कामनवेल्थ, भ्रष्टाचार और बदनामी : सोनिया & राहुल चुप..,
अपमान के कडवे घूँट
- अरविन्द सीसोदिया
याद रहे कि दृढ प्रतिज्ञ ही हमेशा जीतता है और सझौतावादी हमेशा ही हारता है !
ब्रिटिश राष्ट्रमण्डल खेलों की महमान नवाजी भारत कि बहुत मंहगी पड रही है , एक ईसाई महिला के नीचे दबी कांग्रेस की राजनैतिक इच्छा शक्ती का पतन इस तरह का हो चुका है कि हर अन्तर्रष्ट्रीय मामले में ईसाई देश हावी हो गए हैं , इस नेतृत्व कर्त्ता को कभी भारत का अपमान; अपमान नहीं लगता है..!
भारत के आम लोगों की पीड़ा चाहे महंगाई की हो , आतंकवाद की हो , उग्रवाद की हो , नक्सलवाद की हो , बेरोजगारी की हो , भुखमरी की हो , विदेशी आक्रमण की बात हो , इन सभी में भारत के लोगों की चिंता कभी नहीं की जाती है ...! हर नीति में ईसाई फायदा पहले सोचा जाता है , इस तरह की घोर पतन की स्थिती की कल्पना कभी गांधी - नेहरु या स्वतन्त्रता सैनानिंयों ने भी नहीं की होगी ! मुद्रा पर ईसाई क्रास बार बार सिक्कों पर बनाये जा रहे हैं , मदर टेरसा का स्तुती गान हो रहा है ! हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं को लगातार अपमानित किया जा रहा है , अंग्रेजी इस तरह व्यवहार कर रही है मानों वह भारत कि असली शासक हो, देश को उसकी भाषा में न्याय नहीं है , चिकित्सा नहीं है , न अन्य व्यवहार हैं ...! किस तरह अधिक से अधिक विदेशी कंपनीयां फायदा उठायें इसकी चिंता तो है मगर भारतीय कंपनियों का हित कोई नही सोचता..! वाह नव गुलामों ...!! वाह नई गुलामी !!
यह आयोजन धन की लूट और एतिहासिक भ्रष्टाचार की इबारत लिखने में लगा हुआ है ...! १५-२० हजार करोड़ के व्यय के अनुमान से यह आयोजन प्रारंभ हुआ था , अब अन्य खर्चो को छोड़ दिया जाये जो हजारों करोड़ के हैं , तब भी ७० हजार करोड़ से अधिक के व्यय को पार कर रहा है , तब भी काम अभी तक पूरे नहीं हुए , विदेशी कंम्पनियों को ठेके दिए गए देशी कंपनियों की अवेहलना की गई ..!
ज़रा तमीज रखें ; भारत नौकर नहीं ...
ज्यादातर संम्पन्न देशों की ओर से बड़े हल्के किस्म की आलोचनाएँ आ रहीं हैं ...! एक साहब कह रहे हैं कि उन्हें भारत गौरव से क्या लेना देना..? इसका मतलब तो यह हुआ कि वे साहब इस संगठन में होने ही नहीं चाहिए...! भारत संगठन का सदस्य होने के नाते ही यह आयोजन कर रहा है , कोई वह तुम्हारा नौकर थोड़े ही है...!! जिसको संगठन की समझ नहीं है उसे उसमें रहने का कोई अधिकार नहीं है , तुरंत उस व्यक्ति को भारत से बहार किया जाना चाहिए...! भ्रष्टाचार और बदनामी का खूब शोर मचने के बाद भी सोनिया & राहुल चुप.., विदेशी अपमान दर अपमान कर रहे हैं तो भी आप चुप हो , देह की सल्तनत आप के पास है , आपमें से एक अध्यक्ष है और दूसरा महासचिव फिर भी बोलती बंद क्यों ..! क्या रहस्य है..!!
-- ब्रिटेन का प्रतिनिधि जीता , भारत की राष्ट्रपती हारा...!
