इशरत जहां मामले में कांग्रेस पर उंगली उठी


उंगली उठी, चिंता बढ़ी
तारीख: 27 Apr 2016


इशरत जहां मामले में भाजपा के तीखे तेवरों के आगे कांग्रेस को जवाब देना भारी पड़ गया है। इशरत के खतरनाक षड्यंत्र को छुपाने के तथ्य चिदंबरम को 10 जनपथ से शह मिलने की तरफ संकेत कर रहे हैं
इशरत जहां फर्जी मुठभेड़ मामले का भूत फिर से लौट आया है। ताजा खुलासे में केंद्रीय वाणज्यि व उद्योग मंत्री नर्मिला सीतारमन ने 18 अप्रैल को अपने बयान में कहा, ''कांग्रेसी अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी तत्कालीन गृहमंत्री पी़ चिदंबरम के साथ इस मामले में शामिल हैं। इस मामले को गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया गया था।'' सीतारमन ने कहा, ''कांग्रेस ने आतंकी साजिश को दबाया जो (प्रधानमंत्री) मोदी को समाप्त कर सकती थी। आप साफ तौर पर मान रहे हैं कि आप राजनीतिक तौर पर यह लड़ाई नहीं लड़ सकते इसलिए उस नेता का खत्मा किया जाए या उसके लिए उकसावा ही दिया जाए जिससे राजनीतिक तौर पर आप जीत नहीं सकते। ऐसा प्रयास हर संभव किया गया जिससे यह पता चले कि वह एक वर्ग के खिलाफ हैं और उनको कोई आतंकी खतरा नहीं है।''
नए घटनाक्रम
विवादास्पद 'इशरत जहां फर्जी मुठभेड़ मामले' में नए खुलासे हुए हैं और एक बार फिर साजिशकर्ता के तौर पर शक की उंगली पी़ चिदंबरम की ओर उठ रही है। चिदंबरम यूपीए-2 के शासनकाल में गृह मंत्री थे। जाहिर है नए खुलासों से फायदा उठाने में भाजपा ने देर नहीं लगाई।
एक आरटीआई के बाद ये नए तथ्य सामने आए, जिसके बाद केवल चिदंबरम ही नहीं बल्कि कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व ही अब निशाने पर है। खुद को फंसा हुआ पाकर कांग्रेस आरोपों को बेबुनियाद बताते हुए इशरत जहां और उसके साथियों के पुलिस मुठभेड़ की सत्यता पर सवाल उठा रही है। सीधा हमला बोलते हुए भाजपा ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी को तत्कालीन गृहमंत्री चिदंबरम के साथ साठगांठ करके 'इशरत जहां, एक कथित एलइटी आतंकी को मुंब्रा, मुम्बई की एक मासूम लड़की' बताने का आरोप लगाया है। भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने 20 अप्रैल को कहा कि चिदंबरम को बताना चाहिए कि उनसे हलफनामा बदलने के लिए किसने कहा था। उन्होंने चिदंबरम पर कुछ सख्त सवाल दागे। पात्रा के अनुसार, ''देश जानना चाहता है कि इसके पीछे कौन है? सभी जानते हैं कि कांग्रेस में हुक्मनामे एक ही पते से आते हैं। आप वह पता जानते हैं।   रिमोट कंट्रोल वहीं रहने वाली महिला के   हाथ में है।''
इस बार इशरत जहां मामले में दायर हलफनामों में बदलाव के बारे में भाजपा ने कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को निशाने पर लिया है। इसके जवाब में कांग्रेस ने अपने शीर्ष नेतृत्व पर लगाए गए आरोपों को सख्ती से नकारा है। कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने पार्टी अध्यक्ष व उपाध्यक्ष पर लगाए गए आरोपों को नकारते हुए कहा, ''प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने वश्विासपात्र अधीनस्थों की मदद से कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी व कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी पर इशरत जहां मामले में शामिल होने का झूठा आरोप लगा रहे हैं।'' सुरजेवाला ने कहा, ''कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी या उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने इशरत जहां मामले सहित अन्य किसी भी प्रशासनिक मुद्दे पर तत्कालीन गृह मंत्री पी़ चिदंबरम या अन्य किसी व्यक्ति को किसी तरह की सलाह आदि नहीं दी।''शीर्ष नेतृत्व को घिरता देख कांग्रेस ने चिदंबरम से अपने को अलग कर लिया और कहा कि वे अपनी सफाई स्वयं दें।
