मजहब के नाम पर आतंकवादी का समर्थन क्यों ?
मजहब के नाम पर आतंकवादी का समर्थन क्यों? '
ओवैसी साहब, जब आप ही आतंकवादी का मजहब ढूंढ़ेंगे तो फिर शेष समाज को दोष न देना कि आतंकवाद को किसी धर्म विशेष से जोड़कर क्यों देखा जा रहा है?
- लोकेन्द्र सिंह
मुम्बई सीरियल धमाकों में सैकड़ों लोगों की जान लेने वाले आतंकवादी याकूब मेमन की फांसी पर जबरन का विवाद खड़ा करने की कोशिश की जा रही है। एआईएमआईएम के अध्यक्ष और हैदराबाद से सांसद असुद्दीन ओवैसी ने अल्पसंख्यकों को आकर्षित करने के लिए मेमन की फांसी पर मजहबी पत्ता खेला है। उसने अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने की कोशिश की है। साम्प्रदायिकता का जहर घोलने और भड़काऊ बयान देने के लिए ओवैसी पहले से ही कुख्यात है। मेमन की फांसी की सजा पर ओवैसी ने कहा है कि याकूब मेमन मुसलमान है इसलिए उसे फांसी दी जा रही है।
उसके इस बयान से राजनीतिक गलियारे में सियासी हलचल तेज हो गई है। बयान के विरोध और पक्ष में आवाजें आने लगी हैं। एक आतंकवादी के पक्ष में जनप्रतिनिधि का इस तरह बयान देना कितना सही है? यह तो सभी जानते हैं कि ओवैसी मुस्लिम राजनीति करते हैं। लेकिन, वोटबैंक को साधने और मजबूत करने के लिए एक हत्यारे के पक्ष में उतर आना कहां जायज है?
मेमन की फांसी को मुस्लिम रंग देने के प्रयास में ओवैसी ने कहा है कि अयोध्या में बाबरी मस्जिद (ढांचा) को गिराने, मुम्बई और गुजरात में साम्प्रदायिक दंगों में भी ऐसी ही सजा दी जाएगी क्या? राजीव गांधी के हत्यारों को फांसी पर नहीं लटकाने पर भी ओवैसी ने सवाल उठाए हैं। ओवैसी को शायद यह बताने की जरूरत है कि यह तो न्यायालय तय करेगा कि किस मामले में क्या सजा सुनाई जानी है? किसी भी जघन्य अपराध के खिलाफ न्यायालय में पर्याप्त सबूत मिलेंगे तो न्यायालय अपने विवेक से उचित ही फैसला करेगा? न्यायालय के फैसले पर ओछी मानसिकता का प्रदर्शन करते हुए साम्प्रदायिक टिप्पणी करना उचित नहीं। शायद, ओवैसी ने अब तक हुई फांसी की सजाओं का रिकार्ड नहीं देखा होगा, इसलिए यह कह गए कि सिर्फ मुसलमानों को ही फांसी क्यों?
नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, दिल्ली के ‘डेथ पेनाल्टी रिसर्च प्रोजेक्ट’ के मुताबिक आजादी के बाद से अब तक देश में तकरीबन 1414 कैदियों को फांसी दी गई, जिनमें से मात्र 72 कैदी ही मुसलमान थे। यानी पांच फीसदी से भी कम। बहरहाल, सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि अपराधी, अपराधी होता है, हिन्दू या मुसलमान नहीं। फिर भी आंकड़े तो यही बताते हैं कि मुसलमानों से कहीं ज्यादा फांसी की सजा दूसरे धर्म को मानने वालों को हुई है।
भारत की बहुसंख्यक आबादी को एक और आपत्ति है कि आतंकवादी घटनाओं में धर्म को नहीं देखने की बात तो बड़े जोर-शोर से की जाती है तो फिर सजा भुगतने का समय आने पर आतंकवादी का मजहब कहां से पैदा
हो गया? जब यह कहा जाता है कि हर मुसलमान आतंकवादी नहीं लेकिन प्रत्येक आतंकवादी मुसलमान क्यों होता है? तब सब मुस्लिम रहनुमा और प्रगतिशील दलील देते हैं कि यह कथन ठीक नहीं। आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता, आतंकवाद को धर्म से जोडऩा गलत है। अब एक आतंकवादी में धर्म ढूंढऩे की घटना के समय
रहनुमाओं और सेक्युलरों की जमात कहां चली गईं? बहरहाल, समाज के अपराधियों का धर्म ढूंढऩेवाले कौन लोग हैं? आतंकवादी को धर्म से जोड़कर आखिर क्या साबित करना चाहते हैं ये लोग? क्या हासिल होगा इन्हें?
मुसलमानों का समर्थन? पर क्यों? मुसलमानों का समर्थन कैसे हासिल होगा? बम विस्फोट में सैकड़ों लोगों की हत्या करनेवाले आतंकवादी का समर्थन भारतीय मुसलमान करेंगे क्या? क्या याकूब मेमन उनका हीरो हैं? नहीं, तो फिर ओवैसी क्यों आसमान सिर पर उठा रहा है? ये सवाल, बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करते हैं? एक सार्थक बहस की शुरुआत भी करते हैं?
ओवैसी ने जो विवाद खड़ा किया है, उसका रचनात्मक समाधान खोजना होगा। यह रचनात्मक समाधान आएगा, मुस्लिम समाज से। मुस्लिम समाज को आगे आकर ओवैसी और इस तरह की घटिया राजनीति का जमकर विरोध करना चाहिए। मुस्लिम समाज को जोर से कहना होगा कि याकूब मेमन की फांसी का मुस्लिम होने से कोई लेना-देना नहीं। वैसे भी उसने जो बम फोड़े थे, उसमें हिन्दू ही नहीं, कई मुस्लिम जिन्दगियां भी धुंआ हो गईं थीं। गोली, बम और तलवारें धर्म पूछकर नहीं मारतीं। इसलिए इनका इस्तेमाल करके लोगों खून बहानेवाले का कोई धर्म नहीं होता। भारतीय न्याय प्रणाली और न्यायालय पर इस तरह ओछी टिप्पणी करने के मामले को तत्काल संज्ञान में लेने की जरूरत है।
गैर-जिम्मेदारान तरीके से सम्मानित संस्थाओं पर टिप्पणी करनेवाले जिम्मेदार लोगों पर गंभीरता से कार्रवाई होनी चाहिए। ऐसे लोगों के खिलाफ की गई कार्रवाई नजीर बननी चाहिए, भविष्य के लिए। आखिर में, ओवैसी साहब जब आप ही आतंकवादी का मजहब ढूंढ़ेंगे तो फिर शेष समाज को दोष न देना कि आतंकवाद को किसी धर्म विशेष से जोड़कर क्यों देखा जा रहा है? याकूब मेमन को 30 जुलाई को फांसी होनी है। मेमन ने अपनी सजा माफ कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। आज सर्वोच्च न्यायालय की विशेष पीठ उसकी माफी की याचिका पर सुनवाई करेगी।
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