दिल्ली में 3 से 14 अक्टूबर तक होने वाले कॉमनवेल्थ खेलों का उदघाटन वेल्स के राजकुमार प्रिंस चार्ल्स ही करेंगे। ब्रिटेन के शाही परिवार ने साफ किया है कि महारानी एलिजाबेथ की नामौजूदगी में प्रिंस चार्ल्स ही 19वें कॉमनवेल्थ खेलों का उदघाटन करेंगे। जबकी राजकुमार कि संवैधानिक स्थिती उपराष्ट्रपति स्तर की है |
भारत की राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल सिर्फ उदघाटन संदेश पढ़ेंगी और प्रिंस चार्ल्स से पूछेंगी कि क्या खेल शुरू हों? हालांकि, इससे पहले ये खबर आई थी प्रतिभा पाटिल खेल का आधिकारिक उदघाटन करेंगी और प्रिंस चार्ल्स सिर्फ महारानी की ओर से भेजा गया संदेश पढ़ेंगे। चूंकि महारानी गेम्स में नहीं आ रही हैं और प्रोटोकॉल के मुताबिक राष्ट्रपति का पद ऊंचा है, ऐसे में राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल को गेम्स का शुभारंभ करना चाहिए था। लेकिन ब्रिटेन इसके लिए नहीं माना। दोनों देशों के बीच बातचीत का लंबा दौर चला लेकिन बात नहीं बनी। गौरतलब है कि 1998 में जब मलेशिया में कॉमनवेल्थ खेल आयोजित हुए थे तो वहां के राजा ने औपचारिक उदघाटन किया था। तब महारानी का प्रतिनिधित्व उनके बेटे एडवर्ड ने किया था | ब्रिटिश राजपरिवार ने कहा कि प्रिंस चाल्र्स ही खेलों का उद्घाटन करेंगे। ब्रिटिश महारानी राष्ट्रमंडल देशों की औपचारिक प्रमुख मानी जाती है। पिछले 44 वर्षो में यह पहला अवसर होगा, जब वह इस खेल महाकुंभ के दौरान मौजूद नहीं रहेंगी।
आयोजन की दावेदारी हासिल करने में घूस
--- भारत ने कॉमनवेल्थ खेलों के आयोजन की दावेदारी को हासिल करने के लिए सभी 72 कॉमनवेल्थ देशों को एक-एक लाख डॉलर की घूस दी थी! ‘डेली टेलीग्राफ’ की रिपोर्ट में यह दावा किया गया है। अखबार के मुताबिक खेलों के आयोजन की दावेदारी में जमैका के फाइनल प्रेजेंटेशन में भारत अंतिम समय में पिछड़ गया था। पैसे की पेशकश किए जाने के बाद ही उसे यह दावेदारी हासिल हो सकी। रिपोर्ट के मुताबिक ऑस्ट्रोलिया को भारत से लगभग एक लाख 25 हजार डॉलर की राशि घूस के रूप में मिली थी। जमैका में हुए फाइनल प्रेजेंटेशन में दिल्ली को खेलों की मेजबानी पर मुहर लगी। इसमें सभी 72 देशों को एथलीट ट्रेनिंग स्कीम के नाम पर एक-एक लाख डॉलर (उस समय के लगभग एक लाख 40 हजार डॉलर) दिए गए। जो धन सभी देशों को भारत की ओर से दिया गया वह ऑस्ट्रेलिया के लिए महत्वपूर्ण नहीं रह गया था क्योंकि उसने पहले ही भारत की दावेदारी का समर्थन कर दिया था। लेकिन कई छोटे देश जिनके छोटे-छोटे कई फायदे थे उन्होंने धन लेकर भारत का समर्थन किया जिसकी बदौलत दिल्ली कनेडियन शहर को 46-22 से पछाड़ सकी। हेमिल्टन के आयोजकों ने दावेदारी के लिए सभी देशों को 70-70 हजार अमेरिकी डॉलर की पेशकश की थी।
ग़ुलामी का चापलूसी
-- ३ से १४ अक्टूबर २०१० तक दिल्ली में होने वाले जिन ब्रिटिश राष्ट्रमंडल खेलों के लिए भारत सरकार और दिल्ली सरकार दिन-रात एक कर रही है, पूरी ताकत व अथाह धन झोंक रही है, वे भी इसी गुलामी की विरासत है। इन खेलों में वे ही देश भाग लेते हैं जो पहले ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन रहे हैं। दुनिया के करीब १९० देशों में से महज ७१ देश इसमें शामिल होंगे। इन खेलों की शुरुआत १९१८ में ‘साम्राज्य के उत्सव’ के रुप में हुई थी। राष्ट्रमंडल खेलों की संरक्षक ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय है और उपसंरक्षक वहां के राजकुमार एडवर्ड हैं। हर आयोजन के करीब १ वर्ष पहले महारानी ही इसका प्रतीक डंडा आयोजक देश को सौंपती हैं और इसे ‘महारानी डंडा रिले’ कहा जाता है। इस डंडे को उन्हीं देशों में घुमाया जाता है, जो कभी ब्रिटिश साम्राज्य में रहे हैं। यह रैली हर साल बकिंघम पैलेस से ही शुरु होती है।