भाजपा ने आरोप लगाया कि कांग्रेस के शीर्ष नेताओं ने खुफिया एजेंसियों द्वारा इशरत जहां मामले में उपलब्ध कराई गई सूचना को नजरअंदाज किया था। खुफिया एजेंसियों की सूचना के अनुसार इशरत जहां आतंकी गुट लश्कर-ए-तैयबा से संबद्ध थी और वह और उसके साथी गुजरात में 'तत्कालीन मुख्यमंत्री की हत्या करने के महत्वपूर्ण कार्य' को अंजाम देने के लिए पहुंचे थे। भाजपा का आरोप है कि सोनिया गांधी ने चिदंबरम से हलफनामे को राजनीतिक साजिश के तौर पर बदलवाया था।
लोकसभा में भाजपा संासद निशिकांत दुबे द्वारा इस मामले पर ध्यानाकर्षण प्रस्ताव के बाद गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने भी गृह मंत्रालय की फाइलों में मौजूद इस तथ्य को माना। गृहमंत्री ने संसद के निचले सदन को सूचित किया, ''कथित हलफनामे में कहा गया है कि भारत सरकार को विशेष सूचनाएं प्राप्त हुई हैं जिनके आधार पर पता चलता है कि लश्कर-ए-तैयबा गुजरात सहित देश के विभन्नि हस्सिों में आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने की योजना बना रहा था। यह भी कहा गया है कि भारत सरकार यह जानती थी कि लश्कर-ए-तैयबा देश के कुछ शीर्ष राष्ट्रीय व राज्य स्तरीय नेताओं की हत्या किए जाने की योजना भी रखता था और इस कार्य के लिए उसने देश में मौजूद अपने कैडर को नेताओं की गतिविधियों के आकलन के लिए तैयार किया था।''
पृष्ठभूमि
इशरत जहां मामले के खुलासे के साथ कई चौंका देने वाले सच सामने आए हैं। पूर्व गृह सचिव जी़ के़ पल्लिै, पूर्व अवर सचिव (गृह) आरवीएस मणि एवं पूर्व आईबी विशेष निदेशक राजेंद्र कुमार ने खुलासों में बताया कि कैसे यूपीए की सरकार ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि और प्रतष्ठिा को नष्ट करने के लिए तमाम तरह के गैरकानूनी और गैर-वाजिब तरीके अपनाए थे। कांग्रेस ने ऐसा मोदी की लोकप्रियता से डरकर और उन्हें 2014 के आम चुनाव लड़ने से रोकने की मंशा से किया था।
तथ्य बताते हैं कि कैसे तत्कालीन यूपीए अध्यक्ष के मार्गदर्शन और पी़ चिदंबरम की अगुआई में गृह मंत्रालय साजिशों का अड्डा बन कर रह गया था। उस दौरान यूपीए के अधीन कार्यरत सरकारी तंत्र न केवल हतोत्साहित था बल्कि ईमानदार गुप्तचर एवं प्रशासनिक अधिकारियों को तंग किया जाता था, कुछ को झूठे और बेबुनियाद आरोपों के तहत जेल भेजा गया था, जनता के बीच झूठी अफवाहें फैलाई गईं, मीडिया में झूठी खबरें प्रसारित की गईं और अधिकारियों पर उनके विचार बदलने के लिए जोर डाला गया।
इशरत जहां मामले को आधार बनाकर ही मोदी और शाह पर गत एक दशक से विपक्षी दल, कुछ कथित सामाजिक कार्यकर्ता, और विपक्षी गैर-सरकारी संगठन हमला बोलते रहे हैं। इस देश की मुस्लिम जनता को यह यकीन दिलाने की कोशिश की गई कि 'इशरत जहां एक मासूम लड़की थी जो अपने तीन मत्रिों (या जानकारों) के साथ गुजरात जा रही थी, उसे नरेंद्र मोदी के राज्य की पुलिस और इंटेलिजेंस ब्यूरो ने फर्जी एनकाउंटर का शिकार बनाया।' इसके बाद केंद्र की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने सीबीआई के जरिये मोदी को 'फर्जी मुठभेड़' के साजिशकर्ता के तौर पर बताने का काम किया। गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त एसआईटी की जांच के बाद मामला सीबीआई को सौंप दिया गया था, जिसमें कहा गया था कि यह फर्जी मुठभेड़ का मामला था।
