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सितंबर, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

चीनी सैनिकों की गिलगित व बल्तिस्तान में मौजूदगी

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गिलगिट और बल्तिस्तान में चीन.,  भारत ने क्या किया..?   - अरविन्द सीसोदिया   मनमोहन सिंह सरकार यह न भूले कि इतिहास याद नहीं रखता और समय के साथ सब कुछ लोग भूल जाते हैं, वे जिस पद पर हैं और चीन जैसा विषय है, वह हजारों साल के इतिहास में जाएगा , पंडित जवाहर लाल नेहरु के नाम दो पराजय दर्ज हैं .., पाकिस्तान से १९४७-४९ युद्ध में  अपनी भूमि वापस नहीं लेने की और १९६२ में  चीन से हार की...! तब भी यही; देखते हुए भी खामोश रहने की नीति; पर भारत चला था..! चीन की १९४९ से ही बाद नियत सामने आगई थी मगर हम अपने तिब्बत पर जारी अधिकार उसे देते  हुए सन्तुष्ट करने में लगे रहे, नतीजा यह हुआ कि वह उसी दिन से हम पर सवार हो गया , हमारा कैलाश - मानसरोवर सहित तमाम चंडी पहाड़ियों आदि  अनेकों स्थानों पर उसने  कब्जा कर लिया..! अंततः १९६२ में युद्ध भी हुआ और शर्मनाक पराजय हुई..! अगर हमारी रक्षा तैयारियों में यही ढील रही तो आगे आने वाले परिणाम भी भिन्न नहीं होंगे ...!! यह समयोचित चेतावनीं है..! संभाल जाओ ..!!        पाकिस्तान चुपके-चुपके अपने कब्जे वाले कश्मीर में सामरिक रूप से महत्वपूर्ण गिलगिट बल्टिस्तान का वास्

कामनवेल्थ, भ्रष्टाचार और बदनामी : सोनिया & राहुल चुप..,

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अपमान के कडवे घूँट  - अरविन्द सीसोदिया    याद रहे कि दृढ प्रतिज्ञ  ही हमेशा जीतता है और सझौतावादी  हमेशा  ही हारता  है !           ब्रिटिश राष्ट्रमण्डल खेलों की महमान नवाजी  भारत कि बहुत मंहगी पड रही है , एक ईसाई महिला के नीचे दबी कांग्रेस की राजनैतिक इच्छा शक्ती का पतन इस तरह का हो चुका है कि हर अन्तर्रष्ट्रीय मामले में ईसाई देश हावी हो गए हैं , इस नेतृत्व कर्त्ता को कभी भारत का अपमान; अपमान नहीं लगता है..!              भारत के आम लोगों की पीड़ा चाहे  महंगाई  की हो , आतंकवाद  की हो , उग्रवाद की  हो , नक्सलवाद की हो , बेरोजगारी की हो , भुखमरी की  हो , विदेशी आक्रमण की बात हो ,  इन सभी  में भारत के लोगों की चिंता कभी नहीं की जाती है ...!  हर नीति में ईसाई फायदा पहले सोचा जाता है , इस तरह की घोर पतन की स्थिती की कल्पना कभी गांधी - नेहरु या स्वतन्त्रता सैनानिंयों ने भी नहीं की होगी ! मुद्रा  पर ईसाई क्रास बार बार सिक्कों पर बनाये जा रहे हैं , मदर टेरसा का स्तुती गान हो रहा है ! हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं को लगातार अपमानित किया जा रहा है , अंग्रेजी इस तरह व्यवहार कर रही है मानों वह भ

