महान बलिदानी पृथ्वीराज चौहान,चार बांस, चौबीस गज, अंगुल अष्ठ प्रमाण...! Kingh Prthviraj Chouhan


 "मत चूको चौहान ! - वसन्त पंचमी का शौर्य"...

चार बांस, चौबीस गज, अंगुल अष्ठ प्रमाण...!
ता उपर सुल्तान है, चूको मत चौहान..!!



वसंत पंचमी का दिन हमें "हिन्द शिरोमणि पृथ्वीराज चौहान" की भी याद दिलाता है। उन्होंने विदेशी इस्लामिक आक्रमणकारी मोहम्मद गौरी को 16 बार पराजित किया और उदारता दिखाते हुए हर बार जीवित छोड़ दिया। पर जब सत्रहवीं बार वे पराजित हुए, तो मोहम्मद गौरी ने उन्हें नहीं छोड़ा। वह उन्हें अपने साथ बंदी बनाकर काबुल,  अफगानिस्तान ले गया। और वहाँ उनकी आंखें फोड़ दीं।

पृथ्वीराज का राजकवि चन्दबरदाई पृथ्वीराज से मिलने के लिये काबुल पहुंचा। वहाँ पर कैद खाने में पृथ्वीराज की दयनीय हालत देखकर चन्दवरदाई के हृदय को गहरा आघात लगा और उसने गौरी से बदला लेने की योजना बनाई।

चन्दवरदाई ने गौरी को बताया कि हमारे राजा एक प्रतापी सम्राट हैं और इन्हें शब्दभेदी बाण (आवाज की दिशा में लक्ष्य को भेदना) चलाने में पारंगत हैं। यदि आप चाहें तो इनके शब्दभेदी बाण से लोहे के सात तवे बेंधने का प्रदर्शन आप स्वयं भी देख सकते हैं।

इस पर गौरी तैयार हो गया और उसके राज्य में सभी प्रमुख ओहदेदारों को इस कार्यक्रम को देखने हेतु आमंत्रित किया..

पृथ्वीराज और चन्दवरदाई ने पहले ही इस पूरे कार्यक्रम की गुप्त मंत्रणा कर ली थी कि उन्हें क्या करना है ! निश्चित तिथि को दरबार लगा और गौरी एक ऊंचे स्थान पर अपने मंत्रियों के साथ बैठ गया।

चन्दवरदाई के निर्देशानुसार लोहे के सात बड़े-बड़े तवे निश्चित दिशा और दूरी पर लगवाये गये। चूँकि पृथ्वीराज की आँखे निकाल दी गई थी और वे अंधे थे, अतः उनको कैद एवं बेड़ियों से आजाद कर बैठने के निश्चित स्थान पर लाया गया। उनके हाथों में धनुष बाण थमाया गया। इसके बाद चन्दवरदाई ने पृथ्वीराज के वीर गाथाओं का गुणगान करते हुए बिरूदावली गाई तथा गौरी के बैठने के स्थान को इस प्रकार चिन्हित कर पृथ्वीराज को अवगत करवाया
_'' चार बांस " चौबीस गज, अंगुल अष्ठ प्रमाण..._ 
 _ता ऊपर सुल्तान है, चूको मत चौहान..!!_


अर्थात् चार बांस, चौबीस गज और आठ अंगुल जितनी दूरी के ऊपर सुल्तान बैठा है, इसलिये चौहान चूकना नहीं, अपने लक्ष्य को हासिल करो।*
इस संदेश से पृथ्वीराज को गौरी की वास्तविक स्थिति का आंकलन हो गया। तब चन्दवरदाई ने गौरी से कहा कि पृथ्वीराज आपके बंदी हैं, इसलिए आप इन्हें आदेश दें, तब ही यह आप की आज्ञा प्राप्त कर अपने शब्दभेदी बाण का प्रदर्शन करेंगे।

इस पर ज्यों ही गौरी ने पृथ्वीराज को प्रदर्शन की आज्ञा का आदेश दिया, पृथ्वीराज को गौरी की दिशा मालूम हो गई और उन्होंने तुरन्त बिना एक पल की भी देर किये अपने एक ही बाण से गौरी को मार गिराया।
गौरी उपर्युक्त कथित ऊंचाई से नीचे गिरा और उसके प्राण पंखेरू उड़ गये। चारों और भगदड़ और हाहाकार मच गया। इस बीच पृथ्वीराज और चन्दवरदाई ने पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार एक-दूसरे को कटार मार कर अपने प्राण त्याग दिये।


"आत्मबलिदान की यह घटना भी 1192 ई. वसंत पंचमी वाले दिन की है। ये गौरवगाथा अपने बच्चों/मित्रों को अवश्य सुनाइये।"

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