तब से सीबीआई और आईबी के बीच तनातनी जारी है। सीबीआई ने आईबी अधिकारियों पर मुकदमा चलाने के लिए गृह मंत्रालय से इजाजत भी मांगी थी। आईबी ने इशरत की आतंकी गुट के साथ साठ-गांठ से जुड़े दस्तावेज सवार्ेच्च न्यायालय के सामने पेश किए हैं। यह साक्ष्य उसे 26/11 के मुंबई हमलों के अभियुक्त डेविड कोलमेन हैडली उर्फ दाऊद गिलानी की एफबीआई द्वारा जांच के आधार पर प्राप्त हुए थे। सीबीआई ने दो आरोप पत्र दायर किए थे। पहला जुलाई 2013 में सात पुलिस अधिकारियों के खिलाफ था जिनमें आईपीएस अधिकारी पी़ पी़ पांडे, डी. जी. वंजारा और जी़ एल़ सिंघल शामिल थे। चार्जशीट में सीबीआई का आरोप था कि मुठभेड़ फर्जी थी और यह गुजरात पुलिस और आईबी का संयुक्त अभियान था। दूसरा फरवरी 2014 को दायर किया गया था, जिसमें सीबीआई ने आईबी के विशेष निदेशक राजेंद्र कुमार के खिलाफ हत्या, आपराधिक षड्यंत्र, हत्या हेतु अपहरण, अनुचित कारागार एवं शस्त्र अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया था। राजेंद्र कुमार की टीम के सदस्यों-पी़ मत्तिल, एम. के़ सन्हिा एवं राजीव वानखेडे़ पर भी मामला दर्ज किया गया था।
यूपीए सरकार द्वारा दायर दूसरा हलफनामा वह था जिसमें इशरत जहां, प्रणेश पल्लिै उर्फ शेख, अमजद अली राणा और जीशान जौहर के लश्कर-ए-तैयबा के साथ संबंधों की जानकारी को हटाया गया था। आर.वी.एस. मणि का आरोप है कि दूसरा हलफनामा दाखिल करने का फैसला खुद चिदंबरम का था। उनका आरोप है कि तत्कालीन एसआईटी प्रमुख, जो एक सीबीआई अधिकारी थे, लगातार उनके पीछे थे और इशरत एवं अन्य आतंकियों के बारे में खुफिया एजेंसियों की सूचना की मौलिकता पर सवाल उठाने की कोशिश की गई थी।
कांग्रेस कई वषार्से इस झूठ की तूती बजाती रही है और लोगों के सामने मोदी की छवि एक 'कातिल' और 'कसाई' की बनाकर पेश करती रही। मोदी की इस मामले में संलप्तिता नहीं होने का हरेक सबूत मिटाने की पुरजोर कोशिश की गई। और उन गवाहों को मुठभेड़ों में खत्म कर दिया गया जो इशरत मुठभेड़ को जायज साबित कर सकते थे अरुण श्रीवास्तव
वृत्तचित्र से पकड़ा गया कांग्रेसी झूठ
इशरत जहां मामले में मौजूदा सच के सामने आने से कहीं पहले लंदन में रहने वाले डॉक्टर एवं फिल्मकार डॉ़ मनीष पंडित ने इस विषय पर एक तथ्यपूर्ण वृत्तचित्र बनाया था। इसमें इशरत जहां की असलियत साफतौर पर दिखती है। हालांकि, देश से बाहर इस वृत्तचित्र की खासी प्रशंसा हुई, लेकिन देश में किसी भी न्यूज चैनल ने यूपीए-2 के शासनकाल में इसका प्रसारण नहीं किया। पेश है डॉ़ पंडित से ई-मेल से लिया गया साक्षात्कार :
ल्ल  भारतीय मीडिया ने 2013-14 में आपके बनाए वृत्तचित्र का प्रसारण करने से इनकार कर दिया था। लेकिन 16 मार्च 2016 में आपकी फिल्म सहित एक रिपोर्ट खबरिया वेबसाइट फर्स्टपोस्ट ने प्रसारित की थी। बाद में इसे वेबसाइट से हटा दिया गया। आप क्या कहेंगे?
भारतीय मीडिया ने 2014 और 2015 में मेरी फिल्म के प्रसारण से इनकार कर दिया था। लेकिन फिल्म ऑनलाइन और अन्य माध्यमों से बाहर आई और इसका खासा असर पड़ा। भारत की एक न्यूज वेबसाइट फर्स्टपोस्ट ने पहले मेरा एक साक्षात्कार प्रसारित किया और इसी साल 16 मार्च को वीडियो फिल्म भी प्रसारित की। हालांकि, चार घंटे बाद वह लिंक बहुत ही रहस्यमय तरीके से वेबसाइट से गायब हो गया। पूरी रात बीत जाने के बाद भी वह लिंक ऑनलाइन वापस नहीं आया। जिन चार घंटों के दौरान वह लिंक मौजूद था, मेरे साक्षात्कार पर ट्विटर पर 1000 रीट्वीट हुए थे और फेसबुक पर भी कई स्थानों पर वह लिंक शेयर किया गया था।
हालांकि, कुछ लोगों ने फर्स्टपोस्ट के लेख की समूची पीडीएफ कॉपी को अपने गूगल ड्राइव पर सेव कर लिया था। आप जानते ही है कि ऑनलाइन राष्ट्रीय महत्व की किसी भी सामग्री को 'डिलीट' करने के विपरीत असर पड़ते हैं। अगले ही दिन मेरा साक्षात्कार तेजी से ऑनलाइन फैला। ऑनलाइन मैग्जीन ओपइंडिया ने फिल्म पर तीन अलग-अलग आलेख और मेरा एक नया साक्षात्कार भी प्रसारित किया जिसका व्यापक प्रसारण हुआ।
मुझे अभी तक नहीं पता कि फर्स्टपोस्ट से मेरा साक्षात्कार क्यों हटाया गया। फर्स्टपोस्ट के उस आलेख के मूल लिंक पर अभी भी 404 एरर मेसेज दिखता है।
ल्ल  भाजपा ने इशरत कांड पर सोनिया गांधी पर निशाना साधा है? आपके क्या विचार हैं?