धन बर्वादी और व्यर्थ का संकट
-- साम्राज्य और गुलामी की याद दिलाने वाले इन खेलों के दिल्ली में आयोजन की तैयारी कई सालों से चल रही है। ऐसा लगता है कि पूरी दिल्ली का नक्शा बदल जाएगा। कई स्टेडियम, खेलगांव, चौड़ी सडकें , फ्लाईओवर, रेल्वे पुल, भूमिगत पथ, पार्किंग स्थल और कई तरह के निर्माण कार्य चल रहे हैं। पर्यावरण नियमों को ताक में रखकर यमुना की तलछटी में १५८ एकड में विशाल खेलगांव बनाया गया है, जिससे इस नदी और जनजीवन पर नए संकट पैदा होंगे।
-- इस खेलगांव से स्टेडियमों तक पहुंचने के लिए विशेष ४ व ६ लेन के भूमिगत मार्ग और विशाल खंभों पर ऊपर ही चलने वाले मार्ग बनाए जा रहे हैं। दिल्ली की अंदरी और बाहरी, दोनों रिंगरोड को सिग्नल मुक्त बनाया जा रहा है, यानी हर क्रॉसिंग पर फ्लाईओवर होगा। दिल्ली में फ्लाईओवरों व पुलों की सख्या शायद सैकड़ा पार हो जाएगी। एक-एक फ्लाईओवर की निर्माण की लागत ६० से ११० करोड रु. के बीच होती है। उच्च क्षमता बस व्यवस्था के नौ कॉरिडोर बनाए जा रहे हैं। हजारों की संख्या में आधुनिक वातानुकूलित बसों के ऑर्डर दे दिए गए हैं, जिनकी एक-एक की लागत सवा करोड रु. से ज्यादा है।
राष्ट्रभाषा का घोर अपमान
राजभाषा समर्थन समिति मेरठ ; अक्षरम एवं वाणी प्रकाशन दिल्ली की संगोष्ठी कर एक प्रस्ताव पारित किया जो निम्न प्रकार से है , उनके इस कार्य से कितना कुछ हुआ यह विषय नहीं है बल्की विषय यह है कि उनके सहासिक अकरी की तारीफ़ की जानी चाहिए...!
संगोष्ठी में पारित प्रस्ताव
1. राजभाषा समर्थन समिति मेरठ एवं अक्षरम के संयोजन में एक उच्चस्तरीय प्रतिनिधिंमंडल जिसमें सांसद, पत्रकार, साहित्यकार शामिल होंगे गृहमंत्री, गृहराज्यमंत्री, दिल्ली की मुख्य मंत्री, राष्ट्रमंडल खेलों की आयोजन समिति के अध्य़क्ष, खेल मंत्री से मुलाकात कर राजभाषा हिंदी के प्रयोग का प्रश्न उनके संज्ञान में लाएगा।
2. संसद व मीडिया में इस प्रश्न को उठाने के लिए सांसदों तथा मीडियाकर्मियों से संपर्क किया जाए।
3. खेलों की वेबसाइट हिंदी में तुरंत बनाई जाए।
4. दिल्ली पृलिस और नई दिल्ली नगरपालिका द्वारा सभी नामपट्टों व संकेतकों में हिंदी का भी प्रयोग हो ।
5. खेलों के दौरान वितरित की जाने वाली सारी प्रचार सामगी हिंदी में भी तैयार की जाए।
6. खेलों के आंखो देखे हाल के प्रसारण की व्यवस्था हिंदी में भी हो।
7. पर्यटकों व खिलाडियों के लिए होटलों व अन्य स्थानों पर हिंदी की किट भी हो।
8. उदघाटन समारोह व समापन समारोह भारत की संस्कृति व भाषा का प्रतिबिम्ब हो । सांस्कृतिक कार्यक्रम देश की गरिमा के अनुरूप हों। राष्ट्रपति , प्रधानमंत्री व अन्य प्रमुख लोग अपनी भाषा में विचार व्यक्त करें।
9. राष्ट्रमंडल खेलों में हिंदी के प्रयोग के लिए एक जनअभियान चलाया जाए और सरकार द्वारा सुनवाई ना किये जाने पर जंतरमंतर व अन्य स्थानों पर धरने व प्रदर्शन की योजना बनाए जाए।
10. इस अवसर का उपयोग करते हुए राष्ट्रमंडल के देशों में हिंदी के प्रचार – प्रसार के लिए कार्ययोजना तैयार की जाए।
.......
