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भगवान् श्रीकृष्ण का शौर्यपूर्ण जीवन bhagvan shree krishan

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  भगवान् श्रीकृष्ण का शौर्यपूर्ण जीवन  Heroic Life of Lord Krishna Brave life of Lord Krishna bhagavaan shreekrshn ka shauryapoorn jeevan भगवान् श्रीकृष्ण के जीवन सी जुड़ी 24 अनसुनी बातें 1. भगवान् श्री कृष्ण के खड्ग का नाम 'नंदक', गदा का नाम 'कौमौदकी' और शंख का नाम 'पांचजन्य' था जो गुलाबी रंग का था। 2. भगवान् श्री कॄष्ण के परमधामगमन के समय ना तो उनका एक भी केश श्वेत था और ना ही उनके शरीर पर कोई झुर्री थीं। 3. भगवान् श्री कॄष्ण के धनुष का नाम शारंग व मुख्य आयुध चक्र का नाम 'सुदर्शन' था। वह लौकिक, दिव्यास्त्र व देवास्त्र तीनों रूपों में कार्य कर सकता था उसकी बराबरी के विध्वंसक केवल दो अस्त्र और थे पाशुपतास्त्र (शिव, कॄष्ण और अर्जुन के पास थे) और प्रस्वपास्त्र (शिव, वसुगण, भीष्म और कृष्ण के पास थे)। 4. भगवान् श्री कॄष्ण की परदादी 'मारिषा' व सौतेली मां रोहिणी( बलराम की मां) 'नाग' जनजाति की थीं। 5. भगवान श्री कॄष्ण से जेल में बदली गई यशोदापुत्री का नाम एकानंशा था, जो आज विंध्यवासिनी देवी के नाम से पूजी जातीं हैं। 6. भगवान् श्री कॄष्ण की प्रेम...

भगवान श्री कृष्ण - विजयश्री का पूर्ण पुरूषार्थ करो

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   हिन्दू धर्म में सृजन के देव बृम्हा जी, संचालन के देव विष्णु जी और संहार के देव शिव जी को कहा गया है। माना जा सकता है कि जनरेट , ओपरेट और डिस्ट्राय से ही GOD  बना है। भगवान विष्णु जी को सुव्यवस्थित संचालन एवं अव्यवस्थाओं के विनाश हेतु बार - बार जन्म लेना होता हे। भगवान श्रीकृष्ण के रूप में यह उनका आठवां अवतार है। अन्याय, अधर्म,अनाचार और विध्वंश को परास्त करने के लिये विजय के मार्ग को प्रशस्त कर, धर्म की जय सुनिश्चित करने का संदेश उनका जीवन देता हे। भागवत पुराण में वर्णित उनका जीवन और श्रीमद भगवत गीता में दिये उनके उपदेश सिर्फ एक ही बात कहते हे। कि विजय के लिये पूरी ताकत से पुरूषार्थ करो । विजय का पूर्ण  प्रयत्न करो ।- अरविन्द सिसौदिया 9414180151       श्री कृष्ण जन्माष्टमी  1-भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी कहते हैं। 2-श्री कृष्ण देवकी और वासुदेव के 8वें पुत्र थे। 3-इस उत्सव पर ज्यादातर लोग पूरा दिन व्रत रह कर, पूजा के लिए, घरों में बाल कृष्ण की प्रतिमा पालने में रखते हैं। 4-श्री कृष्ण का पालन-पोषण यशोदा माता और नंद बाबा की देखरेख म...

