहानुभूति रखना यानि अपनी धर्मनिरपेक्षता खोना’, ऐसा समाजवादी और साम्यवादी विचारों को मानने वालों ने मानो ठान लिया था. इन सबका परिणाम था, सार्वजनिक रूप से हिन्दुत्व के बारे में बोलना हीन माना जाता था.
2014 के लोकसभा चुनावों के पहले हिन्दुत्व का मुद्दा खूब उछला था. यह ‘हिन्दुत्व बनाम विकास’ का चुनाव रहेगा, ऐसा भी कहा गया था. इस बहस के माध्यम से हिन्दुत्व यह विकास विरोधी है, ऐसा सन्देश देने का भी प्रयास हुआ. मीडिया के एक हिस्से ने हिन्दुत्व को उग्र चेहरा देने का भी प्रयास किया. चुनाव के पहले उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में दंगे हुए. उसका ठीकरा भी हिन्दुत्व पर ही फोड़ा गया. लेकिन 16 मई. 2014 को भारत की 16वीं लोकसभा का परिणाम सबके सामने आया और लोगों का नजरिया बदलने लगा. लंदन के गार्डियन दैनिक ने अपने 18 मई के सम्पादकीय में लिखा कि भारत के इतिहास से कल अंतिम अंग्रेज की विदाई हुई. “Today, 18 May, 2014, may well go down in history as the day when Britain finally left India. Narendera Modi’s victory in the elections marks the end of a long era in which the structures of power did not differ greatly from those through which Britain ruled the subcontinent”
पहले जो भारतीय जनता पार्टी, ‘अतिवादी हिन्दू पार्टी’ लग रही थी, वह धीरे धीरे राष्ट्रवादी विचारों की पार्टी लगने लगी है. पश्चिमी देशों की मीडिया ने भी अपनी भाषा में कुछ हद तक बदल किया है. राजनीतिक दलों के नेताओं को भी अब ‘हिन्दुत्व’ अछूता नहीं रहा है. अगर भाजपा प्रवेश देने को तैयार है, तो कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस, जनता दल (यु) के अनेक नेता हिन्दुत्व के झंडाबरदार बनने को तैयार हैं. अनेक मुसलमान नेताओं ने भी हिन्दुत्व को मानने वाली संस्थाओं के प्रति अपना रुख सौम्य किया है. हिन्दुत्व के प्रति यह ‘आकर्षण’, बदली हुई राजनीतिक परिस्थिति का परिणाम है. यह न तो शाश्वत है, और न ही प्रामाणिक. यह तो राजनीतिक फायदे के लिए गढ़ी गयी रणनीति है. किन्तु इस राजनीतिक आकर्षण को बाजू में रखें, तो भी सामाजिक स्तर पर हिन्दुत्व के प्रति एक बहुत बड़ा अनुकूल झुकाव दिख रहा है. सामान्य व्यक्ति हिन्दुत्व का काम करने वाली संस्थाओं के साथ जुड़ना चाह रहा है. हिन्दुत्व की और ज्यादा जानकारी लेना चाह रहा है. पिछले चार महीनों में हिन्दुत्व से संबंधित पुस्तकों की बिक्री में भारी उछाल आया है. हिन्दुत्व के प्रतीक के रूप में जिसकी पहचान होती है, ऐसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ जुड़ने के लिए हजारों युवक प्रति माह ऑन-लाइन आवेदन कर रहे हैं. दुनिया के अनेक देशों में भी हिन्दुत्व के प्रति जगा हुआ कौतुहल दिख रहा है.
यह एक सम्पूर्णत: अलग अनुभव हैं. हिन्दुत्व पर आलोचनाओं की बौछार सुनने के आदि हिन्दू संगठनों के कार्यकर्ताओं के लिए यह सुखद आश्चर्य है. यह बदल राजनीतिक कारणों से होता हुआ दिख रहा है, तो भी इसके पीछे प्रतिकूल परिस्थितियों में हिंदुत्व का झंडा थामे रहने वाले लाखों कार्यकर्ताओं की अनेकों वर्षों की तपस्या है. इस प्रक्रिया में हिन्दुत्व पर चर्चा हो रही है. हिन्दुत्व के सारे पहलु सामने आ रहे हैं. पर्यावरण को प्राथमिकता देने वाली, संस्कार, निर्मल आरोग्य और शांत मानसिकता पर जोर देने वाली इस जीवन पद्धति का महत्व लोगों के समझ में आ रहा है, यह सारे शुभ संकेत हैं…..!
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