विशेषकर हम हिन्दी ब्लॉग वालों को इस सन्दर्भ में खुल कर बोलना चाहिए...!!
- अरविन्द सीसोदिया
याद रहे कि दृढ प्रतिज्ञ ही हमेशा जीतता है और सझौतावादी हमेशा ही हारता है !
ब्रिटिश राष्ट्रमण्डल खेलों की महमान नवाजी भारत कि बहुत मंहगी पड रही है , एक ईसाई महिला के नीचे दबी कांग्रेस की राजनैतिक इच्छा शक्ती का पतन इस तरह का हो चुका है कि हर अन्तर्रष्ट्रीय मामले में ईसाई देश हावी हो गए हैं , इस नेतृत्व कर्त्ता को कभी भारत का अपमान; अपमान नहीं लगता है..!
भारत के आम लोगों की पीड़ा चाहे महंगाई की हो , आतंकवाद की हो , उग्रवाद की हो , नक्सलवाद की हो , बेरोजगारी की हो , भुखमरी की हो , विदेशी आक्रमण की बात हो , इन सभी में भारत के लोगों की चिंता कभी नहीं की जाती है ...! हर नीति में ईसाई फायदा पहले सोचा जाता है , इस तरह की घोर पतन की स्थिती की कल्पना कभी गांधी - नेहरु या स्वतन्त्रता सैनानिंयों ने भी नहीं की होगी ! मुद्रा पर ईसाई क्रास बार बार सिक्कों पर बनाये जा रहे हैं , मदर टेरसा का स्तुती गान हो रहा है ! हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं को लगातार अपमानित किया जा रहा है , अंग्रेजी इस तरह व्यवहार कर रही है मानों वह भारत कि असली शासक हो, देश को उसकी भाषा में न्याय नहीं है , चिकित्सा नहीं है , न अन्य व्यवहार हैं ...! किस तरह अधिक से अधिक विदेशी कंपनीयां फायदा उठायें इसकी चिंता तो है मगर भारतीय कंपनियों का हित कोई नही सोचता..! वाह नव गुलामों ...!! वाह नई गुलामी !!
यह आयोजन धन की लूट और एतिहासिक भ्रष्टाचार की इबारत लिखने में लगा हुआ है ...! १५-२० हजार करोड़ के व्यय के अनुमान से यह आयोजन प्रारंभ हुआ था , अब अन्य खर्चो को छोड़ दिया जाये जो हजारों करोड़ के हैं , तब भी ७० हजार करोड़ से अधिक के व्यय को पार कर रहा है , तब भी काम अभी तक पूरे नहीं हुए , विदेशी कंम्पनियों को ठेके दिए गए देशी कंपनियों की अवेहलना की गई ..!
ज़रा तमीज रखें ; भारत नौकर नहीं ...
