ईसा मसीह ; क्या भारतीय ज्ञान का प्रकाश
ईसा मसीह की भारत यात्रा पर खोज हो....
- अरविन्द सीसोदिया
हमारे देश में अनेकों महान आत्मदर्शी हुए हैं , इनमें से एक रजनीश अर्थात ओशो हैं , उनके धरा प्रवाह भाषणों के आधार पर ६५० से भी अधिक पुस्तकें २० भाषाओं में छप चुकी हैं , उनकी एक पुस्तक "भारत : एक अनूठी संपदा " है , उसमें उन्होंने ईसा मसीह के जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताया है कि ईसा ज्ञान कि प्रकाश भारत से लेकर गए थे और उनकी मृत्यु भी भारत में ही हुई है !
- अरविन्द सीसोदिया
हमारे देश में अनेकों महान आत्मदर्शी हुए हैं , इनमें से एक रजनीश अर्थात ओशो हैं , उनके धरा प्रवाह भाषणों के आधार पर ६५० से भी अधिक पुस्तकें २० भाषाओं में छप चुकी हैं , उनकी एक पुस्तक "भारत : एक अनूठी संपदा " है , उसमें उन्होंने ईसा मसीह के जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताया है कि ईसा ज्ञान कि प्रकाश भारत से लेकर गए थे और उनकी मृत्यु भी भारत में ही हुई है !
-- यह संयोग मात्र ही नहीं है कि जब भी कोई सत्य के लिए प्यासा होता है , अनायास ही वह भारत में उत्सुक हो उठाता है , अचानक वह पूरब की यात्रा पर निकाल पड़ता है | और यह केवल आज की ही बात नहीं है | यह उतनी प्राचीन बात है जितने पुराने पुराण और उल्लेख मौजूद हैं | आज से पच्चीस सौ वर्ष पूर्व , सत्य की खोज में पाइथागोरस भारत आया था | ईसा मसीह भी भारत आए थे |
-- ईसा मसीह को तेरह से तीस वर्ष की उम्र के बीच का बाइबल में कोई उल्लेख नहीं है | - और यही उनकी लगभग पूरी जिन्दगी थी , क्योंकि तैंतीस की उम्र में तो उन्हें सूली पर ही चढ़ा दिया गया था | तेरह से तीस तक के सत्रह सालों का हिसाब गायब है | इतने समय वे कहाँ रहे , और बाईबिल में उन सालों को क्यों नहीं रिकार्ड किया गया है ? उन्हें जान बूझ कर छोड़ा गया है , कि वह एक मौलिक धर्म नहीं है, कि ईसा मसीह जो भी कह रहे हैं वे उसे भारत से लाए हैं |
-- यह बहुत विचारणीय बात हर | वे एक यहूदी की तरह जन्में , यहूदी की तरह जिए और यहूदी तरह मरे | स्मरण रहे कि वे ईसाई नहीं थे , उन्होंने तो - ' ईसा ' और ' ईसाई ' ये शब्द भी नहीं सुने थे | फिर क्यों यहूदी उनके इतने खिलाफ थे ? यह सोचने जैसी बात है , आशिर क्यों ? न तो ईसाइयों के पास इस सवाल का ठीक ठीक जबाब है , और न ही यहूदियों के पास | क्योंकि इस व्यक्ती ने किसी को कोई नुक्सान नहीं पहुंचाया | वे इतने निर्दोष थे , जितनी कि कल्पना की जा सकती |
पर उनका अपराध बहुत सूक्ष्म था | पढ़े-लिखे यहूदीयों और चतुर रबाईयों ने स्पष्ट देख लिया कि वे पूरब से विचार ला रहे हैं, जो हेर यहूदी हैं | वे कुछ अजीवो गरीब और विजातीय बातें ला रहे हैं | और यदि इस दृष्टिकोंण से देखो तो तुम्हे समझ आयगा कि क्यों वे बार बार कहते हैं - " अतीत के पैगम्बरों ने तुमसे कहा था कि कोई तुमसे क्रोध करे , हिंसा करे , तो आँख के बदले आँख लेने और ईंट का जबाब पत्थर से देने को तैयार रहना | मैं तुमसे कहता हूँ कि अगर कोई तुम्हे चोट पहुचाता है , एक गाल पर चांटा मरता है , तो उसे अपना दूसरा गाल भी दिखा देना | " यह पूर्णतः गैर यहूदी बात है | ये बातें गौतम बुद्ध और महावीर की देशनाओं से सीखीं थीं |
-- वे जब भारत आए थे - तब बौद्ध धर्म बहुत जीवित था, यद्यपि बुद्ध की मृत्यु हो चुकी थी | गौतम बुद्ध के पांच सौ साल बाद जीसस यहाँ आय , पर बुद्ध ने इतना विराट आन्दोलन , इतना बड़ा तूफ़ान खडा किया था कि तब तक भी पूरा मुल्क उसमें डूबा हुआ था ; उनकी करुना , क्षमा और प्रेम के उपदेशों को पिए हस था | जीसस कहते हैं अतीत के पैगम्बरों के द्वारा यह कहा गया था " कोंन हैं ये पुराने पैगम्बर ? " वे सभी प्राचीन यहूदी पैगम्बर हैं : इजेकिएल , इलिजाह , मोसेस, - ईश्वर बहुत ही हिंसक है , और वह कभी क्षमा नहीं करता !?
