चित्तौड की महारानी पदमावती का जौहर
Arun Kumar Sharma की फेसबुक बाल से साभार विक्रम वर्मा जी इतिहास स्मृति. चित्तौड की महारानी पदमावती का जौहर चित्तौड दुर्ग विवाह पर्व - 25 अगस्त सन 1303 ई. चित्तौड दुर्ग, मेवाड, राजस्थान. जब किले में रसद सामग्री समाप्त हो गई और चित्तौड़गढ़, मेवाड़ के रावल रतनसिंह सभी मनसबदारों, राजपुरोहितो और सेनापति सरदारों से मन्त्रणा कर के इस नतीजे पर पहूँचे कि - "धोखा तो हमारे साथ हो ही चुका है, हमने वही भूल की जो हमारे पूर्वज करते रहे, परंतु धर्म यही कहता है कि "अतिथि देवो भव" परंतु शत्रु ने हमारी पीठ मे छूरा घोंपा है, हम ने धर्म की रक्षा की, धर्म हमारी रक्षा करेगा. सबसे बड़ी बात कि हमारी सारी योजनाए निष्फल होती जा रही है, क्योंकि कोई भी सेना बिना भोजन के युद्ध लड़ना तो दूर ज़िन्दा भी नही रह सकती और हमने बहुत प्रयास कर लिए की युद्ध ना हो, परंतु विधि का कुछ और ही विधान है जो हमारा मूल धर्म ह़ैे, अब शायद माँ भवानी रक्त पान करना चाहती है." रतन सिंह के मुख को निहार रही समस्त सेना को कुछ अद्भूत सुनने की अभिलाषा हो र