ज्यादातर संम्पन्न देशों की ओर से बड़े हल्के किस्म की आलोचनाएँ आ रहीं हैं ...! एक साहब कह रहे हैं कि उन्हें भारत गौरव से क्या लेना देना..? इसका मतलब तो यह हुआ कि वे साहब इस संगठन में होने ही नहीं चाहिए...! भारत संगठन का सदस्य होने के नाते ही यह आयोजन कर रहा है , कोई वह तुम्हारा नौकर थोड़े ही है...!! जिसको संगठन की समझ नहीं है उसे उसमें रहने का कोई अधिकार नहीं है , तुरंत उस व्यक्ति को भारत से बहार किया जाना चाहिए...! भ्रष्टाचार और बदनामी का खूब शोर मचने के बाद भी सोनिया & राहुल चुप.., विदेशी अपमान दर अपमान कर रहे हैं तो भी आप चुप हो , देह की सल्तनत आप के पास है , आपमें से एक अध्यक्ष है और दूसरा महासचिव फिर भी बोलती बंद क्यों ..! क्या रहस्य है..!!
-- ब्रिटेन का प्रतिनिधि जीता , भारत की राष्ट्रपती हारा...!
दिल्ली में 3 से 14 अक्टूबर तक होने वाले कॉमनवेल्थ खेलों का उदघाटन वेल्स के राजकुमार प्रिंस चार्ल्स ही करेंगे। ब्रिटेन के शाही परिवार ने साफ किया है कि महारानी एलिजाबेथ की नामौजूदगी में प्रिंस चार्ल्स ही 19वें कॉमनवेल्थ खेलों का उदघाटन करेंगे। जबकी राजकुमार कि संवैधानिक स्थिती उपराष्ट्रपति स्तर की है |
भारत की राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल सिर्फ उदघाटन संदेश पढ़ेंगी और प्रिंस चार्ल्स से पूछेंगी कि क्या खेल शुरू हों? हालांकि, इससे पहले ये खबर आई थी प्रतिभा पाटिल खेल का आधिकारिक उदघाटन करेंगी और प्रिंस चार्ल्स सिर्फ महारानी की ओर से भेजा गया संदेश पढ़ेंगे। चूंकि महारानी गेम्स में नहीं आ रही हैं और प्रोटोकॉल के मुताबिक राष्ट्रपति का पद ऊंचा है, ऐसे में राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल को गेम्स का शुभारंभ करना चाहिए था। लेकिन ब्रिटेन इसके लिए नहीं माना। दोनों देशों के बीच बातचीत का लंबा दौर चला लेकिन बात नहीं बनी। गौरतलब है कि 1998 में जब मलेशिया में कॉमनवेल्थ खेल आयोजित हुए थे तो वहां के राजा ने औपचारिक उदघाटन किया था। तब महारानी का प्रतिनिधित्व उनके बेटे एडवर्ड ने किया था | ब्रिटिश राजपरिवार ने कहा कि प्रिंस चाल्र्स ही खेलों का उद्घाटन करेंगे। ब्रिटिश महारानी राष्ट्रमंडल देशों की औपचारिक प्रमुख मानी जाती है। पिछले 44 वर्षो में यह पहला अवसर होगा, जब वह इस खेल महाकुंभ के दौरान मौजूद नहीं रहेंगी।
आयोजन की दावेदारी हासिल करने में घूस
--- भारत ने कॉमनवेल्थ खेलों के आयोजन की दावेदारी को हासिल करने के लिए सभी 72 कॉमनवेल्थ देशों को एक-एक लाख डॉलर की घूस दी थी! ‘डेली टेलीग्राफ’ की रिपोर्ट में यह दावा किया गया है। अखबार के मुताबिक खेलों के आयोजन की दावेदारी में जमैका के फाइनल प्रेजेंटेशन में भारत अंतिम समय में पिछड़ गया था। पैसे की पेशकश किए जाने के बाद ही उसे यह दावेदारी हासिल हो सकी। रिपोर्ट के मुताबिक ऑस्ट्रोलिया को भारत से लगभग एक लाख 25 हजार डॉलर की राशि घूस के रूप में मिली थी। जमैका में हुए फाइनल प्रेजेंटेशन में दिल्ली को खेलों की मेजबानी पर मुहर लगी। इसमें सभी 72 देशों को एथलीट ट्रेनिंग स्कीम के नाम पर एक-एक लाख डॉलर (उस समय के लगभग एक लाख 40 हजार डॉलर) दिए गए। जो धन सभी देशों को भारत की ओर से दिया गया वह ऑस्ट्रेलिया के लिए महत्वपूर्ण नहीं रह गया था क्योंकि उसने पहले ही भारत की दावेदारी का समर्थन कर दिया था। लेकिन कई छोटे देश जिनके छोटे-छोटे कई फायदे थे उन्होंने धन लेकर भारत का समर्थन किया जिसकी बदौलत दिल्ली कनेडियन शहर को 46-22 से पछाड़ सकी। हेमिल्टन के आयोजकों ने दावेदारी के लिए सभी देशों को 70-70 हजार अमेरिकी डॉलर की पेशकश की थी।