गीता ज्ञान: भगवान श्रीकृष्ण द्वारा सर्वोत्तम ज्ञान का प्रगटीकरण

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  गीता का मर्म एक बार महात्मा गाँधी के पास एक व्यक्ति गीता का रहस्य जानने के लिए आया। उसने महात्मा गाँधी से गीता के रहस्य के बारे में पुछा। गाँधी जी उस समय फावड़े से आश्रम की भूमि खोद रहे थे। उन्होंने उस व्यक्ति को पास बिठाया और फिर से आश्रम की भूमि खोदने में लग गए। इसी तरह काफी समय हो गया लेकिन महात्मा गाँधी उस व्यक्ति से कुछ नहीं बोले। आखिर में अकेले बैठे-बैठे परेशान होकर वह व्यक्ति महात्मा गाँधी से बोला – “में इतनी दूर से आपकी ख्याति सुनकर गीता का मर्म जानने के लिए आपके पास आया था लेकिन आप तो केवल फावड़ा चलाने में लगे हुए हैं। गाँधी जी ने उत्तर दिया – “भाई! में आपको गीता का रहस्य ही समझा रहा था।” महात्मा गाँधी की बात सुनकर वह व्यक्ति बोला – आप कहाँ समझा रहे था आप तो अभी तक एक शब्द भी नहीं बोले। गाँधी जी बोले – “बोलने की आवश्यकता नहीं है। गीता का मर्म यही है कि व्यक्ति को कर्मयोगी होना चाहिए। बस फल की आशा किए बगेर निरंतर कर्म करते चलो। यही गीता का मर्म है।” गाँधी जी के इस उत्तर को सुनकर व्यक्ति को गीता का रहस्य समझ में आ गया। ----- कब है गीता का अध्ययन सार्थक ? गीता अलौकिक ग्रन्थ...

कामदेव के पुर्न जीवन का उत्सव रंगपंचमी Rangpanchami

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रंग पंचमी Rangpanchami festival कामदेव के पुर्न जीवन का उत्सव रंगपंचमी   होली में यूं तो पांच दिन तक त्यौहार मनाया जाता है। अब ज्यादातर जगह होली दहन के दूसरे दिन रंगोंत्सव मना लिया जाता है। किन्तु गोवा, मालवा मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र एवं उत्तर भारत के कई स्थानों पर रंगों की होली रंगपंचमी के दिन मनाई जाती है । यह बहुत ही लोकप्रिय एवं आम जन उत्सव है ।      इसके पीछे एक बहुत ही महत्वपूर्ण लोक कथा भी है - होलाअष्टक के दिन जब भगवान शिव ने कामदेव को भष्म कर दिया था तब पूरा संसार शोक मग्न हो गया था। सृष्टि में संतान उत्पति के सामने संकट उपस्थित हो गया था । देवी देवता सहित समस्त सृजनकर्ता  समस्याग्रस्त हो गये थे। बिना कामदेव के संसार को चलायेगे कैसे । तब सभी ने भगवान शिव की स्तुती की और उन्हे समाधान के लिये राजी किया । तब भगवान शिव जी ने कामदेव को पुनः जीवित करनें का आश्वासन दिया । इसी खुशी में पृथ्वी पर रंगपंचमी का उत्सव मनाया जाता है। दूसरी कथा यह भी है कि भगवान श्रीकृष्ण ने राधाजी एवं गोपियों के साथ होली खेली थी इसी स्मृति में रंगपंचमी को रंगोत्सव मनाया जाता है।  ...

श्रीकृष्ण : आरती कुंजबिहारी की

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आरती कुंजबिहारी की आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥ --------- गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला । श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला । गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली । लतन में ठाढ़े बनमाली; भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक, चंद्र सी झलक; ललित छवि श्यामा प्यारी की ॥ श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की… ----------- कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं । गगन सों सुमन रासि बरसै; बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग, ग्वालिन संग; अतुल रति गोप कुमारी की ॥ श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की… ----- जहां ते प्रकट भई गंगा, कलुष कलि हारिणि श्रीगंगा । स्मरन ते होत मोह भंगा; बसी सिव सीस, जटा के बीच, हरै अघ कीच; चरन छवि श्रीबनवारी की ॥ श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की… ----------- चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू । चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू; हंसत मृदु मंद,चांदनी चंद, कटत भव फंद; टेर सुन दीन भिखारी की ॥ श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की… ----------=--------------