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देश की जनता को अपनी भाषा का मूल अधिकार मिले

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    हिन्दी सप्ताह पर विशेष “....एक मातृभाषा को जानने वाले दो व्यक्ति अंग्रेजी में बात करें और हमारा बस चले तो उन्हे  6 महीने की जेल कर देनी चाहिए।“                 - राष्ट्रपिता महात्मा गांधी“.... ” शिक्षा भारत में विदेशी पौधा नहीं है। ऐसा कोई भी देश नहीं है जहाँ ज्ञान के प्रति प्रेम का इतने प्राचीन समय में प्रारम्भ हुआ हो या जिसने इतना स्थायी और शक्तिशाली प्रभाव उत्पन्न किया हो। वैदिक युग के साधारण कवियों से लेकर आधुनिक युग के बंगाली दार्शनिक काल तक शिक्षको और विद्वानों का एक निर्विघ्न क्रम रहा है।“                     - एफ. डब्ल्यू. थामस   देश की जनता को अपनी भाषा का मूल अधिकार मिले !       राजभाषा हिन्दी के संदर्भ में जब भी विषय संसद में आया तब तमिलनाडु के नेताओं को आगे करके कांग्रेस सरकारों ने अंग्रेजी को बनाये रखा! इसके पीछे उनके क्या निहित स्वार्थ हैं, यह तो भगवान ही अधिक जानता होगा। मगर पहली बात तमिलनाडू को हिन्दी के विरोध का क्या अधिकार था और अंग्रेजी से क...

अपनी भाषा का मूल अधिकार नागरिक को मिले....

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-अरविन्द सीसौदिया,कोटा ,राजस्थान। सच यह है कि देश में अपनी भाषा का मूल अधिकार नागरिक को मिले इस हेतु नये जनांदोलन की जरूरत हे। आम आदमी को अपनी भाषा के अधिकार की बात अब समझ आ रही है कि यह होना चाहिये था।सरदार वल्लभ भाई पटेल चाहते थे कि भाषा का अधिकार मूल अधिकारों में शामिल किया जाये । मगर तब हिन्दी , अंग्रेजी और अन्य भाषाओं के झगडे इस तरह हावी हो गये थे  िकइस पर उतनी तन्मयता से विचार ही नहीं हो पाया । या हालात तब की राजनीति ने इस तरह उलझाा दिये कि संविधान में नागरिकों को भाषा का अधिकार नहीं मिल सका । इसी का फायदा विदेशी भाषा उठा रही है। विदेशी बहु राष्ट्रीय कम्पनियों के फायदें में भारतीय वातावरण कैसे बना रहक इसी में हमारी सरकारें लगीं रहतीं हैं। सो हिन्दी के सामने अनेकानेक वे कठिनाईयां खडी करदीं गईं जो हैं ही नहीं । । आम आदमी की व्यथा... एक चिकित्सक अंग्रेजी में पर्चा लिखता है तो मरीज यह नहीं समझ पाता कि उसे बीमारी क्या है ? जांच की स्थिती क्या है? शरीर में कमी क्या है? दवाईयों या इलाज क्या लिखा गया है? परेज क्या रखने हैं? केन्द्र और राज्य सरकार स्तर की गैर जिम्मेवारी से ...

जब होगा अपनी भाषा में ज्ञान और विज्ञान, तब विश्व बोलेगा जय हिन्दुस्तान

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    14 सितम्बर, हिन्दी दिवस के अवसर पर विशेष  (यह आलेख काफी पहले (2002 में ) लिखा गया था, कृपया इसे अपडेट करनें में मदद करें, सुझाव दें।) जब होगा अपनी भाषा में ज्ञान और विज्ञान, तब विश्व बोलेगा जय हिन्दुस्तान !     मैं देशी भाषाओं की उपेक्षा और नजरअंदाजी के कारण देश को होने वाली हानियों और विदेशियों द्वारा उठाये जाने वाले लाभ का वह सारगर्भित उदाहरण पेश करना चाहता हूं, जो संसद की कार्यवाही में आज से दस साल पहले 1997 में दर्ज हुआ था और इसके बाद भी खास ध्यान नहीं दिया गया।     वाक्या है देश की स्वतंत्रता की 50वीं वर्षगांठ का, तब इन्द्रकुमार गुजराल प्रधानमंत्री थे और इस महान अवसर पर स्वतंत्रता के बाद क्या पाया-क्या खोया, इसकी जांच पड़ताल सांसदों के द्वारा की गई थी। उसी कार्यवाही में भाग लेते हुए 30 अगस्त 1997 को हुगली के सांसद रूपचंद पाल ने कहा वह बहुत ही महत्वपूर्ण है:- रूपचंद पाल महोदय, हम जैव विधिता के क्षैत्र में अत्यंत सम्पन्न हैं और इससे 60- 70 बिलियन रूपया अर्जित किया जा सकता है। आज मैं केवल एक सप्ताह पहले की बात का उल्लेख कर रहा हूं। भारती...