श्रीरामजन्म भूमि , बड़े राजनीतिक षड्यंत्र का पटाक्षेप

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श्रीरामजन्म भूमि  फैसला आना ही हितकर, ३० सितम्बर को ३.३० पर आयेगा  फैसला    - अरविन्द सीसोदिया                नई दिल्ली में सर्वोच्च न्यायालय ने अयोध्‍या की श्रीरामजन्म भूमि विवादित जमीन से जुड़े मुकदमे पर फैसला सुनाने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट को अनुमती  दे दी है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ३० सितम्बर को अपहरण ३.३० बजे फैसला सुनाएगा ! इस फैसले से जो भी पक्ष असंतुष्ट होगा वह सर्वोच्चा न्यायालय में अपील कर सकेगा !! इसी के साथ एक बड़ी राजनैतिक साजिस के तहत फैसला रोकने की दायर याचिका को निरस्त कर दिया गया है !! इस सुनवाई का इंतजार पूरा देश कर रहा था। याचिका की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एसएच कपाड़िया की अध्यक्षता वाली पीठ ने की। तीन सदस्यीय इस पीठ ने सर्वसम्मति से यह याचिका खारिज की।     ये याचिका पूर्व नौकरशाह रमेशचंद्र त्रिपाठी ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए दाखिल की थी। इससे पहले इलाहाबाद हाई कोर्ट ने रमेशचंद्र की इस याचिका को खारिज करने के साथ ही उन पर 50000 रुपये का जुर्माना भी लगा दिया था। सुप्रीम कोर्ट में याचिका खारिज होने के बाद रमेश चंद्र को

ईसा मसीह ; क्या भारतीय ज्ञान का प्रकाश

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ईसा मसीह की भारत यात्रा पर खोज हो....  - अरविन्द सीसोदिया  हमारे देश में अनेकों महान आत्मदर्शी हुए हैं , इनमें से एक रजनीश अर्थात ओशो हैं , उनके धरा प्रवाह भाषणों के आधार पर ६५० से भी अधिक पुस्तकें २० भाषाओं में छप चुकी हैं , उनकी एक पुस्तक "भारत : एक अनूठी संपदा "  है , उसमें उन्होंने ईसा मसीह के जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताया है कि ईसा ज्ञान कि प्रकाश भारत से लेकर गए थे और उनकी मृत्यु भी भारत में ही हुई है !   -- यह संयोग मात्र ही नहीं है कि जब भी कोई सत्य के लिए प्यासा होता है , अनायास ही वह भारत में उत्सुक हो उठाता है , अचानक वह पूरब की यात्रा पर निकाल पड़ता है | और यह केवल आज की ही बात नहीं है | यह उतनी प्राचीन बात है जितने पुराने पुराण और उल्लेख मौजूद हैं | आज से पच्चीस सौ वर्ष पूर्व , सत्य की खोज में पाइथागोरस भारत आया था | ईसा मसीह भी भारत आए थे |  -- ईसा मसीह को तेरह से तीस वर्ष की उम्र के बीच का बाइबल में कोई उल्लेख नहीं है | - और यही उनकी लगभग पूरी जिन्दगी थी , क्योंकि तैंतीस की उम्र में तो उन्हें सूली पर ही चढ़ा दिया गया था | तेरह से तीस तक के सत्रह सालों का हि

धर्म और तत्वज्ञान में, कोई हम से बढ़कर नहीं - जवाहरलाल नेहरू

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नेहरु जी आध्यात्म  के आकाश में  - अरविन्द सीसोदिया     आजकी कांगेस जिस तरह की धर्म निरपेक्षता की बाट करती है .., वह सिर्फ हिंदुत्व का विरोध मात्र है .., जो कि एक सोचा समझा इसाई एजेंन्डा है.., सच यह है की कांग्रेस को यह समझना चाहिए की नेहरूजी भी भारतीय आध्यात्म और जीवन व्यवस्था का आदर करते थे ...! धर्म निरपेक्षता शब्द ही गलत है सही शब्द धर्म सापेक्षता होना चाहिए ..!   जवाहरलाल नेहरु यूं तो समाजवादी विचारधारा से सम्बन्ध रखते थे मगर वे साम्यवाद के बहुत ही अधिक निकट थे, उनके द्वारा हिंदुत्व के गुणगान की  सामान्यतः वन्दना  कम ही थी , जिस तरहे से गांधी जी अपने हिंदुत्व वादी चिंतन  में प्रखर थे , उस तरह से नेहरूजी कभी भी नहीं रहे , मगर उनका मन कहीं न कहीं से हिन्दू चिंतन को व्याकुल तो रहता ही था , इसके कुछ अंश मुझे उनकी जीवनीं में मिले जिन्हें में आपके साथ बाँटना  चाहता हूँ ..! यह ठीक है कि उन्होंने सीधे सीधे हिंदुत्व का नाम नहीं लिया मगर , तथ्यात्म बोध तो वही कहता है, जो है ..!! उन्होंने हिन्दू संस्कृती  को सम्मान भी दिया और उसे गलत तत्वों के कारण गिरा हुआ भी ठहराया , उनके विश्लेषण से पूर

