नेताजी सुभाषचन्द्र बोस होते तो विभाजन नहीं होता - अरविन्द सिसौदिया Netaji Subhas Chandra Bose

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को बहुत बहुत धन्यवाद जिनके निर्णय से महान और सच्चे देशभक्त एवं प्रथम स्वतंत्र भारत की सरका के मुखिया को दिल्ली में इण्डिया गेट पर स्थान प्रदान कर योग्य सम्मान दिया । 
 
महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू की कांग्रेस में सच्च राष्ट्रवादियों के साथ शत्रुओं से भी ज्यादा बुरा व्यवहार होता था, इसका उदाहरण नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का संर्घष और सरदार वल्लभभाई पटेल की उपेक्षा साबित करती है। आज नहीं तब भी कांग्रेस में राजकुमारों का ही रूतवा होता था । इसका उदाहरण मोतीलाल नेहरू जी के पुत्र जवाहरलाल नेहरू जी है।

यह पोस्ट 2022 की है, इसे उसी संदर्भ से ग्रहण करें । सादर।


कांग्रेस की युवा राजनीति में सबसे अधिक लोकप्रिय नेताजी सुभाषचन्द्र बोस थे , यह टीस हमेशा जवाहरलाल नेहरू जी को रहती थी। किन्तु कांग्रेस राजकुमार जवाहरलाल नेहरू जी ही थे क्यों कि वे मोतीलाल जी नेहरू के पुत्र थे एवं मोतीलाल जी नेहरू को किसी की कोई परवाह इसलिये नहीं थी कि वे स्वयं चुनावी राजनीति में जमें हुये थे एवं अंग्रेज अफसरों से भी उनकी अच्छी पटरी बैठती थी।

विश्व राजनीति की समझ के साथ साथ शक्ति की आवश्यकता से भी नेताजी परिचित थे। महात्मा गांधी हमेशा ही अहिंसा और ब्रिटिश सरकार के पक्षधर रहे जबकि बोस चाहते थे की अन्तर्राष्ट्रीय स्थितियों का फायदा भारत उठाये। महात्मा गांधी की नीतियों का विरोध जनता में भी था और कांग्रेस में भी , यही कारण हुआ कि महात्मा गांधी समर्थित कांग्रेस का प्रत्याशी अध्यक्ष का चुनाव हार गया और सुभाषचन्द्र बोस कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव जीत गये।

महात्मा गांधी ने सुभाषचन्द्र बोस को कांग्रेस छोडनें पर मजबूर किया और अन्तः उन्हे देश भी छोडना पडा । वे रूस होते हुये जर्मनी और जापान गये उनकी मदद से आगे बढ़े । आजाद हिन्द फौज के सेनापति बनें । जापान की फौज के सहयोग से विजयी क्षेत्र में सबसे पहले भारत की स्वतंत्रता का ध्वज अंडमान में लहराया गया, नेताजी की स्वतंत्र भारत सरकार को 9 से अधिक देशों ने मान्यता दी थी। यह भारत की प्रथम स्वतंत्र सरकार थी। 1947 में स्वतंत्र भारत की द्वितीय सरकार बनीं थी। जो वर्तमान में भी चल रही है।

यदि कांग्रेस ने नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की बातों को माना होता,उन्हे देश छोडनें पर मजबूर नहीं किया होता, तो यह तय था कि देश विभाजित नहीं होता एवं अखण्ड भारत के रूप में स्वतंत्र होता तथा महात्मा गांधी की हत्या भी नहीं होती । 

नेताजी सुभाषचन्द्र बोस को कांग्रेस सरकार ने उतना सम्मान कभी नहीं दिया जितनें की आवश्यकता थी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने ही सरदार वल्लभ भाई पटेल एवं नेताजी सुभाषचन्द्र बोस को वह सम्मान दिया जिसके वे हकदार है।

नेताजी की बेटी ने किया सरकार के फैसले का स्वागत
उधर, जर्मनी में रह रहीं नेताजी सुभाष चंद्र बोस की बेटी अनीता बोस-फाफ ने मूर्ति स्थापना को अच्छा कदम बताया। उन्होंने इस फैसले का देर आए दुरुस्त आए बताया और कहा कि इस घोषणा ने उन्हें चौंका दिया। उन्होंने कहा, 'मैं फैसले से बहुत खुश हूं। यह (इंडिया गेट) बहुत अच्छा स्थान है। मुझे निश्चित रूप से खुशी है कि उनकी प्रतिमा को इतने प्रमुख स्थान पर लगाया जाएगा। मुझे आश्चर्य है कि यह अब अचानक हुआ। किसी ने थोड़ी तैयारी की होगी पहले, लेकिन मुझे कहना होगा कि देर आए दुरुस्त आए।'

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नेताजी सुभाषचन्द्र बोस, मास्को जेल में..?