ग़ुलामी का चापलूसी
-- ३ से १४ अक्टूबर २०१० तक दिल्ली में होने वाले जिन ब्रिटिश राष्ट्रमंडल खेलों के लिए भारत सरकार और दिल्ली सरकार दिन-रात एक कर रही है, पूरी ताकत व अथाह धन झोंक रही है, वे भी इसी गुलामी की विरासत है। इन खेलों में वे ही देश भाग लेते हैं जो पहले ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन रहे हैं। दुनिया के करीब १९० देशों में से महज ७१ देश इसमें शामिल होंगे। इन खेलों की शुरुआत १९१८ में ‘साम्राज्य के उत्सव’ के रुप में हुई थी। राष्ट्रमंडल खेलों की संरक्षक ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय है और उपसंरक्षक वहां के राजकुमार एडवर्ड हैं। हर आयोजन के करीब १ वर्ष पहले महारानी ही इसका प्रतीक डंडा आयोजक देश को सौंपती हैं और इसे ‘महारानी डंडा रिले’ कहा जाता है। इस डंडे को उन्हीं देशों में घुमाया जाता है, जो कभी ब्रिटिश साम्राज्य में रहे हैं। यह रैली हर साल बकिंघम पैलेस से ही शुरु होती है।
धन बर्वादी और व्यर्थ का संकट
-- साम्राज्य और गुलामी की याद दिलाने वाले इन खेलों के दिल्ली में आयोजन की तैयारी कई सालों से चल रही है। ऐसा लगता है कि पूरी दिल्ली का नक्शा बदल जाएगा। कई स्टेडियम, खेलगांव, चौड़ी सडकें , फ्लाईओवर, रेल्वे पुल, भूमिगत पथ, पार्किंग स्थल और कई तरह के निर्माण कार्य चल रहे हैं। पर्यावरण नियमों को ताक में रखकर यमुना की तलछटी में १५८ एकड में विशाल खेलगांव बनाया गया है, जिससे इस नदी और जनजीवन पर नए संकट पैदा होंगे।
-- इस खेलगांव से स्टेडियमों तक पहुंचने के लिए विशेष ४ व ६ लेन के भूमिगत मार्ग और विशाल खंभों पर ऊपर ही चलने वाले मार्ग बनाए जा रहे हैं। दिल्ली की अंदरी और बाहरी, दोनों रिंगरोड को सिग्नल मुक्त बनाया जा रहा है, यानी हर क्रॉसिंग पर फ्लाईओवर होगा। दिल्ली में फ्लाईओवरों व पुलों की सख्या शायद सैकड़ा पार हो जाएगी। एक-एक फ्लाईओवर की निर्माण की लागत ६० से ११० करोड रु. के बीच होती है। उच्च क्षमता बस व्यवस्था के नौ कॉरिडोर बनाए जा रहे हैं। हजारों की संख्या में आधुनिक वातानुकूलित बसों के ऑर्डर दे दिए गए हैं, जिनकी एक-एक की लागत सवा करोड रु. से ज्यादा है।
दिल्ली 2010 - खेलों की नई शुरुआत
दिल्ली में 19वें कॉमनवेल्थ गेम्स में लगभग 71 टीमों के भाग लेने की संभावना है। इन राष्ट्रों के मण्डल के 53 सदस्यों के साथ ब्रिटेन, ब्रिटिश क्राउन डिपेंडेंसीज और ब्रिटेन विदेशी क्षेत्रों के घटक देशों के लिए अलग अलग टीमें शामिल हैं। 1966 में जमैका और 1998 में मलेशिया के बाद भारत तीसरा विकासशील देश है जो इस आयोजन की मेजबानी कर रहा है।
खेलों की सूची में १७ खेल शामिल हैं। इनमें तीरंदाजी, एक्वेटिक्स, एथलेटिक्स, बैडमिंटन, बॉक्सिंग, साइकिलिंग, जिमनास्टिक, हॉकी, लॉन बाउल, नेटबॉल, रग्बी सेवेन, शूटिंग, स्क्वॉश, टेबल टेनिस, टेनिस, भारोत्तोलन और कुश्ती शामिल है। विशिष्ट विकलांग एथलिटों के लिए 4 खेलों में 15 स्पर्धाएं आयोजित होंगी। इनमें एथलेटिक्स, तैराकी, पॉवरलिफ्टिंग और टेबल टेनिस है।राष्ट्रभाषा का घोर अपमान
राजभाषा समर्थन समिति मेरठ ; अक्षरम एवं वाणी प्रकाशन दिल्ली की संगोष्ठी कर एक प्रस्ताव पारित किया जो निम्न प्रकार से है , उनके इस कार्य से कितना कुछ हुआ यह विषय नहीं है बल्की विषय यह है कि उनके सहासिक अकरी की तारीफ़ की जानी चाहिए...!