कश्मीर पाकिस्तान को देने कि तैयारी

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सेना हटी तो गंभीर परिणाम... मत भूलो कारगिल को...  - अरविन्द सीसोदिया           लगता है कि कांग्रेस ने कश्मीर पाकिस्तान को देने कि तैयारी कर ली है और वह अप्रत्यक्ष और प्रत्यक्ष  रूप से इस तह के कृत्य कर रही है कि पाकिस्तान कभी भी चीन कि सहायता से कश्मीर को हडप ले ..! चीन ने श्री लंका में भी लिट्टे का सफाया करवा कर भारत को एक बड़ी शिकस्त दी है !  नेपाल में उसने राजशाही को समाप्त करवा कर लगभग माओवादियों को स्थापित करवा दिया है , यह वही तरीका है  जिससे माओ ने चीन  पर कब्जा किया और तिब्बत को निंगला था ..! जनवादी सेना या लाल सेना या माओवादी या नक्सलवादी इसके विभीन्न पर्यायवाची हो सकते हैं ,मगर मकसद एक ही है .., सत्ता  पर कब्जा करना !         कश्मीर में सारा तमाशा एक सोची समझी चाल के अंतर्गत हो रहा है , सेना को कम करने की कोशिश  में पाकिस्तान , चीन , आतंकवादी, उग्रवादी और कश्मीर के संतुष्ट और असंतुष्ट ..., सबके सब एक हैं ..! कश्मीर के सिर  पर और पाक कब्जे के कश्मीर में लगातार चीन की सैनिक मौजूदगी और परमाणु कार्यक्रमों पर पूरा विश्व चिंता ग्रस्त है , यह सब वही लक्ष्ण हैं जो १९४९ से प्रारं

भारत और राक्षस चीन

राक्षस जैसी स्थिति में पहुच चुके चीन को समझने के लिए यह लेख काफी सहायक होगा यही मानते हुए इसे प्रस्तुत किया गया ..,डॉ. राम तिवारी को इस तरह कि तथ्यात्मक जानकारी के लिए बहुत बहुत साधुवाद ..,  भारत में चीन के प्रती जो नर्म रवैया जवाहरलाल नेहरू जी ने वर्ता है , उस पर आगे चर्चा करेंगे..! चीन को इतना बड़ा भष्मासुर बनाने में हमारा भी योगदान कम नहीं है..!! नेहरू जी ने कई कांटे इस देश को दिए हैं उनमें जम्मू और कश्मीर से भी ज्यादा खतरनाक  मशला चीन का है..,,  - अरविन्द सीसोदिया  भारत कि सुरक्षा को चीन की चुनौती:डाँ. राम तिवारी ( हिमालिनी नेपाल की एकमात्र हिन्दी पत्रिका है यह लेख उसमें २ दिसंबर २००९ के अंक में प्रकाशित हुआ था , सम्पूर्ण विश्व और भारतवासियों  के लिए यह सारगर्भित जानकारी प्रस्तुत है..... ) चीन विश्व में सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश है। वर्तमान में इसकी कुल जनसंख्या 1 अरब 27 करोड़ 31 लाख से अधिक है। इस देश की राजधानी बीजिंग (पुराना नाम पीकिंग) है तथा प्रमुख भाषा चीनी (मेंडारिन) है। इस देश का प्रमुख धर्म सरकारी स्तर पर अनीश्वरवादी है फिर भी ज्यादातर आबादी बौद्ध व ताओ धर्म की अन