यहाँ तक कि उन्होंने ईश्वर के मुंह से भी यह शब्द कहलवा दिए हैं | पुराने टेस्टामेंट के ईश्वर के वचन हैं , " में कोई सज्जन पुरुष नहीं हूँ , तुम्हारा चाचा नहीं हूँ | मैं बहुत क्रोधी और ईष्यालु हूँ , और याद रहे जो भी मेरे साथ नहीं हैं , वे सब मेरे शत्रु हैं | " और ईशा मसीह कहते हैं कि " मैं तुमसे कहता हूँ : परमात्मा प्रेम है | " यह ख्याल उन्हें कहाँ से आया कि परमात्मा प्रेम है ? गौतम बुद्ध की शिक्षाओं के सिवाय दुनिया में कहीं भी परमात्मा को प्रेम कहने का कोई उल्लेख नहीं है |
-- उन सत्रह वर्षों में जीसस इजिप्त , भारत, लद्दाख और तिब्बत की यात्रा करते रहे | और यही उनका अपराध था कि वे यहूदी परम्परा के बिलकुल अपरिचित और अजनबी विचारधाराएं ला रहे थे | न केवल अपरिचित बल्कि वे बातें यहूदी धारणाओं से एकदम विपरीत थीं |
तुम्हे जानकर आश्चर्य होगा कि अंततः उनकी मृत्यु भी भारत में हुई | और ईसाई रिकार्ड्स इस तथ्य को नजर अंदाज करते रहे हैं | यदी उनकी बात सच है कि जीसस पुनर्जीवित हुए थे , तो फिर पुनर्जीवित होने के बाद उनका क्या हुआ ? आजकल वे कहाँ हैं ? क्यों कि उनकी मृत्यु का तो उल्लेख है ही नहीं ..!
-- सचाई यह है कि वे कभी पुनर्जीवित नहीं हुए | वास्तव में वे सूली पर कभी मरे ही नहीं थे | क्यों कि यहूदियों की सूली आदमी को मरने की सर्वाधिक बेहूदी तरकीब है (अत्यंत कष्टकारक और कई दिन कष्ट देने वाली ) | उससे आदमी को मरने में करीब करीब अडतालीस घंटे लग जाते हैं | चूंकि हाथों और पैरों में कीइलें ठोंक दी जाती हैं , तो बूँद बूँद करके उनसे खून टपकता रहता है | यदी आदमी स्वस्थ है तो साठ घंटे भी ज्यादा लोग जीवित रहे एसे उल्लेख हैं | औसत अडतालीस घंटे तो लग ही जाते हैं | और जीसस को तो सिर्फ छः घंटे बाद ही सूली से उतार दिया गया था | यहूदी-सूली पर; कोई भी छः घंटे में कभी नहीं मरा है , कोई मर ही नहीं सकता है |
( इसके बाद ओशो बताते हैं कि , जीसस को सूली दिए जाने के समय , जूडिया प्रान्त , रोमन साम्राज्य के अंतर्गत था , वहां रोमन वायसराय पोंटियस पायलट तैनात था , निर्दोष जीसस की ह्त्या में उसकी कोई रूचि नहीं थी , मगर पूरा प्रान्त यहूदी था , यहूदी धर्माचार्यों के दबाब में उसे सूली पर लटकने के आदेश देने पड़े, वायसराय और उनकी नौकरशाही ने जीसस को बचाने की भूमिका कूटनीतिक पूर्ण तरीके से रची कि जीसस बच भी जाये और आम यहूदी उसे मरा हुआ मान भी लें ..! इसी क्रम में जीसस को सुबह के बजाये दोपहर में सूली पर लटकाया गया , शुक्रवार को सध्या होते ही यहूदी अपने सारे काम छोड़ देते हैं और शनीवार को पवित्र दिन मनाते हैं , यहूदियों के हटते ही जीसस को उतारा गया और गुफा में रखा गया , पवित्र दिन के बाद पुनः जीसस को सूली पर चड़ने की योजना यहूदी बना चुके थे , मगर उन्हें शिष्यों के साथ रातों रात जूडिया प्रान्त के बाहर निकाल गया , ताकी खतरा टले ..! )
इससे आगे ओशो बताते हैं.....