जैसा कि मैं पहले भी कह चुका हूं कि इशरत जहां मामले की व्यापक छानबीन होनी चाहिए। आप जानते हैं कि 2013 में मैं बता चुका हूं कि यह समूचा मामला झूठा था और इसके जरिये नरेंद्र मोदी को फंसाए जाने का लक्ष्य था। इसलिए साफ है कि यूपीए सरकार में कोई बहुत ऊंचे स्तर पर इस मामले के पीछे था। इसीलिए यह मामला इतनी दूर तक पहुंच सका।
ऐसे मामलों में जिम्मेदारी देश के सवार्च्च कार्यालय में बैठे व्यक्ति की होती है जो देश की सुरक्षा के प्रति जिम्मेदार होता है। इसलिए जिम्मेदारी तत्कालीन गृहमंत्री की थी। उन्हें अब कुछ बेहद जरूरी सवालों के जवाब देने चाहिए। जो भी हो, उनको आदेश उनके प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और गांधी परिवार से ही मिलते रहे होंगे।
मेरा मानना है कि भाजपा गांधी परिवार पर इसलिए निशाना साध रही है क्योंकि उस समय गृहमंत्री को आदेश देने वाले अन्य व्यक्ति केवल मनमोहन सिंह ही थे और यह संभव नहीं कि उन्होंने ऐसा कोई आदेश दिया हो। मेरा एक और विचार है। स्थानीय स्तर पर भी कोई ऐसा व्यक्ति हो सकता है जो नरेंद्र मोदी के सख्त खिलाफ रहा हो और वह चाहता हो कि मोदी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार न बन सकें। लेकिन इस धारणा की गहरी पड़ताल होनी चाहिए।
ल्ल  कांग्रेस 2008, 2009, 2010 में मोदी को रोकने का प्रयास क्यों करती, जबकि वह उस समय केवल गुजरात के मुख्यमंत्री थे?
देखिए, भाजपा की ओर से 2014 में प्रधानमंत्री पद के गिने-चुने उम्मीदवार थे। इनमें से नरेंद्र मोदी की छवि भ्रष्टाचार विरोधी मामलों में बेहद गंभीर थी। भारत में ऐसे कई लोग हैं जो भ्रष्टाचार विरोधी होने का दम भरते हैं, लेकिन मोदी ने गुजरात में ऐसा कर के दिखाया है और भ्रष्टाचार के खिलाफ वहां कड़े कदम उठाए गए।
इसलिए मेरा मानना है कि मोदी का विरोध करने के पीछे यह प्रमुख कारण था। आज जमीनी सच्चाई मेरे इस तर्क के पक्ष में है। आप जानते ही हैं कि मोदी ने राष्ट्रीय राजधानी में काले धन की व्यवस्था पर इतनी सख्ती से रोक लगाई है कि दिल्ली की प्रॉपर्टी मार्केट, जो काले धन पर चलती थी, आज ठंडी पड़ी है। दिल्ली में किसी से भी पूछ सकते हैं कि भ्रष्टाचार पर मोदी ने कितनी सख्ती बरती है। बतौर मुख्यमंत्री, मोदी के लंबे कार्यकाल से जो लोग वाकिफ हैं वे जानते है कि मोदी एकमात्र व्यक्ति हैं जो दिल्ली में इतने बड़े पैमाने पर काले धन की व्यवस्था पर रोक लगा सकते थे़. उनके खिलाफ लोगों के दिमाग में यही एक लक्ष्य था।
मेरी राय में कुछ और भी कारण हैं जिनकी वजह से मोदी को निशाना बनाया गया था, लेकिन पुख्ता सबूतों के अभाव में मैं पहले उन कारणों की जांच करना चाहूंगा।

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