भारतीय क्रांति की माता : मैडम भीखाजी कामा

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- अरविन्द सीसोदिया       मैडम भीखा जी कामा भारतीय वीरांगनाओं में से वह नाम है जिसे हम अकबर से लोहा लेने वाली गौंडवानें  की   रानी दुर्गावती और ब्रिटश सरकार को नाकों चववा देने वाली झांसी की रानीं   महारानी लक्ष्मीबाई  क़ी श्रेणीं में रखते हुए गौरवान्वित होते हैं ..!  ब्रिटिश राज्य के विरुद्ध  भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में इन्होने जो वीरतापूर्ण भूमिका निभाई उसके लिए जब तक भारत का इतिहास पढ़ा जाएगा तब तक उन्हें भी पढ़ा जाएगा ..!  उनकी एक विशिष्ठ पहचान भारत के लिए विश्व स्तर  पर संघर्ष और स्वतंत्रता के प्रतीक रूप में तिरंगा झंडा विश्वस्तर पर सर्व प्रथम लहराना भी है | जिसके लिए वे प्रति वर्ष स्वतंत्रता  दिवस , झंडा  दिवस और गणतन्त्र दिवस पर याद किया जाता रहेगा ....!! उनका सम्मान एक अन्य कारण से भी है क़ी उन्होंने देवनागरी लिपी में वन्देमातरम लिख हुआ झंडा फहराकर हिन्दी और वन्देमातरम गीत को भी सम्मान दिया था ..!   सच यह है क़ी वे वन्देमातरम महा राष्ट्रगान के चौथे पेरा ग्राफ  के सामान हैं... , उन्हें कोटि कोटि नमन..,   त्वं हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी कमला कमलदल विहारिणी वाणी विद्यादायि

कामनवेल्थ,स्वतन्त्रता के प्रति धोकेबाजी

  गणराज्य भी हो और उपनिवेश भी !    क्या आपको कामनवेल्थ खेलों के इस आयोजन में देश की राष्ट्र भाषा , राज्य भाषा और राष्ट्र गौरव का कही एहसास हो रहा है..., इसमें प्रान्तीय भाषाओँ और उनसे जुड़े गौरव कहीं दिख रहे हैं..., नहीं तो आप ही फैसला की जिए कि इस संगठन में रह कर हमने क्या खोया क्या पाया...!!!!! कोमंवेल्थ का सामान्य परिचय यह है कि :-    राष्ट्रकुल, या राष्ट्रमण्डल देश ( अंग्रेज़ी :कॉमनवेल्थ ऑफ नेशंस) (पूर्व नाम ब्रितानी राष्ट्रमण्डल), ५३ स्वतंत्र राज्यों का एक संघ है जिसमे सारे राज्य अंग्रेजी राज्य का हिस्सा थे ( मोज़ाम्बीक और स्वयं संयुक्त राजशाही को छोड़ कर )। इसका मुख्यालय लंदन में स्थित है। इसका मुख्य उद्देश्य लोकतंत्र, साक्षरता, मानवाधिकार, बेहतर प्रशासन, मुक्त व्यापार और विश्व शांति को बढ़ावा देना है। इंग्लैंड की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय प्रत्येक चार वर्ष में होने वाले राष्ट्रमंडल खेलों और बैठक में भाग लेती हैं। इसकी स्थापना १९३१ में हुई थी, लेकिन इसका आधुनिक स्वरूप १९४७ में भारत और पाकिस्तान के स्वतंत्र होने के बाद निश्चित हुआ।  लंदन घोषणा के तहत ब्रिटेन की