मनमोहन सिंह, प्रधानमन्त्री अवसाद क़ी स्थिती
कुछ कर दिखाने का बहुत सीमित समय
- अरविन्द सीसोदिया
हलांकि यह माना जा रहा है क़ी यू पी चुनाव के बाद देश की बागडोर राहुलगांधी संभाल लेंगे..., उनके नेतृत्व में ही अगला चुनाव लड़ा जाएगा, कांग्रेस क़ी सोच एक हद तक सही भी है क़ी प्रधानमंत्री पद पर रहने के लाभ उठाते हुए ही चुनाव लड़ा जाये...! उसके कई फायदे भी हैं , जो सुरक्षा देते हैं और खर्चा बचाते हैं..!! मनमोहन सिंह निश्चित ही रिटायर्मेंट को कुछ दूर धकेलना चाहेंगे..., यह उन्हें करना भी चाहिए , इसी का नतीजा है क़ी वे कुछ स्वतंत्र विचारों के शक्ती समूह जैसे शरद पंवार , पी चिदम्बरम और करुनानिधि को अपने पक्ष में कर रहे है...!
भारत के प्रधानमंत्री ने हाल ही में समाचार पत्रों के संपादकों के एक समूह से बात करते हुए खुद की पीठ थपथपाई है जो कि अनुचित है ...! क्यों कि वे एक तो पूर्व प्रधानमंत्रीयों विशेष कर जवाहर लाल नेहरु और इंदिरा गांधी के समक्ष कहीं भी नहीं हैं , दूसरा उनकी सफलता यही है कि वे सोनिया गांधी की गुडबुक में रहनें में अभी तक हैं ...! राजनीति में इतने समय तक एक व्यक्ती किसी क़ी गुड बुक में रह जाये यह संभव नही है..! सिंह साहब की यही सफलता है क़ी वे अभी तक सोनिया जी क़ी गुड बुक में बने हुए हैं ...!
एक बार काफी वर्ष पूर्व में कौन बनेगा करोडपति देख रहा था उसमें अभिताभ बच्चन का प्रश्न था क़ी भारत में ऐसा कौनसा प्रधानमंत्री है जो लोकसभा चुनाव कभी नही जीता हो ..? उत्तर था मनमोहन सिंह ...! यह सच है क़ी जवाहरलाल नेहरु लोकसभा के रास्ते ही प्रधानमंत्री पद पाया था , वे कभी भी राज्य सभा के रास्ते प्रधानमंत्री नही बनें, जवाहरलाल नेहरु; के पदों से तो किसी क़ी भी तुलना नहीं हो सकती , परतंत्र भारत के पदों को छोड़ भी दिया जाये तो वे संविधान सभा के सदस्य थे, प्रोविजनल पार्लियामेंट में प्रधानमन्त्री थे,प्रधानमंत्री रहते हुए वे उत्तर प्रदेश की फूलपुर लोक सभा सीट से पहली , दूसरी और तीसरी लोकसभा में सदस्य चुने गए थे ..! श्रीमति इंदिरा गांधी का भी यही हाल था.., वे प्रधान मंत्री चुने जाने से पहले सूचना और प्रसारण मंत्री थी तब वे राज्यसभा में थी , किन्तु उन्होंने चौथी , पांचवी , छठी और सातवी लोकसभा में चुनीं गई थीं ..! अर्थात सिंह का इन नामों से कोई मुकाबला नही है ! सबसे बड़ी बात ये वे प्रधान मंत्री थे जो किसी के आगे झुके नहीं..!
मनमोहन सिंह पहली यू पी ए सरकार में छाया प्रधानमन्त्री के रूप में रबड़ स्टम्प ही माने गए थे , दूसरी यू पी ए सरकार में नाकामयाब क़ी छवी बनही चुकी है..!! हो सकता है क़ी उनके मन में कुछ कर गुजरने क़ी चाह हो और वे कर नही पा रहे हों..! इस तरह की बात पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के साथ भी बनीं थी, इसके कारण उनको दिल्ली में अन्य पूर्व प्रधानमन्त्रीयों क़ी तरह मरणोपरांत स्मारक तक नही मिल सका..!! सिंह के केबिनेट मंत्रियों में जिस तर का विरोधाभास है वह यह दर्शाता है क़ी उनकी पकड़ मंत्री परिषद् पर नहीं है , वह सोनिया गांधी से गाईडेड है तो इसका मतलब सिंह की दूरी वहां से बड़ी हैं...!! यह खतरे की घंटी भी है...! सिंह यदि प्रमोशन भी चाहते हैं तो वह भी सोनिया जी के बिना अभी संभव नही है...!
राजनीति में मुख्यनेता और उसके सहायक या सेवादार या हल्की भाषा में चमचों में बहुत अंतर होता है, सहायक को जितना कहा जाये उतना करना है..! उससे ज्यादा नही करना चाहिए, अधिक योग्यता नही दिखानी चाहिए, दिनरात उसे अपने मुख्य नेता के इर्द गिर्द रह कर आझाएं प्राप्त करते रहना चाहिए ..!! यदी जरा भी होशयारी दिखाई तो पत्ता साफ़ हो जाता है..! फिर सिंह के सामनें तो बहुत ही साफ़ साफ़ हे क़ी उन्हें राहुल बाबा के लिए पद छोड़ना ही है...!! फिर अवसाद क़ी स्थिती नहीं आनीं चाहिए...!! इस प्रेस कांफ्रेंस के बाद यह स्पष्ट हो गया है क़ी कोई उन्हें काम नही करने दे रहा है वे उसे सन्देश दे रहें हैं..!!
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