संगोष्ठी में पारित प्रस्ताव
1. राजभाषा समर्थन समिति मेरठ एवं अक्षरम के संयोजन में एक उच्चस्तरीय प्रतिनिधिंमंडल जिसमें सांसद, पत्रकार, साहित्यकार शामिल होंगे गृहमंत्री, गृहराज्यमंत्री, दिल्ली की मुख्य मंत्री, राष्ट्रमंडल खेलों की आयोजन समिति के अध्य़क्ष, खेल मंत्री से मुलाकात कर राजभाषा हिंदी के प्रयोग का प्रश्न उनके संज्ञान में लाएगा।
2. संसद व मीडिया में इस प्रश्न को उठाने के लिए सांसदों तथा मीडियाकर्मियों से संपर्क किया जाए।
3. खेलों की वेबसाइट हिंदी में तुरंत बनाई जाए।
4. दिल्ली पृलिस और नई दिल्ली नगरपालिका द्वारा सभी नामपट्टों व संकेतकों में हिंदी का भी प्रयोग हो ।
5. खेलों के दौरान वितरित की जाने वाली सारी प्रचार सामगी हिंदी में भी तैयार की जाए।
6. खेलों के आंखो देखे हाल के प्रसारण की व्यवस्था हिंदी में भी हो।
7. पर्यटकों व खिलाडियों के लिए होटलों व अन्य स्थानों पर हिंदी की किट भी हो।
8. उदघाटन समारोह व समापन समारोह भारत की संस्कृति व भाषा का प्रतिबिम्ब हो । सांस्कृतिक कार्यक्रम देश की गरिमा के अनुरूप हों। राष्ट्रपति , प्रधानमंत्री व अन्य प्रमुख लोग अपनी भाषा में विचार व्यक्त करें।
9. राष्ट्रमंडल खेलों में हिंदी के प्रयोग के लिए एक जनअभियान चलाया जाए और सरकार द्वारा सुनवाई ना किये जाने पर जंतरमंतर व अन्य स्थानों पर धरने व प्रदर्शन की योजना बनाए जाए।
10. इस अवसर का उपयोग करते हुए राष्ट्रमंडल के देशों में हिंदी के प्रचार – प्रसार के लिए कार्ययोजना तैयार की जाए।
.......
विशेषकर हम हिन्दी ब्लॉग वालों को इस सन्दर्भ में खुल कर बोलना चाहिए...!!
याद रहे कि दृढ प्रतिज्ञ ही हमेशा जीतता है और सझौतावादी हमेशा ही हारता है ! .... बिलकुल सही बात
जवाब देंहटाएंअक्षरम एवं वाणी प्रकाशन दिल्ली की संगोष्ठी में हिंदी के प्रचार-प्रसार के दिशा में पारित प्रस्ताव निसंदेह स्वागत योग्य हैं बस यह बात आयोजनकर्ता समझ जाते तो कितना अच्छा होता ..आखिर राष्ट्रभाषा हिंदी के सम्मान के बारे हर किसी हो पहल करने चाहिए ...
बहुत सार्थक आलेख ...धन्यवाद
आपकी रचना चोरी हो गयी है .....
जवाब देंहटाएंयहाँ देखे :-
http://chorikablog.blogspot.com/2010/09/blog-post_29.html