 

नेताजी सुभाषचन्द्र बोस, मास्को जेल में..?
https://arvindsisodiakota.blogspot.com/2010/10/blog-post_25.html

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इंडिया गेट पर भव्य प्रतिमा नेताजी सुभाष चंद्र बोस - नरेंद्र मोदी
   grand statue Netaji Subhas Chandra Bose at India Gate 

                             - Narendra Modi

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प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट कर लिखा है, 

 "नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती के उपलक्ष्य में, इंडिया गेट पर ग्रेनाइट की बनी उनकी भव्य मूर्ति प्रतिष्ठित की जाएगी. ये प्रयास उनके लिए भारत की कृतज्ञता का एक प्रतीक होगा."

उन्होंने एक अन्य ट्वीट में कहा कि जब तक उनकी मूर्ति पूरी नहीं होती, तब तक उस जगह पर एक होलोग्राम से बनी मूर्ति रहेगी, जिसका अनावरण 23 जनवरी को नेताजी की जयंती पर प्रधानमंत्री करेंगे.

Narendra Modi-
At a time when the entire nation is marking the 125th birth anniversary of Netaji Subhas Chandra Bose, I am glad to share that his grand statue, made of granite, will be installed at India Gate. This would be a symbol of India’s indebtedness to him.

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नेताजी सुभाषचन्द्र बोस, मास्को जेल में..?
https://arvindsisodiakota.blogspot.com/2010/10/blog-post_25.html

नेताजी सुभाषचन्द्र बोस, मास्को जेल में..?  

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यहां पहले किसकी मूर्ति लगी थी ?

बता दें कि दिल्ली में जहां इंडिया गेट बना है, वहां आसपास एक बड़ा सा पार्क है. इस पार्क में ही ये छतरी बनी है, जो इंडिया गेट के सामने है. बता दें कि जब इंडिया गेट बनकर तैयार हुआ था तब इसके सामने जार्ज पंचम की एक मूर्ति लगी हुई थी. इसे बाद में ब्रिटिश राज के समय की अन्य मूर्तियों के साथ कोरोनेशन पार्क में स्थापित कर दिया गया. यह 1960 के दशक तक यहां लगी थी और 1968 में इसे हटाया गया था. अब जार्ज पंचम की मूर्ति की जगह प्रतीक के रूप में केवल एक छतरी भर रह गई है, जहां अब नेताजी की फोटो लगाई जाएगी. बता दें कि कोरोनेशन पार्क दिल्ली में निरंकारी सरोवर के पास बुरारी रोड़ पर है.

कौन थे जॉर्ज पंचम ?

जॉर्ज पंचम यूनाइटेड किंगडम के किंग थे और ब्रिटिश भारत में 1910 से 1936 तक यहां के शासक भी थे. जॉर्ज के पिता महाराज एडवर्ड सप्तम की 1910 में मृत्यु होने पर वे महाराजा बने. वे एकमात्र ऐसे सम्राट थे जो कि दिल्ली दरबार में, खुद अपनी भारतीय प्रजा के सामने प्रस्तुत हुए. जहां उनका भारत के राजमुकुट से राजतिलक हुआ. जॉर्ज को उनके अंतिम दिनों में प्लेग और अन्य बीमारियों की वजह से मौत हो गई थी. साथ ही उन्होंने पहले विश्व युद्ध में अहम भूमिका निभाई थी. उस दौरान वो ऐसे किंग थे, जिन्होंने अस्पताल,फैक्ट्रियों का दौरा किया था, जिसके बाद उनका आदर और भी बढ़ गया था. साथ ही इंडिया गेट का भी विश्व युद्ध से कनेक्शन है, इसलिए उनकी मूर्ति यहां लगाई गई थी.

इंडिया गेट क्यों बना ?

इंडिया गेट स्मारक ब्रिटिश सरकार द्वारा 1914-1921 के बीच अपनी जान गंवाने वाले ब्रिटिश भारतीय सेना के सैनिकों की याद में बनाया गया था. करीब अपने फ्रांसीसी समकक्ष के समान, यह उन 70,000 भारतीय सैनिकों को याद करता है, जिन्होंने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश सेना के लिए लड़ते हुए अपनी जान गंवा दी थी. स्मारक में 13,516 से अधिक ब्रिटिश और भारतीय सैनिकों के नाम हैं जो पश्चिमोत्तर सीमांत अफगान युद्ध 1919 में मारे गए थे.

इंडिया गेट की आधारशिला उनकी रॉयल हाइनेस, ड्यूक ऑफ कनॉट ने 1921 में रखी थी और इसे एडविन लुटियन ने डिजाइन किया था. स्मारक को 10 साल बाद तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इरविन ने राष्ट्र को समर्पित किया था.


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