जीसस भारत में..
-- जीसस ने भारत आना क्यों पशंद किया ? क्यों कि अपनी युवावस्था में भी वे वर्षों तक भारत में रह चुके थे | उन्होंने आध्यात्म का और बृह्म का परम स्वाद इतनी निकटता से चखा था , कि उन्होंने लौटना चाहा | तो जैसे ही स्वस्थ हुए , वे वापस भारत आए और फिर एक सौ बारह साल की उम्र तक जिए |
कश्मीर में अभी भी उनकी कब्र है | उस पर जो लिखा है , वह हिब्रू भाषा में है..., स्मरण रहे भारत में कोई यहूदी नहीं रहते | उस शिलालेख पर खुदा है " जोशुआ " - वह हिब्रू भाषा में ईसा मसीह का नाम है | ' जीसस ' ' जोशुआ ' का ग्रीक रूपांतरण है | जोसुआ यहाँ आये - समय , तारीख़ बगैरह सब दी हैं | एक महान सद्गुरु , जो स्वयं को भेड़ों का गडरिया पुकारते थे , अपने शिष्यों के साथ शांतिपूर्वक एक सौ बारह साल की दीर्घायु तक यहाँ रहे | इसी वजह से वह स्थान ' भेड़ों के चरवाहे का गाँव ' कहलाने लगा, तुम वहां जा सकते हो , वह शहर अभी भी है -' पहलगाम ' उसका कश्मीरी में वही अर्थ है - 'गडरिए का गाँव '
वे यहाँ रहना चाहते थे , ताकि और अधिक आत्मिक विकास कर सकें | एक छोटे से शिष्य समूह के साथ वे रहना चाहते थे ताकी वे सभी शांति में . मौन में डूब कर अध्यात्मिक प्रगति कर सकें और उन्होंने मरना भी यहीं चाहा , क्यों कि यदि तुम जीने की कला जानते हो तो यहाँ जीवन एक सौन्दर्य है , और तुम मरने की कला जानते हो तो यहाँ मरना भी अत्यंत अर्थपूर्ण है |
केवल भारत में ही मृत्यु की कला खोजी गई है , ठीक वैसे ही जैसे जीने की कला खोजी गई है | वस्तुतः तो वे एक ही प्रक्रिया के दो अंग हैं |......
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निष्कर्ष ...
ईशा मसीह की कब्र कश्मीर में है , उनके ज्ञान का संदर्भ भी भर के ही ज्ञान से जुड़ा है , एक प्रभावी खोज होनी चाहिए कि ईसा का संम्बध , एक पुराण में भी सफ़ेद साधू का वर्णन मिलता है, इसलिए यह खोज का विद्या है की ईशा का भारत से क्या संबंध था....!
आचार्य रजनीश
रजनीश चन्द्र मोहन , ओशो के नाम से प्रख्यात हैं जो अपने विवादास्पद नये धार्मिक (आध्यात्मिक) आन्दोलन के लिये मशहूर हुए और भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका में रहे। रजनीश ने प्रचलित धर्मों की व्याख्या की तथा प्यार, ध्यान और खुशी को जीवन के प्रमुख मूल्य माना। ओशो रजनीश (११ दिसम्बर, १९३१ - १९ जनवरी १९९०) का जन्म भारत के मध्य प्रदेश राज्य के जबलपुर शहर में हुआ था। १९६० के दशक में वे आचार्य रजनीश के नाम से ओशो रजनीश नाम से जाने गये। वे एक आध्यात्मिक नेता थे तथा भारत व विदेशों में जाकर प्रवचन दिये।
vicharniy aur pahal karne yogy pst aur sarthak nivedan. kaash! main kuchh kr pata. Alwayas agree & ready if required.
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